मधुमेह का आयुर्वेदिक उपाय क्या है

देह में वात-पित्त-कफ तीनों का संतुलन अक्सर विषम रहने से शरीर में कोई न कोई रोग लगे रहते हैं और 7 दिन में दूर भी हो जाते हैं।

आप खुद भी थोड़ी सी सावधानी बरतें, तो सदैव स्वस्थ्य रह सकते हैं।

अगर कोई नियमित मधुमेह की रसायनिक अंग्रेजो दवाएं सेवन कर रहा है,

तो भविष्य में उन्हें गुर्दा यानी किडनी तथा यकृत रोगों की बढ़ोत्तरी हो सकती है।

कुछ लोग डाइबिटीज से मुक्ति हेतु अनाप-शनाप नीम खा रहे हैं,

जबकि नीम की 2 या 3 से ज्यादा कोपल नहीं खाना चाहिए।

जो लोग अधिक मात्रा में नीम का उपयोग करते हैं, उनके जोड़ों में दर्द शुरू हो सकता है।

थायराइड की समस्या का एक कारण ज्यादा कड़वी चीजें ही हैं।

द्रव्यगुण विज्ञान आयुर्वेदक की एक प्राचीन पुस्तक है

उसके अनुसार अधिक कड़वा खाने से गुर्दा, गूदा एवं लिवर खराब होने लगता है।

डाइबिटीज नाशक उल्टी-सीधी दवा या कच्ची ओषधि खाने से तन का पतन होने लगता है।

एक समय ये भी आटां है कि हाथ-पैर सुन्न होकर कांपने लगते हैं।

ह्रदय रोग, नेत्र रोग की दिक्कतें मधुमेह के कारण ही पैदा हो रही हैं। लोग बीमारी के चलते हंसना भूल जाते हैं।

मधुमेह को ऐसे करें कंट्रोल…

हमारे शरीर को भरपूर प्राणवायु चाहिए। सुश्रुत सहिंता के अनुसार हमारे फेफड़ों में लगभग 6000 सूक्ष्म छिद्र होते हैं,

जिनमें पर्याप्त ऑक्सीजन की जरूरत है और हम केवल 2000 छिद्रों का ही प्राणवायु देकर पोषण कर पाते हैं

अगर हम बीमार हैं, तो ऑक्सीजन 1200 से 1500 तक ही पहुंच पाती है।

एक विकराल समस्या यह भी है कि हमारी प्राणवायु नाभि तक जाना चाहिए, जिसे हम केवल छाती तक ही लेते हैं।

इस वजह से तन-मन में कार्बनडाई ऑक्ससाइड की वृद्धि होती रहती है।

सारी बीमारियों की वजह केवल ऑक्सीजन की पूर्ण मात्रा न मिल पाना ही है।

क्या करें- आती-जाती श्वांस पर ध्यान देंवें। सांसे नाभि तक ले जाकर धीरे से छोड़े।

एक कोशिश ओर करें कि श्वांस लेना कम है तथा छोड़ना ज्यादा है।

इस अभ्यास से मन के विकार भी नष्ट होने लगेंगे। हमें हर चीज से मोह त्यागना होगा।

छोड़ने की आदत आपको प्रसन्न रखेगी।

मीठा बोलें। वाणी में मिठास होगी, तो आप खुश रहेंगे एवं सुसरों को भी आपसे जुड़ाव होगा।

अगर मजाकिया लहजे में बताएं, तो 90 फीसदी लोग कड़वा बोल-बोलकर मीठा अंदर एकत्रित करते रहते हैं,

जो बाद में मधुमेह के रूप में उभरती है।

सुबह उठते ही अधिक से अधिक सादा जल लेवें।

फालतू के सब प्रयोग जैसे-लहसुन, निम्बू पानी, करेला, एकलवर, नीम, लोंकी का जूस, हल्दी, अदरक, तुलसी, गिलोय आदि यह सब पचाना इतना आसान नहीं है।

यदि लेना भी है, तो 3 से 5 ml तक ही लेवें।

नमकीन दही त्यागें। मूंग की दाल ज्यादा लेवें।

लोंकी सदैव उबली हुई घी मिलाकर 200 ग्राम तक लेवें।

एलोपैथी दवाओं की आदत न बनाये।

प्राकृतिक रूप से ठीक होने का अभ्यास करें।

प्रतिदिन सुबह की धूप में अभ्यङ्ग करें।

अगर आप सब तरह के इलाज करके दवाओं से ऊब गए हों, तो एक बार अमृतम द्वारा ५०००

साल प्राचीन आयुर्वेदिक पध्दति से निर्मित डाइब की कैप्सूल एक माह निरन्तर सेवन करें।

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कैप्सूल में मिलाएं गए द्रव्य-घटक…

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