आयुर्वेद में एंजायटी का क्या इलाज है |

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  • केसे शुरू होता है एंग्जाइटी जब नकारात्मक विचार, चिंता, भय, भ्रम और डर के साथ बैचेनी का अहसास होने लगे। जैसे अधिक पसीना आना अचानक हाथ पैर या पूरे शरीर में कम्पन होना, रात को गहरी नींद न आना, क्रोधित होना, चिड़चिड़ापन, बैठे बैठे कांपना, आदि।
  • एंजायटी के लिए आयुर्वेदिक ओषधियां ही विशेष कारगर होती हैं। अगर इन्हें नियमित 3 महीने तक सेवन करें, तो बहुत फायदा होता है।
  • एंग्जाइटी एक खतरनाक मानसिक रोग है। यदि ठीक समय पर एंग्जाइटी का सही इलाज न किया जाए तो व्यक्ति पागल भी हो सकता है। मुख से झाग निकलना, मिर्गी आदि विकार भी एंग्जाइटी उत्पन्न हो जाता है।
  • आयुर्वेद - सारसंग्रह शास्त्रानुसार दिमाग ज्ञान और चेतना का केन्द्र है। दिमाग की गड़बड़ी के कारण ही ज्ञानेन्द्रियों में भी गड़बड़ी पैदा होती है, अतएव इस रोग में देखने, सुनने, सूँघने, बोलने या छूने में विकार पैदा हो जाता है।

एंग्जायटी (Anxiety) अवसाद या डिप्रेशन, निराशा और अत्याधिक के दुःख की वजह से उत्पन्न होती है। इस स्थिति में व्यक्ति को हर वक्त इस बात का डर लगा रहता है कि कुछ गलत होने वाला है। अधिकांश मामलों में जब कोई स्त्री या पुरुष अपनी भावनाओं को दबाकर उसे अनदेखा करते हैं, तो वे हमारे मानसिक दुःख एवम दर्द का कारण बनती हैं। ठीक इसी प्रकार, नजरअंदाज किए जाने पर अवसाद एंग्जायटी (Anxiety) का रूप ले सकता है।

  • माधव निदान ग्रंथ मुताबिक यह मानसिक रोग जवान लड़कियों को उनकी संभोग-इच्छा की तृप्ति नहीं होने पर अधिकतर होता है।
  • सहवास से अतृप्त होने पर पत्नी को क्रोध आता है। वे चिड़चिड़ी हो जाती हैं। कामवासना की अपूर्णता के कर्ण ही आजकल अधिकांश लड़कियों को सोम रोग या पीसीओडी की समस्या दिनोदिन बढ़ रही है।

ध्यान देवें...जो पुरुष सेक्स में पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाते वे तीन महीने तक नियमित बी फेराल गोल्ड माल्ट और कैप्सूल दोनों दवा सुबह शाम दूध के साथ लेवें।

  • आयुर्वेदिक इलाज ब्राह्मी, शंखपुष्पी, स्मृति सागर रस, चंदन, जटामांसी, ब्राह्मी वटी गोल्ड, त्रिफला, गुलकंद, आएनला, हरड़ मुरब्बा आदि।
  • एंग्जाइटी अवसाद डिप्रेशन झेल रही नई पीढ़ी के लिए यह लेख बहुत काम है!

अध्यात्मिक और धार्मिक उपाय…

  1. स्थिरबुद्धि न होने से जीवन सदैव असुख, अभाव, अशांति से बीतता है!
  2. वर्तमान में कैंसर होने कि सबसे बड़ी वजह बुद्धि कि अस्थिरता ही है!
  3. अस्थिर बुद्धि वाला व्यक्ति परिवार, समाज और राष्ट्र भी दुःखित होकर अशान्ति और अनिश्चिन्तता के झूले में झूलता रहता है।
  4. स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि - 'When passion is on the throne, reason is out of doors." 'जब आवेश सिंहासन पर बैठा होता है, तब सूझ-बूझ दरबाजों के बाहर निकल जाती है।'

श्रीमद भगवद्गीता में है-

'नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।'

अर्थात जो समत्व योग से युक्त नहीं है, उसके बुद्धि (स्थिर प्रज्ञा) नहीं होती और न ही उस अयुक्त में कोई सहृदयता, दया आदि की भावना होती है।

