गुग्गुल के आयुर्वेदिक लाभ-3

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अमृतम संदेश

अमृतम-रोगों का काम खत्म अमृतम के इस लेख  में घरेलू, प्राकृतिक  एवं कुदरती जड़ी-बूटियों विशेषकर शुद्ध गुग्गल के बारे में सम्पूर्ण जानकारी एवम इसके  द्वारा आयुर्वेद शास्त्रों व ग्रंथों में  वर्णित  रोगों की चिकित्सा का उल्लेख किया है ।

उन सभी के नाम विस्तार से पिछले लेखों में दे चुके हैं ।

यह हमारा प्राचीन आदिकालीन

"भारतीय गुग्गल"

प्राकृतिक ओषधि गोंद है । गुग्गल से शरीर, तन-मन व त्वचा के सभी मल अर्थात गन्दगी, बीमारी, रोग-विकार, नकारात्मक विचार जिन्हें ग्रामीण क्षेत्रों की भाषा  या  आम बोलचाल। में गू भी कहा जाता है । असंख्य व्याधियां इसके सेवन से "गू", 'गल'  कर बाहर निकल जाती हैं ।गुग्गल का अर्थ ही है- गू + गल ,अर्थात तन-मन, आत्मा, त्वचा की बीमारियों को गलाकर मल विसर्जन (लेट्रिन) द्वारा बाहर निकलना ।

हवन की समिधा में इसलिए मिलाया जाता है कि गुग्गल की  आहुति के धुएं से घर, बाजार,  संसार, वायुमंडल सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तथा अंतरिक्ष शुद्ध-पवित्र हो जाता है  

आयुर्वेद का सूत्र है-

पहला सुख निरोगी काया; 

आदि तथा अपना स्वास्थ्य, सबका साथ   हमारा स्वास्थ्य अच्छा होगा, तब ही हम सबका साथ निभा सकते हैं और दुनिया भी हमारा साथ देती है । शास्त्रों में स्वस्थ शरीर बनाये रखने व स्वास्थ्य के विषय बहुत से योगप्रयोग, धर्म-कर्म, साधना-उपासना,  व्रत-उपवास, अलग-अलग धर्मों की विभिन्न मान्यताएँ आदि  बहुत लंबी रामकहानी लिखी पड़ी है ।

गुग्गुल के औषधीय प्रयोग  गुग्गुल के लाभ ,आयुर्वेदिक प्रयोग 

कई तरह की बीमारियों को खत्म करने की सबसे बेहतर और कारगर औषघि है गुग्गुल। यह एक पेड़ की प्रजाती है  । यह ऐसी जाति है  जिनको समझने के लिए जातिभेद, तो है  किन्तु ऊंच-नीच का भेदभाव नही हैं ।

सबका कल्याण करने के कारण यह पूज्यनीय हैं  । वृक्षों में कभी अपना-तेरा की भावना नहीं होती ,बल्कि "गुरुग्रंथ साहिब" के अनुसार -

 "जो कुछ है सो तेरा" की मूल भावना होती है । क्या है गुग्गल- गुग्गल के पेड़ की छाल से जो गोंद निकलता है उसे गुग्गुल कहा जाता है ! यह जानकारी  हम "गुग्गल पार्ट-2तथा पिछले अन्य कई लेखों में दे चुके हैं इस गोंद के इस्तेमाल से आप कई तरह के रोगों से बचाव कर सकते हो । यह आयुर्वेद का अमृत होने के कारण इसे अमृतम गुग्गल भी कह सकते हैं  ।

अमृतम गुग्गुल :

एक तरह का छोटा पेड है इसकी कुल उंचाई 3 से 4 मीटर तक होती है। और इसके तने से सफेद रंग का दूध निकलता है जो सेहत के लिए  बहुत लाभकारी होता है ।

