अर्थराइटिस यानि वात की बीमारी

वात रोग/Arthritis एक खतरनाक बीमारी

कैसे उत्पन्न होता है अर्थराइटिस/वातरोग-

शरीर के 3 दोष जो "वात-पित्त-कफ"
के विषम होने से होते है, इन्हें त्रिदोष कहते हैं।
आयुर्वेद के ग्रन्थ "
आयुर्वेद चिकित्सा"

आदर्श निघण्टु
सुश्रुत सहिंता के अनुसार वातविकार/Arthritis सबसे घातक होता है।इसके कुपित होने या बिगड़ने से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। वात रोग या वायु प्रकोप प्राणी की शक्ति लोप कर देता है। थायराईड/ग्रंथिशोथ/स्लिप डिस्क/कमरदर्द/घुटनों में दर्द, जोड़ों की पीड़ा/ शरीर में कमजोरी/शिथिलता/आलस्य बने रहना, कोई काम करने की इच्छा नहीं होना/याददास्त कमजोर हो जाना आदि बीमारियों का कारण वात-विकार बताया गया है! क्यों कि इसकी वजह से पूरे शरीर में दर्द-पीड़ा हमेशा बनी रहती है। वातरोग दिमाग को शून्यकर, शरीर को क्रियाहीन कर देता है।

वात की बीमारी तन के किसी भी जोड़/जॉइंट में हो सकती है। इसमें हाथ या पैर का अंगूठा शामिल है। शरीर में 64 जोड़/,जॉइंट होते हैं , जिनमें धीरे-धीरे, थोड़ा-थोड़ा दर्द शुरू होता है। यह सब शरीर में ब्लड सर्कुलेशन प्रॉपर  न होने की वजह से होता है।

क्या है वात व्याधि-

वात व्याधि एक चिकित्सिकीय स्थिति है आमतौर पर तीव्र प्रदाहक गठिया—लाल, संवेदनशील, गर्म, सूजे हुए जोड़ के आवर्तक हमलों के द्वारा पहचाना जाता है।

लगभग 50% मामलों में
पैर के अंगूठे के आधार पर टखने और अंगूठे के बीच का जोड़ सबसे ज़्यादा प्रभावित होता है  लेकिन, यह टोफी, गुर्दे की पथरी, या यूरेट अपवृक्कता में भी मौजूद हो सकता है। यह खून में यूरिक एसिड के ऊंचे स्तर के कारण होता है। यूरिक एसिड क्रिस्टलीकृत हो जाता है और क्रिस्टल जोड़ों, स्नायुओं और आस-पास के ऊतकों में जमा हो जाता है।

हाल के दशकों में वात रोक की आवृत्ति में वृद्धि हुई है और यह लगभग 1-2% पश्चिमी आबादी को उनके जीवन के किसी न किसी बिंदु पर प्रभावित करता है। माना जाता है कि यह वृद्धि जनसंख्या बढ़ते हुए जोखिम के कारकों की वजह से है, जैसे कि चपापचयी सिंड्रोम, अधिक लंबे जीवन की प्रत्याशा और आहार में परिवर्तन। ऐतिहासिक रूप से वात रोग को "राजाओं की बीमारी" या "अमीर आदमी की बीमारी" के रूप में जाना जाता था।

जो लोग वात रोग/हैंअर्थराइटिस
से पीड़ित होते हैं, उनका तन-मन खोखला हो जाता है। इस बात का उन्हें पता नहीं लगता।
जवानी के दिनों में यदि पुरुषार्थ या कामेच्छा की कमी हो जाए, तो समझे कि आप कहीं न कहीं शरीर में वात विषम हो रहा है। वात रोग-हैं। इसलिए इसकी प्राकृतिक चिकित्सा तत्काल करनी चाहिए।

वात की बीमारियां सहवास/सेक्स की इच्छा को खल्लास कर देती हैं। इसका कारण वायु का प्रकोप ही है

आयुर्वेद शास्त्रों में 88 प्रकार के थायराइड/ग्रंथिशोथ/जोड़ों व कमर की तकलीफ/गांठे होना आदि वात रोग/हैंअर्थराइटिस
जैसे रोग वायु के विषम होने से पैदा हो जाते
हैं।

क्या कारण हैं अर्थराइटिस/वात रोग के-

अमृतम आयुर्वेद ग्रंथों में उल्लेख है कि-

पेट की खराबी, पाचन तंत्र की गड़बड़ी,
चयापचय/मेटाबोलिज्म के बिगड़ने से उदर में गैस बनने लगती है। कब्जियत होने से पेट में मल सड़ने लगता है, जिस कारण वायु रोग उत्पन्न होने लगते है। यह उदर वायु/गेस बनकर जब बाहर नहीं निकल पति है, तो शरीर की कोशिकाओं, अवयवों और रक्त नाडियों को दूषित तथा बाधित कर देती है। इसकी वजह से पूरे शरीर में दर्द होने लगता है।व
फिर थायराइड, सूजन, अकड़न, जकड़न होने लगती है। भूख खत्म हो जाती है। खून की कमी होने लगती है। यूरिक एसिड बढ़ने लगता है।
याददास्त कमजोर होने लगती है।
रात में समय पर नींद नहीं आती।
स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है।
शरीर में सुन्नपन आने लगता है।
हाथ-पैरों में कम्पन्नता होती रहती है।
कम उम्र में ही बुढापा दिखने लगता है।
और भी अनेक वात की बीमारियां पैदा होती हैं।