  • किसकी बुद्धि स्थिर नहीं रहती ?स्थिरबुद्धि का इतना महत्व है, फिर भी लोग स्थिरबुद्धि नहीं पाते । अकसर लोगों की स्थिरबुद्धि समय पर पलायन कर जाती है।
  • वे इस मुगालते में रहते हैं कि हम समय पर अपनी बुद्धि से सही निर्णय ले लेंगे परन्तु समय पर प्रायः वही बुद्धि धोखा दे जाती है, उसकी निश्चय करने की शक्ति कुण्ठित हो जाती है!
  • स्थिरबुद्धि एकाएक कुण्ठित और पलायित क्यों हो जाती है ? महर्षि गौतम ने इस जीवनसूत्र में बताया है
  • "चएइ बुद्धि कुवियं मणुस्सं" यानी जो मनुष्य बात-बात में कुपित हो जाता है, क्षणिक आवेश में आ जाता है, जरा-सी बात में, तनिक-सी देर में उत्तेजित हो उठता है, उस व्यक्ति से (स्थिर) बुद्धि दूर भाग जाती है, उसकी बुद्धि उससे रूठकर छोड़ जाती है।
  • स्थिर-बुद्धि भी पतिव्रता स्त्री की तरह उसी स्वामी के प्रति वफादार रहती है, जो कुपित, उत्तेजित और आवेशयुक्त नहीं होता, जो व्यक्ति समय पर अपने आप को वश में नहीं रख सकता, अपने आपे से बाहर हो जाता है, तब उसकी स्थिर-बुद्धि भी शीघ्र ही उसके मस्तिष्क से खिसक जाती है।
  • वास्तव में स्थिर-बुद्धि का कार्य है-स्वयं सही निर्णय करना । यथार्थ निर्णय के अधिकार का प्रयोग तभी हो सकता है, यदि उसके अधीन कार्य करने वाली प्रज्ञा (स्थिर-बुद्धि) उसके वश में हो और प्रज्ञा स्थिर होती है, आत्मसंयम से जब मनुष्य आत्मसंयम खो बैठता है, बात-बात में आवेशयुक्त होकर अपने पर काबू नहीं रखता, तब उसकी प्रज्ञा स्थिर न रहे यह स्वाभाविक है!
  • निष्कर्ष यह है कि आत्मसंयम के बिना मनुष्य अपनी प्रकृति और वृत्ति-प्रवृत्ति को अंकुश में नहीं रख सकता; और ऐसी स्थिति में मनुष्य अपनी निर्णय शक्ति से हाथ धो बैठता है!
    • अस्थिर बुद्धि से सिद्धि समृद्धि नष्ट हो जाती है -स्थिरबुद्धि के अभाव में मनुष्य के सारे साधन और सारे प्रयत्न बेकार हो जाते हैं। एक मनुष्य के पास पर्याप्त धन हो, शरीर में भी ताकत हो, उसका परिवार भी लम्बा-चौड़ा हो, कुल भी उच्च हो, आयुष्यबल भी हो, इन्द्रियाँ तथा अंगोपांग आदि भी ठीक हों, बाह्य साधन भी प्रचुर हों, और भाग्य भी अनुकूल हो, लेकिन बुद्धि स्थिर न हो तो वह न लौकिक कार्य में सफल हो सकता है, न आध्यात्मिक कार्य में।
    • अथर्ववेद के एक सूक्त में मानव मस्तिष्क की दिव्यता बताते हुए कहा है....

तद्वा अथर्वणः शिरो देवकोषः समुब्जितः!

तत्प्राणो अभिरक्षति शिरो अन्नमयो मनः!!

