खाएं-पीएं, ताकि स्वास्थ्य रह सकें.

Call us at +91 9713171999
Write to us at support@amrutam.co.in
Join our WhatsApp Channel
Download an E-Book

खाएं-पीएं, ताकि स्वास्थ्य रह सकें.

  • आयुर्वेद के अनुसार जिनका खान-पान सन्तुलित रहता है, उनका खानदान कई पीढ़ियों तक चलता है

स्वास्थ्य रहने के लिए जो जरूरी है…जल, वायु, भोजन, निद्रा, पाचन, जीवनशैली या लाइफ स्टाइल, व्यायाम, कसरत, चलना-फरना, घूमना, अभ्यङ्ग, मालिश, स्नान, ध्यान, प्राणायाम और उचित आहार-विहार, त्यौहार सब जरूरी है।

  • संकल्प शक्ति मजबूत करें…तन-मन, देह को दुरुस्त रखने हेतु स्वयं पर अंकुश और संकल्प शक्ति पहली आवश्यकता है। सबसे अच्छा आहार घर का बना होता है, बाहर का नहीं। पहले कहते थे कि-
  • कम खाओ, गम खाओ…कहावत पुरानी है कि जिसने भी कम खाने की आदत बना ली, एक दिन उसमें गम सहन करने भही शक्ति आ जाती है।

भोजन के प्रति अधिक लगाव हमें कमजोर बनाता है। हम दिन भर कुछ न कुछ खजाते रहते हैं।

  • भैषज्य सहिंता के हिसाब से दिन में 2 से 3 बार ही खाएं, इससे अधिक खाने से सूर्य ग्रह खराब होता है, जो उन्नति, प्रसिद्धि तथा धन की आवक को रोकता है।
  • खाने से पहले नहाने की आदत बनाएं…अच्छी तंदरुस्ती के लिए कुछ भी खाने से पहले नहाना जरूरी है। आयुर्वेद सहिंता में लिखा है कि सर्वप्रथम देह का अभ्यङ्ग कर 30 मिनिट तक व्यायाम करें एवं 100 काम छोड़कर स्नान करें।
    • ईश्वर ने जीवमात्र को आहार का विवेक केवल मनुष्य को विशेष रूप से प्रदान किया है।

पशु-पक्षियों का अदभुत ज्ञान…बकरी आक खा लेती है, पर भैंस नहीं खायेगी। चील मांस खा लेती है, पर कबूतर नहीं खायेगा। आहार का केवल स्वास्थ्य की दृष्टिसे ही नहीं, अनेक दृष्टिकोणों से विचार करना चाहिये, जैसे- भौगोलिक, आध्यात्मिक तथा नैतिक भी।

मात्र मनुष्य ही विवेक का सदुपयोग कर इन पर विचार कर सकता है। हमें कितना खाना आवश्यक है और हमारा संतुलित भोजन कैसा होना चाहिये। यह चिंतन जरूरी है।

बुद्धिजीवी या कम्प्यूटर पर काम कर रहे लोगों को अधिक श्रम नहीं करना पड़ता-जैसे कार्यालय में काम करने वाले अथवा सेवानिवृत्त, उनको अधिक मात्रा में भोजन की आवश्यकता नहीं है।

अपनी आदत बदलिए…भोजन पूर्व ही भजन ठीक से हो पाता है। नाश्ते के पहले नहाने की आदत डालने से इबादत अपने आप होने लगती है।

कुछ लोग आदत से विवश होकर वे मात्रा का संतुलन नहीं करते, जिससे मोटापा बढ़ता जाता है। पाचनशक्ति उचित रूप से काम नहीं करती है और वे पेट के अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं। इनका भजन-साधना में भी मन नहीं लगता।

गरीब-असहाय, मजदूर, मजबूर लोगों को भोजन आवश्यक है…कारखाने अथवा खेतों आदि में काम करने वाले लोगों को भोजन की मात्रा अधिक होनी चाहिये। पर प्रायः विपरीत अवस्था ही देखी जाती है, इसलिये धनी लोगों में रोग मोटापा विशेष पाया जाता है। हमारी पाचन-क्रिया की क्षमता भी सीमित है, इसलिये क़ब्ज़, गैस, अपच की बीमारी होने लगती है। उदर में अन्न सड़ता रहता है।

श्वांस-प्रश्वांस की प्रक्रिया…अनेकों व्यक्ति उचित रूप से भोजन करना और श्वास लेना भी नहीं जानते। जो व्यक्ति उचित ढंग से श्वास लेता है, प्राणायाम करता है, उसकी खुराक कम होती है। इसी तरह जो चबा-चबाकर भोजन करता है, उसकी पाचनशक्ति ठीक रहती है।

