संसार की सबसे सर्वश्रेष्ठ शक्तिशाली सब्जी सहजना यानि मोरिंगा ओलिफेरा के बारे में जानकर हो जायेंगे हैरान। ये सभी तरह दर्द मिटा देती है।

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भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ भवप्रकाश निघंटू के अनुसार अगर शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द हो, तो सहजना/ सहजन, सुरजना, मुनगा या ड्रमस्टिककी सब्जी बनाकर खाएं और दर्द के स्थान पर लौंग का तेल मले। पुराने ग्रंथिशोथ या थायराइड में यही इलाज करें।

सहजन के पत्ते, फूल व फलियों की सब्जी विश्व की सबसे स्वास्थ्यप्रद सब्जी है, जो दर्द नाशक होने के साथ पाचनतंत्र को भी ठीक करती है। 

आयुष मंत्रालय की एक रिपोर्ट से और अनेक वैज्ञानिक अनुसंधानो से अब यह ज्ञात हो चुका है, कि इंसान के लिए संसार मे अब तक ज्ञात वनस्पतियों मे सबसे अधिक लाभदायक तत्व मोरिंगा ओलिफेरा (सहजन, सुरजना, मुनगा या ड्रमस्टिक) मे होते हैं।

सेवन विधि

सहजना या रोज मोरिंगा के 25 ग्राम करीब पत्ते मिक्सी मे पीसकर, छान लें  और सुबह  खाली पेट पिएं।

सहिजना सब्जी के 21 चमत्कारी फायदे

  1. भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ भावप्रकाशनिघंटू के अनुसार अगर शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द हो, तो सहजना/ सहजन, सुरजना, मुनगा या ड्रमस्टिककी सब्जी बनाकर खाएं और दर्द के स्थान पर लौंग का तेल मले पुराने ग्रंथिशोथ या थायराइड में यही इलाज करें।
  2. सहजन के पत्ते, फूल व फलियों की सब्जी विश्व की सबसे स्वास्थ्यप्रद सब्जी है, जो दर्द नाशक होने के साथ पाचनतंत्र को भी ठीक करती है।
  3. सहजन में वेदनाहरण का भी गुण है। यह तीव्र दर्द नाशक भी है। वातनाडियों पर इसका सामान्यतया अवसादक प्रभाव ( General paralysing effect) पड़ता है।
  4. सहजन से गर्भाशय के अनियमित संकोचों का शमन होकर उसे बल मिलता है।
  5. फफूंद प्टेरिगोस्पर्मिन अनेक प्रकार के छत्राणुओं (Fungi) की वृद्धि को रोकता है। इसके साथ अल्प मात्रा में न्यूक्लिक् एसिड (Nucleic acid) होने पर इसकी कार्यशीलता बहुत बढ़ जाती है।
  6. सहजन ७५००० में १ एवं ४०००० में १ इस अल्प प्रमाण में क्रमश: ग्रामग्राही एवं ग्रामत्यागी (Gram negative) जीवाणुविरोधी कार्य करता है।
  7. अॅल्लिसिन् (Allicin) की तरह यह रक्त एवं आमाशयिक रस की उपस्थिति में कार्यशील रहता है किन्तु अग्न्याशयिक रस (Pancreatic juice) की उपस्थिति में इसकी कार्यशीलता नष्ट हो जाती है ।
  8. सहजन के गुण और प्रयोग — सहिजन के मूल की ताजी छाल उष्ण, कटु, दीपन, पाचन, उत्तेजक, वातानुलोमक, वातहर, कफहर, कृमिघ्न, शिरोविरेचन, स्वेदजनन, मूत्रजनन, चक्षुष्य, शोथहर एवं व्रणदोषनाशक है।
  9. वृक्कशोथ में इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये । इसका बाह्यलेप त्वग्रागकारक है। इसका उपयोग अपची, गुल्म, विद्रधि, शोथ, प्लीहावृद्धि, कृमि, रजःकृच्छ्र, हिक्का, श्वास, कफज्वर, पाचन के विकार एवं व्रण में किया जाता है।
  10. सहजन के नये वृक्ष की मूल को ज्वर, अपस्मार, अपतंत्रक, अंगघात, जीर्ण आमवात, जलोदर, यकृत् वृद्धि, प्लीहावृद्धि तथा अपचन में देते हैं।
  11. सहजन रस को सैंधव एवं हींग के साथ मूलत्वक् का क्वाथ विद्रधि, शोथ, फोड़े, अश्मरी, अपस्मार एवं अपतंत्रक में दिया जाता है।
  12. सहजन के साथ संतरे का छिलका, जायफल एवं इसकी मूलत्वक् का मद्यसारीय अर्क मूर्च्छा, चक्कर, स्नायविक दौर्बल्य, अपतंत्रक, आध्मान एवं उद्वेष्टनयुक्त आंत्रिक विकारों में लाभदायक है।
  13. सहजन को मुखजाड्य, अर्दित, पक्षाघात आदि वातनाडीसंस्थान के रोगों में इसका स्वरस दिया जाता है।
  14. सहजन का व्रणशोथ पर छाल को पीसकर लेप करते हैं तथा खिलाते हैं।
  15. सहजन को गले की शिथिलता, मुखविकार, कृमिदंत में इसके क्वाथ से कुल्ला कराते हैं।
  16. सहजन की ताजी जड़ को सरसों एवं आदी के साथ पीसकर प्रतिक्षोभक एवं विस्फोटकारक प्रलेप के रूप में उपयोग करते हैं।
  17. सहजन का संधिशोथ तथा शरीर की पीड़ा में छाल का उष्ण लेप थोड़ी देर के लिये करते हैं ।
  18. सहजन के बीजों के तेल की संधिवात, आमवात तथा वातरक्त में मालिश करते हैं। मूर्च्छा में बीजों का चूर्ण नाक में डालते हैं।
  19. सहजन का का गोंद ग्राही होता है तथा आमवात में प्रयोग किया जाता है।
  20. सहजनके पुष्प को दूध में उबालकर वाजीकरण के लिये पिलाते हैं।
  21. सहजन की फली का साग आंत्रकृमिप्रतिबंधक मानते हैं। इसके कोमल पत्तों का साग खाने से शौच साफ होता है।