  • अर्थात मनुष्य का वह सिर मुंदा हुआ देवों का कोष है। प्राण, मन और अन्न इसकी रक्षा करते हैं।
  • केवल शिव ही 'त्रिलोचन' नहीं होते, प्रत्येक मनुष्य के पास एक तीसरा नेत्र होता है, जिसे हम दिव्यदृष्टि कह सकते हैं। वह मस्तिष्क में ही रहता है।
  • मनुष्य मस्तिष्क से दैवीबल प्रकट होता है। वस्तुतः इस तीसरे भीतरी नेत्र को हम सूक्ष्म एवं स्थिरबुद्धि कह सकते हैं।
  • स्वप्न में बाह्य आँखें बंद होते हुए भी मनुष्य स्वप्न के दृश्यों को प्रत्यक्ष-सा देखता है।
  • बुद्धि निर्मल एवं स्थिर होने से मनुष्य अप्रत्यक्ष को भी देख सकता है, दूरदर्शी बन सकता है। इसी से हिताहित कार्याकार्य या शुभाशुभ का वह शीघ्र विवेक कर सकता है।
  • किसी कार्य के परिणाम को वह पहले के जान लेता है । इसी कारण स्थिरबुद्धि व्यक्ति का प्रत्येक सत्कार्य सफल होता है । प्रत्येक परिस्थिति में उसकी स्थिरबुद्धि कोई न कोई यथार्थ हल निकाल लेती है।
  • आत्मा के प्रकाश को वही बुद्धि ग्रहण करती है। उसी से मिथ्याधारणाएँ, अन्धश्रद्धा, अज्ञानता आदि नष्ट होती हैं। उसी की सहायता से मनुष्य सत्कार्य में प्रवृत्त होता है । शुक्राचार्य ने इसी बुद्धि की उपयोगिता को लक्ष्य में करके कहा है
  • लोकप्रसिद्धमेवैतद् वारिवह्ननियामकम् । उपायोपगृहीतेन तेनैतत् परिशोष्यते ॥
  • अर्थात यह जगत्प्रसिद्ध है कि जल से अग्नि शान्त हो (काबू में आ) जाती है, किन्तु में यदि बुद्धिबल से उपाय किया जाए तो अग्नि जल को भी सोख भी लेती है।
  • सृष्टि में जो कुछ चमत्कार हम देखते हैं, वह सब मानवबुद्धि का ही है। मनुष्य बुद्धिबल से बड़े से बड़े कष्टसाध्य रचनात्मक कार्य कर सकता है, बड़े से बड़े संकटों को पार कर सकता है।
  • मुद्राराक्षस में महामात्य चाणक्य की प्रखर बुद्धि का वर्णन आता है। जिस समय लोगों ने चाणक्य को बताया कि सम्राट की सेना के बहुत से प्रभावशाली योद्धा उसका साथ छोड़कर चले गए हैं और विपक्षियों से मिल गए हैं, उस समय उस प्रखर बुद्धि के धनी ने बिना घबराये स्वाभिमानपूर्वक कहा

एका केवलमर्थसाधनविधौ सेनाशतेभ्योऽधिका। नन्दोन्मूलनदृष्टिवीर्यमहिमा बुद्धिस्तु मा गान्मम॥

  • अर्थात -जो चले गये हैं, वे तो चले ही गये हैं। जो शेष हैं, वे भी जाना चाहें तो चले जाएँ, नन्दवंश का विनाश करने में अपने पराक्रम की महिमा दिखाने वाली और कार्य सिद्ध करने में सैकड़ों सेनाओं से अधिक बलवती केवल एक मेरी बुद्धि न जाए; वह मेरे साथ रहे, इतना ही बस है।
  • वास्तव में सूक्ष्म और स्थिरबुद्धि का मानव-जीवन के श्रेय और में अभ्युदस बहुत बड़ा हाथ है । इसमें कोई सन्देह नहीं।
  • स्थिरबुद्धि के अभाव में संकटों मनुष्य के समय किंकर्तव्यविमूढ़, भयभ्रान्त, एवं हक्का-बक्का होकर रह जाता है।
  • जिस की बुद्धि स्थिर नहीं होती, वह सभी कार्य उलटे ही उलटे करता चला जाता है, वह में विवेकभ्रष्ट होकर अपना शतमुखी पतन कर लेता है।

