वर्ष 2019 के अंत में शुरू हुई वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने बीते एक साल से पूरे मानव जीवन को अस्त-व्यस्त कर रखा है, इसका विस्तार लगभग विश्व के हर देश में है और इसके कारण लाखों जानें जा चुकी हैं। आज हर बड़ी वैज्ञानिक संस्था इस बीमारी का उपचार खोजने में लगी हुई है, इस क्रम में आयुर्वेद और भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्दतियों की तरफ भी वैज्ञानिक आशा भरी नज़रों से देख रहे हैं। आइये समझते हैं कि कोरोना वायरस क्या है? और कैसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और प्राचीन आयुर्वेदिक ज्ञान मिलकर इस महामारी से लड़ रहे हैं।
कोरोना वायरस क्या है?
वायरस एक बहुत ही सूक्ष्म निर्जीव कण होता है जो किसी जीवित कोशिका (Cell) को संक्रमित करने के बाद ही जीवित होता है (Coronavirus) कई प्रकार के विषाणुओं (वायरस) का एक समूह है जो स्तनधारियों (MAMMALS) के फेफड़ों और श्वांसन तन्त्र पर हमला करता है। यह आरएनए वायरस होता है। इसके कारण इंसानों में साँस संबंधी बीमारियाँ पैदा हो सकती हैं। जिसके परिणाम के तौर पर हल्की सर्दी जुकाम से लेकर गंभीर स्थिति में मृत्यु तक हो सकती है। ये वायरस मुख्यतः छींकने या खांसने के दौरान मुंह और नाक से निकलने वाले सूक्ष्म कणों के जरिये फैलता है, सांस के जरिये शरीर में जाने के बाद संक्रमण तब शुरू होता है जब वायरस का स्पाइक प्रोटीन अपने मेजबान सेल (कोशिका) से जुड़ जाता है। जिसके बाद वह कोशिका की बाहरी परत को गला देता है और कोशिका के भीतर पहुँच जाता है। कोशिका के भीतर जाने के बाद यह धीरे धीरे अपनी संख्या बढाता है और अन्य कोशिकाओं को भी संक्रमित करता है। इसका फैलाव अत्यधिक होने पर व्यक्ति का श्वसन तन्त्र प्रभावित होता है और, उसके शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। गंभीर संक्रमण की स्थिति में व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।
कोरोना वायरस लाइलाज क्यों है?
कोरोना वायरस की अभी तक कोई दवा मौजूद नहीं है, ऐसा इसलिए है क्योंकि यह एक “नया” वायरस है। इसके खिलाफ किसी भी दवा का निर्माण अभी तक नहीं किया जा सका है, हालाँकि पूरे विश्व में विभिन्न शोध संस्थाओं में इस विषय पर शोध कार्य जारी है और जल्द ही कोरोना का उपचार खोजे जाने की संभावना है।
कोरोना से लड़ाई: फिलहाल immunity ही एकमात्र सहारा
Immunity का अर्थ है शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता, यह हमारे शरीर को विभिन्न रोगों से बचाती है और यह हर प्राणी के शरीर में किसी न किसी रूप में मौजूद रहती है। आधुनिक विज्ञान और आयुर्वेद दोनों immunity को अलग अलग संदर्भ में देखते हैं।
हमारे वातावरण में रोगाणुओं के साथ लगातार संपर्क में रहने से ही हमारा शरीर नये नये रोगाणुओं से लड़ना सीखता है। भले ही हमारे समग्र स्वास्थ्य और जीवन काल में वृद्धि हुई हो पर पिछले 40 वर्षों में, स्वच्छता के नाम पर अत्यधिक केमिकलों के उपयोग और पौधों, मिट्टी और अन्य जीवों के साथ निरंतर संपर्क की कमी ने धीरे-धीरे हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर बना दिया है, प्रतिरक्षा, जैसा कि हम इसे आधुनिक चिकित्सा के माध्यम से समझते हैं, कुछ कोशिकाओं, एंजाइमों और शरीर में मौजूद रसायनों का कार्य है जो रोगाणुओं पर हमला करते हैं और उन्हें रोग पैदा करने से रोकते हैं। शरीर और रोगाणुओं के बीच इस निरंतर चलते युध्द से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली