अमृतम च्यवनप्राश – उम्ररोधी (एंटीएजिंग) एक प्राचीन हर्बल मेडिसिन

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अमृतम च्यवनप्राश – उम्ररोधी (एंटीएजिंग) एक प्राचीन हर्बल मेडिसिन

एक उम्ररोधी (एंटीएजिंग) हर्बल ओषधि

2500 वर्ष पुराने आयुर्वेदिक ग्रन्थ
चरक सहिंता” – के अनुसार प्राचीन पद्धति और 72 से अधिक जड़ीबूटियों, रस-रसायनों से बना
“अमृतम च्यवनप्राश केवल 2 या 3 महीने तक ऑनलाइन उपलब्ध है।
 अमृतम का असली च्यवनप्राश जिसे बनाया है 5000 साल पुराने आयुर्वेदिक फार्मूले के मुताबिक |
शुद्ध घरेलू तरीके से निर्मित यह उम्ररोधी (एंटीएजिंग) च्यवनप्राश उन लोगों एवं परिवार को ज्यादा पसन्द आएगा जो

ओरिजनल की तलाश में हैं

स्टॉक सीमित है अतः अपना ऑर्डर शीघ्र बुक करें, तभी 10 दिन बाद मिल पायेगा।
पैकिंग – 200 ग्राम काँच के जार में
ग्राहक मूल्य – ₹- 1125/-
अमृतम च्यवनप्राश के बारे में आदिकालीन
बहुत सी दुर्लभ जानकारी जुटाने के लिए हमारे अगले आर्टिकल्स पढ़ते रहें।
 एक विशेष जानकारी
अमृतम च्यवनप्राश”का मुख्य घटक आंवला है, जो शुक्रप्रवर्तक यानि शुक्र (वीर्य) को उत्पन्न और प्रवर्तन करने में उपयोगी है।
सभी को स्वस्थ्य रखे
च्यवनप्राश पूरे परिवार और सभी आयु वर्ग के लिए अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक एवं शरीर की रक्षक ओषधि है,  जो हमें मौसम बदलने के कारण होने वाली बिमारियों से लड़ने में मदद करता हैं।

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आयुर्वेदिक शास्त्रों में च्यवनप्राश की बड़ी महत्ता बताई गई है। यह एक ऐसा आयुर्वेदिक योग है, जो बच्चे से लेकर बूढ़े सबको

निरोगी बनाता है। ठंड के दिनों में इसके
उपयोग से सम्पूर्ण शरीर, तन-मन का
कायाकल्प” होो जाता है।
इसे स्पेशल बनाने के लिए 72 से 80 जड़ीबूटियों व द्रव्य- घटकों की आवश्यकता पड़ती है।
अमृतम च्यवनप्राश की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह उम्ररोधी (एन्टी एजिंग) है। इसमें मिलाये गए रसायन “जरा” अर्थात वृद्धयावस्था यानी बुढापे को रोककर अनेकों
व्याधियों-बीमारियों के आक्रमण से शरीर की रक्षा करते हैं।
आयुर्वेद सार-संग्रह के अनुसार
■ दीपन
■ पाचन
■ अनुलोमन
■ भेदन
■ विरेचन
■ शोधक
■ छेदन
■ ग्राही
■ स्तम्भन
■ रसायन
■ बाजीकरण
■ शुक्रल
■ शुक्रप्रवर्तक
■ सूक्ष्मद्रव्य
■ विकाशी
■ कफ नाशक
■ त्रिदोष नाशक
■ विषनाशक
■ वातविकार नाशक
■ ग्रंथिशोथ (थायराइड) नाशक
■ योगवाही
■ स्निग्ध
■ प्रमाथी ओषधि है।
च्यवनप्राश का सेवन केवल सर्दी के दिनों में विशेष हितकारी रहता है, जिन लोगों को साल भर कोई न कोई विकार सताता हो या रोगों से पीड़ित रहते हों, उन्हें केवल चैत्र मास (मार्च) तक रोजाना 1 से 2 चम्मच
2 या 3 बार दूध या पानी से अथवा ब्रेड, रोटी,

पराँठे पर लगाकर सेवन अवश्य करना चाहिए।

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फेफड़ों के सभी नये व पुराने विकार और मल

को साफ कर, इम्युनिटी पॉवर में बेशुमार वृद्धि करता है।

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