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सुबह के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, दिसम्बर की गुनगुनी धूप धुंध की चादर के पीछे से झाँक रही थी, पुराने ग्वालियर की संकरी गलियों से गुजरते हुए मैं यह महसूस कर पा रहा था कि मानो समय यहाँ ठहर सा गया हो। घरों के आगे प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठकर धूप में अखबार पढ़ते लोग। हर जगह बेतरतीब खड़े ठेले और गाड़ियाँ, गहमागहमी हर तरह का शोर और इस सब के बीच कहीं दूर से आती मंदिर के भजनों और मस्जिद से उठती तकरीरों और अजानों की आवाजें…ये सब कंप्यूटर और फोन की स्क्रीनों को दिनभर घूरने वाली आँखों में भी एक चमक और आश्चर्य पैदा करने के लिए काफी है। ग्वालियर शहर की अपनी एक रवानी है और इसे यहाँ आकर और कुछ दिन ठहरकर ही समझा जा सकता है। श्री अशोक गुप्ता से मेरी मुलाकात अमृतम के ऑफिस पर हुई। जो कि ग्वालियर शहर के ‘नई सड़क’ नाम के एक पुराने इलाके में है। उनका ऑफिस एक साधारण ऑफिस की तरह ही था, बस यहाँ एक चीज़ अलग थी- कि यहाँ लोगों के कहीं भी आने जाने पर कोई रोकटोक नहीं दिखी और न ही लोगों के बीच किसी तरह की कोई औपचारिकता दिखाई दी, अमृतम भले ही एक ‘स्टार्ट-अप’ के तौर पर नहीं जाना जाता हो पर यहाँ का माहौल बिलकुल किसी स्टार्ट-अप की तरह ही था।
अशोक जी के ऑफिस की अलमारियों में हर तरफ किताबें और सिर्फ किताबें ही थीं, ये किताबें ज्यादातर आयुर्वेद और अध्यात्म से संबंधित ही थीं पर इसके अलावा कई दुर्लभ और पुरानी किताबें भी इस संकलन में मौजूद थीं। मैंने चर्चा की शुरुआत उनके बचपन से जुड़े सवाल से की और वो भी बड़े उत्साह से इसका जवाब देने के लगे।
एक साधारण शुरुआत
“मेरा बचपन काफी संघर्षों में बीता हमारी पारिवारिक पृष्ठभूमि आयुर्वेद की नहीं थी, हम पारंपरिक रूप से भोजन से जुड़े हुए हैं, पिता और दादा दोनों हलवाई थे, आज भी यह पारिवारिक व्यवसाय मेरे भाइयों ने जारी रखा है, एक बात मुझे आज भी याद है- तब शायद मेरी उम्र 9-10 साल की रही होगी एक दिन मेरे दादाजी विश्वनाथ जी ने मुझसे पूछा कि “बड़ा हो कर क्या बनोगे?” मैंने कहा- “डॉक्टर बनूँगा” तब वे बोले- “तू डाक्टर नहीं बनेगा, तू डॉक्टरों को भी दवाई बताने वाला बनेगा” बात तब तो आई गई हो गई थी…आज उनके आशीर्वाद से उनकी उस समय सहसा ही कह दी गई बात सच साबित हो गई है, बचपन से ही मेरी रूचि घरेलू उपचारों और जड़ी बूटियों के प्रयोग से बनने वाली दवाइयों में रही, उन दिनों जब गाँवों में आधुनिक चिकित्सा उपलब्ध नहीं होती थी, तब यही उपचार लोगों के काम आते थे। मैंने इन उपचारों की उपयोगिता को काफी करीब से देखा था इसलिए शुरू से ही मेरे मन में आयुर्वेद के प्रति एक विशेष लगाव रहा जिसने आगे चलकर मेरे जीवन को दिशा दिखाई”
अगला सवाल उनके व्यावसायिक सफर की शुरुआत को लेकर था, मेरे मन में इस बात को जानने की उत्सुकता थी कि अमृतम अपने शुरूआती दिनों में किस तरीके से आगे बढ़ा।