वात से रात खराब हो जाती है।

नींद पूरी नहीं होती।

चिड़चिड़ाहट,गुस्सा,क्रोध उत्पन्न होता है।

व्यक्ति सदा तनावग्रस्त रहता है।

वात रोग हालात बिगाड़कर तन को हर तरीके से बर्बाद करने में कसर नहीं छोड़ता।

क्या कहता है प्राचीन आयुर्वेद-

वातोदयात भवेच्चिते,
जड़ताsस्थिरताभयम ।
शुन्यत्वम विस्मृति:
श्रान्तिररतिच्चित्तविभ्रम: ।।

भावार्थ-

अर्थराइटिस/वात-रोग के कारण शरीर में जब वायु का प्रकोप होता है, तब स्थिरता आने लगती है।किआत्मविश्वास क्षीण हो जाता है। व्यक्ति निर्णय या निश्चय नहीं कर पाता । बार-बार निर्णय बदलता रहता है। शरीर में वायु की तीव्रता या वात की अधिकता होने पर ऐसा होता है ।

वायु प्रकोप का दुष्प्रभाव-

वात-विकार से शरीर में हाहाकार होने लगता है। व्यक्ति बीमार होकर इन रोगों से पीड़ित रहता है—–

【】अंग-अंग में दर्द रहने से जीवन के  रंग में भंग होना

【】शरीर के सभी जोड़ों, घुटनो, कमर, पीठ, हाथ-पावँ में तीव्र वेदना बनी रहना

【】सुस्ती, शिथिलता व आलस्य होना

【】काम करने का मन नहीं होना।

【】बार-बार खट्टी डकारें आती हैं

【】चलने-फिरने, उठने-बैठने में भय होना

【】उदर की नाड़ियां कड़क व जाम होना

【】हड्डियां कमजोर होना,हड्डियां जल्दी टूटना

【】हड्डियां में चटकने की आवाज होती है

【】रस व रक्त कम होने से हड्डियों में रस व रक्त की मात्रा लगातार घटती जाना।

【】वीर्य  वीर्य क्षीण एवं पतला होने से नपुंसकता आना। बहुत समय तक सेक्स की इच्छा न होना।

【】ग्रंथिशोथ (थायरॉइड) जैसे रोगों का पैदा होना

【】हाथ-पैर व गले में सूजन रहना

【】शरीर में कम्पन्न, बोलने में लड़खड़ाहट होना।

【】शरीर में झुनझुनाहट एवं शून्य हो जाना

【】अचानक पेशाब-मल छूट जाना

【】स्नायुओं में दुर्बलता/कमजोरी आना

【】जोड़ों में भयँकर दर्द बने रहना

【】शरीर के अंगों का अकड़ जाना एवं

【】हाथ-,पैरों में हमेशा टूटन/तकलीफ होना

वात रोगों से बचने का उपाय-

वात रोग/वायु रोग/थायराइड/पुरुषेन्द्रीय विकार एवं अनेक आधि-व्याधि का स्थाई इलाज आयुर्वेद में  उपलब्ध है।

यदि व्यक्ति में धैर्य हो,तो  88 प्रकार के साध्य या असाध्य वात-व्याधियों  को पूरी तरह मिटाया जा सकता है।

वातरोग की हर्बल चिकित्सा-

इसके लिए  3 माह तक ऑर्थोकी बास्केट का सेवन करें,तो निश्चित ही हमेशा के लिए मुक्ति मिल सकती है।

कब और कैसे सेवन करें

ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट

1 से 2 चम्मच सुबह-शाम को खाने से पहले गर्म दूध या पानी से

ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल-1

गुनगुने दूध से सुबह खाली पेट एवं रात्रि में खाने से पहले 3 महीने तक लगातार लेवें।प्रत्येक शनिवार ऑर्थोकी ऑयल दर्द के स्थान पर हल्के हाथ से सुबह-शाम लगाएं प्रतिदिन दर्द के स्थान पर हल्के हाथ से ऑर्थोकी पेन आयल की मालिश करें

ऑर्थराइटिस/थायराइड एवं ऑर्थोकी
के बारे में विस्तार से
जानने हेतु पुराने ब्लॉग पढ़ें

amrutam.co.in

RELATED ARTICLES

Talk to an Ayurvedic Expert!

Imbalances are unique to each person and require customised treatment plans to curb the issue from the root cause fully. We recommend consulting our Ayurveda Doctors at Amrutam.Global who take a collaborative approach to work on your health and wellness with specialised treatment options. Book your consultation at amrutam.global today.

Learn all about Ayurvedic Lifestyle