क्या आप जानते हैं कि मानव माइंड इतना शार्प क्यों है। Let's learn and understand the scientific reason behind the sharpness of the human mind
दिमाग़ की परत दर परत खोलने वाला यह लेख जरूर पढ़ें-
ब्रेन को ब्यूटीफुल बनाने वाली बूटियाँ-
ब्रेन ही ब्यूटी है, ब्रेन को ओर ब्यूटीफुल बनाने के लिए देशी बूटी- ब्रह्मी,शंखपुष्पी,वच, जटामांसी, शतावरी, अश्वगंधा,इला, त्रिकटु, दालचीनी, मोथा, मालकांगनी, बादाम, अखरोट, तथा मोक्ति,चांदी, एवं स्वर्ण भस्म आदि ब्रेन की चाबी है।
बुद्धिमान बनाने हेतु यह बहुत ही उपयोगी, कारगर तथा विलक्षण ओषधियाँ हैं। इन बूटियों के सेवन से पूरी तरह
तनावरहित रहकर परिवार, समाज, देश के प्रति अपनी डुयूटी ईमानदारी से निभाकर अपनी टूटी जिंदगी संवार सकते हैं। उपरोक्त हर्बल दवाएँ मिलाकर निर्मित किया गया
ब्रेन की गोल्ड माल्ट एवं
टेबलेट घबराहट,बैचेनी,याददाश्त की कमी,
चिन्ता, नींद न आना, मानसिक अशांति और अवसादग्रस्त एवं डिप्रेशन से पीड़ित लोगों के लिए बहुत ही लाभकारी हैं।
दिमाग को सुन्दर बनाने के लिए सुन्दर विचार, दो-चार अच्छे विचारक,मार्गदर्शक और प्रेरणादायक पुस्तकें आपको सही रास्ते पर ले जा सकती है। संसार में संस्कार, संस्कृति तथा साहित्य सच्चे साथी हैं।
निगेटिव सोच,बुरे विचार दिमाग का अचार बना देतें हैं। फिर,जीवन अचार की तरह खट्टा-तीखा हो जाता है। दिमाग का ज्यादा दही बनाने से मस्तिष्क कोशिकाओं में रोगों का रायता फैलने लगता है।
"मानव शरीर की मस्तिष्क संरचना" नामक प्राचीन पुस्तक से समझे अपने दिमाग की अबूझ पहेली को- मानव शरीर कई तन्त्रों से बना है। "तंत्र", कई अंगों से मिलकर बनते हैं। "अंग", भिन्न-भिन्न प्रकार के "ऊतकों" से बने होते हैं। "ऊतक", कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं। वयस्क मानव (स्त्री तथा पुरूष) के शरीर की संरचना (morphology) का वैज्ञानिक अध्ययन, मानव शरीर-रचना विज्ञान या मानव शारीरिकी (human anatomy) के अन्तर्गत किया जाता है
उच्च श्रेणी के प्राणियों जैसे मानव में मस्तिष्क अत्यंत जटिल होते हैं।
मानव मस्तिष्क में लगभग १ अरब (१,००,००,००,०००) तंत्रिका कोशिकाएं होती है, जिनमें से प्रत्येक अन्य तंत्रिका कोशिकाओं से १० हजार (१०,०००) से भी अधिक संयोग स्थापित करती हैं।
मानव मस्तिष्क सबसे जटिल अंग है।
मस्तिष्क (Brain), खोपड़ी (Skull) में स्थित है। यह चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान है। सभी ज्ञानेंद्रियों - नेत्र, कर्ण, नासा, जिह्रा तथा त्वचा - से आवेग यहीं पर आते हैं, जिनको समझना अर्थात् ज्ञान प्राप्त करना मस्तिष्क का काम है। पेशियों के संकुचन से गति करवाने के लिये आवेगों को तंत्रिकासूत्रों द्वारा भेजने तथा उन क्रियाओं का नियमन करने के मुख्य केंद्र मस्तिष्क में हैं, यद्यपि ये क्रियाएँ मेरूरज्जु में स्थित भिन्न केन्द्रो से होती रहती हैं।