“मेरा पहला काम एक आयुर्वेदिक कंपनी में सुपरवाइजर के तौर पर था जीवन के शुरूआती संघर्षों के कारण मैं अपने काम को गंभीरता से लेने लगा, मुझे समय को बर्बाद करना बिलकुल भी पसंद नहीं था, रविवार के दिन जब कंपनी की छुट्टी होती थी तब मैं आस-पास के इलाकों में आर्डर लेने जाता था, मुझे आज भी याद है कि वर्ष 1984 में मेरा पहला ऑर्डर 70 रूपये का था जो कि उस समय के हिसाब से एक बड़ा आर्डर था। इसके लिए मैंने सिर्फ 10 रूपये खर्च किये थे, मुझे याद है कि कंपनी के लोग इससे काफी खुश हुए थे, जब मैंने स्वयं का व्यवसाय शुरू किया तब भी मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा लेकिन मैंने कभी संघर्षों से हार नही मानी”
अशोक जी मुस्कुराते हुए कहते हैं- “प्रकृति का आनंद पाने के लिए आपको घाटी पार करनी पड़ती है, और यदि आपको व्यवसाय का आनंद उठाना है तो आपको घाटा तो पार करना ही पड़ेगा इससे घबराने की कोई जरूरत नहीं है।”
संघर्ष भरा सफर
"सन 1983 से 91 तक एक आयुर्वेदिक कम्पनी में काम करते हुए आयुर्वेद के बारे में कुछ कुछ जाना। इस कम्पनी में एक पैकर के रूप में काम की शुरुआत करते हुए ग्वालियर संभाग में ऑर्डर लेने जाने लगा यहाँ काम करते हुए एक मेटाडोर डिलेवरी के लिए मिली जिसमें दवाएं भरकर गाँव-गाँव जाकर दवाएं बेचता और साथ में वाहन की छत पर स्पीकर लगाकर इस कम्पनी का मंजन बेचता था, मुझमें नई चीज़ों को सीखने की इच्छा बनी रहती थी, जिस दौर में मेरे साथ के लोग अपने पैसे सुख-सुविधा, पार्टी और सिनेमा देखने में खर्च करते थे उस समय मैंने अपने पैसे किताबों पर खर्च करना शुरू किये, मैंने कई दुर्लभ आयुर्वेदिक और अध्यात्मिक किताबों को पढ़ा और इन विषयों में अपने ज्ञान को लगातार बढाता रहा"
अमृतम आज एक बड़ा आयुर्वेदिक lifestyle brand बन चुका है, ऑनलाइन मार्केट में इसकी पहुँच दिन-ब-दिन और व्यापक होती जा रही है। कई सेलेब्रिटी और मशहूर लोगों को भी अमृतम के उत्पाद काफी पसंद आ रहे हैं। लेकिन ये सवाल भी वाजिब है कि कैसे एक लोकल स्तर पर ऑफलाइन मार्केटिंग के आधार पर चलने वाली कंपनी इतने कम समय में ऑनलाइन मार्केट पर अपने मजबूत मौजूदगी दर्ज करा रही है?
अमृतम का विचार
“वर्ष 2013 के जून माह में अमृतम कम्पनी का श्रीगणेश हुआ। इस कम्पनी में सबसे पहला उत्पाद मधु पंचामृत, अमॄतं गोल्ड माल्ट, जिओ माल्ट, ऑर्थो की माल्ट, हेयर आयल, हर्बल शेम्पू का निर्माण कर offline मार्केटिंग शुरू की। अमृतम में हमारा सबसे अधिक ध्यान अपने उत्पादों की गुणवत्ता और प्रमाणिकता पर रहता है, हमारे हर उत्पाद पर उस उत्पाद का प्रमाणिक आयुर्वेदिक स्रोत और संदर्भ ग्रन्थ (रेफेरेंस) लिखा रहता है ज्यादातर आयुर्वेदिक कम्पनियां अपने उत्पाद की गुणवत्ता अधिक ध्यान नहीं देती हैं, जिससे उस उत्पाद का असर कम हो जाता है, अमृतम में हम अपने उत्पादों में औषधियों की मात्रा से कोई समझौता नहीं करते हैं, इस कारण हमारे उत्पाद अपेक्षाकृत ज्यादा असरकारक होते हैं। ऑनलाइन मार्केट एक बिलकुल की अलग तरह की जगह है, जिसका मुझे ज्यादा अनुभव नही था। वर्ष 2017 में अमृतम को ऑनलाइन लाने का पूरा श्रेय मेरी बेटी स्तुति और बेटे अग्निम को जाता है, दोनों अपनी पढाई पूरी करने के बाद समर्पित रूप से अमृतम से जुड़े और अमृतम को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर मेहनत कर रहे हैं।
जब हम आयुर्वेदिक जीवनशैली की बात करते हैं तो ये मूलतः एक ऐसी जीवनशैली को अपनाने से संबंधित होता है जो रोगों को ‘जन्म लेने से रोकती है’ और इस जीवनशैली का पालन एक लंबे समय तक नियमित रूप से व्यक्ति को करना पड़ता है। आयुर्वेदिक जीवनशैली और आयुर्वेदिक औषधियों पर अशोक जी ने अपने विचार काफी विस्तार से साझा किये।