मात्रा - मूलत्वक् ४ से ८ प्रा.

  • सहजना का सर्वाधिक उपयोग वातरोग, थायराइड नाशक दवाओं में होता है। सहजन से निर्मित एक मात्र ओषधि आर्थो की गोल्ड माल्ट और कैप्सूल है। जाने Orthokey के बारे में
  • सर्व दर्द को मिटाने के लिए इसे तीन माह तक लेना जरूरी है
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How To Use

  • Take one capsule with milk or water twice a day or as directed by your physician.

Benefits

  • Amrutam’s Orthokey Gold Capsules are effective in treating muscle and joint pain and provide relief from cervical pain, joint pain, body pain and muscular pain.
  • The medicinal ingredients present in the capsules treats arthritis, fibrositis, lumbar spinal stenosis and frozen shoulder.
  • Amrutam’s capsules for muscle health can also treat thyroid because of their ability to balance Vata.

दर्द ज्यादा रहता हो, तो धूप में बैठकर पैन ऑयल की मालिश भी कर सकते हैं

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  • पाचनतंत्र , मेटाबॉलिज्म को ठीक करने के लिए साथ में आर्थो की गोल्ड माल्ट का सेवन करें।

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चित्र आदि गुगल से साभार-

  • आयुर्वेदिक शास्त्रों के मुताबिक दुनिया की सबसे ताकतवर और शक्तिशाली सब्जी सहजना है। निघंटू के गुडूच्यादी वर्ग में सहिजना को शोभांजन नाम से बताया है।
  • सहजन, सहिजना, मोरंगा के बारे में ऐसी जानकारी पहली बार पढ़ेंगे। यह 88 प्रकार वात रोग, गले की टीकेलिफ दूर करने में गुणकारी है।
  • आयुष मंत्रालय की एक रिपोर्ट से और अनेक वैज्ञानिक अनुसंधानो से अब यह ज्ञात हो चुका है, कि इंसान के लिए संसार मे अब तक ज्ञात वनस्पतियों मे सबसे अधिक लाभदायक तत्व मोरिंगा ओलिफेरा (सहजन, सुरजना, मुनगा या ड्रमस्टिक) मे होते हैं।

सेवन विधि-

  • सहजना या रोज मोरिंगा के 25 ग्राम करीब पत्ते मिक्सी मे पीसकर, छान लें और सुबह खाली पेट पिएं।

आयुर्वेद के एक पुरानी किताब में इसकी विस्तार चर्चा है।

  • अथ शोभाञ्जनः (सहिजना), (श्यामः श्वेतो रक्तश्च) तन्नामानि तद्गुणाँश्चाह शिग्रुतीक्ष्णगन्धकाक्षीवमोचकाः।