अनुभव से प्राप्त हुए ज्ञान को सग्रह करने, विचारने तथा विचार करके निष्कर्ष निकालने का काम भी इसी अंग का है।
मस्तिष्क की रचना--मस्तिष्क नीचे की ओर अनुमस्तिष्क (cerebellum) के दो छोटे छोटे गोलार्घ जुड़े हुए दिखाई देते हैं। इसके आगे की ओर वह भाग है, जिसको मध्यमस्तिष्क या मध्यमस्तुर्लुग (midbrain or mesencephalon) कहते हैं। इससे नीचे को जाता हुआ मेरूशीर्ष, या मेदुला औब्लांगेटा (medulla oblongata),
कहते है।
प्रमस्तिष्क और अनुमस्तिष्क झिल्लियों से ढके हुए हैं, जिनको तानिकाएँ कहते हैं।
ये तीन हैं:
1- दृढ़ तानिका,
2- जालि तानिका
3- मृदु तानिका।
सबसे बाहरवाली दृढ़ तानिका है। इसमें वे बड़ी बड़ी शिराएँ रहती हैं, जिनके द्वारा रक्त लौटता है। कलापास्थि के भग्न होने के कारण, या चोट से क्षति हो जाने पर, उसमें स्थित शिराओं से रक्त निकलकर मस्तिष्क मे जमा हो जाता है, जिसके दबाव से मस्ष्तिष्क की कोशिकाएँ बेकाम हो जाती हैं तथा अंगों का पक्षाघात (paralysis) हो जाता है। इस तानिका से एक फलक निकलकर दोनों गोलार्धो के बीच में भी जाता है। ये फलक जहाँ तहाँ दो स्तरों में विभक्त होकर उन चौड़ी नलिकाओं का निर्माण करते हैं, जिनमें से हाकर लौटनेवाला रक्त तथा कुछ प्रमस्तिष्क मेरूद्रव भी लौटते है।
प्रमस्तिष्क--इसके दोनों गोलार्घो का अन्य भागों की अपेक्षा बहुत बड़ा होना मनुष्य के मस्तिष्क की विशेषता है। दोनों गोलार्ध कपाल में दाहिनी और बाईं ओर सामने ललाट से लेकर पीछे कपाल के अंत तक फैले हुए हैं। अन्य भाग इनसे छिपे हुए हैं। गोलार्धो के बीच में एक गहरी खाई है, जिसके तल में एक चौड़ी फीते के समान महासंयोजक (Corpus Callosum) नामक रचना से दोनों गोलार्ध जुड़े हुए हैं। गोलार्धो का रंग ऊपर से घूसर दिखाई देता है।
गोलार्धो के बाह्य पृष्ठ में कितने ही गहरे विदर बने हुए हैं, जहाँ मस्तिष्क के बाह्य पृष्ठ की वस्तु उसके भीतर घुस जाती है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो पृष्ठ पर किसी वस्तु की तह को फैलाकर समेट दिया गया है, जिससे उसमें सिलवटें पड़ गई हैं। इस कारण मस्तिष्क के पृष्ठ पर अनेक बड़ी छोटी खाइयाँ बन जाती हैं, जो परिखा (Sulcus) कहलाती हैं। परिखाओं के बीच धूसर मस्तिष्क पृष्ठ के मुड़े हुए चक्रांशवतद् भाग कर्णक (Gyrus) कहलाते हैं, क्योंकि वे कर्णशुष्कली के समान मुडे हुए से हैं। बडी और गहरी खाइयॉ विदर (Fissure) कहलाती है और मस्तिष्क के विशिष्ट क्षेत्रों को पृथक करती है। मस्तिष्क के सामने, पार्श्व तथा पीछे के बड़े-बड़े भाग को उनकी