“आयुर्वेद मुखतः त्रिदोष सिद्धांत पर आधारित है, ये तीन दोष हैं वात दोष, पित्त दोष और कफ दोष, इन दोषों का असंतुलन विभिन्न रोगों की उत्पत्ति का कारण बनता है, आयुर्वेदिक जडी बूटियाँ इस असंतुलन को संतुलित करती हैं और शरीर में बनने वाले हानिकारक तत्वों को बाहर निकालने में सहायक होती हैं, त्रिदोषों को संतुलित रखने के लिए सिर्फ बाहरी उपचार और औषधियां ही कारगर नहीं होती हैं, बल्कि आपकी दिनचर्या का भी इसमें एक विशेष योगदान होता है, दिनचर्या में स्वस्थ्य आहार और व्यायाम को सम्मिलित करके आप इन दोषों को असंतुलित होने से रोक सकते हैं। आयुर्वेदिक उपचारों, संतुलित आहार और शारीरिक व्यायाम का समावेश ही आयुर्वेदिक जीवनशैली के केंद्र में है”
किसी भी सफल संस्था के पीछे उसका विजन या ध्येय महत्वपूर्ण होता है, और इस विजन को समझने के लिए उस संस्था का संस्थापक ही सबसे प्रमुख व्यक्ति होता है क्योंकि संस्था या व्यवसाय रुपी वृक्ष उस व्यक्ति के विचार रुपी बीज की परिणिति ही तो है। अमृतम के पीछे का विजन समझने के लिए “अमृतम के संस्थापक” श्री अशोक गुप्ता से बेहतर और कौन हो सकता है? क्या अमृतम को खड़ा करने के पीछे सिर्फ शुद्ध व्यावसायिक कारण थे या कोई अन्य प्रेरणा भी इसके पीछे थी? चर्चा में जब ये प्रश्न निकला तो इसका उत्तर भी काफी साफगोई से अशोक जी ने दिया।
“मैंने अमृतम की शुरुआत एक ऐसे व्यवसाय के तौर पर की थी जिसके जरिये मैं लोगों का कुछ भला कर पाऊं हालाँकि व्यावसायिक कारण तो थे ही, लेकिन मैंने शुरू से ही व्यवसाय को जन सरोकार से जोड़कर देखा है। जीवन के शुरूआती दिनों में मैंने जो संघर्ष किये उससे मेरी चेतना का आध्यात्मिक स्तर पर काफी विकास हुआ और धर्म व आध्यात्म से जुड़ने पर मैंने व्यवसाय को लोगों के जीवन में सार्थक परिवर्तन लाने का जरिया माना। इन संघर्षों ने मुझे पढ़ाई लिखाई के महत्त्व से भी परिचित कराया, मैंने अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया, मैंने उनपर कोई प्रतिबन्ध नहीं रखे और हमेशा उनकी इच्छाओं का सम्मान किया, आज शायद इसलिए ही वे दोनों इतनी मेहनत और लगन से अमृतम के साथ जुड़े हैं। मैं एक ईश्वरवादी व्यक्ति हूँ और मैं मानता हूँ कि आर्थिक लाभ आपको भौतिक सुख तो देता है, लेकिन अपने उपक्रम से लोगों के जीवन में सार्थक परिवर्तन होते हुए देखना अपने आप में सबसे अधिक संतुष्टि देने वाला अनुभव है।”
अमृतम परिवार
मुझे अमृतम की कार्यशैली एक संयुक्त परिवार की तरह लगी, यहाँ लोग बहुत आत्मीयता से आपस में जुड़े रहते हैं, सभी के काम निर्धारित हैं और रोचक बात ये है कि यहाँ सभी अपने अपने कार्य क्षेत्र से संबंधित निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। इस पूरी प्रक्रिया में अशोक जी की भूमिका घर के मुखिया की तरह है जो पूरे परिवार को एक साथ जोड़े रखते हैं। अशोक जी ने इस संबंध में कई संस्मरण साझा किये,
