पित्त दोष के कारण होने वाले 20 रोग
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तन को क्षतिग्रस्त होने से बचा सकते हैं –
आयुर्वेद का नियम है–
का कोई रेट या महत्व नहीं रह गया।
पाचन तंत्र रखें मजबूत
जैन मत – तन को तपाने वाला धर्म है।
जैन धर्म के आचार्यों, मुनियों का
मानना है कि स्वस्थ्य व्यक्ति ही
अस्त (मोक्ष) का अधिकारी है।
ईश्वर ने जैसा हमें इस पृथ्वी पर स्वस्थ्य भेजा है, वैसा ही हमें वापस जाना चाहिए।
एक बार रोग-राग या दाग लग गया,
तो बहुत मुश्किल होगी।
रोग भी एक बार लगा, तो वह मिटता नहीं है।
छुपता नहीं है। जैन धर्म में सूर्यास्त के बाद
खाने की मनाही है।
आचार्यश्री विद्यासागर जी
का कथन है-“खाने और जमाने”
को जिसने भी पचा लिया वही स्वस्थ्य
रह सकता है।
आदमी को चार आने-आठाने के
के अलावा पार जाने पर भी विचार
करना चाहिए।
सिद्ध पुरुष
मात्र खाने पर ही अंकुश होने से
वे सिद्धियों के सम्राट बन जाते हैं।
तिरुपति बालाजी से सटा सबसे प्राचीन मठ
श्री हथियाराम मठ के पीठाधीश्वर
श्री श्री 1008 सद्गुरु श्री भवानी नन्दन यति
जी महाराज एक हठयोगी हैं।
अनेकों बार वे 5 से 7 दिन के लिए
अन्न-जल त्याग देते हैं।
वे कहते हैं, उदर खाली होने से ही
विकारों की नाली बन्द होती है।
तन और तालाब-
जैन आचार्यों ने तन और तालाब
के तारतम्य में समझाया है कि
“यदि तुम तालाब को साफ रखना चाहते
हो, उसमें जमे हुए कीचड़ को निकालना
चाहते हो,तो सबसे पहले उस तालाब
में गंदा पानी लाने वाले नालों को रोको,
बन्द करो ।
जब तक ये नाले बन्द नहीं करोगे,
तब,तक सफाई का कोई अर्थ नहीं होगा ।
इधर से सफाई करोगे और उधर से फिर
गन्दगी आ जाएगी ।
क्यों होता है पित्त का प्रकोप–
तन को भी तरोताज़ा, स्वस्थ्य-तंदरुस्त रखने के लिये श्री जैन धर्म के आचार्यों ने निर्देश दिया है कि मन को प्रसन्न रखने के लिये विचारों मेंविकारों का आगमन न होने दो।नकारात्मक व निगेटिव सोच तन को तबाह कर देती है। इसे हर हाल में रोकना चाहिए।
दुर्भाव — स्वभाव को खराब कर देता है।
द्वेषपूर्ण भाव से हमें ताव (क्रोध) आता
है फिर,ताव से, तनाव आकर हमारे “तन की नाव” डुबाकर हमारे अंदर अभाव उत्पन्न होता है। हर्बल चिकित्सा ग्रंथों में बताया गया है कि द्वेष-दुर्भावना से पित्त के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है। यही शरीर को रोगग्रस्त करने वाली, गन्दगी फैलाने वाली कीचड़ है।
पित्त की शान्ति हेतु एक बार
3 माह तक जिओ माल्ट
का उपयोग अवश्य करें।
वंगसेन सहिंता में कहा है::–
पित्त शरीर में पिता की तरह रक्षा
करता है लेकिन पित्त के कुपित होते ही
तन व्याधियों से भर जाता है।
पित्त के दुष्प्रभाव-
[[१]] सदैव मानसिक अशांति बनी रहती है।
[[२]] मन-मस्तिष्क चंचल हो जाता है।
[[३]] स्थिरता नष्ट हो जाती है।
[[४]] बहुत लम्बे समय तक किसी काम
में मन नहीं लगता।
[[५]] पाचनतंत्र पूरी तरह खराब हो जाता है।
[[६]] पेट में तकलीफ रहती है।
[[७]] कब्ज,आवँ हो जाती है।
[[८]] समय पर भूख नहीं लगती।
[[९]] हमेशा एसिडिटी बनी रहती है।
[१०] खट्टी डकार आती है।
[११] खानापचता नहीं है।
[१२] उदर में गर्मी बनी रहती है।
[१३] तन निराशा से निस्तेज हो जाता है।
[१४] काम की कामनाएँ नष्ट हो जाती है।
[१५] शरीर कमजोर हो जाता है।
[१६] बात-बात पर गुस्सा आता है।
[१७] धैर्य-धीरज नहीं रहता।