सहिजना के बारे में संस्कृत का एक श्लोक देखें-

  • शोभाञ्जनः तद्वीजं श्वेतमरिचं मधुशिग्रुः सलोहितः। शिग्रुः कटुः कटुः पाके तीक्ष्णोष्णो मधुरो लघुः॥१०५॥ दीपनो रोचनो रूक्षः क्षारस्तिक्तो विदाहकृत्।
  • संग्राही शुक्रलो हृद्यः पित्तरक्तप्रकोपणः॥१०६॥ चक्षुष्यः कफवातघ्नो विद्रधिश्वयथुक्रिमीन्। मेदोऽपचीविषप्लीहगुल्मगण्डव्रणान्हरेत् ॥१०७॥ श्वेतः प्रोक्तगुणो ज्ञेयो विशेषाद्दाहकृद्भवेत्।
  • प्लीहानं विद्रधिं हन्ति व्रणघ्नः पित्तरक्तहृत्।
  • मधुशिग्रुः प्रोक्तगुणो विशेषाद्दीपन: सरः ॥१०८॥

सहिजन के भेद, नाम तथा गुण और 10 खास बातें-

  1. श्याम सहिजन,
  2. श्वेत सहिजन तथा
  3. लाल सहिजन इस प्रकार से ३ भेद होते हैं।
  4. शोभाञ्जन, शिग्रु, तीक्ष्णगन्धक, अक्षीव और मोचक ये सब संस्कृत नाम सहजन के हैं।
  5. सहजन के बीज को 'श्वेतमरिच' कहते हैं,
  6. जो 'लाल सहजन होता है उसे 'मधुशिग्रु' कहते हैं।
  7. शिग्रु अर्थात् श्याम सहजन – स्वाद तथा पाक में कटुरसयुक्त, तीक्ष्ण, उष्णवीर्य, मधुर, लघु, अग्निदीपक, रोचक, रूक्ष, क्षार, तिक्तरसयुक्त, विदाहकारक, मलावरोधक, शुक्रजनक, हृदय को हितकारी होता है।
  8. पित्त रक्त को कुपित करने वाला, नेत्रों को हितकर, कफवात-नाशक एवं विद्रधि, शोथ, कृमि, मेदरोग, अपची, विष, प्लीहा, गुल्म, गलगण्ड और व्रण का नाशक होता है।
  9. इसी प्रकार से 'सफेद सहजन' के भी गुण हैं किन्तु वह विशेष करके दाहकारक तथा प्लीहा, विद्रधि, व्रण और पित्त- रक्त का नाशक होता है।
  10. मधुशिग्रु अर्थात् 'लाल सहजन' के भी पूर्वोक्त सभी गुण हैं किन्तु विशेष करके वह अग्निदीपक तथा सारक (दस्तावर) होता है। [१०५-१०८]

अथ शिग्रुवल्कलपत्रस्वरसगुणानाह

शिग्रुवल्कलपत्राणां स्वरसः परमार्तिहृत् ॥१०९॥

  • अर्थात सहजन की छाल तथा पत्तों के स्वरस के गुण- सहजन की छाल तथा पत्तों का स्वरस असह्य पीड़ा को दूर करता है । [१०९]

गुडूच्यादिवर्गः अथ सहिजन शिग्रुबीजगुणानाह

चक्षुष्यं शिग्रुजं बीजं तीक्ष्णोष्णं विषनाशनम्।

अवृष्यं कफवातघ्नं तन्नस्येन शिरोऽर्त्तिनुत् ॥११०॥

  • अर्थात सहजन के बीज के लाभ—नेत्रों को हितकर, तीक्ष्ण, उष्णवीर्य, विषनाशक, अवृष्य और कफ वातनाशक होते हैं। सहजन के बीजों का चूर्ण करके नस्य लेने (सूंघने) से सिर की पीड़ा दूर
  • होती है । [११०] इसके पुष्प तथा पुष्प-मधु के गुण आगे शाकवर्ग में दिये हुये हैं।
  • सहिजनाशिप्रुः—शिनोति तीक्ष्णतां विदधाति, 'शिञ् निशाने'। अर्थात यह अत्यन्त तीक्ष्ण होता है।

सहजन के विभिन्न नाम-

    • हिंदी में इसे -सहिजना, सहिजन, सहजन, सहजना, सैजन, मुनगा कहते हैं। बंगला में - सजिना | मराठी० - शेवगा, शेगटा, सहिजनो, सहिंजणो । कन्नड़ में - नुग्गे | तेलगू में - मुनग | गुजराती में - सेकटो, सरगवो । ता० - मोरुङ्गै, मुरिणकै । पं०- सोहजना । मला०–मुरिण्णा । ब्राह्मी०- डोडलों बिन | यू० - सिनोह | फा० - सर्वकोही । अं०-Horse radish Tree (हॉर्स रेडिश ट्री); Drum stick Tree (ड्रम स्टिक् ट्री) | ले०-Moringa pterygosperma Gaertn. (मोरिङ्गा टेरीगोस्पर्मा गेर्ट) | Moringaceae (मोरिंगेसी) ।

