मन की भूख असीमित है | The endless desires of human mind

The endless desires of human mind amrutam
अमृतम फार्मसूटिकल्स
द्वारा प्रकाशित
।।अमृतम।।
मासिक पत्रिका
से साभार
किसी अनुभवी आदमी का
‎ अकाट्य वाक्य है-
‎         "तन की भूख तनिक है,
‎             तीन पाव या सेर ।
‎        मन का मान अपार है,
‎         कम लागे सुमेर" ।।
‎   अर्थात-
‎तन की भूख पोन-एक किलो अन्न धान्य
‎(भोजन) से मिट जाएगी , लेकिन मन
‎की भूख असीमित है ।
‎   यदि उसे सभी सुमेर (पर्वत)
‎भी मिल जाएं, तो भी मन की
‎तृप्ती नहीं होगी ।
‎       आस्था का वास्ता
‎वास्ता का अर्थ मतलब, लगाव से है ।
‎आस्था अटूट होगी, तो जीवन और
‎सफलता की डोर टूट नहीं पाती ।
‎व्यक्ति को विश्व के नाथ पर विश्वास
‎होगा,तभी नकारात्मक विचारधारा
‎का विनाश हो सकेगा ।
‎वही एक ऐसी अदृश्य परम् वैज्ञनिक
‎सत्ता है, जो नष्ट ओर निर्माण की कारक है ।
‎         जिन देशों ने भी अपनी प्राचीन
‎परम्पराओं को पीछे पछाड़ा वे आज
‎रोग-राग के रहस्य को पकड़ नहीं
‎पाए ।
‎प्राचीन पद्धतियों से हम सदा प्रसन्न
‎रह सकते हैं । हमें जीना सिखाती हैं ।
‎     अमृतम आयुर्वेद भी हमें रोगों की
‎राह में ले जाने से बचाता है । भय-भ्रम
‎मिटाता है ।
‎भय के सह से विकार होते हैं,
‎जो हमारे चार पुरुषार्थ
‎धर्म, अर्थ, काम एवम मोक्ष
‎बेकार कर देते हैं ।
‎प्राकृतिक नियम धर्म, संस्कृति
‎के प्रति लापरवाही हमें राग-रोग,
‎व्याधि-बाधा, से
‎भर देती है ।
‎व्यक्ति विकार का
‎शिकार हुआ कि काम खत्म ।
‎विकारयुक्त विचार
‎हमारा व्यवहार, बदल देते हैं ।
‎फिर हम भय-भ्रम से भरकर
‎भटकते रहते हैं ।
‎औऱ जो भी भय से भरा है वही
‎भाग्यहीन है । भय के पीछे
‎मृत्यु का चेहरा है ।
‎कभी तन की मौत,
‎कभी मन की, तो कभी धन की मृत्यु
‎का भय ।
‎ (१)   तन से हम सुख भोगते हैं,
‎भोग का रोग से राग-रिश्ता है
‎इसलिये यह भय सदा सताता है कि
‎तन रोगों से न भर जाए ।
‎कहीं रोग न लग जाये,
‎ के ‎भय से हम चिकित्सक
‎के पास भाग खड़े होते हैं ।
‎   तत्काल लाभ के चक्कर मे
‎अंग्रेजी दवाओं के इस्तेमाल
‎से तन की जीवनीय शक्ति
‎क्षीण कर बैठते हैं ।
           ‎ *उलझन नाशक उपाय*
     यदि हम
‎का नियमित सेवन करें, तो
‎जीवन में रोग कभी रास्ते मे भी
‎नहीं आएंगे । यह निगेटिव
‎विचार व विकार के विष का
‎विनाश करता है ।
‎       *अमृतम दवाएं- रोग मिटाएं*
‎इस विश्वास पर यह रोगों
‎को दबाता नहीं, अपितु
‎जड़ से मिटाता है ।
‎         "अमृतम"
‎ आयुर्वेद के लिये
‎अनुभवों की अमूल्य
‎धरोहर है ।
‎   (२)   "मन की मृत्यु"
‎से हमारी आत्मा दूषित
‎हो जाती है ।
‎वेद-वाक्य है-
‎आत्मा ही परमात्मा है ।
‎आत्मा मरी कि मानवता
‎का महाविनाश निश्चित है ।
‎       कहा गया
‎   "मन के मत से मत चलिओ,
         ‎ये जीते-जी मरवा देगा ।"
‎ किसी महान आत्मा ने
‎मनुष्य की मदद के लिए
‎मन ही मन मनुहार की,कि
‎     "अरे मन समझ-समझ
‎           पग धरियो,
‎     इस दुनिया में कोई न अपना,