का विकास होता है जिसे हम immunity के तौर पर जानते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार immunity सिर्फ रोगाणुओं और शरीर के बीच चल रहा एक युद्ध नहीं है बल्कि एक स्वस्थ्य शरीर और स्वस्थ्य मन के संगम से उत्पन्न होने वाली अवस्था है। आयुर्वेद ने प्रतिरक्षा को अनुकूलित करने के लिए कुछ सरल लेकिन शक्तिशाली उपायों का वर्णन किया है जिन्हें जीवन के सभी चरणों (गर्भाधान से बुढ़ापे) तक लागू किया जा सकता है। "व्याधि-क्षमतत्व" प्रतिरक्षा के लिए आयुर्वेद में इस्तेमाल होने वाला शब्द है। यह प्रतिरक्षा प्रणाली, तंत्रिका तंत्र और पाचन स्वास्थ्य के बीच संबंध का वर्णन करता है। स्वस्थ्य पाचन तंत्र एक मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली की कुंजी है। आयुर्वेदिक चिकित्सा कई कारकों के बारे में बात करती है जो हमारे पाचन तंत्र और विभिन्न तरीकों से कमजोर कर सकते हैं रोगों के उन्मूलन के लिए पाचन तंत्र को मजबूत बनाना बहुत जरूरी है। स्वस्थ पाचन स्वस्थ मन और शरीर को दर्शाता है। आयुर्वेद के अनुसार, संतुलित आहार हमारे जीवन का एक प्रमुख स्तंभ है। हमारे भोजन का समय, मात्रा और गुणवत्ता हमारे शरीर और मन के लिए हमारी प्रतिरक्षा क्षमता को निर्धारित करती है। योग को आयुर्वेद का "सहायक विज्ञान" माना जाता है और हमें आसन, प्राणायाम और ध्यान के माध्यम से हमारे शरीर और हमारे मन को मजबूत करने में मदद मिलती है।
वैक्सीन क्या है?
जब हमे यह पता चल चुका है कि कोरोना वायरस क्या है? तब दूसरा सवाल दिमाग में आता है कि ये वैक्सीन क्या है? और वैक्सीन कैसे काम करती है? आईये समझते हैं- आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में immunity दरअसल रोगाणुओं और शरीर की प्रतिरक्षा कोशिकाओं (इम्यून सेल्स) के बीच चल रहा एक युद्ध है। इस युद्ध में जब भी कोई नया रोगाणु (दुश्मन) हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो प्रायः हमारा शरीर उस रोगाणु से लड़ने के लिए प्रशिक्षित (TRAINED) नहीं होता है, और पहली बार आने वाला ये शत्रु कई बार हमारे शरीर का काफी नुकसान कर जाता है। इस समस्या के समाधान के लिए सन 1796 में ब्रिटिश वैज्ञानिक एडवर्ड जेनर ने वैक्सीन की खोज की। वैक्सीन असल में किसी नई बीमारी के खिलाफ हमारे इम्यून सिस्टम को ट्रेनिंग देने का एक तरीका है, शरीर में एक रोगाणु के ऐसे हिस्सों को छोड़ा जाता है जो रोग तो पैदा नहीं कर सकते पर जिन्हें हमारे शरीर के इम्यून सेल पहचान सकते हैं, ऐसा होने पर हमारे इम्यून सेल स्वयं को भविष्य में आने वाले उस रोगाणु के हमले के लिए तैयार कर लेते हैं।
वैक्सीन से जुडी चिंताएं
हालाँकि वैक्सीन एक प्रमाणिक वैज्ञानिक तरीका है पर हर दवाई या उपचार की तरह इसके भी कुछ साइड इफ़ेक्ट हो सकते हैं, इसलिए कई चरणों में होने वाले सघन परीक्षणों के बाद ही कोई वैक्सीन लोगों के इस्तेमाल के लिए सुरक्षित घोषित की जाती है। कोरोना के संकट काल में कई वैक्सीनों पर शोध हुआ और कुछ वैक्सीन आज हमारे प्रयोग के लिए उपलब्ध हैं। पर, इनके साथ कई संशय और चिंताएं जुडी हुईं हैं जिनका समाधान जरुरी है। इन चिंताओं के मूल में ये बात है कि इन वैक्सीनों को बहुत ही कम समय में विकसित किया गया है, साधारणतः किसी वैक्सीन को सुरक्षित तौर पर विकसित करने के लिए तय किये गये सभी परीक्षणों को पूरा करने में कम से कम दो से तीन वर्षों का समय लगता है। पर वर्तमान कोरोना वैक्सीन एक वर्ष के अंदर ही जारी कर दी गई है, क्या इसके सुरक्षित इस्तेमाल के लिए जरुरी सभी परीक्षणों को पूरा किया गया है ये भी एक बड़ा सवाल है।