आज भोजन करते समय चबाने पर कम, परन्तु बेकार बातचीत करने आदि में समय अधिक लगाते हैं। इससे अपच होना स्वाभाविक है।

  • लोगों ने सादा नमक, लालमिर्च का उपयोग छोड़ दिया…आजकल ज्यादातर घरों में बिना मसाले, लालमिर्च की सब्जी, दाल बन रही है। जबकि सेंधा नमक से ज्यादा हितकारी सादा नमक है, जो रक्त वाहिनियों की मरमत कर खून साफ करता है और लाल मिर्च केंसर रोधक ओषधि है। (द्रव्यगुण विज्ञान ग्रन्थ पढ़ें)
  • बहुत कम मसाले वाला अथवा बहुत ठंडा भोजन भी पच नहीं पाता जिससे आँतों पर घाव करता है और अनेक प्रकार के उदर रोगों का कारण बनता है।
  • भोजन करने का तरीका….अगस्त्य सहिंता के अनुसार अनियमित भोजन स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त हानिकारक है। इससे पाचन-क्रिया में गड़बड़ी होती है। ठीक समय शांतचित्त बैठकर, चिन्तारहित होकर, शान्त वातावरण में धीरे-धीरे चबाकर भोजन करना स्वास्थ्यवर्धक है।
  • भोजन कैसा होना चाहिए…भोजन सात्त्विक होना चाहिये। फल, जूस, छाछ, मीठा, अंजीर, मुनक्के का पानी, पपीता, आंवला, मुरब्बा, हरड़ मुरब्बा, दही, पराठा तथा सन्तुलित मसाले वाली, तली हुई गरिष्ठ वस्तुएँ सुबह नाश्ते में लेवें।
  • दिन का भोजन या भोजन कैसा हो….दुपहर में अनेक प्रकार के व्यञ्जन, सलाद, मिठाई, खटाई, चटपटे एवं नमकीन, अरहर की दाल युक्त भोजन कम मात्रा में उपयोग करें। नमकीन दही कभी न लेवें।
  • रात्रि का भोजन…मूंग की दाल, खिचड़ी, दलिया, गुलकन्द, बिना घी की रोटी ले सकते हैं।
  • रात्रि में त्यागने योग्य भक्ष्य पदार्थ…रात के खाने में अरहर की दाल, दही, फल, जूस, सलाद, भूलकर भी न लेवें। दूध लेने की इच्छा हो, तो भोजन के 2 घण्टे बाद लेना उचित है।
  • अधिकांश बीमारियाँ रात के अति भोजन के कारण होती हैं। रात्रि भोजन में यदि स्वाद को अधिक महत्त्व दिया जाता है, तो यह स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं।

स्वाद को न देंवें दाद…स्वाद में प्रियता और अस्वाद में अप्रियता का भाव हमने जोड़ रखा है। चीनी, नमक और अधिक चिकनाई-ये तीनों भोजन के अनिवार्य अंग बन चुके हैं।

  • आहार का एक पहलू है निराहार…स्वास्थ्य के लिये उपवास भी जरूरी है। हमारे शास्त्रों में उपवास का महत्त्व शारीरिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी है, जो लोग भोजन आदि कुछ भी खाकर देह को दूषित कर रहे हैं, उन्हें छोड़ने का महत्त्व भी समझना चाहिए।
  • सन्तुलित खाने से आध्यात्मिक जीवन पूर्णरूप से व्यतीत किया जा सकता है। जितना भोजन महत्त्वपूर्ण है उतना ही नहीं त्यागना भी अन्यथा मोटापा सहित अनेक अन्य बीमारियों को भी भोगते रहेंगे।
  • अधिक खानेवाले कमजोर देखे जाते हैं, कारण उनको अपने अधिक वजन का भार रात-दिन ढोना पड़ता है। विवेकपूर्ण-आहार से ही शान्त, सुखी, स्वस्थ जीवन सम्भव है।
  • चरक सहिंता का ये सूत्र ज्ञानवर्धक है.. शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्!’ अर्थात धर्म का प्रथम साधन है शरीर का नीरोग रहना। चरक में कहा गया है कि धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष-इस पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति का मूल कारण शरीर का आरोग्य रहना है। पर इस आरोग्यके अपहरणकर्ता हैं रोग, जो श्रेयस्कर जीवन का भी विनाश करते हैं।
  • धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम्॥ रोगास्तस्यापहर्तारः श्रेयसो जीवितस्य च।(चरक० सू० १। १५-१६)
  • तात्पर्य यह है कि स्वस्थ शरीर के द्वारा ही मनुष्य सभी प्रकार के धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यों का सम्पादन कर सकता है। शरीर के अस्वस्थ रहने पर मनुष्य यदि मन से कुछ सोचता भी है, तो वह कुछ कर नहीं सकता। अतएव आयुर्वेद शास्त्रकारों ने स्वास्थ्य की रक्षा के प्रयोजन को निर्दिष्ट करते हुए कहा है…