गुग्गल ब्रूसेरेसी कुल का एक बहुशाकीय झाड़ीनुमा पौधा है। अग्रेंजी में इसे इण्डियन बेदेलिया भी कहते हैं। रेजिन का रंग हल्का पीला होता है परन्तु शुद्ध रेजिन पारदर्शी होता है। यह पेड़ पूरे भारत के सूखे क्षेत्रों में पाया जाता है। यह पौधा छोटा होता है  ।

सर्दी और गर्मी  में धीमी गति से बढ़ता है। इसके विकास के लिए वर्षा ऋतु

उत्तम रहती है।

इस पेड़ के गोंद को गुग्गुलु, गम गुग्गुलु या गुग्गल के नाम से जाना जाता है।

गोंद को पेड़ के तने से चीरा लगा के निकाला जाता है। गुग्गुलु सुगंधित पीले-सुनहरे रंग का जमा हुआ लेटेक्स होता है ।

भारतभूमि  दिनोदिन वनहीन होती जा रही है  इस  कारण एवम अधिक कटाई होने से यह आसानी से प्राप्त नहीं  हो पा रहा है।  भविष्य में केवल एक ही गूगल बचेगा इस लगता है  ।  कभी राम की पवित्र भूमि

चित्रकूट में गुग्गल के बेशुमार पेड़ थे  ।


प्राचीन
परंपरा-

पुराने समय में हर मरघट (आज का मुक्तिधाम) में गूगल के वृक्ष हुआ करते थे  । मान्यता थी कि मुर्दे को जलाने के बाद हाथ-मुँह धोकर गुग्गल की पत्ती चबाने से

हवा-बाधा नहीं लगती ।  पहले समय मे मरघट एकांत में होते थे, जहां भूत-प्रेतों, जिन्न, पिशाच और बाहरी हवाओं का वास होता था ।

गुग्गल देववृक्ष है । मरघट से लौटने पर इसकी पत्तियां चबाने से कोई हवा नहीं लगती । नकारात्मक दोष दूर होते हैं  । मानते थे कि

ये देववृक्ष हमारे शरीर व स्वास्थ्य की सदा रक्षा करते हैं  ।

परम् शिव भक्त रावण रचित अद्भुत दुर्लभ तंत्रशास्त्र "मंत्रमहोदधि"

स्कन्ध पुराण के भाग खंड 4 अध्याय,

12 में तथा अनेको यूनानी मुस्लिम ग्रंथो के अनुसार यदि कोई श्मशान,

मुक्तिधाम में गुग्गल के पेड़ों को लगाता है, तो सात पीढ़ी तक सन्तति दोष नहीं होता । पितरों की कृपा से उसके यहां कभी आर्थिक तंगी नहीं होती । परिवार में कभी असाध्य रोग नहीं होते । रोगों या व्याधियों के कारण मृत्यु नहीं होती । 5000 से अधिक भारतीय ग्रंथों में गुग्गल की "स्तुति" की गई है  । यदि जीवन में बहुत कुछ पाने की "आकांक्षा" हो, संसार में कुछ छोड़कर जाना है, तो वृक्ष लगाओ । यह  विनम्र प्रयास आपके जाने के बाद भी "दीपक" की तरह उजाला देगा, छाया देगा, रोगों से मुक्त करेगा । जिन्होंने भी पेड़ लगाए, भले ही वे ढेड़ ( कम पढ़े-लिखे) थे पर उनके याद में आज भी क़सीदे पढ़े जाते हैं । एक पेड़ का लगाना कई पापों को ढेर  (नाश) कर देता है । "चंद्रकांता" सन्तति नामक पुस्तक -लेखक देवकीनंदन   खत्री ने गुग्गल  वृक्षों के पत्ते, तने, जड़ आदि के अनेकों तांत्रिक तथा यंत्र-मंत्र की सिद्धि हेतु अदभुत उपाय सुझाये हैं । वृक्षों  में पंचमहाभूत यथा-  आकाश, अग्निजल, वायु और पृथ्वी  ये  सभी होते हैं  ।

