वात,पित्त और कफ इन तीन दोषों में से किन्हीं दो दोषों से युक्त कोई बीमारी हो, उसे द्विदोषज रोग कहा जाता है।
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त्रिदोषज रोग - जो रोग त्रिदोषों से युक्त हों,
उसे त्रिदोषज कहते हैं। इसकी वजह से बहुत सी बीमारियों से शरीर खराब हो जाता है।
त्रिदोषज रोगों से पीड़ित लोगों को हमेशा कोई न कोई रोग रहता है।
[[]] हमेशा पेट की शिकायत रहती है।
पेट की तकलीफों को स्थाई रूप
सेवन करना लाभप्रद रहता है।
अब अग्नि के विषय में जाने
शरीर में चार अग्नि होती हैं --
【1】तीक्ष्ण अग्नि -
मनुष्य की पित्त प्रकृति होने से उसके पेट
में तीक्ष्ण अग्नि होती है, इस प्रकृति वाले को कुछ भी या ज्यादा खाया-पिया जल्दी पच जाता है और कभी बिल्कुल भी नहीं पचता। पित्त प्रकृति वाले को हमेशा कोई न कोई
उदर विकार बना ही रहता है।
ये लोग यकृत (लिवर) की समस्या से पीड़ित रहते हैं।
पाचन प्रणाली (Digestive system)
इसे एक माह तक लेने से लिवर सम्बंधित
सभी रोग जड़ से मिट जाते हैं।
【2】मन्द अग्नि -
मनुष्य की कफ प्रकृति होने से मंदाग्नि होती
है और उसे आहार ठीक ढंग से नहीं पचता।
कफ प्रकृति वाले लोगों को हमेशा
सर्दी-खाँसी, जुकाम, निमोनिया और
एलर्जी रहती है।
फेफड़ों में संक्रमण (इन्फेक्शन) होता है।
मन्दाग्नि व कफ दोष से पीड़ित मरीजों को
【3】विषम अग्नि --
मनुष्य की वात-प्रकृति होने से उनकी
विषम अग्नि होती है। विषमाग्नि प्रकृति
वालों को कभी अन्न आसानी से पच जाता है
और कभी नहीं पचता। इन मरीजों को
■ पेट में गैस ज्यादा बनती है,
■ मल कम विसर्जित होता है।
■ एक बार में पेट साफ नहीं होता।
■सदैव वात रोग (अर्थराइटिस) की परेशानी
बनी रहती है।
■ वात दोष से पीड़ित रोगी 88 प्रकार के वात व वायु विकारों से घिर जाते हैं।
■ थायराइड यानी ग्रंथिशोथ, सूजन,
■ जोड़ों में दर्द की शिकायत वातदोषों से
पैदा होती है।
वात दोष से बीमार लोगों को अमृतम
इन दोनों ओषधियों का सेवन
अवश्य करना चाहिए।
प्रत्येक शनिवार को पूरे शरीर में
की मालिश करना बहुत लाभकारी होता है।
【4】सम अग्नि -
जिस मनुष्य की अग्नि सम होती है, उनका
खाया-पिया तुरन्त पच जाता है। ऐसे लोग सदा
स्वस्थ्य रहकर सौ वर्ष तक जीते हैं।
शरीर में समाग्नि बनाये रखने के लिए
अमृतम गोल्ड माल्ट खाते रहना
बहुत हितकारी रहता है।
अगले आर्टिकल्स पार्ट -5 में
1- निज रोग
2- आगंतुक रोग
3- मानसिक रोग
होने के कारण,
लक्षण, उपचार के बारे में जाने