संगीत से स्वस्थ्य

Call us at +91 9713171999

Write to us at support@amrutam.co.in

Join our WhatsApp Channel

!!अमृतम!!   के इस लेख/ब्लॉग में रोगों के उपचार के लिए संगीत/म्यूजिक विषय को आधार बनाकर ऐसे बहुत से रोगों पर उपचार करने वाले रागों के विषय मे जानकारी देने का प्रयास किया गया है।
जिसे पढ़कर आप आनंदित हो जाएंगे।

स्वास्थ्य के लिए संगीत 

MUSIC for HEALTH

वर्तमान में संगीत द्वारा बहुत सी बीमारियों का उपचार किया जाने लगा है। यह वेद और आयुर्वेद  की यह प्राचीन चिकित्सा विधि है। इनके अध्ययन से पता चलता है कि संगीत के द्वारा व्यक्ति को
निरोग/स्वस्थ्य व तंदरुस्त रखा जा सकता है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी यह मानने लगा हैं कि प्रतिदिन २० मिनट अपनी पसंद का संगीत सुनकर बहुत से रोगों को दूरकर स्वस्थ्य/प्रसन्न रहा जा सकता है।

 जिस प्रकार हर रोग का संबंध किसी ना किसी नवग्रहों में से किसी ग्रह विशेष से होता हैं उसी प्रकार संगीत/म्यूजिक के हर सुरराग का संबंध किसी ना किसी ग्रह से अवश्य होता हैं।
यदि किसी व्यक्ति को किसी ग्रह विशेष से संबन्धित रोग हो और उसे उस ग्रह से संबन्धित राग, सुर अथवा गीत सुनाये जायें तो जातक शीघ्र ही स्वस्थ हो जाता हैं।

संगीत का श्रीगणेश कब हुआ -

वैदिक युग में ‘संगीत’ समाज में स्थान बना चुका था। सबसे प्राचीन ग्रन्थ ‘ऋग्वेद में आर्यो के आमोद-प्रमोद का मुख्य साधन संगीत को बताया गया है। अनेक वाद्यों का आविष्कार भी ऋग्वेद के समय में बताया जाता है।

 ‘यजुर्वेद में संगीत को अनेक लोगों की आजीविका का साधन बताया गया,

फिर गान प्रधान वेद सामवेद आया, जिसे संगीत का मूल ग्रन्थ माना गया। ‘सामवेद’ में उच्चारण की दृष्टि से तीन और संगीत की दृष्टि से सात प्रकार के स्वरों का उल्लेख है।

‘सामवेद’ का गान (सामगान) मेसोपोटामिया, फैल्डिया, अक्कड़, सुमेर, बवेरु, असुर, सुर, यरुशलम, ईरान, अरब, फिनिशिया व मिस्र के धार्मिक संगीत से पर्याप्त मात्रा में मिलता-जुलता था
संगीत के अविष्कारक/नाथ -"भोलेनाथ"

संगीत के सर्वप्रथम देवता महादेव, रूद्र अथवा भगवान शिव हैं। इनके अनुसार संगीत भी एक पूजा-विधान और ध्यान है। शिव जी की  पूजा पहले संगीत सुनाकर की जाती है।
दक्षिण भारत के अधिकांश शिवालयों में आज भी यह प्रचलन है।  चिदम्बरम का आकाश तत्व शिवमंदिर संगीत का आदिस्थान है।शिव की प्रेरणा से ही वैदिक संगीत की अवस्था का प्रारम्भ हुआ जिसमें संगीत की शैली में भजनों और  मंत्रों  के उच्चारण से भगवान भोलेनाथ की पूजा और अर्चना की जाती थी

बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि चार वेदों में से एक सामवेद में संगीत का खजाना है।
इसे भारतीय "संगीत का आदिग्रंथ" कहा जाता है। मङ्गल ग्रह के दोष/कुपित/,कष्ट देने के कारण ही केन्सर जैसी घातक असाध्य बीमारी का जन्म होता है। कर्कट/केन्सर रोग के इलाज के लिए सामवेद का सुनना/श्रवण या वाचन/पढ़ना बहुत ही ज्यादा लाभकारी होता है।

श्रीमद्भागवत, श्रीरामचरितमानस, णिनी के ‘अष्टाध्यायी और उर्दू के कुछ काव्यात्मक ग्रन्थ में संगीत की रचना है।