 

वृक्ष "अग्निम"  अर्थात सूर्य की तरह देदीप्तिमान होते हैं । जल को "अंजुमन" में भरकर अर्पित करने से परम् शांति मिलती है । "यश" कीर्ति वृक्ष लगाने  से स्वतः ही प्राप्त होती है । अतः इस अमृतम प्रयास में भागीदार बनके गुग्गल के न सही कोई भी वृक्ष अवश्य लगावे । वृक्ष के विषय मे बहुत सी जानकारी हम पिछले ब्लॉग, लेखों में भी  दे चुके हैं  । गुग्गल दर्द दूर कर मर्द बनाने में सहायक है । शरीर के सभी तरह के दर्द व वात रोगों में बहुत उपयोगी है  ।

"अमृतम मासिक पत्रिका" के प्रधान संपादक अशोक गुप्ता के अनुसार अमृतम द्वारा निर्मित सभी 45 प्रकार के माल्ट में  गुग्गल का मिश्रण किया जाता है। विशेषकर भयंकर वात विनाशक ओषधि र्थोकी गोल्ड माल्ट   एवम ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल  में गुग्गल का समावेश से अमृतम ओषधियों के प्रभाव को बेहद असरकारक बना दिया है ।  ऑर्थोकी  में  नए गोंद का ही प्रयोग होता है।

 

गुग्‍गुल दिखने में काले और लाल रंग का  जिसका स्‍वाद कड़वा  होता है। इसकी प्रवृत्‍ति गर्म होती है।

अमृतम  शुद्ध गुग्गल का सेवन पेट की गैस, सूजन, दर्द, पथरी, बवासीर पुरानी खांसी, यौन शक्‍ति में बढौत्‍तरी, दमा, जोडों का दर्द, फेफड़े की सूजन आदि रोगों को दूर करता है  ।

 

सुश्रुत संहिताचरक संहिता

अमृतम आयुर्वेद के

अनेकों प्राचीन ग्रंथों में गुग्गुलु का प्रयोग मोटापा (मेदरोग) के उपचार  तथा उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, धमनियों का सख्त होना आदि हेतु निर्धारित किया गया है।

यह वसा के स्तर को सामान्य रखने और शरीर में सूजन कम करने में विशेष उपयोगी  है  ।

इससे प्राप्त राल जैसे पदार्थ को भी ‘गुग्गल’ कहा जाता है। इसमें मीठी महक रहती है।  अमतम  गुग्गल को  आग या हवन में डालने पर स्थान सुंगध से भरकर पूरा वायुमण्डल

शुद्ध व पवित्र हो जाता है।

इसलिये इसका धूप में उपयोग

किया जाता है  ।  यह कटुतिक्त तथा उष्ण है और कफ, वात, कास, कृमि, क्लेद, शोथ और बबासीरनाशक है  ।

अमृतम पाइल्स की माल्ट गुग्गल युक्त दवा है,  जो अर्शरोग में तत्काल राहत देने में सहायक है ।

 

मुख संबंधित किसी भी प्रकार की समस्‍या में गुग्‍गुल का सेवन लाभकारी है  । गुग्गुल को मुंह में रखने से या गर्म पानी में घोलकर दिन में 3 से 4 बार  कुल्ला व गरारे करने से मुंह के अन्दर के घाव, छाले व जलन ठीक हो जाते हैं।

 

 थायराइड ,ग्रंथिशोथ से छुटकारा

आयुर्वेद  की भाषा मे इसे ग्रंथिशोथ  कहते हैं  ।

रक्त का संचार पूरी तरह न होने से गले मे सूजन  आने लगती है । लगातार दर्द रहता है । गर्दन हिलाने में परेशानी होती है  ।

गुग्गल थायराइड ग्रंथि को क्रियाशील  करता है, शरीर में वसा को जलाने की गतिविधियों को बढ़ाकर गर्मी  उत्पन्न करता  है  ।