स्थिति के अनुसार खांड (Lobes) तथा खांडिका (Lobules) कहा गया है। गोलार्ध के सामने का खंड ललाटखंड (frontal lobe) है, जो ललाटास्थि से ढँका रहता है। इसी प्रकार पार्श्विका (Parietal) खंड तथा पश्चकपाल (Occipital) खंड तथा शंख खंड (temporal) हैं। इन सब पर परिशाखाएँ और कर्णक बने हुए हैं। कई विशेष विदर भी हैं। विशिष्ट विदरों तथा परिखाओं की विवेचना यहाँ की जाती है। पार्शिवक खंड पर मध्यपरिखा (central sulcus), जो रोलैडो का विदर (Fissure of Rolando) भी कहलाती है, ऊपर से नीचे और आगे को जाती है। इसके आगे की ओर प्रमस्तिष्क का संचालन भाग है, जिसकी क्रिया से पेशियाँ संकुचित होती है। यदि वहाँ किसी स्थान पर विद्युतदुतेजना दी जाती है तो जिन पेशियों को वहाँ की कोशिकाओं से सूत्र जाते हैं उनका संकोच होने लगता है। यदि किसी अर्बुद, शोथ दाब आदि से कोशिकाएँ नष्ट या अकर्मणय हो जाती हैं, तो पेशियाँ संकोच नहीं, करतीं। उनमें पक्षघात हो जाता है। दस विदर के पीछे का भाग आवेग क्षेत्र है, जहाँ भिन्न भिन्न स्थानों की त्वचा से आवेग पहुँचा करते हैं। पीछे की ओर पश्चकपाल खंड में दृष्टिक्षेत्र, शूक विदर (calcarine fissure) दृष्टि का संबंध इसी क्षेत्र से है। दृष्टितंत्रिका तथा पथ द्वारा गए हुए आवेग यहाँ पहुँचकर दृष्ट वस्तुओं
(impressions) प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
नीचे की ओर शंखखंड में विल्वियव के विदर के नीचे का भाग तथा प्रथम शंखकर्णक श्रवण के आवेगों को ग्रहण करते हैं। यहाँ श्रवण के चिह्रों की उत्पत्ति होती है। यहाँ की कोशिकाएँ शब्द के रूप को समझती हैं। शंखखंड के भीतरी पृष्ठ पर हिप्पोकैंपी कर्णक (Hippocampal gyrus) है, जहाँ गंध का ज्ञान होता है। स्वाद का का क्षेत्र भी इससे संबंधित है। गंध और स्वाद के भाग और शक्तियाँ कुछ जंतुओं में मनुष्य की अपेक्षा बहुत विकसित हैं। यहीं पर रोलैंडो के विदर के पीछे स्पर्शज्ञान प्राप्त करनेवाला बहुत सा भाग है।
जिस तन्त्र के द्वारा विभिन्न अंगों का नियंत्रण और अंगों और वातावरण में सामंजस्य स्थापित होता है उसे तन्त्रिका तन्त्र(Nervous System) कहते हैं। बाह्म जगत् से मस्तिष्क तक सूचना पहुँचानेवाली तंत्रिकाएँ संवेदी तंत्रिकाएँ (सेंसरी नर्व्ज़) तथा मस्तिष्क से अंगों तक चलने की आज्ञा पहुँचानेवाली तंत्रिकाएँ चालक तंत्रिकाएँ (मोटर नवर्ज़) कहलाती हैं।
मानसिक स्वास्थ्य की प्राकृतिक देखभाल
आधुनिक संसाधनों ने शरीर को आलसी एवं आरामतलब बनाकर मानव मस्तिष्क यानि दिमाग पर अतिरिक्त दवाब बनाया है। ऐसे में उचित देखभाल के अभाव में हम अनेकों जटिल मस्तिष्क विकारों से घिरते जा रहे हैं।
■ याददास्त की कमी
■ बार-बार भूलने की आदत
■ स्मरण शक्ति का ह्रास
