दोनों के स्वभाव में काफी समानता है ।
होती है, मन मदमस्त कर देती हैं ।
*रूठी तो फिर किस्मत फूटी*
प्रातः प्रकृति परमानंद प्रदायक है ।
ठंडी-ठंडी शीतल हवा,दवा का काम करती
है , तभी तो सुबह हर प्राणी सिर नवा के
प्रकृति को प्रणाम करता है । शरीर को सवा
(स्वस्थ) करने मन्द-मन्द वायु आयु
वृद्धि कारक है । प्रकृति और स्त्री का
भाव-स्वभाव कब बदल जाये, सर्दी-गर्मी,
बरसात अर्थात अपनापन, क्रोध, अश्रुधारा
कब कैसे होने लगे, परमात्मा को भी नहीं
पता ।
न गिला, पर विषधर (क्रोधित) होने पर जो सृष्टि का एक-एक जिला, किला,शिला हिला दे उसका
नाम महिला है । फिर क्या गया-क्या मिला
इसकी फ़िक्र नहीं करती ।*
जल, कल-कल कर बह रहा है ।पवन प्रतिक्षण
नमन करता है । आकाश प्रकाश देने को मजबूर
है । आग इनका आधा भाग है । शेषनाग
स्वयं जिसे धारण किये है । ये पंचतत्व
पृथ्वी-प्रकृति और स्त्री की प्रतिदिन, प्रतिपल
पल-पल परिक्रमा करने आतुर है ।शिव भी इनकी सुंदरता पर मुग्ध है, यही सत्य है ।
सुंदरता में सत्य का वास है और सत्य
ही अंत में शिव है । शिव में छोटी इ हटाते
ही शव हो जाता है ।
बिना महिला कोई हिला मतलब अपनी
मनमर्जी से चला कि हिल स्टेशन मिला ।
व्यक्ति साधु बना । घाटी, पहाड़ों, गुफा, कंदराओं
एकांत घने वन में,रहने वाले अनेकों साधक
गृहकलेश के कारण साधु बन जाते हैं तो कुछ ईश्वर की इच्छा से। जिनमे कई ब्रह्मचारी भी हैँ ।
वैसे साधु सभी हैं । संसार को साधना या शिव
को बात बराबर है ।
कुछ किस्मत की मारी या जिम्मेदारी से मुक्त होकर हमारी तुम्हारी की खुमारी छोड़कर
महिलाएं भी साधना पथ पाकर जीवन जीती हैं ।
में सर्वनाश कर सकती है । संस्कार, संस्कृति समाज और सबको बड़ी शालीनता पूर्वक
समर्पण भाव से संभालकर सब समस्या का
समाधान कर सकती है । सभी तरह के सच का सामना करते हुए अपना और अपने परिवार का
सम्मान बनाये रखती हैं । संसार को संस्कार,
शक्ति सामर्थ्य प्रदान करने वाली सशक्त शक्ति
का नाम ही स्त्री है ।स्त्री स्वयं में सात स्वरों का संगम है । *सा* से शुरु *नि* से अंत यानि
संगीत के स्वर हो एवम विनम्रतामें इनका कोई *सानि* नहीं है ।
सात सरोवर, समुद्र, नदी, वृक्ष,मठ-मंदिर
इन्हीं के कारण पूजनीय हैं । स्त्री धर्म की धारा है , आधारा भी ।
ये प्रेम की मूरत है । करुणा का सागर है । अपनेपन का अंबार है । समर्पण, सहजता, सरलता इनका सबसे बड़ा सहारा हैं । सारी सृष्टि में स्त्री ही ऐसी शक्ति है, जो सदा सत्य का साथ देकर संसार को सत्संग की और ले जाती है ।
सभी सन्त इसका अन्त आँकने हेतु उस अनन्त
( अखिलेश्वरी) के आगे ध्यान मग्न है । उसके
प्रसन्न होने से ही सब संपन्न हो सकते हैं । कुछ भी उत्पन्न इसके बिना असम्भव है ।
करती है । बेटी तो फिर बेटी है । बेटी है तो कल है । भविष्य की नारी हेतु यह नारा बहुत चलन में है ।
*पत्नी- जो सदा रहे तनी ।* इन्हें श्रीमती के नाम
से संबोधित किया जाता है । ज्ञान-विवेक, लक्ष्मी,संपत्ति श्री के कई अर्थ हैं । बुद्धि को भी
मति कहते हैं । भ्रष्ट मति, अति करने वाले पति
हो या जगतपति के लिए महाकाली बन जाती
है ।
कुंआरियाँ पति के अतिरिक्त कुछ और नहीं
चाहती । पर जब उन्हें पति प्राप्त हो जाते हैं,
तो वे सब कुछ चाहने लगती हैं । क्योंकि
अपनी लताड़ से बुरी लत छुड़ा, सही पथ
पर लाकर छत (घर) बनाने की प्रेरणा देती है ।
पर स्त्री इसलिये की वे उत्सुक होती हैं । फिर
दोनों ही निराश या बोर होते हैं ।
हालांकि शादी का उल्टा दिशा होता है ।
विवाह उपरांत दशा और दिशा बदल जाती है ।
वह ज्योतिष की, ग्रहों की महादशा-अन्तर्दशा
समझने लगता है ।
बनाये रखने हेतु अमृतम द्वारा निर्मित
अद्भुत असरकारक ओषधि है
इसे 1-1 चम्मच सुबह शाम दूध के साथ निरन्तर
लेने से अनेक अज्ञात रोग, रग-रग से निकल जाते हैं । बिना दर्द के मासिक धर्म समय पर लाना
सुनिश्चित करता है । सफेद पानी की शिकायत
जवानी खत्म कर देती है । इस तरह की
तमाम स्त्री विकार नारी सौंदर्य माल्ट के
लगातार खाने से नष्ट हो जाते हैं । पेट साफ रखना इसका मुख्य गुणधर्म है । चेहरे की चमक
मात्र 7 दिन के सेवन बढ़ जाती है ।
विस्तृत जानकारी के लिये
*अमृतम मासिक पत्रिका से साभार*