सर्वमन्यत् परित्यज्य शरीरमनुपालयेत्।

तदभावे हि भावानां सर्वाभावः शरीरिणाम्॥

अर्थात् अन्यान्य कामों को छोड़कर सर्वप्रथम शरीर की रक्षा करनी चाहिये; क्योंकि शरीर का अभाव यानि अस्वस्थ्य होने पर सन्सार की सर्व सुख, शांति कादि हर चीज फीकी लगती है।

  • स्वास्थ्य और त्रिदोष क्या है…वात, पित्त तथा कफ इन तीनों को दोष कहा जाता है, जिस पुरुष;के शरीर-में ये त्रिदोष सम-अवस्था में हों, अग्नि (जठराग्नि) सम हो अर्थात् पाचन क्रिया ठीक हो, रसादि धातुओं का ठीक-ठीक निर्माण हो रहा हो, मल-मूत्रादि का विसर्जन उचित रूपसे हो रहा हो और इन सबके फलस्वरूप आत्मा, इन्द्रिय एवं मन यदि प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हों, तो उसे स्वस्थ कहते हैं यानी स्वस्थ व्यक्ति का यही लक्षण है!

च समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः। प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते॥

(सुश्रुत सूत्र १५। ४१) इसी बात को आचार्य वाग्भट ने इन शब्दों में कहा है

प्रसृष्टे विण्मूत्रे हृदि सुविमले दोषे स्वपथगे

विशुद्धे चोद्गारे क्षुदुपगमने वातेऽनुसरति।

तथाऽग्नावुद्रिक्ते विशदकरणे देहे च सुलघौ

प्रयुञ्जीताहारं विधिनियमितं कालः स हि मतः॥(अष्टाङ्गहृदय सूत्र- ८।५५)

मनुष्य-शरीरके तीन आधार-स्तम्भ हैं- ‘

 !त्रय उपस्तम्भा इति-आहार: स्वप्नो ब्रह्मचर्यमिति’! (चरकसूत्र ११ । ३५)

  • पहला आहार, दूर -स्वप्न (उचित सोना) और तीसरा ब्रह्मचर्य। प्रथम आधार- आहार की शुद्धि है यह शरीर की रक्षा में विशेष अपेक्षित है।

यही कारण है कि हमारे यहाँ त्रिकालज्ञ परम ज्ञान-विज्ञान-विशारद ऋषि-मुनियों, संत-महात्माओं ने खान-पान की, आचार-विचार की शुद्धि पर विशेष ध्यान दिया; क्योंकि इससे धर्माचरण का प्रधान सम्बन्ध तो है ही, स्वास्थ्य का भी गहरा सम्बन्ध है।

  • भोजन कितनी बार करना जरूरी है…विश्ववन्द्य वेद का निर्देश है कि मनुष्यों को प्रातः एवं सायं दो बार भोजन करना चाहिये। इसके बीच में भोजन नहीं करना चाहिये। यह भोजन की विधि अग्निहोत्र के समान ही है।
  • भोजन भयंकर भूखह लगने पर ही करें… मल-मूत्र त्याग करने के बाद, इन्द्रियों के निर्मल तथा शरीर के हलके रहने पर, ठीक से डकार आने एवं मन के प्रसन्न रहने पर, भूख लगने के बाद, भोजन के प्रति रुचि उत्पन्न होने पर, आमाशय के ढीले पड़ जाने पर भोजन करना चाहिये; क्योंकि यही भोजन का उचित अवसर है!
  • वायु का संक्रमण हानिदेय है…

सायं प्रातर्मनुष्याणामशनं श्रुतिबोधितम्।

नान्तरा भोजनं कुर्यादग्निहोत्रसमो विधिः॥

विसृष्टे विण्मूत्रे विशदकरणे देहे च सुलघौ

विशुद्धे चोद्गारे हृदि सुविमले वाते च सरति। तथानश्रद्धायां क्षुदुपगमने कुक्षौ च शिथिले

