आंतों से जुड़े गंभीर विकार- “क्रोंस डिजीज”
आंतों से जुड़े गंभीर विकार- “क्रोंस डिजीज” यानि पाचन तंत्र की परत को प्रभावित करने वाला पुराना रोग जिसमें पाचन तंत्र और आंतों में सूजन आ जाती है।
स्वास्थ्य रक्षक किताबों के मुताबिक –
पेट साफ करने वाली दस्तावर मेडिसिन एवं प्रतिदिन कब्ज दूर करने वाले चूर्ण, टेबलेट व गोली के सेवन नहीं करने की सलाह दी जाती है। क्यों की रोज-रोज कब्ज मिटाने वाली दवाओं से होती हैं कई बीमारियां और ऑटोइम्यून डिजीज।
अच्छे स्वास्थ्य के लिए समय पर मल विसर्जन बहुत जरूरी है। दस्त साफ लाने, कब्ज को मिटाने और पेट को साफ रखने के लिए रोज-रोज दस्तावर, कब्ज मिटाने वाले पावडर, कैप्सूल, टेबलेट व गोली के सेवन करने से होती हैं अनेको परेशानियांऔर उदर रोग जैसे “ऑटोइम्यून डिजीज” यानि स्वप्रतिरक्षित रोग एवं आंतों से जुड़े गंभीर विकार- “क्रोंस डिजीज” यानि पाचन तंत्र की परत को प्रभावित करने वाला पुराना रोग जिसमें पाचन तंत्र और आंतों में सूजन, चिकनापन ओर खराबी आ जाती है।
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कैसे पनपता है यह रोग —
प्रदूषित वायु या वातावरण और हमारे खुद के शरीर में स्थित अनेक हानिकारक संक्रमण/वायरस और जीवाणु (बैक्टीरिया) हमारे शरीर और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता उन्हें नुकसान पहुंचाने से रोकती है और शरीर की रक्षा करती है। हमारा इम्यून सिस्टम इस तरह से बनाया गया है कि ये हानिकारक जीवाणुओं को खत्म करे और शरीर के लिए जरूरी बैक्टीरिया को नुकसान न पहुंचाए। मगर कई बार इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी की वजह से इम्यून सिस्टम हानिकारक और जरूरी बैक्टीरिया के बीच अंतर नहीं कर पाता है और शरीर के स्वस्थ ऊतकों को ही नुकसान पहुंचाने लगता है। इसकी वजह से हमारे जोड़ों, नसों, मांसपेशियों, हड्डियों, और त्वचा आदि पर प्रभाव पड़ता है। इन्हीं रोगों को ऑटोइम्यून डिजीज कहते हैं।
ऑटोइम्यून डिजीज का कारण
शोध में पाया गया है कि “ऑटोइम्यून डिजीज” के आमतौर पर दो कारण होते हैं। पहला कि ये आपके शरीर में आपके पूर्वजों से यानि अनुवांशिक रूप से आया हो। आपका इम्यून सिस्टम कमजोर हो। ये तकलीफ वातावरण में मौजूद संक्रमण/वायरस के कारण भी हो सकती है। शोध में ये भी पाया कि इसका कारण हार्मोन्स में कोई गड़बड़ी भी हो सकती है। ऑटोइम्यून डिजीज कई बार बहुत खतरनाक हो सकता है।
ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune diseases) यानि रोग स्वप्रतिरक्षित रोग वे कहलाते हैं जिनके होने पर किसी जीव की प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही ऊतकों (tissue) या शरीर में उपस्थित अन्य पदार्थों को रोगजनक (pathogen) अर्थात कोई भी बीमारी पैदा करने वाले एजेंट(विशेषकर वायरस या जीवाणु या अन्य सूक्ष्मजीव) समझने की गलती कर बैठती है और उन्हें समाप्त करने के लिये उन पर हमला कर देती है। इस प्रकार का रोग शरीर के किसी एक अंग में सीमित हो सकता है (जैसे स्वप्रतिरक्षित थायराइड शोथ(autoimmune thyroiditis) या शरीर के विभिन्न स्थानों पर एक विशेष प्रकार के ऊतक (tissue) को प्रभावित कर सकता है।
स्वप्रतिरक्षित रोग (Autoimmune diseases)वातावरण में मौजूद संक्रमण/वायरस के कारण भी हो सकता है। एक ऐसा रोग जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने लगती है।
ऑटोइम्यून बीमारी तब होती है जब शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों, संक्रमणों, और खाने में मौजूद अशुद्धिओं को दूर करने के लिए हमारी प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) संघर्ष करती है। इस बीमारी के होने के बाद शरीर के ऊतक (टिश्यू) ही शरीर को बीमार और कमजोर बनाने लगते हैं। यह रोग अर्थराइटिस, डायबिटीज, सोराइसिस जैसे विकारों का कारण बन सकता है।इस रोग से पुरुषों की तुलना में इस रोग से महिलाएं ज्यादा पीड़ित हैं।
