पेड़-पौधे, औषधियां,
वृक्षों की जीवन लीला।
वनस्पति अपने मूल (जड़ों) से आहार रस
शोषण कर उर्ध्वगामी (ऊपर की ओर
जाने वाली शाखाये ) स्त्रोतसों द्वारा वनस्पतिशरीर को देता है।
मतलब है, वृक्षों को अव्यक्त चेतना शक्ति होती है ।" अन्तः स्पर्शा:"
इन्हें स्पर्श का ज्ञान होता है ।
इसप्रकार वृद्ध वृक्ष वैज्ञानिक गुणरत्न,कणाद,
उदयनाचार्य ने खोज कर दुनिया को चोंका
दिया कि पेड़ भी प्राणी की तरह प्रकृति के
हर भाव- प्रभाव, स्वभाव को समझते हैं ।
वृक्ष बस बोल नहीं पाते ।
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है
लाजवंती इसे छूने, स्पर्श करने
से ही यह पत्र-डाली सहित सिकुड़ जाती है ।
अमृतम आयुर्वेदिक निघण्टु में, तो इतना
तक कहा कि रजः स्वला स्त्री पेड़, पौधों को
छूले, तो वे सूख जाते हैं ।
अशोक व बकुल वृक्ष पर युवती के
स्पर्श से पुष्पपल्लवित, प्रकट हो जाते हैं ।
कुष्मांड इसी से पीठ बनता है ,
इसे उंगली दिखाने पर तुरन्त मुरझा
जाता है ।
इतना ही कह पाते हैं कि-
* इस प्रकृति की लीला,
* नहीं जाने गुरु और चेला ।
सब कीट-पतंगे, पक्षी जीव-जंतु, जगन्नाथ
का जगत,ओर ढेड़, भेड़ (पशु) पेड़ से है ।
निर्मित अमृतम आयुर्वेदिक ओषधियाँ
भी जीवनीय शक्ति वृद्धिकारक हो जाती हैं ।
वृक्ष भी दुःख-दर्द, कष्ट-क्लेश, समझते हैं
इसीलिए ही अमृतम दवाएं
जीवन जरा,जिल्लत रहित बनाती हैं ।
विशेषकर
अमृतम गोल्ड माल्ट
रोगों के रहस्य जानने के अलावा,
दुःख, दर्द मिटाकर परम् मानसिक
शाँति सहायक हैं ।
वृक्ष विनम्रता, विश्वास, त्याग का प्रतीक है ।
वृक्षों की (विनती) पूजा का विधान इसीलिए
भी है ।
वृक्ष वैज्ञानिक (ऋषि), रक्षक, कहते भी हैं--
*वृक्ष ही विधाता,
*वृक्ष ही विधान ।
*वृक्ष ही ज्ञानी,
*वृक्ष ही ज्ञान ।।
भारत के महान मनीषी, कृषि वैज्ञानिक
वृक्षवेत्ता सर जगदीशचंद्र वसु की
नवीन खोजों द्वारा ज्ञात हुआ कि
इनमें जीवन, सुख, दुःख मनुष्यवत
रहता है ।वृक्ष के तोड़ने-काटने से
वे कंपित होते हैं, थर्राते हैं ।
सत्य की रोशनी में तेज व अनुपस्थिति
में क्रिया मंद हो जाती है ।
मनु सहिंता, चरक सहिंता, सुश्रुत सहिंता
तथा अनेको वनस्पति शास्त्रों ने
नकतं सेवेत न द्रुमम
अर्थात रात्रि में पेड़ों के नीचे नहीं सोना
चाहिए । इस कहा क्योंकि सूर्यप्रकाश की कमी
में वृक्षों के नीचे हानिकारक वायु रहती है ।
रात्रि में सूर्य का प्रकाश नहीं होने पर भी
कुमुदनी, रजनीगंधा रात में फूलती हैं ।
कोषातकी सन्ध्या को।
पेड़ों से इच्छित वरदान, वस्तु ग्रहण
करने व अनिच्छित के त्याग करने
का विधान ओर विचार बताया ।
इन्हीं सब कारणों से भारत वासियों
को वृक्षों पर विश्वास है।
परमपिता परमात्मा है।
क्यों--- क्योंकि भला का उल्टा लाभ होता है ।
वृक्षों में भला करने की प्रवृत्ति होने से
यहां की अबला (नारी) तुलसी, आंवला, पीपल
आम, वटवृक्ष आदि अनेक वार-त्योहार,
तिथिओं पर इन्हें पूजती है।
बेलपत्र शिवजी को अर्पित कर
त्रिशूल, त्रिदोष नाश की प्रार्थना का
प्राचीन , पुरातन प्रयास चल रहा है ।
बहुत कष्ट, अभाव के समय गमगीन
हो लोग गाते हैं -
* बेल की पत्तियां, भांग-धतूरा,
*शिव जी मन को हे भाया ।
*अद्भुत भोले तेरी माया ।
अतः वृक्षों के बीज, बीजमंत्रों, सिद्ध
बाबाओं,
का महत्व की महानता के चमत्कार
पढ़े।
अगले लेख में।
अभी जारी है-- इस विन्रम प्रयास के साथ
।।अमृतम।
प्राकृतिक वनस्पतियों के साथ हैं हम
*अमृतम गोल्ड माल्ट खाएं
*जड़ से रोग- विकार मिटाएं