 

जोड़ों के दर्द में लाभकारी : दुनिया इस समय  दर्द-ए-दिल और दर्द-ए-जिगर के साथ-साथ समाज को तोड़ो व शरीर  के जोड़ों के कारण पीड़ित है   । विश्व, समाज व देश को तोड़ो, राजनीति के हथकंडे हो गए हैं । शारीरिक, आर्थिक तथा मानसिक रूप से टूटने कमजोर होने व दिन-रात की मेहनत के कारण तन-मन साथ नहीं दे पा रहा, तो व्यक्ति विकारों से घिर जाता है । धीरे-धीरे शरीर में दर्द, जोड़ों का दर्द शुरू हो जाता है ।

ये दर्द मिट जाए ,  तो व्यक्ति मर्द बन जाये । आजकल के  भयंकर प्रदूषण के कारण त्वचा रोग और  फोड़ों का दर्द भी सता रहा है। ।

जब जोड़ों में  रस का अभाव तथा विषाक्त अवशेषों का जमाव हो जाता है  । नाड़ियों में रक्त का संचार गड़बड़ा जाता है, तो जोड़ों में  भयंकर दर्द होने लगता है, तब गुग्‍गुल या गुग्गल से निर्मित ऑर्थोकी  के  सेवन  से तत्काल लाभ मिलता है । यह तन  से उन अवशेषों को निकाल

शरीर के सभी जोड़ों के मूवमेंट को ठीक भी करता है  ।

 

कमजोर हड्डियों को मजबूती दे-

 

हड्डियों में किसी भी प्रकार

की परेशानी में गुग्गुल  युक्त

 

ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट व कैप्सूल

बहुत उपयोगी होता है  । बलहीन कमजोर हड्डियां को बलशाली बनाता है । हर्बल्स ओषधियों से निर्मित शरीर को हर-बल प्रदान करना ऑर्थोकी  का विलक्षण गुण है ।

कम्पन्न, झुनझुनाहट,  भय-भ्रम, भ्रांति इसके नियमित सेवन से मिट जाती हैं । रोग-राग रफ़ूचक्कर होते  ही मानसिक शांति मिलती है ।

 

अमृतम द्वारा निर्मित ब्रैनकी गोल्ड माल्ट टेबलेट ब्राह्मी, शंखपुष्पी, भृंगराज, स्मृतिसागर रस युक्त शुद्ध हर्बल दवा मन और मानसिक रोगों के लिये बहुत ही असरकारक है । इसके सेवन से सभी  चिंताएं, क्रोध, चिड़चिड़ापन, बेचेनी मिट जाती है । समय पर अपने आप नींद आती है । आलस्य दूर होता है ।

शरीर की किसी हड्डियों में सूजन, चोट के बाद होने वाले दर्द और टूटी हड्डियों को जोड़ने एवं रक्त के जमाव को दूर करने में गुग्गल के मिश्रण से निर्मित  ऑर्थोकी बहुत लाभकारी  है  । अमृतम अनेक रोगों को दूर करने के लिए अनेक ओषधि योगों के निर्माण में रत है ।

 

कब्जियत मिटाये-

 

अगर लगातार  कब्‍ज की शिकायत रहती हैं, तो  गुग्‍गुल योग से निर्मित फ्रेशकी चूर्ण  फायदेमंद हो सकता है  । घरेलू प्रयोग करना है, तो  लगभग 2 या 3  ग्राम शुध्द  गुग्गुल में

अमृतम त्रिफला चूर्णफ्रेशकी चूर्ण दोनो को 2-2 ग्राम मिलाकर रात में पानी के साथ सेवन करने से लम्बे समय से बनी हुई कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है  ।

 