ऑटोइम्यून बीमारी के लक्षण :-
【】शरीर व जोड़ों में दर्द, सूजन, थकान, आलस्य, थायराइड, नींद न आना आदि।
【】मांसपेशियों में दर्द और कमजोरी होना
【】लगातार वजन कम होते जाना
【】दिल की धड़कन अनियंत्रित होना
【】त्वचा का अतिसंवेदनशील होना,
【】त्वचा पर धब्बे और चकत्ते पड़ना
【】भूख व खून की कमी
【】तंत्रिका संबंधी गड़बड़ी
【】पेट में दर्द होना,
【】मुंह में छाले होनामानसिक समस्याएं जैसे –
【】दिमाग ठीक से काम न करना,
【】ध्यान केंद्रित करने में समस्या
【】एकाग्रता में कमी
【】चक्कर आना, चिन्ता रहना
【】हमेशा थका हुआ अनुभव करना
【】हाथ और पैरों में झुनझुनी होना या सुन्न हो जाना
【】रक्त के थक्के जमना आदि।
गर्भावस्था में एंटीबायोटिक दवा बच्चे में ला सकती है आंत के रोग
क्या होता है एंटीबायोटिक – यह एक पदार्थ या यौगिक है, जो रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु को मार डालता है। आजकल एंटीबायोटिक्स के उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। लेकिन यह हर बीमारी में कारगर साबित नहीं होता और बार-बार इस्तेमाल करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीण होकर इसके शुभ प्रभाव कम हो जाते हैं।
मानव का पाचक तंत्र
मानव के पाचन तंत्र में एक आहार-नाल और सहयोगी ग्रंथियाँ (यकृत, अग्न्याशय आदि) होती हैं। आहार-नाल, मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रसिका, आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, मलाशय और मलद्वार से बनी होती है। सहायक पाचन ग्रंथियों में लार ग्रंथि, यकृत, पित्ताशय और अग्नाशय हैं।
क्रोन बीमारी में आपके पाचन तंत्र और आँतों में सूजन आ जाती है, जिसके कारण तेज पेट दर्द, उबकाई, उल्टी जैसा मन होना, गैस बनना, डकार न आना, अफरा होने लगता है और शरीर को आपके द्वारा खाने में लिये गए पौष्टिक तत्व और ऊर्जा पूरी तरह नहीं मिल पाती है। कई स्थितियों में ये रोग जानलेवा हो सकता है।
क्या है पाचनप्रणाली —
● पाचन वह क्रिया है जिसमें भोजन को यांत्रिकीय और रासायनिक रूप से छोटे छोटे घटकों में विभाजित कर दिया जाता है ताकि उन्हें, रक्तधारा में अवशोषित किया जा सके।
●● पाचन एक प्रकार की चयापचय (मेटाबॉलिज्म) क्रिया है: जिसमें आहार या भोजन के बड़े अणुओं को छोटे-छोटे अणुओं में बदल दिया जाता है।
क्यों होती हैं-पेट की तकलीफें :
कब्जियत (Constipation), मलावरोध या मलबद्धता, या कई दिनों तक पेट साफ न होना आदि परेशानियां पाचन तन्त्र (मेटाबॉलिज्म) को बिगाड़ देती हैं। यह पाचन प्रणाली (Digestive System) ही नहीं, शरीर में होने वाले समस्त बीमारियों की वजह है। पुराने समय में मलावरोध, कोष्टवद्धता या कब्ज को लोग इतनी गंभीरता से नहीं लेते थे।
क्योंकि अपने खानपान के द्वारा एक या दो दिन बाद इसे ठीक कर लेते थे। वर्तमान में प्रदूषित वातावरण, दूषित खानपानएवं अव्यवस्थित दिनचर्या की वजह से ग्रामीण या शहरी और पूरी दुनिया के सभी उम्र के करीब 72 फीसदी लोग पेट और पाचन तन्त्र (मेटाबोलिस्म)की खराबी तथा उदर विकारों के कारण भयंकर पीड़ित है। यह ऐसा रोग है जो तन-मन की सारी नाडियों एवं कार्य प्रणाली पर दुष्प्रभाव डाल रहा है।
ज्यादातर लोग समय से पखाना न होने को “कब्जियत” (कॉन्स्टिपेशन) के रूप में जानते हैं। उदर की यह क्रिया सामान्य न होने पर मलाशय, बड़ी आंत में मल रूक जाता है।
पाचनप्रणाली की प्रक्रिया —
