क्या आप जानते हैं?
आयुर्वेद चिकित्सा पध्दति
लाखों वर्ष पुरानी है।
अमृतम के इस लेख में कुछ बहुत ही दुर्लभ ग्रंथो की जानकारी प्रस्तुत है। यह पुस्तकें 1100 से 1800 साल पूर्व की हैं जो की नष्ट और लुप्त होने की कगार पर हैं।
रोगों का काम खत्म-
अमृतम द्वारा इन्हीं पुरानी पुस्तकों से फार्मूले लेकर 90 प्रकार की हर्बल मेडिसिन का निर्माण किया जा रहा है।
आयुर्वेद के पूर्वज-
हमारे परम् पूज्य पितृ-पूर्वज, प्राणियों की प्रसन्नता,रक्षा और स्वस्थ जीवन के लिए अद्भुत ज्ञान व अनुभव छोड़ कर गये हैं।
उन्हें प्रणाम है,नमन है-
अमृतम आयुर्वेद के इन महान महर्षियों से इस जीव-जगत की स्वास्थ्य रक्षा तथा अमृतम जीवन हेतु स्नेहिल आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं।
"आयुर्वेद शास्त्रों की अति प्राचीन"
संस्कृत टीकाएँ---
1- महर्षि पतञ्जलि द्वारा रचित ग्रन्थ "पतञ्जलि"? --ई. सन 200 अप्राप्त। अर्थात यह महत्पूर्ण शास्त्र आज से करीब १८00 वर्ष पूर्व ही लुप्त या नष्ट हो चुका है।
2- चक्रपाणिदत्त-- हस्तलिखित ग्रन्थ- चरक तात्पर्य टीका अथवा आयुर्वेद दीपिका ई. सन 1060 में हाथ से लिखी गई। इसमें वात,पित्त,कफ त्रिदोष से उत्पन्न
■ वात विकार,
■ मधुमेह रोग (डाइबिटिज)
■ अवसाद (डिप्रेशन) मानसिक विकार नाशक ओषधियों के बारे में विस्तार से वर्णन है।
अमृतम दवाएँ---
अमृतम ने इन्हीं गुणकारी विलक्षण जड़ीबूटियों, रस-रसायनों, मुरब्बों, मेवा मासालों का मिश्रण कर विभिन्न रोगों के लिए 90 तरह की ओषधियों का निर्माण किया। जिसमें अति प्रभावी दवाएँ-
88 प्रकार के पुराने एवं नये वात रोगों में उपयोगी है।
अवसादग्रस्त (डिप्रेशन) लोगों हेतु
ब्रेन की गोल्ड माल्ट व टेबलेट तनावरहित करने वाली दिमागी शक्ति-शांति दाता हर्बल मेडिसिन है
3- हरिश्चन्द्र---ई. सन ११११ इन्हीं का दूसरा नाम महावेद्य भट्टार हरिश्चन्द्र था। इनकी टीका (ग्रन्थ) का नाम "चरकन्यास" जो अब पूरी उपलब्ध नहीं है। इन्होंने 12 तरह के केश-विकारों,गंजापन आदि पर चमत्कारी योगों को लिखा है।
4- जेन्जटाचार्य---
निरन्तर पद व्याख्या नाम की टीका (अति प्राचीन पुस्तक) चिकित्सा स्थान से सिद्धि स्थान तक। बीच-बीच में त्रुटितांश युक्त है। यह ग्रन्थ आदि अर्थात शुरू से सूत्रस्थान के तीसरे अध्याय पर्यंत तक प्राप्त है।
यह दोनो महत्वपूर्ण दुर्लभ शास्त्र भारत में केवल मद्रास,अब-चेन्नई के राजकीय प्राच्य राजकोष पुस्तकागार (गवर्नमेंट लाइब्रेरी) में ही मिलती है।
शिवदास----तत्व चन्द्रिका या चरकतत्व प्रदीपिका।
यह टीका (ग्रन्थ) भी अपूर्ण है। अथ से सूत्र स्थान के सत्ताइसवें अध्याय पर्यन्त मिली है। बम्बई लेकिन अब मुम्बई की
"रायल एशियाटिक सोसायटी" के पुस्तकालय में सुरक्षित है।
केन्सर का सुरक्षित इलाज-
वैद्य श्री गंगाधर कविराज--- द्वारा रचित "जल्पकल्पतरु"
टीका सन १८७९ से लापता है। इस ग्रन्थ में केन्सर रोग की अकाट्य चिकित्सा बताई गई थी।
एक विशेष प्रकार की सर्जरी चिकित्सा द्वारा रक्त नाडियों पर चीरा या कट लगाकर
काला दूषित रक्त निकाल देते थे, जिससे केन्सर का घाव 7 से 10 दिन में सुख जाता था।
वेद्यरत्न कविराज योगेन्द्रनाथ सेन---
चरकोपस्कार व्याख्या, केश रोगों पर लिखा गया यह दुर्लभ ग्रन्थ का कुछ भाग मेघालय राज्य की लाइब्रेरी में प्रारम्भ से चिकित्सास्थान के तेरहवें अध्याय पर्यन्त तक उपलब्ध है।
कुन्तल केयर हेयर हर्बल बॉस्केट इन्हीं नियमों से निर्मित है।
आयुर्वेद का अथाह भण्डार-
आयुर्वेद के १००० से अधिक प्राचीन, दुर्लभ ग्रन्थ की अभी जानकारी देना शेष है
विशेष निवेदन- अमृतम द्वारा सभी हर्बल दवाओं के फार्मूले प्राचीन,पुराने ग्रंथों से लिए गए हैं। "अमृतम संस्था" की स्थापना करने वाले अशोक गुप्ता ने 35 वर्षों तक हर्बल प्रोडक्ट की मार्केटिंग हेतु पूरे भारत का भ्रमण किया।
हजारों आयुर्वेद चिकित्सकों, आयुर्वेदाचार्यों से मिलकर
★असरकारक चमत्कारी फार्मूले,
★शुद्ध जड़ीबूटियों की जानकारी
★दवा निर्माण की प्रक्रिया,
★उनके अनुभूत अनुभवों
को ग्रहण व प्राप्त किया।
अमृतम का मंथन-
अमृतम का आरम्भ 2013 में हुआ। देशकाल,परिस्थियों के अनुरूप ओषधीय घटक-द्रव्यों में परिवर्तन आवश्यक है। अमृतम द्वारा वर्तमान दौर के अनुसार रोग निवारक शुद्ध हर्बल दवाओं का निर्माण किया जा रहा है। अमृतम दवाएँ 55 से अधिक प्राचीन हर्बल ग्रंथो के हिसाब से निर्मित की जा रही हैं। इन सभी ग्रंथों की जानकारी हेतु हमारे ब्लॉग/लेखों का नियमित-निरन्तर पठन-पाठन करते रहें। "अमृतम परिवार" पुनः आयुर्वेद के अविष्कारक वैद्यनाथ भगवान शिव आयुर्वेद प्रवर्तक वैद्य धन्वन्तरि के साथ-साथ आयुर्वेद के सभी पूर्वज-पितृगण, महर्षि महामुनियों हकीमों का हृदय के अंतर्मन से सहज स्मरण करते हुए वर्तमान के उन वैद्य चिकित्सकों, डॉक्टर्स को सरलतापूर्वक सादर नमन,प्रणाम करते हैं, जिनकी चिकित्सा (प्रैक्टिस) मानवीय हितों पर आधारित है।