वैक्सीन चूँकि रोगाणु का ही एक ऐसा हिस्सा है जो रोग पैदा नहीं करता है पर जिसे पहचान कर हमारा शरीर “एंटीबाडी” अर्थात रोगाणु को खत्म करने वाले विशेष हथियार विकसित कर लेता है। ये हथियार सिर्फ उसी प्रकार के रोगाणु के खिलाफ कारगर होंगे जिसे पहचान कर इन्हें बनाया गया है, इसी कारण से हर बीमारी की अलग वैक्सीन बनती है।
वैक्सीन लगने के बाद जब हमारा शरीर एंटीबाडी बना रहा होता है तो हमारे शरीर में बहुत से परिवर्तन होते हैं, हमारे इम्यून सेल बहुत अधिक सक्रीय हो जाते हैं। और शरीर में कई सारे ऐसे बदलाव देखने को मिल सकते हैं जो प्रायः किसी बीमारी के दौरान दिखाई देते हैं। वैक्सीन लगने के बाद शरीर का यही असामान्य व्यवहार वैक्सीन का “साइड इफेक्ट” माना जाता है। इसमें बुखार, सरदर्द, हल्का जुखाम, शरीर में सूजन और चकत्ते पड़ना काफी लोगों में होता है। एक पूरी तरह स्वस्थ्य व्यक्ति में यह साइड इफ़ेक्ट कुछ ही दिनों में खत्म हो जाते हैं और इनका कोई गंभीर परिणाम नहीं होता है। लेकिन ऐसे व्यक्तियों में जिनका प्रतिरक्षा तन्त्र पहले से ही बहुत कमजोर है उनमे ये साइड इफ़ेक्ट घातक साबित हो सकते हैं, यही कारण है कि वैक्सीन देने से पहले व्यक्ति के स्वास्थ्य का परीक्षण करना जरुरी है।
आयुर्वेद का रास्ता
आयुर्वेद स्वास्थ्य को एक समग्र जीवनशैली के तौर पर देखता है, इसमें immunity को सिर्फ कुछ रोगाणुओं के खिलाफ युद्ध के तौर पर सीमित नहीं किया गया है, बल्कि हर प्रकार के शारीरिक और मानसिक विकारों से मुक्त रह सकने की क्षमता माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार immunity कुछ दिन में विकसित होने वाली चीज़ नहीं है बल्कि एक स्वस्थ्य जीवनशैली और दोषों के संतुलन के परिणाम के तौर आने वाली अवस्था है। इसके लिए हमें अपने त्रिदोष “वात” “पित्त” और “कफ” को संतुलित रखने की आवश्यकता है। (त्रिदोष पर विस्तृत जानकारी अमृतम की आयुर्वेदिक जीवनशैली पुस्तक में उपलब्ध है) कई आयुर्वेदिक औषधियां जैसे त्रिफला, गिलोय, तुलसी, हल्दी और नीम आदि हमारे शरीर को बाहरी रोगाणुओं के खिलाफ लड़ने में सहायता करते हैं। अमृतम का आयुष-की क्वाथ भी शरीर की immunity को मजबूत बनाने में काफी कारगर है, इन में से कोई भी औषधि वैक्सीन की तरह सीधे हमारे इम्यून सेल्स को प्रभावित नहीं करती है बल्कि हमारे शरीर में मौजूद ऐसी समस्याओं को खत्म करती है जिसके कारण हमारे इम्यून सेल ठीक से काम नहीं कर पाते हैं। आयुर्वेद ऐसी चिकित्सा प्रणाली है जो रोगों के निवारण (RELIEF) के साथ साथ उन्मूलन (ERADICATION) पर भी ध्यान देती है। इसलिए आयुर्वेद एक स्वस्थ्य जीवनशैली और शारीरिक व्यायाम पर भी उतना ही जोर देता है जितना औषधियों के सेवन पर।
आयुर्वेद कभी भी आधुनिक चिकत्सा के उपचारों को ख़ारिज नहीं करता है, बल्कि एक स्वस्थ्य और प्राकृतिक जीवनशैली पर जोर देता है। वैक्सीन निश्चित रूप से एक लाभकारी खोज है, इसके जरिये कई लोगों की जान बचाई जा सकती है। पर इसके प्रति लोगों के संशय को दूर करने की भी जरूरत है। हमें बीते 1 वर्ष के घटनाक्रम को देख कर ये भी समझने की जरूरत है कि मानव चिकित्सा विज्ञान में कितनी भी तरक्की कर ले पर वो प्रकृति से बड़ा कभी नहीं हो सकता। हमें दोबारा अपनी जड़ों की ओर लौटने की जरूरत है, और मानव को उसकी जड़ों से दोबारा जोड़ने का यह काम सिर्फ आयुर्वेद ही कर सकता है।