‎           परछाईं से डरियो ।
‎   अमृतम जीवन का आनंद
‎ अशांति त्यागने में है ।
‎मन की शांति से ही,
‎आकाश में अमन है ।
‎जरा (रोग), जिल्लत
‎(अपमान) जहर युक्त
‎जीवन अमृत से भर जाएगा ।
‎फिर मुख से बस इतना ही निकलेगा
‎           "बोले सो निहाल"
‎निहाल (भला) करने वाले
‎की वाणी गुरुवाणी समान
‎हो जाती है । सभी ग्रंथों,
‎पंथों, संतों का यही वचन है ।
‎   मन शांत हुआ कि
‎सारी सुस्ती, शातिर पन,
‎स्वार्थी पन, शरीर की शिथिलता,
‎समझदारी सहज सरल हो जाएगी
(३) ‎ धन की मृत्यु जीवन का अंत
‎है, क्योँ कि धन हमें पार लगाता है ।
‎धन से ही सारा मन -मलिन,मैला
‎या हल्का, साफ-सुथरा
‎हो जाता है ।
‎धन से ही ये तन ,वतन
‎ओर अमन-चमन है ।
‎सारी पूजा-प्रार्थना का कारण
‎ धन की आवक है ।
‎पहले कहते थे-
‎ धन गया तो कुछ नहीं गया,
‎तन गया तो कुछ-कुछ गया,
‎लेकिन चरित्र गया तो
‎सब कुछ चला गया ।
‎ लेकिन अब तनिक बदल सा रहा है-
‎ आधुनिक युग का आगाज है
‎चरित्र गया, तो कुछ नहीं गया
‎बल्कि आनंद आ गया ,
‎तन गया, तो कुछ गया,
‎परंतु धन चला गया, तो
‎समझों सब
‎कुछ चला गया ।
‎धन के जाते ही
‎   रिश्तों में रिसाव होने लगता है ।
‎ज्यादा रूठने व लालच से
‎रिश्ते रिसने लगे हैं ।
‎धनवालों
‎को ही रिझाने में लगे हैं लोग ।
‎यह एक राष्ट्रीय रोग हो रहा है ।
‎अपने रो रहे हैं,
‎परायों पर रियायत (दया)
‎हो रही हैं ।
‎ एक बहुत पुराना गीत है-
‎रिश्ते-नाते, प्यार-वफ़ा सब
‎वादे हैं, वादों का क्या ।
‎सेवा-दया का भाव
‎त्यागकर चिकित्सा अब
‎विशाल व्यापार हो चुका है ।
‎मरा ओर जिंदा इंसान बिक रहा है
‎केवल भय-भ्रम, रोग-राग
‎तथा अज्ञानता के कारण ।
‎     अतः हमें लौटना होगा,
‎       अपनी पुरानी
‎परिपाटी ओर प्राचीन प्राकृतिक
‎चिकित्सा की और ।
‎पुनः स्थापित करना होगा
‎अमृतम आयुर्वेद को ,
‎पहचानना होगा, प्राचीन
‎परम्पराओं को ।
‎परम् सत्ता को ।
‎पूर्वजो, परिवार की
‎शाँति-सकूँ के लिए ।
‎40-45 वर्षों के घनघोर संघर्ष,
‎अनुभव, अध्ययन, व अनुसंधान
‎के पश्चात
‎           "अमृतम"
‎     फार्मास्युटिकल्स
‎की स्थापना सन 2013 में
‎में इस पवित्र भाव से की गई
‎की अमृतम औषधियों का
‎प्रभाव अत्यंत
‎असरकारक एवम शीघ्र
‎ लाभदायक हों ।
‎जड़ी-बूटियों के स्वभाव को संगठित
‎कर करीब 25 तरह के माल्ट
‎(malt) सहित विभिन्न
‎करीब 90-100 अमृतम
‎दवाओं का निर्माण प्रारम्भ
‎किया है, ताकि सभी के
‎सब, सदा के लिए
‎असाध्य, जटिल,
‎पुराने से पुराने रोग-विकारों
‎का सर्वनाश हो सके ।
‎       " अमृतम"
‎नवीन निर्माण की प्रक्रिया में
‎फिलहाल प्रचार-प्रसार,
‎प्रसिद्धि से परे है, लेकिन
‎अपनी गुणवत्ता युक्त दवाओं
‎के कारण हम अतिशीघ्र
‎अंतरराष्ट्रीय ओर आयुर्वेद
‎बाज़ारों में अपना सर्वोच्च
‎स्थान बना रहे हैं,
‎बना भी लेंगे ।
‎ऐसा ही विन्रम प्रयास
‎जारी है
‎   अमृतम आयुर्वेद एक सम्पूर्ण
‎चिकित्सा पद्धति है ।
‎देशकाल, परिस्थितियों के
‎अनुरूप नवीन प्रस्तुतिकरण
‎आदि में परिवर्तन आवश्यक है ।
‎सदमार्ग दिखाने वाले कई