“एक पुरानी सूक्ति है- विश्वासो फलदायकः अमृतम में हमने अपने सहकर्मियों पर विश्वास करते हैं...और इस विश्वास का असर यह हुआ कि उन्हें अपना भविष्य हमारे साथ सुरक्षित दिखाई देने लगा। वे और समर्पित तरीके से हमारे साथ काम करने लगे, अब हमे उन्हें प्रेरित करने की जरूरत नहीं पड़ती, वे खुद ही अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे तरीके से निभाते हैं। दीपक को हमारे साथ जुड़े लगभग 20 साल हो गये हैं, वो एक पैकर के तौर पर हमसे जुड़ा था आज वो हमारी फैक्ट्री में सुपरवाइजर है, ऐसे कई लोग अमृतम के साथ जुड़े हैं जिनके साथ हमारा आत्मीय संबंध है, हम उनकी सभी जरूरतों का ख्याल रखते हैं , और वो पूरी ईमानदारी और मेहनत से हमारे साथ काम करते हैं इस पारिवारिक माहौल को बनाये रखने का श्रेय मेरी पत्नी और अमृतम की सह-संस्थापक श्रीमती चंद्रकांता गुप्ता को भी जाता है, मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि उनकी दूरदृष्टि समझदारी, सरलता, सहजता और हिम्मत के सहारे आज यह कम्पनी सही दिशा में बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रही है।”
पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधियों के उत्पादन में गुणवत्ता को सुनिश्चित करना काफी कठिन काम होता है, चूँकि उत्पादन की पूरी प्रक्रिया हाथ से की जाती है यहाँ मशीनों का बहुत अधिक उपयोग नहीं होता। इस चुनौती के साथ ही गुणवत्ता और प्रमाणिकता से संबंधित कई प्रश्न अक्सर आयुर्वेदिक उत्पादों के बारे में उठते रहते हैं, अमृतम हमेशा अपने उत्पादों की प्रमाणिकता और शुद्धता का दावा करता है, अमृतम इस शुद्धता और प्रमाणिकता को कैसे कायम रख पाता है ये जानना भी बहुत जरूरी है। अशोक जी इस संदर्भ में कहते हैं-
“अमृतम में हमारा ध्यान हमेशा अपने उत्पाद की गुणवत्ता पर रहता है, चूँकि हम पूरी उत्पादन प्रक्रिया हाथ से करते हैं और सिंथेटिक केमिकल पदार्थों का उपयोग नहीं करते हैं, इस वजह से हमारे उत्पादों में मौसम और बाहरी कारणों से आपको बदलाव दिखाई देंगे पर इससे इनकी गुणवत्ता और प्रभाविकता पर कोई असर नहीं पड़ता, अमृतम एकमात्र ऐसी कम्पनी है जिसने अयुर्वेदिक ग्रंथों में मौजूद अवलेह पर आधारित माल्ट बनाये हैं, माल्ट एक तरह के लेप या चटनी होते हैं जो विभिन्न रोगों में लाभ पहुँचाते हैं, अमॄतं गोल्ड माल्ट, जिओ माल्ट, ऑर्थो की माल्ट हमारे कुछ प्रमुख माल्ट हैं, इस तरह की प्रमाणिक आयुर्वेदिक विधियों का प्रयोग करने के कारण हमारे उत्पादों की गुणवत्ता का स्तर अन्य कम्पनियों से बेहतर रहता है। गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए हम विभिन्न स्तरों पर जांच करते हैं, जो जड़ी बूटियाँ हम मंगाते हैं, वो हमारे विश्वस्त सप्ल्यारों से ही आती हैं, और साथ ही जड़ी बूटियों की शुद्धता के सर्टिफिकेट भी वे हमे उपलब्ध कराते हैं। हम कोशिश करते हैं कि ज्यादातर जड़ी बूटियाँ हम स्वयं ही आर्गेनिक पद्दति के जरिये उगा लें जिससे हम उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित कर सकें।”
विस्तार और लक्ष्य
अमृतम के विस्तार की चर्चा भी इस दौरान निकल कर आई और इस बारे में मैंने अशोक जी के विचार जानने चाहे,
“हम अमृतम ग्लोबल के नाम से एक नया प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहे हैं जिसके जरिये हम आयुर्वेद को और अधिक लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं, अमृतम ब्लॉग के माध्यम से हम लगातार आयुर्वेद से लोगों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, हमने ब्लॉग पर आने से पहले कई साल तक लगभग 50 हज़ार प्रतियों के सर्कुलेशन वाली “अमृतम पत्रिका” का प्रकाशन भी किया, आज हम अमृतम पत्रिका को भी ऑनलाइन लाने की दिशा में काम कर रहे हैं, हमारा लक्ष्य अमृतम को एक वैश्विक आयुर्वेदिक lifestyle brand के तौर पर स्थापित करना है।”