सहजन का वृक्ष –

साधारण वृक्षों के समान छोटा, ७ मी. ऊँचा होता है।

सहजन की छाल – चिकनी, मोटी, कार्कयुक्त, भूरे रंग की एवं लम्बाई में फटी हुई और लकड़ी कमजोर होती है। इसकी छाल के रेशों से कागज, चटाई, डोरी आदि बनाते हैं। जानवर (विशेषकर ऊँट) इसकी टहनियों को खाते हैं ।

सहजन के पत्ते – संयुक्त, प्रायः त्रिपक्षवत् तथा ३०-९० से.मी. क्वचित् १५० से.मी. तक लम्बे होते हैं। पत्रक—अंडाकार, लट्वाकार, विपरीत एवं करीब १२-१८ मि.मी. लम्बे होते हैं।कार्त्तिक महीने से वसन्त ऋतु के आरम्भ तक फूलों के गुच्छे टहनियों के अन्त में दिखाई पड़ते हैं।

सहजन पुष्प – श्वेतवर्ण के तथा मधु की तरह गन्ध वाले होते हैं।

सहजन की फलियाँ — गोल, त्रिकोणाकार, अंगुलिप्रमाण मोटी, २२-५० से.मी. लम्बी, बीजों के बीच-बीच में पतली एवं बड़ी-बड़ी खड़ी ९ रेखाओं से युक्त होती हैं। उनमें सफेद, सपक्ष, त्रिकोणकार तथा लगभग २.५ से.मी. लम्बे बीज होते हैं।

सहजन के विभिन्न उपयोग-

  • इसके बीजों को सफेद मरिच भी कहते हैं। इससे गोंद भी निकलता है जो पहले दुधिया रहता है किन्तु बाद में वायु का सम्पर्क होने पर ऊपर से गुलाबी या लाल हो जाता है।
  • सहजन की कच्ची सेमों का साग और अचार बनाते हैं ।
  • सहजन के मूल, मूल की ताजी छाल, फली, पत्र, बीज एवं गोंद आदि का चिकित्सा में व्यवहार किया जाता है।
  • सहजन की जड़ बाहर से खुरदुरी, जालीदार, हल्के भूरे रंग की एवं अन्दर से श्वेत रंग की होती है । हार्सरेडिश की तरह इसका स्वाद कुछ तीता एवं गन्ध भी तीक्ष्ण होती है। ।
  • मोरिंगा कोन्केनेन्सिस् (Moringa concanensis Nimmo) नामक एक जाति दक्षिण राजपूताना तथा सिन्ध में होती है। इसकी फलियाँ कड़वी होती हैं। इसके पुष्प अधिकांश लाल होते हैं।
  • लाल, काले एवं श्वेतपुष्प भेद से सहजन ३ प्रकार का माना जाता है। अधिकांश श्वेतपुष्प का ही सहजन देखा जाता है। सम्भव है स्थानभेद से कहीं-कहीं रक्त तथा श्यामवर्ण के भी सहजन प्राप्त होते हों।
  • भावप्रकाशकार रक्तपुष्प वाले को मधुशिग्रु कहते हैं। संभव है इस (श्वेत जो अधिकांश मिलता है) वृक्ष के पुष्पों में मधु की तरह गंध होने से इसका नाम मधुशिप्रु दिया हो।
  • सहजन का रासायनिक संगठन– इसके बीजों में करीब ३६% एक निर्गन्ध स्वच्छ तैल रहता है जो सूक्ष्म यन्त्रों में स्निग्धीकरण के काम आता है। यह रखने से खराब भी नहीं होता।
  • सहजन का तेल घड़ी में उपयोगी बेन ऑइल (Ben-oil) नामक तैल जो घड़ीसाज व्यवहार में लाते हैं वह अधिकतर अफ्रीका में होने वाले इसी की जाति के वृक्ष (M. aptera- मो. आप्टेरा) के बीजों से निकाला जाता है।
  • सहजन की सुगंध का व्यवसाय में भी इसका उपयोग करते हैं। अस्थिर गन्ध भी इसमें स्थायी हो जाती है। इसमें एक उम्र दुर्गन्धयुक्त तैल भी पाया जाता है।
  • सहजन के मूल में स्पाइरोचिन् (Spirochin) नामक कार्यशील क्षारीय द्रव्य (Basic) एवं प्टेरिगोस्पर्मिन् (Pterygospermin) नामक एक प्रतिजैविकीय पदार्थ (Antibiotic) रहता है।
  • स्पाइरोचिन नामक क्रियाशील द्रव्य ग्रामग्राही (Gram positive) उपसर्गो, विशेषकर स्तबक गोलाणु एवं मालागोलाणुजन्य (Staphylococcal and streptococcal) उपसर्गों में लाभदायक है। यह अधिच्छदीय (Epithelia) कोषाओं की कार्यवृद्धि करता है।

 

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