■ चिड़चिड़ापन,बहुत गुस्सा आना
■ एकाग्रता का अभाव
■ हर समय तनाव
■ घबराहट,बैचेनी
■ नींद न आना (अनिद्रा)
■ रक्तचाप बढ़ना या कम होना
■ बालों का झड़ना,पतला होना
■ व्यग्रता,सिर में दर्द
■ दिमागी कमजोरी
■ मानसिक विकार,हिस्टीरिया
■ अवसादग्रस्त रहना (डिप्रेशन)
■ ग्रहण शक्ति की कमी
आदि बहुत से मनोरोग जैसी बीमारियां अब सामान्य समस्या हो चली हैं। इन ब्रेन सम्बन्धी विकारों पर नियंत्रण हेतु आयुर्वेद की अधिक गुणवत्ता तथा विलक्षण प्रभावकारी जड़ीबूटियों, आँवला, सेव,हरीतकी मुरब्बा एवं गुलकन्द आदि द्रव्य-घटकों,रस-रसायनों के योग-संयोजन से
आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ भावप्रकाश निघण्टु में उल्लेखित महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों जैसे शंखपुष्पी, ब्राह्मी व अश्वगंधा से जहां स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है तथा मानसिक थकान दूर होती है वहीं मालकांगनी तथा वच के प्रयोग से एकाग्रता व आंकलन शक्ति बढ़ती है। तनाव,मानसिक रोगों को दूर करता है। जटामांसी, भृङ्गराज एवं शतावरी मानसिक रूप से शक्ति-सम्पन्न प्रदान करने वाली देशी ओषधियाँ हैं।
विटामिन सी एवं केल्शियम की पूर्ण पूर्ति के लिए आंवला का संतुलित मात्रा में मिश्रण किया है। साथ ही मधुयष्टि, अमृता,सर्पगन्धा, मिलाया गया है जो अवसाद (डिप्रेशन) दूर कर रक्तचाप को नियंत्रित करता है। ब्रेन की में इन सभी अदभुत ओषधियों का संयोजन है,जो मस्तिष्क की सम्पूर्ण देखभाल करता है। दिमागी रूप से श्रम करने वालों के लिए यह बहुत ही लाभदायक देशी दवा है। इसे जीवन भर लिया जा सकता है।
रसतन्त्रसार एवं सिद्धप्रयोग संग्रह ग्रन्थ के अनुसार अवलेह प्रक्रिया द्वारा इसका निर्माण किया है। मात्रा- 2 से 3 चम्मच सुबह खाली पेट गर्म पानी में मिलाकर चाय की तरह पियें अथवा गर्म दूध के साथ दिन में 2 से 3 बार लेवें।
उपलब्धता-
200 ग्राम एवं 400 ग्राम की पैकिंग में
(काँच की बोत्तल)
30 टेबलेट की पेकिंग में (काँच की बोत्तल)
विशेष-बेेहतर और अतिशीघ्र परिणाम के लिये ब्रेन की गोल्ड माल्ट एवं टेबलेट दोनों का एक साथ सेवन करें।
परहेज-
रात में दही,अरहर की दाल (पीलीदाल), रायता,सलाद, जूस,आइसक्रीम का सेवन न करे।
सुबह उठते ही 3 से 4 गिलास पानी खाली पेट पियें। अपना महत्वपूर्ण आर्डर देने के लिए लॉगिन करें-
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कुन्तल केयर में केवल प्राकृतिक ओषधियों का सत्व है,जो हर प्रकार से बालों की रक्षा करता है। यह पूरी तरह हानिरहित है। कुछ ही दिन के उपयोग से बाल झड़ना पूरी तरह बन्द हो जाते हैं और न्ये बाल पुनः उगने लगते हैं। रूसी डेन्ड्रफ को एक ही दिन में दूर कर देता है।