मात्रा कम से कम व सेवन विधि ज्यादा अधिक
समय तक करने से शरीर में जीवनीय शक्ति
क्षीण नहीं होती ।
ओर दूरगामी परिणाम भी विशेष लाभकारी हैं
इसे नियमित लम्बे समय तक लेते रहने से
रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है ।
जिससे शरीर में रोग-रोगाणुओं विकसित
नहीं हो पाते ।
से, तब सारे लक्षण साँसगत वातवायु
समान होते हैं । इसमें थोड़ी पीड़ा वाली
गाँठे औऱ फोड़े होते हैं ।
2-2 गोली 2 या तीन बार चाय से ।
ऑर्थोकी माल्ट 1-1 चमच्च 2 या 3 बार
गर्म दूध से एक तक लगातार लेवें ।
कायाकी तेल पूरे शरीर मे लगाकर
गुनगुने पानी से स्नान करें ।
विकार वायु हड्डियों में ठहर जाती है,
शरीर की शिथिलता कम कर अस्थियों
की संधियों, जोड़ों, घुटनों में तोड़ने
सी पीड़ा होती है । संधियों में शूल
भयंकर दर्द होता है । मांस और बल
क्षय या नाश होकर नींद नहीं आती
एवम बल पीड़ा होती है । हड्डियां कमजोर
हो, गलने लगती हैं । हड्डियों वजोडों में
सूखापन आ जाता है जिससे नाड़ियां
सख्त होकर दर्द से कराह उठती हैं ।
है कि नियमित *ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल*
स्वर्ण भस्म,वृहत्वात चिंता मणि रस,
योगेंद्र रस, त्रिलोक चिंतामणि रस,
रसराज रस सभी (स्वर्णयुक्त)
एवम गुग्गुल, त्रिकटु, सल्लकी, त्रिफला,
रसना, दशमूल आदि असरकारक
योगों से निर्मित है ।
रोज एक गर्म दूध के साथ 1 माह तक लेवे ।
ऑर्थोकी चूर्ण 1-1 चम्मच से सुबह-शाम
जल से लेवे ।
दर्द के स्थान पर हल्के हाथ से मालिश
करे ।
*सादे जल से लेवें ।
ग्रहों की मार है । पुरानी बात है-
दवा के साथ दुआ की भी जरूरत है ।
इस रोग के कारक राहु व शनि हैं ।
निर्मित *राहुकी तेल* के दो दीपक
रोज राहुकाल में नियमित 54 दिन
घर या शिव मंदिर में जलावें ।
दुःख, चिंता, तनाव, क्रोध, बेचेनी,
दरिद्रता, कष्ट-क्लेश, कालसर्प,
पित्तरदोष का भी नाश करेगा ।
पिछले 30 वर्षों में पीड़ितों को
बहुत ही शुभपरिणाम प्राप्त हुआ हैं ।
*शनि प्रिय तिल, बादाम, जैतून
चंदनादि तेलों* से निर्मित एक
खुशबूदार तेल *अमृतम मसाज आयल*
प्रत्येक शनिवार पूरे शरीर मे लगाकर
स्नान करें ।
स्त्री और पुरुष को प्रत्येक शनिवार
दोनों को 1-1 शीशी दान करें ।
लाभ होने पर 7 शनिवार लगातार
यह चमत्कारी प्रयोग कर सकते हैं ।
खानपान के अलावा क्यों सताता है
वातविकार । ये ज्योतिष का विषय है
इस विषय पर कभी बिस्तर से वैज्ञानिक
विश्लेषण किया जाएगा ।
*अभी और अनेक वात-विकार बाकी हैं,
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कष्ट-क्लेशों का काम ख़त्म