प्रदेयस्त्वाहारो भवति भिषजां कालः स तु मतः॥

  • अर्थात-भोजन करने से पहले हाथ-मुँह और पैर अवश्य धोने चाहिये-

‘आर्द्रपादस्तु भुञ्जीत’ क्योंकि कहा गया है कि ‘आर्द्रपादस्तु भुञ्जानो दीर्घमायुरवाप्नुयात्’

  • अर्थात् गीले पैर जो भोजन करता है, वह दीर्घायु होता है।

भोजन कब करना चाहिये, इसपर निर्देश है कि

याममध्ये न भोक्तव्यं यामयुग्मं न लङ्घयेत्।

याममध्ये रसोत्पत्तिर्यामयुग्मादलक्षयः॥

  • एक याम/प्रहर तीन घण्टे का होता है…आयुर्वेद के मुताबिक याम कहते हैं प्रहर को, यह तीन घंटे का होता है। सूर्योदय से तीन घंटे तक यानि सुबह 9 बजे तक भोजन न करे।

दो याम यानी छ: घंटे से अधिक विलम्ब भी न करे।

दो यामों यानी प्रहर के बीच में भोजन करने से अन्नरस का परिपाक भलीभाँति होता है। दो याम बिताकर भोजन करने पर पूर्व संचित बल-वीर्य का क्षय होता है। अतः सदैव समय पर ही भोजन करना चाहिये।

  • भोजन के समय क्या करना चाहिये, इस विषयमें । बताया गया है

पूजयेदशनं नित्यमद्याच्चैतदकुत्सयन्।

दृष्ट्वा हृष्येत् प्रसीदेच्च प्रतिनन्देच्च सर्वशः॥

पूजितं ह्यशनं नित्यं बलमूर्जं च यच्छति।

अपूजितं तु तद्भुक्तमुभयं नाशयेदिदम्॥

  • अर्थात् भोजन का सदैव आदर करे, प्रत्युत प्रशंसा करता हुआ उसे ग्रहण करे। भोजन की निन्दा कभी न करे, उसे देखकर आनन्दित हो, भाँति-भाँति से उसका गुणगान करे। क्योंकि इस प्रकार ग्रहण किया गया भोजन प्रतिदिन बल एवं पराक्रम को बढ़ा देता है। बिना प्रशंसा के किये गये अन्नका भोजन करना तो तन-मन दोनों की क्षति करता है।
    • भोजनकी मात्रा कितनी हो उसे बताते हुए कहा गया है…

मात्राशी सर्वकालं स्यान्मात्रा ह्यग्नेः प्रवर्धिका।

मात्रा द्रव्याण्यपेक्षन्ते गुरूण्यपि लघून्यपि॥ गुरूणामर्धमौचित्यं लघूनां नातितृप्तता।

मात्राप्रमाणं निर्दिष्टं सुखं यावद् विजीर्यति॥

नित्य मात्रा के अनुसार किया गया आहार जठराग्नि को प्रदीप्त करता है। मात्रा का निर्धारण गुरु एवं लघु द्रव्यों के आधार पर होता है।

तदनुसार गुरु पदार्थ (तेल तथा घीमें तले हुए पदार्थ, दूध, मलाई, रबड़ी आदि)-का सेवन भूख की मात्रा से आधा ही करना उचित है और लघु (सुपाच्य) पदार्थों का तृप्तिपर्यन्त करना चाहिये, किंतु तृप्तिसे अधिक नहीं।

इस विषय में चरककी उक्ति है-

उष्णं स्निग्धं मात्रावजीर्णे वीर्याविरुद्धमिष्टेदेशे इष्टसर्वोपकरणं न….!!१

अर्थात- जितनी मात्रा में भोजन सुखपूर्वक पच जाय, उतनी मात्रा में भोजन करना उचित है।

