बाहर नहीं निकल पाती, तब यह मज्जा में
स्थित होकर प्राणी पीड़ा से परेशान हो जाता है ।
यह पीड़ा कभी शांत नहीं होती ।
निरन्तर बनी रहती है । शेष लक्षण *हड्डिगत वातवायु* अर्थात हड्डियों में ठहरी हुई वायु समान होते हैं ।
शरीर की कोई भी पीड़ा प्राणी को पनपने
नहीं देती । तन और धन का नाश कर मन खिन्न
बना देती है ।
*ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट* 1-1 चम्मच
तीन बार गुनगुने दूध से ।
*ऑर्थोकी गोल्ड कैपसूल* 1-1 दो बार चाय से
ब्रेन की टेबलेट 2 गोली रात में दूध से 1 बार
*भयंकर दर्द नाशक तेल* की मालिश करें ।
सुई सी चुभने वाली पीड़ा का मूल कारण
राहु है । अतः पीड़ा रहित होने हेतु
शनिवार को सुबह 9 से 11 के बीच
5 दीपक राहुकी तेल के जलावें ।
वह वीर्य को स्वखलित नहीं होने देती,
कच्चे गर्भ को ही गिरा देती है अथवा
उसे मूढ़ कर देती है । वीर्य का रंग
बदलकर उसे खराब कर देती है ।
वात-दूषित वीर्य से उत्पन्न होने के
कारण गर्भ कच्चा ही गिर जाता है ।
गर्भ मूढ़ भी हो सकता है ।
*अमृतम उपाय* - बी.फ़ेराल माल्ट
एवम कैप्सूल दोनों 2-3 बार गर्म
दूध से केवल पुरुषों को सेवन करना
चाहिए ।
गुनगुने दूध से 3 बार लेवें ।
*काया की तेल* की मालिश कर स्नान करें ।
ऑर्थोना टेबलेट की 2-2 गोली 3 बार चाय
या जल से लेवें ।
पापं शांति उपाय- शुक्रवार को किसी 1 स्त्री
1 कन्या को को 1-1 अमृतम तेल की
शीशी 7 शुक्रवार सुबह 10 से 12 के
बीच दान करें ।
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*शेष जारी है*