क्या महिलाओं का अपना वजूद होता है!
क्या महिलाएँ अपना ख्याल रखती है!
क्या महिलाओं को वह अधिकार मिलता है, जो उन्हें वास्तव में मिलना चाहिए!
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क्या शादी के बाद महिलाओं के वजूद के बारे कोई सोचता है!
अगर इन सारे सवालोंं एक शब्द में जवाब दे तो जवाब होगा,‘नही‘!
लेकिन इस ‘नही‘ से ज्यादा जरूरी सवाल ये है कि महिलाएँ अपने बारे मे क्यों नही सोचती और पुरूष भी क्यों नही सोचते!
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अगर इन सारे सवालों के बारे मे सोचगे तो हमें जवाब मिलेगा, हमारी पुरानी दकियानुसी मानसिकता। पुराने समय मे महिलाएँ पुरूष के खाने से पहले खाना नही खा सकती, काफी लोग यह सोचते है कि पति -पत्नी का झूठा खाना या एक थाली खाना खा ले तो उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। आज भी कई जगहो पर महिलाओं को शादी के बाद काम करने और पढने नही दिया, क्योंकि आज भी यही समझा जाता है कि महिलाओ का काम सिर्फ घर संभालना है, चाहे वह घर और बाहर की ज़िम्मेदारी बहुत अच्छे निभा सकती हो। कई लोग ये भी बोलते है कि जो महिलाएँ घर से बाहर निकल कर काम करती है, उनका चरित्र ठीक नही होता है। बहुत सारी ऐसी सोच के कारण महिलाएँ अपने अस्तिव के लिए कदम नही उठा पाती है। दूसरा उन महिलाओं का परिवार जो शादी से पहले ही उनके मन यह विचार डाल देता है |
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पति परमेश्वर होता है पति खाने से पहले खुद मत खाओ, चाहे आपको कितनी भूख लगी हो। अपने से पहले अपने परिवार के बारे मे सोचो। फिर अपने परिवार की तमाम ज़िम्मेदारी को निभाते-निभाते या वो आलसी हो जाती है या फिर समय की कमी के कारण सोच ही नही पाती है या फिर तमाम ज़िम्मेदारी को उठाते अपना अस्तित्त्व ही खो देती है। और इन सब के अलावा एक बहुत महत्वपुर्ण वजह यह है कि उनका परिवार ही महिलाओं का सर्पोट नही करता ,तब उनका वजूद ही हिल जाता है।
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इसके लिए महिलाओं को चाहिए कि वे प्यार से अपने परिवार को ये बताऐ की वह जो काम करती है वह परिवार की आर्थिक स्थिति को सृदृढ बनाने के लिए करती है। थोड़ा अपनी भी खुशी चाहती है। आप चाहती है कि परिवार में आपकी बात का मान रहें तो आप को उनकी बात का भी मान रखना चाहिए आपका परिवार चाहे छोटा हो या बड़ा हो सब का अपना वजूद होता है जहाँ तक हो सके उनके बारे में भी सोचना चाहिए। महिलाएँ अपने वजूद के बारे में सोचे, वे इन तमाम ज़िम्मेदारीयों के बीच अपने लिए,अपने शौक लिए, अपनी इच्छाओं के लिए कुछ समय निकाले, और अपनी जिंदगी जिऐं। जब इन सब में परिवार का साथ मिल जाता है तो महिलाओं का अस्तित्त्व और आत्मविश्वास ओर मजबूत हो जाता है। अपने परिवार को भी साथ में लेके चलेंगी,और फिर देखिऐगा कैसे आपका परिवार आपके साथ कदम से कदम मिलाकर चलेगा।
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यह लेख श्रीमती अंजू जैन ने लिखा है
This article has been written by Mrs. Anju Jain
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