संगीत - पुराणों के प्राण
उत्तर वैदिक काल के

■  ‘स्कन्दःपुराण,

■■  शिवपुराण,

■■■  हरिवंश पुराण, एवं

■■■■  भविष्य पुराण तथा

आदिकालीन ग्रन्थ/शास्त्र में भेरी, दुंदभि, वीणा, मृदंग व घड़ा आदि वाद्य यंत्रों व भँवरों के गान का वर्णन मिलता है, तो ‘महाभारत’ में कृष्ण की बाँसुरी के जादुई प्रभाव से सभी प्रभावित होते हैं। अज्ञातवास के दौरान अर्जुन ने उत्तरा को संगीत-नृत्य सिखाने हेतु "बृहन्नला" (हिजड़ा) का रूप धारण किया।

रग-रग में राग-

भारतीय संगीत के इतिहास के महान संगीतकारों के रग-रग में राग और सुर बसा था। संगीत उनके हृदय से निकलता था।  जैसे कि ग्वालियर के महान संगीतकार तानसेन, इनके गुरु मथुरा के स्वामी हरिदास
अमीर खुसरो आदि ने भारतीय संगीत की उन्नति में बहुत योगदान किया है जिसकी कीर्ति को °पण्डित रविशंकर",  भीमसेनगुरुराज जोशीपंडित जसराजप्रभा अत्रे, सुल्तान खान आदि जैसे संगीत प्रेमियों ने आज के युग में भी कायम रखा हुआ है।
संगीत का अदभुत आनंद कभी लेना/पाना
हो, तो कभी
ग्वालियर के वार्षिक
"
तानसेन समारोह" में सभी संगीत प्रेमी आमंत्रित हैं।

जिसके श्रवण/सुनने से अनेकों बीमारियों का नाश हो जाता है। ऐसा अनुभव भी कई श्रोताओं को हुआ है।

प्रथम प्रेरक-

हिंदुस्तानी संगीत में यह माना जाता है कि संगीत के आदि प्रेरक महादेव नटराज/शिव और सबकी आराध्य माँसरस्वती हैं। इसका तात्पर्य यही जान पड़ता है कि मानव इतनी उच्च कला को बिना किसी दैवी प्रेरणा के, केवल अपने बल पर, विकसित नहीं कर सकता।

संगीत का सबसे प्राचीन और सर्वश्रेष्ठ स्त्रोत
शिवतांडव स्त्रोत्र है, जो परम शिव भक्त दशानन/रावण द्वारा रचित है।

मुसलमानों का संगीतमयी मन -

ग्यारहवीं शताब्दी में मुस्लिम लोग अपने साथ फारस का संगीत लाए। मुसलमानों  और भारतीय  संगीत पद्धतियों के मेल-मिलाप से हिंदुस्तानी संगीत में काफी बदलाव आया।
बादशाह अकबर के दरबार में 36 संगीतज्ञ थे। उसी दौर के तानसेन , बैजूबावरा, रामदास व तानरंग खाँ के नाम आज भी चर्चित हैं।
जहाँगीर के दरबार में खुर्रमदाद, मक्खू, छत्तर खाँ व विलास खाँ नामक संगीतज्ञ थे। कहा जाता है कि शाहजहाँ तो खुद भी अच्छा गाता था।
मुगलवंश के एक और बादशाह मुहम्मदशाह रंगीले का नाम तो कई पुराने गीतों में आज भी मिलता है। ग्वालियर के राजा मानसिंह भी संगीत प्रेमी थे। उनके समय में ही संगीत की खास शैली ‘ध्रुपद’ का विकास हुआ।

इस  लेख/ब्लॉग में रोगों के उपचार के लिए
संगीत/म्यूजिक विषय को आधार बनाकर ऐसे बहुत से रोगों पर उपचार करने वाले रागों के विषय मे जानकारी देने का प्रयास किया गया है|

  पुराने ग्रंथो महाराणा कुंभा द्वारा रचित ग्रंथ संगीत राज संगीत का बहुत प्रसिद्ध ग्रन्थ है।

1 - कौन था कुम्भा-

उदयपुर/चित्तौड़ राजस्थान के महाराज
कुंभा स्वयं बहुत विद्वान् था और कई संगीतकारों एवं साहित्यकारों का आश्रयदाता था। ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में पारंगत कुम्भा को वेद, स्मृति, मीमांसा का अच्छा ज्ञान था। उसने कई ग्रंथों की रचना की जिसमें 'संगीतराज, 'संगीत मीमांसा, सूड प्रबंध' प्रमुख है। संगीतराज की रचना वि.सं. 1509 में चित्तौड़ में की गई थी, जिसकी पुष्टि कीर्ति-स्तम्भ प्रशस्ति से होती है। यह ग्रन्थ पाँच उल्लास में बंटा है-

