अ-उ-म (ओम) का वैज्ञानिक उच्चारण

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अ-उ-म (ओम) का वैज्ञानिक उच्चारण

OM CHANTINGशरीर को सदैव स्वस्थ सहज एवं सरल बनाने की प्रक्रिया है अ उ म का उच्चारण से मानसिक विकारों का विनाष उ से हृदयगत रोगो का विनाष और म के उच्चारण से पेट के समस्त रोगो से मुक्ति मिलति है।

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अध्यात्मिक क्रियाओं और शिव की साधना से व्यक्ति निर्भय होता है। व्यक्ति जैसे जैसे निर्भय होता जाता है उतना ही नाभि के निकट पहुँचता जाता है। ओम का भी यदि आध्यात्मिक शान्त  तरीके से उच्चारण किया जाए तो व्यक्ति के शरीर  मे, बल्कि शरीर के प्रत्येक रोम-रोम में कम्पन होने लगता है। व्यक्ति के चारो ओर तंरगो का निर्माण होने लगता है। ओम मे तीन शब्द है अ-उ-म। यदि ध्यान सहित मुँह बन्द करके जोर से अन्दर ही अन्दर ‘अ‘ कहें तो ‘अ‘ की ध्वनि मस्तिष्क में गूँजती हुई प्रतीत होती है। ‘अ‘ शब्द मास्तिष्क के केन्द्र का सूचक है। ‘अ‘ में अग्नि तत्व की अधिकता है। हिन्दी वर्णमाला का प्रथम अक्षर होने से इसका विशेष महत्व है। अ शब्द वाले लोग महत्वाकांक्षी और स्वाभिमानी होते है

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यदि आप मुँह बन्द कर भीतर ही भीतर ‘उ‘ शब्द का उच्चारण करें तो ‘उ‘ की ध्वनि हृदय में गूँजती हुई मालूम होती है। ‘उ‘ हृदय का सूचक है। दिषाओं में उत्तर का विशेष महत्व है क्योकि हिमालय, मानसरोवर के साथ- साथ अधिकांष पवित्र प्राचीन तीर्थ स्थान उत्तर में है। उत्तर दिषा पूरे विष्व की आत्मा है, हृदय है।

जब हम ‘म‘ का उच्चारण करते है, तो जो कि ओम का तीसरा शब्द है- तो वह नाभि के पास गूँजता हुआ प्रतीत होगा। अ- उ- और म क्रमषः मस्तिष्क हृदय और नाभि के तीन सूचक शब्द है। अभ्यास करते-करते कभी आप केवल ‘म‘ शब्द का उच्चारण करेंगे तो एहसास होगा कि आपको सारा करेंगें  नाभि में प्रतीत होगा। यदि ‘उ‘ कहें तो जोर हृदय तक होगा अ का उच्चारण मस्तिष्क में ही गूँजकर विलीन हो जाएगा। ये तीन सूत्र है- ‘अ‘ से उ की तरफ और ‘उ‘ से ‘म‘ की तरफ धीमे- धीमे जाना है। केवल ओम- ओम दोहराने से षरीर में कोई स्पंदन नही होता। जितनी गहरी ष्वास लेकर मुँह बन्द कर लयबद्ध होकर अ-उ-म का उच्चारण करेगें उतना ही हल्कापन महसूस करते जायेगें। आपकी नाभि में अनुभव होगा कि कोई नकारात्मक ऊर्जा बाहर की ओर जा रही है आप ईष्वर से साक्षात्कार कर रहे है। कुछ बात कर रहे है। गहरी धीमी ष्वास लेने से अपने-आप ही प्राकृतिक प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है।

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जिन लोगो को सदैव हृदयघात का भय सताता हो वे प्रातः काल मुँह बन्द कर केवल ‘उ‘ का उच्चारण करें। इसके अलावा जब भी दिन में फुर्सत मिले यह प्रयोग नित्य दोहराना चाहिए। यह प्रयोग हृदय रोगियो एवं शल्य  चिकित्सका करा चुके रोगियो के लिए भी विषेष लाभकारी है। इससे हर प्रकार के शारीरिक मानसिक भय का नाष होता है। जीवन चिन्ता मुक्त हो जाता है |

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