जाने – आयुर्वेद के बारे में पार्ट 1

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जाने – आयुर्वेद के बारे में पार्ट 1

जाने – आयुर्वेद के बारे में पार्ट -1

धन्वन्तरि कृत “आयुर्वेदिक निघण्टु”
लेखक प्रेमकुमार शर्मा
(भारतीय जड़ी-बूटी तथा ओषधियों के शोधकर्ता) के अनुसार
आयुर्वेद उसे कहते हैं, जो आयु और स्वास्थ्य
का हित-अहित बताकर रोग मुक्त होकर जीवन

का ज्ञान उपलब्ध कराए।

आयु – शरीर, इन्द्रिय, मन और आत्मा के संयोग को आयु कहा गया है।
द्रव्य किसे कहते हैं – पृथ्वी, जल, तेज (अग्नि)
पवन (वायु), आकाश, आत्मा, मन, काल
(समय और मृत्यु) एवं दिशाओं के समूह को
आयुर्वेद में द्रव्य कहा गया है।
चेतन – इन्द्रिय-विशिष्ट द्रव्य को “चेतन” कहते हैं जैसे- मनुष्य, पशु-पक्षी आदि।
अचेतन– इन्द्रिय-रहित द्रव्य को ‘अचेतन
कहते हैं। जैसे वृक्ष आदि
स्थावर – इन्द्रियहीन जीवों को, जो चेतना रहित हैं, उन्हें “स्थावर” कहते हैं।
जंग – इन्द्रीय वाले चैतन्य जीवों को
जंग” कहते हैं
अर्थ – रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द
को “अर्थ” या “विषय” कहते हैं।
शारीरिक दोष  वात, पित्त और कफ को
शारीरिक दोष कहते हैं।
मानसिक दोष  रज और तम को “मन”
का दोष कहते हैं।
शारीरिक वायु – त्रिदोषों में से एक वायु दोष
यह रूखी, हल्की, शीतल, सूक्ष्म, चंचल,
पिच्छीलता-रहित और परुष है। इसके
विपरीत गुणवाले द्रव्यों से इसकी शान्ति
होती है।
रस – आयुर्वेद के अनुसार रस छह होते हैं-
【१】मीठा, 【२】खट्टा, 【३】नमकीन,
【४】चरपरा, 【५】कड़वा 【६】 कसैला।
वातनाशक रस – जिस रस के सेवन से वादी,
वायु व वात शान्त हो, उसे वातनाशक रस
कहते हैं। मीठा, खट्टा और नमकीन
ये तीनों रस वातनाशक कहलाते हैं।

विशेष ध्यान देवें

आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों के अनुसार –
वातविकारों (अर्थराइटिस) से पीड़ित लोगों को मधुर पदार्थ (मीठा) जरूर सेवन अवश्य करना चाहिए, क्योंकि मीठे पदार्थों की कमी से
जोड़ों में रस बनना, लचीलापन व लुब्रिकेंट
कम हो जाता है। जो लोग मधुमेह (डाइबिटिज) से पीड़ित हैं, उन्हें सुबह की चाय मीठी जरूर लेना चाहिए। जोड़ों के दर्द से परेशान रोगियों को
सुबह मीठा खाना बहुत जरूरी है। या ओषधि के रूप में
पित्त और कफ एवं आयुर्वेद के बारे में

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