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भाषाभेद से नामभेद - हरड़ को हिंदी में हर्र, हर्रे ।
बंगला औऱ मराठी में हर्त्तकी ।
कोंकण में कोशाल। ।
कन्नड़ में आणिलय
तेलगु में करक्वाप
तमिल में कड़के
द्रविड़ में कलरा
फारसी में हलेले, कलाजिरे, जवीअस्कर
अरबी में अहलीलज
लेटिन में terminalia chebula
black murobalans
(टर्मिनलिया चेबुला ब्लेकमाइरोबेलनज)
हरड़ की जातियां -
विजयारोहिणी चैव पुटनाचामृताभया ।
जीवन्तीचेतकी चेति पथ्याया: सप्तजातय ।।
अर्थात- हरड़ सात प्रकार की होती है -
रोगों पर विजय पाने के कारण इसे विजया कहते हैं । जो तोम्बी ( लौकी) की तरह गोल हो । आयुर्वेद में भांग भी "विजया" नाम से प्रसिद्ध है ।
2- रोहिणी -साधारण गोलाई वाली होती है
3- पूतना- बड़ी गुठली किन्तु छोटी व कम गूदे वाली पूतना हरड़ कही जाती है ।
4- हरड़ में अमृत अधिक होने से इसे अमृत कहा जाता है । ये अधिक गूदे वाली होती है ।गिलोय को भी अमृत कहते है ।
5- अभया- रोगों का भय मिटाती है । यह 5 रेखाओं युक्त होती है
6- जीवन्ती- सोने की तरह पीले रंग । औऱ
7- चेतकी-ये 3 रेखाओं से युक्त । अतः इसप्रकार
हरड़ की 7 जातियां हैं ।
विजय सर्वरोगेषु रोहिणी व्रणरोपणी ...... इस प्रकार हरड़ के बारे में 17 श्लोक संस्कृत के दिये। हैं । उसका हिंदी अर्थ प्रस्तुत है -
विजय हरड़ सम्पूर्ण रोगों में उत्तम है ।
लेप के लिये पूतना औऱ शरीर शोधनार्थ
अमृता हितकारी है ,।
अभय नेत्रों के लिये प्रशस्त है ।
जीवन्ती सर्वरोग हरने वाली है ।
चेतकी हरड़ का चूर्ण बवासीर एवम उदर रोगों। में विशेष लाभकारी है ।
हरड़ को आयुर्वेद शास्त्रों में
सर्वरोगहारी कहा है ।
हरड़ के गुण-
हरड़ रूखी,गर्म, उदराग्निवर्धक, बुद्धि व नेत्रों को हितकारी, मधुर पाक वाली,
आयु बढ़ाने वाली,
आयुवर्धक, शरीर की शक्तिदात्री, अनेक
वायु-वात विकार शांत करने वाली है ।
हरड़- श्वांस-कास,प्रमेह, मधुमेह, बवासीर, कुष्ठ(सफेद दाग) सूजन, कई ज्ञात-अज्ञात उदररोग, कृमिरोग, स्वरभंग, गले की खरखराहट एवम ख़राबी, विबंध, विषमज्वर, गुल्म, आध्मान,गेस (एसिडिटी) व्रण,वमन
हिचकी, कण्ठ औऱ हृदय के रोग, कामला,(खून की कमी) शूल, ,(पूरे शरीर में हमेशा दर्द रहना) आनाह (कब्ज) प्लीहा व यकृत रोग, पथरी, मूत्रकृच्छ (रुक-रुक कर पेशाब आना) औऱ मूत्राघातादि रोगों के नाश हेतु अमृत ओषधि है ।
जीवन भर इसका अलग- अलग अनुपान अनुसार सेवन करें तो कभी रोग होते ही
नहीं है । व्यक्ति पूर्णतः स्वस्थ रहते हुए
शतायु होता है ।
हरड़ की सेवन विधि आगे के लेख में दी जावेगी ।
हरड़ वात-पित्त-कफ अतः त्रिदोष नाशक है ।
यह पूरी तरह दोषहर ओषधि है ।
हरड़ के असरकारक प्रभाव से
प्रभावित होकर ही अमृतम के सभी उत्पादों जैसे- सभी तरह के कैप्सूल, चूर्ण, माल्ट, टैबलेट आदि में विशेष विधि-विधान से मिश्रण किया है।
साभार शास्त्रों के नाम
भावप्रकाश निघण्टु ( श्रीकृष्ण चुनेकर एवम डॉ गंगासहाय पांडेय)
धन्वंतरि कृत आयुर्वेदिक निघण्टु
(प्रेमकुमार शर्मा)
भावप्रकाश निघण्टु लघु
( आयुर्वेदाचार्य वैद्य श्री
विश्वनाथ द्विवेदी शास्त्री)
अभिनव ब्यूटी दर्पण भाग -1व 2
(श्री रूपलाल वैश्य)
आदि ग्रंथों से संग्रहित ।
हरड़ के बारे में अभी और भी शेष है । यदि जानने की उत्सुकता हो,तो तत्काल
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