[१८] हर काम को करने की जल्दी रहती है।
[१९] सिरदर्द,तनाव बना रहता है।
[२०] हमेशा नकारात्मक विचार आते हैं।
उपरोक्त बीमारियों का कारण पित्त दोष है।
श्री आचार्य के विचार-
एक “पित्त नाशक उपाय”
प्रसिद्ध उपन्यासकार
आचार्य श्री चतुरसेन ने अपने संस्मरणों
में जिक्र किया है कि मैं पित्त से बहुत
पीड़ित होने के कारण सदा मेरा मानसिक
सन्तुलन असामान्य रहता था।
{{}} मन में अशांति बनी रहती थी।
{{}} पाचन तन्त्र निष्क्रिय हो चुका था।
{{}} पेट में असहनीय दर्द रहता था।
{{}} जीने की ललक-लालसा मिट चुकी थी।
ज्ञान मिला,तो मिटा गिला–
मुझे अचानक आयुर्वेद की एक बहुत
प्राचीन किताब मिली, उसमें लिखा था
पित्त से परेशान लोगों को
अधिक से अधिक वृक्षारोपण
करना चाहिये।
इसी तारतम्य में मैंने बेलपत्र,
आंवला के 5-5 पेड़ लगा दिये।
मुझे कुछ ही समय में बहुत लाभ महसूस हुआ।
■ मेरा तन-मन अच्छा होने लगा,
■ काम में मन लगने लगा।
■ भूखवृद्धि हो गई।
■ स्वभाव में बहुत मिठास आने लगी।
■ सकारात्मक विचारों का उत्पादन होने लगा।
फिर,मैंने जीवन भर 40 हजार से अधिक
वृक्षों का रोपण किया और अन्य लोगों को
भी प्रेरित किया।
निवेदन-पित्त रोग से पीड़ित प्राणियों को
वृक्षारोपण का यह एक बार यह प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
कैसे रहें तंदुस्त
आयुर्वेदिक ओषधि के रूप में
“अमृतम ”
द्वारा एक बहुत ही बेहतरीन पित्त दोष नाशक हर्बल मेडिसिन ◆ गुलकन्द, ◆ द्राक्षा, ◆ त्रिफला मुरब्बे एवं पित्तनाशक जड़ीबूटियों से निर्मित जिओ माल्ट का सेवन करना चाहिये।
पीड़ित प्राणी पित्त का पूरी तरह पतन करने हेतु इसे कम से कम 3 माह तक लगातार लेना जरूरी है।
पित्त रोग बनता है उदर की खराबी से और
ये 8 से 10 साल बाद प्रकट होता है,तब तक
तन विषाक्त हो चुका होता है।
अन्य चिकित्सायें भी पित्त प्रकोप
में वृद्धि करती हैं।
जिओ माल्ट पूर्णतः आयुर्वेदिक चिकित्सा है।
यह पित्त को दबाता नहीं है,अपितु
धीरे-धीरे जड़ से रोग मुक्त करता है।
जिओ माल्ट शुद्ध हर्बल ओषधियों से
निर्मित होने से उदर को रोगों को
बिना किसी नुकसान के ठीक करने
में मदद करता है। इसलिए इसे
3 माह तक लेना आवश्यक है।
प्राकृतिक उपाय
((1)) सुबह उठते ही आधा से 1 लीटर
पानी पीने का प्रयास करें।
((2)) दिनभर में 5 से 8 लीटर तक पानी पियें।
((3)) रात्रि में फल,जूस दही का सेवन न करें।
((4)) रात्रि के खाने में अरहर की दाल का त्याग करें।
((5)) सप्ताह में 2 से 3 बार मूंग की दाल के साथ भोजन जरूर करें।
पित्त की पीड़ा से उभरने
तथा रग-रग में रोगों को रीता करने हेतु अमृतम आयुर्वेदिक शास्त्रों में अनेकानेक व नेक उपाय बताएं हैं। इन्हें नेकनीयती से
अपनाकर अपना भविष्य सवांर सकते है।
इस ब्लॉग में पित्त दोषों के बारे
में बताया जा रहा है।
जिओ माल्ट के द्रव्य-घटक,
जड़ीबूटियों,ओषधियों का
विस्तृत वर्णन बीते ब्लॉग में बताये
गए हैं।
हमारी वेवसाइट
amrutam.co.in
ओर बहुत सी ऐसी दुर्लभ
जानकारियों का भंडार है
जिसे पढ़कर अद्भुत होकर
सहजता व सरलता महसूस करेंगे।
स्वस्थ्य,निरोगी,आरोग्यता दायक सूत्र-
हम कैसे स्वस्थ्य रहें–
अमृतम आयुर्वेद के लगभग 100 से अधिक ग्रंथों में तंदरुस्त,स्वस्थ्य-सुखी, प्रसन्नता पूर्वक जीने के
अनेकों रहस्य बताये गये हैं। https://www.amrutam.co.in/faithayurveda/