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आयुर्वेद ग्रंथों में 8 प्रकार के मूत्र के विषय
में बताया है-
आठ मूत्र –
【1】गाय का मूत्र,
【2】बकरी का मूत्र
【3】भेड़ का मूत्र,
【4】भैंस का मूत्र,
【5】हथिनी का मूत्र,
【6】ऊंटनी व
【7】घोड़ी का मूत्र और
【8】गधी का मूत्र
ये आठ तरह के मूत्र होते हैं। प्राचीनकाल में इन मूत्रों का प्रयोग शल्य चिकित्सा में किया जाता था।
रावण रचित मन्त्र महोदधि नामक दुर्लभ ग्रन्थ में इन मूत्रो द्वारा तन्त्र के बहुत से प्रयोग मारन-उच्चाटन आदि के बारे में बताया गया है।
9 तरह के दूध –
【1】गाय,
【2】भैंस,
【3】बकरी,
【4】भेड़,
【5】ऊँटनी,
【6】घोड़ी,
【7】हथिनी,
【8】गदही, और
【9】 स्त्री
का दूध ये नो प्रकार के दूध होते हैं।
वानस्पति रहस्यमयी तन्त्र के अनुसार इन नो दूधो में कुछ तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र विद्या में अघोरी साधु उपयोग करते हैं।
■ पृथ्वी में गढ़े धन का पता लगाने में भी इनमें से कुछ तरह के दूध का प्रयोग करने की आदिकालीन पंरपरा रही है।
तेरह तरह के वेग –
【1】मूत्र,
【2】मल,
【3】शुक्र (वीर्य)
【4】अधोवायु (गैस पास न होना)
【5】वमन,
【6】छींक,
【7】डकार,
【8】जम्भाई,
【9】भूख,
【10】निद्रा,
【11】आंसू
【12】श्वांस
【13】प्यास
इन 13 वेगों को रोकने से बड़े-बड़े भयानक रोग होते हैं।