‎वेद-पुराण, ग्रंथ का आरम्भ
‎व अंत निर्देश देता है कि
‎   'परिवर्तन संसार का नियम है'
‎ गीतासार का भी मूल सार यही है ।
‎ सब चिंता त्याग, गहन चिंतन
‎पश्चात पीड़ित,परेशान पुरुषों
‎के लिये परम् परिश्रम से
‎ नित्य नई व्याधियों
‎के उपचार हेतु नए प्रयोगों,
‎साधनों को खोजा ।
‎     " अमृतम"   द्वारा
‎सर्वजन्य हिताय-सर्वजन्य सुखाय
‎का ध्यान रखते हुए
‎जड़ी-बूटियों के अलावा
‎विभिन्न मुरब्बे, मेवा-मसाले,
‎जीवनीय द्रव्यों, रस औषधियों,
‎खनिज-पदार्थों ओर रस भस्मों
‎का आयुर्वेद की आधुनिक
‎पद्धतियों द्वारा अनुभवी
‎चिकित्सकों की देख-रेख
‎में उत्कृष्ट 100 के करीब
‎ अमृतम दवाओं
‎का निर्माण कर रहे हैं ।
‎   अमृतम दवाएं
अमृतम गोल्ड माल्ट
वात,पित्त,कफ त्रिदोषनाशक हैं ।
इसके लगातार सेवन से
मनसा, वाचा, कर्मणा
तीनों प्रकार की शुद्धि होती है ।
तन के तीन शूलों का नाशक है ।
सख्त शरीर में शक्ति भरकर
चुस्ती-स्फूर्तिदायक है ।
आमला, सेव मुरब्बा, गुलकंद,
केशर, विदारीकंद ,
अश्वगंघा, कौंच बीज,
सहस्त्रवीर्या, गिलोय,
शंखपुष्पी, अर्जुन,
त्रिफला, मकरध्वज, अभ्रक भस्म,
आदि अनेक अद्भुत असरदार
औषधियों
का मिश्रण चमत्कारी
परिणामों को सुनिश्चित करता है ।
     गर्मी और पित्त के कारण
     ‎प्रकट परेशानियों, त्वचा में
     ‎जलन, क्रोध, चिड़चिड़ापन,
     ‎बेचेनी, भूख न लगना,
     ‎खून की कमी, पेट साफ न होना,
     ‎पुरानी कब्ज, आलस्य,
     ‎थकावट विकारों को दूर करने
     ‎में सहायक है ।
     ‎अमृतम रोगों को पुनः
     ‎पैदा नहीं होने देता ।
     ‎ सेवन विधि -
     ‎5 से 12 साल तक के बच्चों को
     ‎   सुबह-शाम
     ‎आधा चमच्च दो बार गुनगुने
   ‎दूध से ।
     ‎शेष सभी उम्र के पुरुष-
     ‎महिलाओं को 2 या 3 बार
     ‎एक चम्मच गुनगुने दूध से
     अमृतम गोल्ड माल्ट
     ‎परांठे या रोटी में लगाकर भी
     ‎खाया जा सकता है ।
     ‎शराब का नियमित या
     ‎कभी-कभी सेवन करने
     ‎वाले रात्रि में 1 या 2 चम्मच
     ‎सादे जल से लेवें तो
     ‎लिवर, किडनी एवम
     ‎उदर रोगों की सुरक्षा होती है ।
     ‎महिलाएं इसका हमेशा सेवन
     ‎करें, तो लिकोरिया आदि स्त्री रोग
     ‎नहीं सताते ।
     ‎गर्भवती स्त्री भी इसे
     ‎निसंकोच ले तो शिशु रोगरहित
     ‎रहता है ।
     ‎     रोगों को मारो लात
     ‎     जब अमृतम है साथ
     ‎
     ‎      रोगों को मारो लात
     ‎     जब अमृतम है साथ
हमें care@amrutam.co.in पर ईमेल करे अपने सवालो के साथ।

RELATED ARTICLES

Talk to an Ayurvedic Expert!

Imbalances are unique to each person and require customised treatment plans to curb the issue from the root cause fully. We recommend consulting our Ayurveda Doctors at Amrutam.Global who take a collaborative approach to work on your health and wellness with specialised treatment options. Book your consultation at amrutam.global today.

Learn all about Ayurvedic Lifestyle