यह पूरी बातचीत करीब डेढ़ घंटा चली और इस दौरान उन्होंने अपनी यात्राओं के कई रोचक संस्मरण भी सुनाये साथ ही अपने संकलन में रखे कई दुर्लभ ग्रन्थ भी दिखाए। इनमें से कई ग्रन्थ तो बहुत ही जर्जर अवस्था में थे जिन्हें उन्होंने संरक्षित कराया था। कोरोना वायरस से उत्पन्न परिस्थिति पर भी चर्चा हुई इस संदर्भ में ये बात निकल कर आई कि कोरोना महामारी ने लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति गंभीरता से सोचने के लिये मजबूर कर दिया है। स्वास्थ्य को दीर्घकाल तक बनाये रखने के लिए हमें आज से ही अपनी जीवनशैली में परिवर्तन करने और एक प्राकृतिक व आयुर्वेद आधारित जीवनशैली को अपनाने की जरूरत है। योग और व्यायाम की उपयोगिता पर भी एक विस्तृत संदर्भ इस चर्चा में निकल कर आया, योग और व्यायाम के माध्यम से हम अपने शरीर के दोषों के असंतुलन को संतुलित कर सकते हैं ऐसा आयुर्वेद में वर्णित है।
प्रेरक व्यक्तित्व
अशोक जी से इस सार्थक चर्चा के बाद यह बात स्पष्ट थी कि वे अपने कार्य के प्रति पूर्णतः समर्पित हैं, अमृतम उनके लिए सिर्फ एक व्यवसाय या आर्थिक लाभ कमाने का माध्यम नहीं है, बल्कि इसके जरिये वे आयुर्वेद और भारतीय ज्ञान को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने की इच्छा रखते हैं। अशोक जी का संघर्ष किसी भी मायने में एक भारतीय मिडिल क्लास व्यक्ति के संघर्ष से अलग नहीं है, पर उनका जीवन की चुनौतियों से जूझने का अंदाज़ ज़रूर कई लोगों से अलग है, वे समस्याओं को एक अवसर के रूप में देखते हैं, वे एक संवेदनशील व्यक्ति हैं जो अपने आस पास के लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं के प्रति हर समय सजग रहते हैं। उनकी इस पूरी यात्रा में उनके परिवार का योगदान नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जीवन की कठिनाइयों से जूझते समय उनका परिवार ही एक संबल के तौर पर उनके साथ था, आज अमृतम भी उनका परिवार है और इसमें काम करने वाले लोग उनके लिए सहकर्मियों से अधिक परिवार के सदस्य की तरह हैं। ऑनलाइन प्लेटफार्म पर ग्वालियर का अमृतम एक बड़े और विश्वसनीय brand के तौर पर स्थापित हो चुका है, इसके पीछे अमृतम परिवार की मेहनत और उनके गुणवत्तापूर्ण व प्रमाणिक आयुर्वेदिक उत्पादों के साथ ही उनके सृजनात्मक विचारों का भी विशेष योगदान है। अमृतम पर विश्वास करने वाले उपभोक्ताओं की उम्मीदों पर खरा उतरना और उनके जीवन में एक सार्थक बदलाव लाना ही अमृतम का लक्ष्य है। इस लक्ष्य के प्रति अशोक जी की निष्ठा और समर्पण सभी के लिए एक प्रेरणा है। अशोक जी का मानना है कि "हम जीवन में जो भी कार्य करें यदि उसके पीछे कोई कल्याणकारी लक्ष्य है तो रास्ते में मिलने वाली बाधाओं और संघर्षों के बाद भी हमें सफलता निश्चित मिलती है, बस जरूरत है इमानदरी से अपने लक्ष्य की तरफ निरंतर बढ़ते रहने की।"
भारत के प्राचीन ज्ञान को नई पीढ़ी के लिए एक नए तौर पर सामने लाने का ये महत्वपूर्ण कार्य अमृतम परिवार ने अपने जिम्मे लिया है, "स्वास्थ्य ही सुंदरता है" इस प्रेरणा के साथ अमृतम परिवार लगातार लोगों के जीवन में सार्थक परिवर्तन लाने के लिए कार्य कर रहा है