   1- पथ रत्नकोष,
2 - संगीतराज
3 - गीत रत्नकोष,
4 - वाद्य रत्नकोष,
5 - नृत्य रत्नकोष

में बहुत से शास्त्रीय रागों का उल्लेख किया किया गया है उन रागों मे कोई भी गीत, भजन या वाद्य यंत्र बजा कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

2 - संगीतरत्नाकर शार्ंगदेव द्वारा रचित ग्रन्थ संगीत शास्त्रीय ग्रंथ है। यह भारत के सबसे महत्वपूर्ण संगीत शास्त्रीय ग्रंथों में से एक है जो
भारतीय संगीत तथा कर्नाटक संगीत दोनो द्वारा समादृत/सम्मानित है। इसे  संगीत का 'सप्ताध्यायी' भी कहते हैं क्योंकि इसमें सात अध्याय हैं।

इनके बारे में भी जाने -

शार्ंगदेव यादव राजा 'सिंहण' के राजदरबारी थे। सिंहण की राजधानी दौलताबाद (हैदराबाद) के निकट देवगिरि थी। इस ग्रंथ के कई भाष्य हुए हैं जिनमें
सिंहभूपाल (1330 ई) द्वारा रचित
'संगीतसुधाकर' तथा
कल्लिनाथ (१४३० ई) द्वारा रचित
'कलानिधि' प्रमुख हैं।

चमत्कारी संगीत ग्रन्थ -

"संगीत रत्नाकर" में शास्त्रीय
संगीत कई सुर-तालों का उल्लेख है। इस ग्रंथ से पता चलता है कि प्राचीन भारतीय पारंपरिक संगीत में अब बदलाव आने शुरू हो चुके थे व संगीत पहले से उदार होने लगा था।
१०००वीं सदी के अंत तक, उस समय प्रचलित संगीत के स्वरूप को 'प्रबन्ध' कहा जाने लगा। प्रबंध दो प्रकार के हुआ करते थे - निबद्ध प्रबन्धअनिबद्ध प्रबन्ध

निबद्ध प्रबन्ध को ताल की परिधि में रहकर गाया जाता था जबकि अनिबद्ध प्रबन्ध बिना किसी ताल के बन्धन के, मुक्त रूप में गाया जाता था। प्रबन्ध का एक अच्छा उदाहरण है- जयदेव रचित गीत गोविन्द

वैदिक युग में ‘संगीत’ समाज में स्थान बना चुका था। सबसे प्राचीन ग्रन्थ ‘ऋग्वेद में आर्यो के आमोद-प्रमोद का मुख्य साधन संगीत को बताया गया है। अनेक वाद्यों का आविष्कार भी ऋग्वेद के समय में बताया जाता है।

 ‘यजुर्वेद में संगीत को अनेक लोगों की आजीविका का साधन बताया गया,

फिर गान प्रधान वेद ‘सामवेद आया, जिसे संगीत का मूल ग्रन्थ माना गया। ‘सामवेद’ में उच्चारण की दृष्टि से तीन और संगीत की दृष्टि से सात प्राकार के स्वरों का उल्लेख है। ‘सामवेद’ का गान (सामगान) मेसोपोटामिया, फैल्डिया, अक्कड़, सुमेर, बवेरु, असुर, सुर, यरुशलम, ईरान, अरब, फिनिशिया व मिस्र के धार्मिक संगीत से पर्याप्त मात्रा में मिलता-जुलता था।

किस रोग में कौन से "राग" रहस्यमयी है-

जानिये

1 -  हृदय रोग के राग–गीत -

इस रोग मे राग दरबारीराग सारंग से संबन्धित संगीत सुनना लाभदायक है। इनसे संबन्धित सिनेमा/चलचित्रों के गीत निम्न हैं-
【】 तोरा मन दर्पण कहलाए (काजल),
【】राधिके तूने बंसरी चुराई (बेटी बेटे ),
【】 झनक झनक तोरी बाजे पायलिया
( मेरे हुज़ूर ),
【】बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम (साजन),
【】 जादूगर सइयां छोड़ मोरी (फाल्गुन),
【】ओ दुनिया के रखवाले (बैजू बावरा ),
【】 मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये
(मुगले आजम )

