थायराइड- एक वात रोग | Thyroid- a Vatta Diseases

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थायराइड- एक वात रोग | Thyroid- a Vatta Diseases

थायराइड- एक वात रोग | Thyroid- a Vatta Diseases

थॉयराइड (ग्रंथिशोथ)

से होने वाले 88 प्रकार के
"वातरोगों"
से सावधान रहें,

अन्यथा बढ़ा सकता है

★मानसिक तनाव,
★स्नायु-विकार,
★मेमोरी लॉस,
★स्मरण शक्ति की कमी,
★ब्रेन की कमी या कमजोरी
★दिमाग की शिथिलता
★स्मृति हीनता,
★ब्रेन डैमेज,
★ब्रेन हेमरेज का खतरा,

★व्यक्ति भयभीत रहता है,

★चिन्ता सताने लगती है,
 
इस कारण "चतुराई" घटकर
याददास्त कमजोर होने लगती है।
बार-बार भूलने की आदत से
क्रोध उत्पन्न हो जाता है।
 
दिन में 3 से 4 बार गर्म
दूध या पानी के साथ लेवें।
ब्रेड,रोटी,परांठा में
जैम की तरह लगाकर
रोल बनाकर भी खा सकते हैं।
आयुर्वेद की एक अति प्राचीन
बुक "मस्तिष्क संरचना"में
"ब्रेन को बॉडी का किंग"
 कहा गया है।
लिखा है राजा ही पूरी
प्रजा (शरीर) को चलाता है।
ब्रेन की माल्ट
घबराहट,(एंजाइटी)
बेचेनी से बचाकर
दिमाग को सही मार्गदर्शन
देता है।
सदैव ध्यान रखें कि
सारे रोग ब्रेन से पैदा होते हैं।

क्या है थायराइड

थायराइड को आयुर्वेद ग्रंथो में
"ग्रंथिशोथ" कहा गया है।
 थायरॉइड अर्थात ग्रंथिशोथ
ग्रंथिंयों एवं रक्त की नाड़ियों में सूजन
उत्पन्न कर खून के संचार को
अवरुद्ध कर देता है,जिससे
शरीर दर्द से कराह उठता है
और अनेकों मनोरोग एवं
वात बीमारियां घेर लेती हैं।

शरीर में दुष्प्रभाव-

ग्रंथिशोथ (थायराइड)
तन की तंदरुस्ती तबाह
कर देता है।
थायराइड की बीमारी से

88 प्रकार के वात-विकार

पैदा हो जाते हैं।
 
¶जोड़ों का परिचालन में असहजता
¶जोड़ों,हाथ-पैर,कमर व पीठ
में असहनीय दर्द बना रहता है।
¶हड्डियाँ कमजोर होकर गलने लगती हैं।
¶जोड़ों में चमक होना
¶चटकने की आवाज सी आना
¶बरसात के दिनों पूरे बदन
में दर्द होना
¶संधि शूल,जोड़ों में सूजन
¶सिरदर्द, आलस्य,सुस्ती,
¶माँस की तकलीफ
¶यूरिक एसिड में वृद्धि
आदि असंख्य व्याधियों
से व्यक्ति की हिम्मत
टूट जाती है।

एक असरकारक दर्दनाशक योग

A Powerful Pain Reliever

थायराइड का सुरक्षित इलाज
अमृतम आयुर्वेद में आसानी से
उपलब्ध है।
यदि जल्दबाजी न हो,तो
बड़े धैर्य-धीरज के साथ
 
जिसमें उपलब्ध है--
का 3 माह तक सेवन करें
 
पूरी दुनिया विशेषकर भारत में
थॉयराईड (ग्रंथिशोथ) से जुड़ी
बीमारियां तेज गति से बढ़ रही हैं।
आयुर्वेद में इन्हें असाध्य रोगों
की श्रेणी में रखा गया है।
 
थायराइड की चिकित्सा केवल
आयुर्वेद में ही सम्भव है।
अमृतम हर्बल ओषधियों
 
द्वारा ही इसे जड़ से ठीक
किया जा सकता है।
अन्य चिकित्सा पध्दति में
इस रोग का इलाज संभव नहीं है।
 लेकिन आयुर्वेदिक दवाओं से
थायराइड पर नियन्त्रण रखा
जा सकता है।

थायराइड होने का कारण-

आयुर्वेद चिकित्सा ग्रंथों में
ऑयोडीन की कमी को थॉयराईड
(ग्रंथिशोथ) का कारण माना है।
जो मानसिक विकृतियों,मनोरोग,
ब्रेन डैमेज जैसे रोगों को उत्पन्न
कर सकता है।
 
हालांकि आयुर्वेदिक वैज्ञानिक
थॉयराइड पर रोज नई-नई खोजें
अनुसंधान (रिसर्च) कर रहे हैं।
अभी तक जो परिणाम प्राप्त हुए हैं,
उसमें पाया की यह आनुवंशिक रोग है।
 पूर्वज इसके लिए जिम्मेदार हैं।
 जो लोग थॉयराईड की बीमारी से
 ज्यादा पीड़ित हैं,उन्हें ये
 पूर्वजों की देंन है।
 उनमें इस बीमारी की
संभावना अधिक होती है।

रोगों का कारण-

प्रदूषित वातावरण
मानसिक अशांति
हमेशा चिंतातुर रहना
पर्यावरणीय और आनुवंशिक कारक
भी थायराइड का कारण हो सकते हैं।
 
इसके इलाज के लिए सर्जरी,
हॉर्मोन थेरेपी,
रेडियोएक्टिव आयोडीन,
रेडिएशन और कुछ मामलों
में कीमोथेरेपी का इस्तेमाल किया
जा रहा है,जो आयुर्वेद के विपरीत है।
इन कृत्रिम चिकित्सा से गुर्दा (किडनी)
यकृत (लिवर), खराब हो सकते हैं।
 