गुग्गल कोलेस्‍ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स को कम करता है। यह तीन महीने में 30% तक कोलेस्‍ट्रॉल घटा सकता है   ।  गुग्‍गुल का सेवन  सुबह-शाम गुड़ के साथ सेवन करने से कई प्रकार के गर्भाशय के रोग ठीक हो जाते हैं। अगर रोग बहुत जटिल है तो 4 से 6 घंटे के अन्तर पर इसका सेवन करते रहना चाहिए  ।

 

गर्भाशय रोगों से मुक्ति हेतु:- महिलाएं सप्पलीमेंट के रूप में सदा स्वस्थ, तंदुरुस्त बने रहने के लिए नारी सौन्दर्य माल्ट

 

का भी सेवन करें यह महिलाओं के मलिन मन मिटाकर त्वचा

मखमली कर देता है । सुन्दर, स्वस्थ और खूबसूरती बढ़ाने में बेहद कारगर है ।

 

गुग्गल हृदय के लिये लाभकारी - यह खून में प्‍लेटलेट्स को चिपकने से रोकता है तथा होने वाले हृदय रोग और स्‍ट्रोक से बचाता है  ।

 

वातविकार और सूजन से राहत दें -

गुग्‍गुल में मौजूद इन्फ्लमेशन गुण वातरोगों और सूजन में राहतकारी  है । इसके अलावा यह शरीर के तंत्रिका तंत्र, नाड़ी तंत्र  को मजबूत बनाने में भी बहुत मददगार है ।

खून की खराबी से  शरीर में होने वाले फोड़े, फुंसी व चकत्ते आदि के कारण गुग्‍गुल बहुत लाभकारी होता है ।

क्‍योंकि इसके सेवन से खून साफ होता है । त्‍वचा संबंधी परेशानी  होने पर इसके चूर्ण को सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें  ।

साथ ही अमृतम प्योर की सिरप (Purekey syrup) & स्किन की टेबलेट का सेवन करें ।

 

आमतौर  पर बाजारू खान-पान, प्रदूषित भोजन, ज्यादा तला या अधिक मिर्च मसाले युक्त आहार लेने से अम्लपित्त (Acidity) यानि खट्टी डकारें आने लगती  हैं  । इस समस्‍या से बचने के लिए आप गुग्‍गुल युक्त जिओ माल्ट का इस्‍तेमाल कर सकते हैं । अथवा अकेला गुग्गल का  एक चम्मच चूर्ण  मुलेठी 10 ग्राम, 8 मुन्नके, सौफ 5 ग्राम सभी को एक गिलास  पानी में मिलाकर रख दें।  लगभग 10 या 12  घंटे के बाद छानकर,   सुबह खाली पेट  तथा भोजन के  2 घंटे बाद दोनों समय इस मिश्रण का सेवन 6 माह तक करने से अम्लपित्त  शांत हो जाता है    ।

जिओ माल्ट 

भी बहुत ही जल्दी असरकारी उम्दा दवा है । यह बार-बार होने वाली एसिडिटी को जड़मूल से मिटा देता है । उदर हमेशा के लिये

सहज, सामान्य हो जाता है ।

 

मोटापा दूर करे-

 

गुग्गल के प्रयोग से शरीर का मेटाबॉलिज्‍म तेज  होकर मोटापा मिटने लगता  है । इसके साथ ही अगर बार-बार  गैस बनने की बीमारी है,

तो वह भी जिओ माल्ट

से  ठीक हो जाती है  ।

  फोड़ा-फुन्सी : -फोड़ा-फुन्सी में जब सड़न और पीव हो, तो त्रिफला के काढ़े के साथ आधा ग्राम गुग्गुल लेना चाहिए।

अथवा सायं 5 तोला पानी में  अमृतम त्रिफलाचूर्ण  करीब 5 ग्राम  भिगोकर प्रात: गर्म कर छानकर पीने से लाभ होता है।

 

घुटने का दर्द -

 