हम जो भी खाना/अन्न-पदार्थ भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं 20-22 घण्टे में पचकर बचा अवशिष्ट मल के रूप मे शरीर से बाहर निकलना जरूरी है। यदि ऐसा नहीं होता, तो मल आंत व मलाशय में रहकर पेट में गर्मी और सड़न उत्पन्न करता है। पाचन प्रणाली मल के द्वारा वायु को बाहर निकालकर जलीय पदार्थ का शोषण कर लेता है तथा बचा हुआ ठोस पदार्थ आंत व मलाशय में गांठ रूप में सूखकर कड़ा हो जाता है। मल का अंतिम हिस्सा आंत में उस समय तक के लिए पचे हुए भोजन के अवशिष्ट पदार्थ जमा रहते हैं, जब तक उसे मल के रूप में शरीर से निकाल नहीं दिया जाता। इन सब कारणों से आंत को नियंत्रित करने वाली स्नायु (Ligaments) क्षतिग्रस्त (डेमेज) होने लगती है। आंतो में खराबी और सूजन आने लगती है।
बचाव के घरेलू तरीके —
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले पदार्थो, आहार का उपयोग करे। इसके लिए सबसे साबुत अनाज, मुनक्का, गुलकन्द, जीरा, सौंफ आदि का सेवन अधिक मात्रा में करें, इसमें मौजूद लेक्टिन आपकी प्रतिरोधक क्षमता को तुरंत बढ़ायेगा। प्रातः उठते ही 2 से 3 गिलास पानी अवश्य पियें।केवल सुबह के नाश्ते या खाने में ताजे फल, सलाद दही और सब्जियों को शामिल करें, इसके अलावा नियमित व्यायाम को अपनी दिनचर्या बनाइए।
भोजन ग्रहण बहुत आराम से धीरे-धीरे करें। खाने को मुंह में लेकर उसे दांतों से चबाने के दौरान लार ग्रंथियों (salivary glands) से निकलने वाले लार (Saliva) में मौजूद रसायनों के साथ रासायनिक प्रक्रिया होने लगती है। यह भोजन फिर ग्रासनली से होता हुआ उदर में जाता है, जहां हाइड्रोक्लोरिक एसिड यानि अकार्बनिक अम्ल ((मानव जठर में इसकी अल्प मात्रा रहती है और आहार पाचन में सहायक होती है।)) सर्वाधिक दूषित करने वाले सूक्ष्माणुओं (Microbes) को मारकर भोजन के कुछ हिस्से का यांत्रिक विभाजन (जैसे, प्रोटीन का विकृतिकरण) और कुछ हिस्से का रासायनिक परिवर्तन (chemical changes) आरंभ करता है। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का पीएच (pH) मान कम होता है, जो कि किण्वकों (ख़मीर उठाने) के लिये उत्तम होता है। कुछ समय (आम तौर पर मनुष्यों में एक या दो घंटे, के बाद भोजन के अवशेष छोटी आंत और बड़ी आंत से गुज़रते हैं और मलत्याग के दौरान बाहर निकाल दिए जाते हैं।
क्या करें —ऑटोइम्यून डिजीज” यानि स्वप्रतिरक्षित रोग एवं आंतों से जुड़े गंभीर विकार- “क्रोंसडिजीज जैसे खतरनाक रोगों से मुक्तिऔर पेट की पुरानी तकलीफों से बचने
के लिए ::
अमृतम गोल्ड माल्ट का प्रयोग उपरोक्त बीमारियों को दूर करने में काफी हद तक सहायक है और निम्नलिखित रोगों, स्थितियों और लक्षणों के उपचार, नियंत्रण, रोकथाम और सुधार के लिए बेखुटके किया जा सकता है:-
अमृतम गोल्ड माल्ट[] फोलिक एसिड की कमी के कारण मेगालोब्लास्टिक एनीमिया यानि रक्ताल्पता का उपचार करता है एनीमिया या अर्थ है, शरीर में खून की कमी। हमारे शरीर में हिमोग्लोबिन एक ऐसा तत्व है जो शरीर में खून की मात्रा बताता है।
महिलाओं में 11 से 14 के बीच एवं पुरुषों में हिमोग्लोबिन की मात्रा 12 से 16 प्रतिशत के बीच होना चाहिए।
[][] पौष्टिक मूल, गर्भावस्था, शैशव, या बचपन की रक्तहीनता लोहे की कमियां या सांघातिक रक्तहीनता के दोष मिटाता है।
[][][] आँतों की सूजन या अन्य तकलीफ दूर करे।
[][][][] कब्ज मिटाता है। द्वारा पनपने नहीं देता।
【】विटामिन बी 12 की कमी दूर करे।
【】पाचन तंत्रिका संबंधी गड़बड़ी ठीक करे
【】मानसिक, या मनोविकृतियाँ मिटायेगर्भावस्था की जटिलताएँ कम करता है।
【】होमोसिसटिन्यूरिया
【】बच्चों एवं किशोरावस्था में विकास में सहायक है
【】गर्भवती महिलाओं के गर्भस्थ शिशु में वृद्धि और विकास करता है।
【】पेट की जलन या जकड़न की अनुभूति
【】पेट खराब, झुनझुनीगंभीर परिधीय तंत्रिकाविकृतियां
() हमेशा ध्यान रखें()
नियमित व्यायाम, आलस्य न करना और सक्रियता शरीर को क्रियाशील बनाकर,आंतों को स्वस्थ्य बनाये रखने को बढ़ावा देती है।
पहला सुख-निरोगी काया”स्वस्थ,दीर्घायु और समृद्ध जीवन के लिए मानसिक (बौद्धिक) विकास से ज्यादा पूर्ण शारीरिक विकास पहली प्राथमिकता है और यह आयुर्वेदिक दवाइयों के सेवन करने से तथा प्राकृतिक वातावरण के साथ रहकर ही सम्भव है।