आंतों में सूजन आ सजती है।
उदर रोग में अल्सर,केन्सर
जैसे रोग तन को बर्बाद कर
सकते हैं।
एक चिकित्सकीय शोध के अनुसार
हिंदुस्तान में प्रत्येक दस में से एक
प्राणी हाइपोथॉयराइडिज्म रोग
से परेशान है, इसमें थॉयराइड
ग्लैंड थॉयराइड हॉर्मोन
पर्याप्त मात्रा में नहीं बना पाता।
लक्षण-
माँसपेशियों और जोड़ों में दर्द,
 शरीर में बहुत ज्यादा थकान
वजन बढ़ना,
शरीर का एक दम फूल जाना,
अचानक सूजन आने लगना,
 त्वचा सूखना,
आवाज में घरघराहट और
नवयुवतियों व महिलाओं का
मासिक धर्म अनियमित होना है।
 
हाइपोथॉयराइडिज्म का इलाज
 
ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल द्वारा
आसानी से किया जा सकता है।
 बिना दवा के यह "गॉयटर"
 का रूप ले सकता है।
इससे गर्दन में सूजन आ जाती है।
 इसके अलावा आथरोस्क्लेरोसिस,
 स्ट्रोक,
 कॉलेस्ट्रॉल बढ़ना,
 बांझपन,
 शारीरिक क्षीणता
 कमजोरी जैसे गंभीर
 लक्षण भी हो सकते हैं.
 
"हाइपरथॉयराइडिज्म" में जब
ग्रंथिशोथ (थॉयराईड) ज्यादा सक्रिय
होता है तो ग्लैंड से हॉर्मोन ज्यादा
बनता है, जो ग्रेव्स डिसीज़ या
ट्यूमर तक का कारण बन सकता है।
ग्रेव्स डीजीज में मरीज में
"एंटीबॉडी" (antibody) अर्थात
रोग उत्पन्न करने वाले प्रतिरक्षी,
रोगप्रतिकारक
बनने लगते हैं जिससे
थॉयराइड ग्लैंड ज्यादा हॉर्मोन
बनाने लगती है।
आयोडीन जरूरी तो है,पर
आयोडीन के ज्यादा सेवन,
हॉर्मोन से युक्त दवाओं के सेवन से यह हाइपरथॉयराइडिज्म हो सकता है.
 
इसके और भी लक्षण हैं
लेकिन ऐसे मामले कम पाए जाते हैं
 जैसे-
ज्यादा पसीना आना,
थॉयराईड ग्लैंड का आकार बढ़ जाना,
हार्ट रेट बढ़ना,
आंखों के आसपास सूजन,
त्वचा मुलायम होना,
 
बालों का तेजी से पतला होना
टूटन,झड़ना आदि
बालों की रक्षा हेतु
"कुन्तल केयर"
सम्पूर्ण हर्बल चिकित्सा है।

लापरवाही से बचें-

अगर इसका इलाज नहीं किया
जाए तो व्यक्ति को अचानक
कार्डियक अरेस्ट, एरिथमिया (हार्टबीट असामान्य होना), ऑस्टियोपोरोसिस, कार्डियक डायलेशन जैसी समस्याएं
हो सकती हैं. इसके अलावा
गर्भावस्था में ऐसा होने पर गर्भपात,
समयपूर्व प्रसव, प्रीक्लैम्पिसिया
(गर्भावस्था के दौरान ब्लड प्रेशर बढ़ना),
गर्भ का विकास ठीक से न होना
जैसे लक्षण हो सकते हैं.
 
इसके अलावा हाशिमोटो थॉयरॉइडिटिस बीमारी, जिसमें थॉयराईड में सूजन के कारण ग्लैंड से हॉर्मोन का रिसाव होने लगता है और मरीज हाइपरथॉयराइडिज्म का शिकार हो जाता है, गॉयटर में थॉयराइड ग्लैंड का आकार बढ़ जाता है, ऐसा आमतौर पर आयोडीन की कमी के कारण होता है. इसके लक्षण हैं गर्दन में सूजन, खांसी, गले में अकड़न,सूजन,घबराहट,बैचेनी,
अनिद्रा और सांस लेने में परेशानी
होती है।
 
थॉयराइड और कैंसर जैसे विकार
आमतौर पर 30 वर्ष की उम्र के
आसपास होना आरम्भ होता है।
नई खोजों से पता लगा है कि
यह कर्कट रोग (कैंसर)
 थॉयराइड ग्लैंड के टिश्यूज में
 पाया जाता है।
 
 रोगी में या तो कोई लक्षण नहीं
 दिखाई देते या गर्दन में गांठ महसूस होती है। रेडिएशन और कुछ मामलों में कीमोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है।

आयुर्वेद की अमृतम सलाह-

आयुर्वेदिक डॉक्टर इन रोगों से बचाव
के लिए जीवनशैली में परिवर्तन
की सलाह देते हैं।
विशेषतौर पर उन व्यक्तियों को
जिनके परिवार में यह बीमारी
पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।
या परिवार में थायराइड से
जुड़े रोगों का इतिहास है।

विकारों से बचने हेतु उपाय-

नियमित जांच करावें
खूब पानी पीवें,
संतुलित आहार लें,
नियमित रूप से व्यायाम करें,
धूम्रपान या शराब का सेवन न करें
हर्बल मेडिसिन का उपयोग करें।
का 3 माह तक नियमित
सुबह खाली पेट दूध के साथ सेवन करें।

ऑर्थोकी बास्केट  

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