2 - डिप्रेशन/अवसाद/चिडचिडापन और अनिद्रा –

जिन्हें नींद नहीं आती, जो हमेशा चिंतित रहते हैं।
मानसिक अशान्ति आदि मनोरोग रोग हमारे जीवन मे होने वाले सबसे साधारण रोगों में से एक है | इस रोग के होने पर राग भैरवीराग सोहनी सुनना लाभकारी होता है, जिनके प्रमुख गीत इस प्रकार हैं -
[] रात भर उनकी याद आती रही (गमन),
[] नाचे मन मोरा (कोहिनूर),
[]  मीठे बोल बोले बोले पायलिया (सितारा),
[]  तू गंगा की मौज मैं यमुना (बैजु बावरा),
[] ऋतु बसंत आई पवन
(झनक झनक पायल बाजे),
[] सावरे सावरे (अनुराधा),
[] चिंगारी कोई भड़के (अमर प्रेम),
[[ छम छम बजे रे पायलिया (घूँघट ),
[] झूमती चली हवा (संगीत सम्राट तानसेन ),
[] कुहू कुहू बोले कोयलिया (सुवर्ण सुंदरी )

3 - अम्लपित्त/एसिडिटी, पाचन तंत्र की खराबी –

इस रोग के होने पर राग खमाज सुनने से लाभ मिलता है | इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार हैं

{} ओ रब्बा कोई तो बताए प्यार (संगीत),
{} आयो कहाँ से घनश्याम (बुड्ढा मिल गया),
{} छूकर मेरे मन को (याराना),
{} कैसे बीते दिन कैसे बीती रतिया (अनुराधा),
{} तकदीर का फसाना गाकर किसे सुनाये (सेहरा),
{} रहते थे कभी जिनके दिल मे (ममता ),
{} हमने तुमसे प्यार किया हैं इतना (दूल्हा दुल्हन ),
{}  तुम कमसिन हो नादां हो (आई मिलन की बेला)

4 -  दुर्बलता/कमजोरी,

यह रोग शारीरिक शक्तिहीनता से संबन्धित है| इस रोग से पीड़ित व्यक्ति कुछ भी काम कर पाने मे स्वयं को असमर्थ अनुभव करता है। इस रोग के होने पर राग "जयजयवंती" सुनना या गाना लाभदायक होता है। इस राग के प्रमुख गीत निम्न हैं -
■  मनमोहना बड़े झूठे (सीमा),
■  बैरन नींद ना आए (चाचा ज़िंदाबाद),
■  मोहब्बत की राहों मे चलना संभलके
(उड़न खटोला ),
■  साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं (चन्द्रगुप्त ),
■  ज़िंदगी आज मेरे नाम से शर्माती हैं
(दिल दिया दर्द लिया ),
■  तुम्हें जो भी देख लेगा किसी का ना
(बीस साल बाद )

5 - स्मरण/बार-बार भूलना

जिन लोगों का स्मरण क्षीण हो रहा हो, उन्हे राग "शिवरंजनी" सुनने से लाभ मिलता है | इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार से है -

★  ना किसी की आँख का नूर हूँ (लालकिला),
★  मेरे नैना (मेहेबूबा),
★  दिल के झरोखे मे तुझको (ब्रह्मचारी),
★  ओ मेरे सनम ओ मेरे सनम (संगम ),
★  जीता था जिसके (दिलवाले),
★   जाने कहाँ गए वो दिन (मेरा नाम जोकर )

6 -  रक्त की कमी/एनिमिया

इस रोग से पीड़ित होने पर व्यक्ति का मुख निस्तेज व सूखा सा रहता है। स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन होता है। ऐसे में "राग पीलू" से संबन्धित गीत सुनें -

● आज सोचा तो आँसू भर आए (हँसते जख्म),    ● नदिया किनारे (अभिमान),
● खाली हाथ शाम आई है (इजाजत),
● तेरे बिन सूने नयन हमारे (लता रफी),
● मैंने रंग ली आज चुनरिया (दुल्हन एक रात की),
● मोरे सैयाजी उतरेंगे पार (उड़न खटोला),