घुटने के दर्द को दूर करने के लिए अमृतम शतावर, अमृतम  मुलेठी

अमृतम अश्वगंधा  तीनों  का 5-5  ग्राम पाउडर  20 ग्राम  अमृतम गुड़ में 10 ग्राम शुद्ध गुग्गुल को मिलाकर अच्छे से पीस लें

और इसकी छोटी-छोटी गोलियां लगभग 1  ग्राम की एक गोली  बना लें   ।

90 दिन  तक  लगातार 1-1 गोली 3 या 4 बार शुद्ध गाय के घी से  लेवें । अथवा ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल  का सेवन करें । यह जोड़ों व घुटनों में नवीन रस तथा सप्तधातुओं का निर्माण  कर  विटामिन्स, कैल्शियम, पोषक तत्वों की पूर्ति करने में  लाजवाब है  । ऑर्थोकी गोल्ड कैपसूल एक माह निरन्तर लें, तो तन की सभी सुप्त तंत्रिकाएँ क्रियाशील कर देता है ।

 

गंजापन दूर करें-

 

आधुनिक जीवनशैली और प्रदूषित गलत खान-पान के कारण आजकल अधेड़ उम्र या बुजुर्ग  लोग हीं नहीं बल्कि युवा भी गंजेपन का शिकार हो रहे हैं। यदि गंजा होने का भय सता रहा हो, खारे, बोरिंग या प्रदूषित जल

से बाल धोने के कारण प्रतिदिन बालों का झड़ना नियम बन गया हो, वे 20 ग्राम अशुद्ध गुग्गुल को

कुंतल केयर हेयर आयल

में मिलाकर सुबह-शाम नियमित रूप से सिर पर गंजेपन वाले स्थान पर लगाएं  । इससे आपको चमत्कारी  लाभ मिलेगा  । तत्काल लाभ हेतु

अमृतम गोल्ड माल्ट 

1  से 2- चम्मच सुबह-शाम गुनगुने दूध के साथ लेवें ।

 

बाल जब पूरी तरह सूख जाए, तब हल्के हाथ से अच्छी तरह कुंतल केयर हेयर आयल बालों में लगाकर

कुंतल केयर हर्बल शैम्पू से बाल धोएं। इस योग से

मात्र 7 दिनों में ही असरकारी

परिणाम प्राप्त होते हैं । नियमित प्रयोग से बालों का झड़ना, उखड़ना, रूसी, दोमुंहे केश, खुजली से निजात मिलती है । पुनः बाल भी उग सकते हैं । नए केश आने की संभावना बढ़ जाती है ।

 

हाई ब्लड प्रेशर (उच्च रक्त चाप) -

रक्तचाप के स्तर को कम और सामान्य स्तर पर बनाए रखने में गुग्‍गुल बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा गुग्‍गुल दिल को मजबूत रखता है और दिल के टॉनिक के रूप में जाना जाता है।

दमा के  रोगों में-

 

दमा से पीड़ित  घी के साथ 200 मिली ग्राम शुद्ध गुग्गुल को मिलाकर सुबह-शाम लेना  चाहिये । प्रतिदिन खाली पेट भुने हुए छिलका युक्त चने खाएं तथा 2 घंटे तक पानी न पिएँ

 

उदर की सूजन-

 

गुड़ के साथ   शुद्ध गुग्गुल मिलाकर दिन में तीन बार रोज खाने से पेट की सूजन ठीक होने लगती है अथवा जिओ माल्ट का सेवन करें ।

 

गर्भ संबंधी लाभ-

गुड के साथ गुग्गुल को खाने से गर्भाशय के रोग ठीक होते हैं  तथा

  नारी सौन्दर्य माल्ट 

सुबह-शाम 1 से 2 चम्मच

गुनगुने दूध के साथ लेवें  ।

 

पुरानी से पुरानी वातव्याधि : -

 