  • जो अजितेन्द्रिय पुरुष स्वाद आदि के लोभ से बिना प्रमाण के अज्ञानी पशुओं की भाँति भोजन करते हैं, वे रोगसमूह की जड़-अजीर्ण रोग से पीडित होकर पाचनतंत्र, यकृत, मेटाबोलिज्म खराब कर लेते हैं।
  • भोजन करने के नियम भिषगाचार्यों ने जिस प्रकार बताये हैं उसे आहार-विधि कहा है-उष्ण, स्निग्ध, नियत मात्रा में, भोजन के पच जाने पर, वीर्याविरुद्ध अर्थात् जो आहार परस्पर में विरुद्ध वीर्य वाले न हों, अपने मन के अनुकूल स्थान पर, उचित सामग्रियों के सहित आहार को न अधिक जल्दी, न अधिक देर से, न बोलते हुए, न हँसते हुए, अपने अगल-बगल चारों ओर भलीभाँति परीक्षण कर, आहार-द्रव्य में मन लगा करके भोजन करना चाहिये।
  • झूठा खाने से बुद्धि भृष्ट होने लगती है…दूसरे की जूठी कोई चीज खाना या खिलाना सर्वथा हानिकारक है। जूठी चीजों के सेवन से विचारों में विकृति आती है!
  • बुद्धि दुर्बल हो जाती है और शरीर में बहुविध रोग उत्पन्न होते हैं।
  • उदाहरणार्थ-डॉक्टर किसी संक्रामक रोग के रोगी की नब्ज़ देखकर अथवा उसका उपचार कर सावधानी से हाथ धोता है; क्योंकि कीटाणुओं का भय रहता है। जब छूने मात्र से कीटाणुओं का संक्रमण होता है, तब थूक लगे जूठे पदार्थों के भोजन में कीटाणुओं का भय नहीं है, यह मानना ही मन्दमतिता है।
  • बिना नहाये न करें भोजन- गंदे विचारोंवाले सर्वहारा मनुष्यके अथवा कामी, क्रोधी तथा वैर भाव रखने वाले एवं अस्वस्थ व्यक्तिवके हाथ का बनाया हुआ भोजन नहीं करना चाहिये। यदि किया गया तो उससे मनमें अपवित्रता, गंदगी, कामक्रोधादि कुत्सित विचार अथवा शत्रुता उत्पन्न होगी।
  • शद्ध शरीरवाले, सात्त्विक भोजी, सुसंस्कृत भाव वाले संयमी स्वस्थ सुहृद् व्यक्ति या स्त्री के हाथ का बनाया भोजन हमें करना चाहिये।
  • भोजन बनाने वाले मनुष्यवके स्वस्थ या अस्वस्थ शारीरिक और मानसिक विचार तथा विकार का प्रभाव भोजन पर पड़ता है तथा उन पदार्थों का भोजन करने वाले व्यक्ति पर भी तदनुसार ही असर होता है।
  • भोजन में हिंसाजनित मांस, लहसुन-प्याज आदि तामसी पदार्थों तथा पापाचार से प्राप्त भोजन के सेवन से भोजन करने वालों के सद्विचार और सद्व्यवहार नष्ट होते हैं। इससे उनमें पाप में पुण्यबुद्धि हो जाती है। फलतः मनुष्य पाप पथिक बनकर सर्वनाश की दिशामें पदारूढ हो जाता है; परिणाम होता है उसका नाश, क्योंकि
  • ‘बुद्धिनाशात् प्रणश्यति। अतः विधिपूर्वक भोजन करने से पहले भक्तिभाव से भगवान को भोग लगाना चाहिये। ऐसा करने से वह प्रसाद बन जायगा, उसकी आत्मा प्रसन्न हो जायगी-
  • !!’प्रसादस्तु प्रसन्नात्मा!! उस प्रसाद के पाने से पाने वाले को प्रसन्नता मिलेगी, शान्ति मिलेगी, सच्ची आरोग्यता प्राप्त होगी और हमारा सात्त्विक बना शरीर एवं मन स्वतः ही भगवन्मार्गका पथिक बन जायगा।

RELATED ARTICLES

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Please note, comments must be approved before they are published

Talk to an Ayurvedic Expert!

Imbalances are unique to each person and require customised treatment plans to curb the issue from the root cause fully. Book your consultation - download our app now!

Amrutam Face Clean Up Reviews

Currently on my second bottle and happy with how this product has kept acne & breakouts in check. It doesn't leave the skin too dry and also doubles as a face mask.

Juhi Bhatt

Amrutam face clean up works great on any skin type, it has helped me keep my skin inflammation in check, helps with acne and clear the open pores. Continuous usage has helped lighten the pigmentation and scars as well. I have recommended the face clean up to many people and they have all loved it!!

Sakshi Dobhal

This really changed the game of how to maintain skin soft supple and glowing! I’m using it since few weeks and see hell lot of difference in the skin I had before and now. I don’t need any makeup or foundation to cover my skin imperfections since now they are slowly fading away after I started using this! I would say this product doesn’t need any kind of review because it’s above par than expected. It’s a blind buy honestly . I’m looking forward to buy more products and repeat this regularly henceforth.

Shruthu Nayak

Learn all about Ayurvedic Lifestyle