7 -मिर्गी/ मनोरोग अथवा अवसाद –

इस रोग मे "राग बिहाग" व "राग मधुवंती" सुनना लाभदायक होता है। इन रागों के प्रमुख गीत इस प्रकार से है -
√  तुझे देने को मेरे पास कुछ नही (कुदरत नई),    √  तेरे प्यार मे दिलदार (मेरे महबूब),
√  पिया बावरी (खूबसूरत पुरानी),
√  दिल जो ना कह सका (भीगी रात),
√  तुम तो प्यार हो (सेहरा),
√  मेरे सुर और तेरे गीत (गूंज उठी शहनाई ),
√  मतवारी नार ठुमक ठुमक चली जाये मोहे                        【आम्रपाली】
√  सखी रे मेरा तन उलझे मन डोले (चित्रलेखा)

8 -रक्तचाप/बी पी -

ऊंचे रक्तचाप मे धीमी गति और निम्न रक्तचाप मे तीव्र गति का गीत संगीत लाभ देता है। शास्त्रीय रागों मे "राग भूपाली" को विलंबित व तीव्र गति से सुना या गाया जा सकता है।
@  ऊंचे रक्तचाप मे -

* चल उडजा रे पंछी कि अब ये देश (भाभी),
* ज्योति कलश छलके (भाभी की चूड़ियाँ ),
* चलो दिलदार चलो (पाकीजा ),
* नीले गगन के तले (हमराज़)
* जैसे गीत/गानों को सुनना बहुत हितकारी है।
*
@  निम्न रक्तचाप मे -
()  ओ नींद ना मुझको आए
(पोस्ट बॉक्स न. 909),
()  बेगानी शादी मे अब्दुल्ला दीवाना (जिस देश मे गंगा बहती हैं ),
()   जहां डाल डाल पर ( सिकंदरे आजम ),
()   पंख होते तो उड़ आती रे (सेहरा )

9 - अस्थमा/श्वांस/सर्दी/खाँसी में

इस रोग मे "धार्मिक-आस्था" तथा "भजन-भक्ति" पर आधारित गीत संगीत सुनने व गाने से लाभ होता है। राग "मालकँस" व "राग ललित" से संबन्धित गीत इस रोग मे सुने जा सकते हैं।
जिनमें प्रमुख गीत निम्न हैं -

◆  तू छुपी हैं कहाँ (नवरंग),
◆◆  तू है मेरा प्रेम देवता (कल्पना),
◆◆◆   एक शहँशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल        (लीडर),
◆◆◆◆ मन तड़पत हरी दर्शन को आज (बैजू बावरा ), आधा है चंद्रमा ( नवरंग )

10 -  शिरोवेदना/सिरदर्द/माइग्रेन/तनाव
इस रोग के होने पर "राग भैरव" सुनना लाभदायक होता है। इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार हैं -

* मोहे भूल गए सावरियाँ (बैजू बावरा),
* राम तेरी गंगा मैली (शीर्षक),
* पूंछों ना कैसे मैंने रैन बिताई
(तेरी सूरत मेरी आँखें),
* सोलह बरस की बाली उमर को सलाम
(एक दूजे के लिए )
हमेशा स्वस्थ्य/तंदरुस्त/प्रसन्न/प्रफुल्ल/
मन-मस्ती और हमेशा जवान बने रहने के लिए
अमृतम की आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन/उपयोग/उपभोग करें
अमृतम ओषधियों की जानकारी के लिए
www.amrutam.co.in

लॉगिन करें। यदि अच्छा लगे,तो
लाइक/शेयर/कॉमेंट्स करना न भूले,
ताकि यह जानकारी अन्य लोगों को मिले।

[best_selling_products]

RELATED ARTICLES

Talk to an Ayurvedic Expert!

Imbalances are unique to each person and require customised treatment plans to curb the issue from the root cause fully. Book your consultation - download our app now!

Amrutam Face Clean Up Reviews

Currently on my second bottle and happy with how this product has kept acne & breakouts in check. It doesn't leave the skin too dry and also doubles as a face mask.

Juhi Bhatt

Amrutam face clean up works great on any skin type, it has helped me keep my skin inflammation in check, helps with acne and clear the open pores. Continuous usage has helped lighten the pigmentation and scars as well. I have recommended the face clean up to many people and they have all loved it!!

Sakshi Dobhal

This really changed the game of how to maintain skin soft supple and glowing! I’m using it since few weeks and see hell lot of difference in the skin I had before and now. I don’t need any makeup or foundation to cover my skin imperfections since now they are slowly fading away after I started using this! I would say this product doesn’t need any kind of review because it’s above par than expected. It’s a blind buy honestly . I’m looking forward to buy more products and repeat this regularly henceforth.

Shruthu Nayak

Learn all about Ayurvedic Lifestyle