व्याधि कोई भी हो,  तंरुस्ती आधी कर देती है । वातव्याधि, गृध्रसी (साइटिका) में

50  ग्राम  शुद्ध गुग्गुल

50  ग्राम  रास्ना पत्ती,

20 ग्राम, एरंड मूल  तथा

10 ग्राम मुलेठी  को पीसकर गाय के शुद्ध देसी घी में मिलाकर 1 ग्राम की गोलियाँ बना लें। एक  से 2  गोली प्रात:-दुपहर तथा रात को

6 माह तक खाने से लाभ होता है  ।

अथवा गुग्गलस्वर्णयुक्त

 

बृहत वातचिन्तामणि रस, स्वर्ण भस्म 

 

से निर्मित ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल का 1 माह तक एक कैप्सुल रोज दू के साथ लेवें

सूजन : शरीर में शोथ (सूजन) होने पर गोमूत्र के साथ 200 मिलीग्राम शुद्ध गुग्गुल सेवन करने से लाभ होता है। इसे गोमूत्र में मिला बाहर से लेप करने पर भी लाभ होता है ।

ऑर्थोकी आयल की 2 या 3 बार हल्के हाथ से मालिश करें ।

 

मगन्द : - मगन्द (फिंचुला) में त्रिफला के साथ गुग्गुल सेवन करने से लाभ होता है।

 

*कान का बहना या सर निकलना,दर्द होना : -गुग्गुल को अग्नि पर डालकर

या हवन का धुँआँ लेने से कान

का बहना बन्द हो जाता है।

 

*फोड़ा-शोथ :

फोड़ा या सूजन होने पर अशुद्ध गुग्गुल गर्म कर कपड़े पर लगा लेप करने से लाभ होता है।

 

*थायराइड में लाभ :

गुग्गुल के सेवन से थायराइड ग्रंथि में सुधार होता है  ।  शरीर का मोटापा कम कर गर्मी उत्पन्न करता है  ।

ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल

भी बहुत ही शीघ्र विषाक्त नाड़ियों  के रस का नाशकर तेज़ी से रक्त का संचरण करता है । यह तुरन्त प्रभावशाली है ।

 

जोडों के दर्द में फायदेमंद :

गुग्गुल के सेवन से जोडों के दर्द में बहुत लाभ मिलता है। जोडों में पैदा हुए अकड़न - जकड़न   को भी गुग्गुल खाने से लाभ मिलता है

 

शुद्ध करने की विधि : यह गोंद है। इसे शुद्ध करके ही लेना चाहिए  । ओषधि अनुपान में गूगल को शुद्ध किया बिना नहीं लेना चाहिये  । सर्वप्रथम गुग्गुल को

त्रिफला के काढ़े में भिगो दें  ।

24 घंटे बाद इसे खूब उबालकर

गाड़ा कर ठंडा होने रख दें ।

ऊपर मलाई जैसी परत को धीरे से निकाल फिर बारीक कपड़े से छान कड़ाही में शुद्ध घी में भूनें। जब सुगन्ध आये तथा चिपकना कम हो जाय तब इसे शुद्ध जानें।

 

सावधानी

गुग्‍गुल की प्रकृति गर्म होने के कारण इसका ज्‍यादा इस्‍तेमाल करने पर इसे गाय के दूध या घी के साथ सेवन करे। साथ ही इसका प्रयोग करते समय  रात में दही, जूस,  आइसक्रीम, फल, सलाद, ठंडे  पदार्थ, रायता आदि तेज और मसालेदार भोजन, अत्याधिक भोजन, या खट्टे खाद्य पदार्थों को खाने से बचें ।

पानी अधिक से अधिक पियें ।

गुग्गल के बारे में यदि किसी के

पास दुर्लभ अद्भुत

जानकारी हो, तो हमें भेजे ।

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गुग्गल के विषय में अभी और भी शेष है । जाने  अगले ब्लॉग लेख  में । अमृतम मासिक पत्रिका से साभार हमारा उदघोष है- ।।अमृतम।। हर पल आपके साथ हैं हम

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