स्वयं का ध्यान लगाकर भटकना बंद करें…

  • कितने विरोधाभासों के बीच हमारी जीवन नौका चलती है। चलती है और एक दिन उसमें छेद हो जाता है। जिस पानी ने उसे संबल दिया था, वही उसे डुबोकर अपने भीतर खींच लेता है।
  • अक्सर रामकथा वाचक प्रवचन देते हैं कि "जीवन को पारदर्शी रखो। यही सफलता का मूलमंत्र है।"
  • --'जीवन को पारदर्शी रखो' सुनते ही मेरी मानसिक चेतना ने विद्रोह कर दिया। जीवन इतना सहज नहीं है जैसा सोचा या देखा जाता है।
  • --आदमी हर पल, हर क्षण एक-सा नहीं होता। बुद्धि की चैतन्य दृष्टि उसे भ्रमित करती रहती है। यह भी कह सकते हैं कि वह दृष्टि सम्यक्-मार्ग धर्मी है। फिर....?
  • आदिकाल से आज तक किसी का जीवन पारदर्शी नहीं रहा और न रह सकता।
  • --महान पुरुषों के नाम गिनाकर विवाद नहीं पैदा करना चाहूंगा। --मनुष्य क्षण-जीवी है।
  • --मनुष्य की मेधा सरल और समतल मार्गों का विरोध करती है। वह एक रास्ता बनाती, उस पर चलती है। चलकर जब चाहे छोड़ भी देती है।
  • --मनुष्य ब्रह्मचारी नहीं है। कोई भी मनुष्य ब्रह्मचारी नहीं रह सकता, कभी रहा नहीं। वह परिस्थितियों और कालखंडों में विभाजित चेतनाओं के साथ चंद्रमा की तरह घटता-बढ़ता रहता है।
  • --अपने सोच को कोई बदलता है, तो वह चिंतन और चेतन मस्तिष्क का धनी मनुष्य है।
  • --लीक को वही तोड़ता है और नये रास्तों और नये आयामों का निर्माण करता है।
  • --विज्ञान की समग्र बोध-गंध मनुष्य की नेत्रदृष्टि की मात्र झलक है।
  • स्वीकार लीजिए: मनुष्य पारदर्शी नहीं हो सकता।
  • वही उसकी परम स्वामित्व की परख है।
  • -प्रश्न उठता है तब?
  • -उत्तर भी स्पष्ट है: स्वच्छ दृष्टि।
  • स्वच्छ दृष्टि होने से सब कुछ पारदर्शी हो जाता है। -स्वच्छ दृष्टि शुद्ध ज्ञान की परिचायक है।
  • --शुद्ध ज्ञान होगा तो विवेचना के केंद्र अनावश्यक हो जाएंगे। --सत्य की परख स्वच्छता से होती है।
  • --सत्य अथवा सात्त्विकता ज्ञान और ज्ञाता दोनों को जोड़ती है। जोड़ती भी है तो इस तरह जैसे सूर्य कभी अंधकार को नहीं देख सकता । सत्य प्रकाश के परे प्रभा मंडल की महिमा मंडित आभा को भी देख लेता है।
  • --एक चेहरा देखिए, देखिए तो; उसका प्रभा मंडल तत्काल सामने होगा। प्रभा शून्य चेहरा आभा शून्य होगा। आभा शून्य क्षेत्र रेतीला रेगिस्तान है। उसकी चिंता कोई क्यों करे?
  • -सूर्य की तरह महाशक्तिशाली सागर है, महासागर है।
  • --सागर और महासागर में सैकड़ों नदियां मिलकर अस्तित्त्वहीन हो जाती हैं। वहां पहुंचकर गंगा का विराट पावित्र्य, यमुना की अद्भुत क्षमता और मिसीसिपी मिसौरी-जैसी भारी नदियां भी मनुष्य जीवन की अंतिम यात्रा की तरह अपने समाप्त अस्तित्व का तर्पण देखती हैं।
  • कथावाचक कहते हैं... जीवन को पारदर्शी रखो, मैं विनम्र होकर पूछना चाहता हूं।
  • नदियां अपना अस्तित्त्व नहीं रख सकीं।
  • आदमी कभी अपनी छाया को छू सका है।
  • नमक को कोई, कभी पानी से धो सका है।
  • पानी पाने के लिए कोई उसे लहरों से छान सका है। यह असत्य तो नहीं है कि सभी गतिमान अवयव परिधि रेखा से परे हैं। यह भी मानना होगा कि हमारा शरीर हमारा होकर भी हमारा नहीं है।
  • यह भी मान लीजिए कि आपका मन आपका है, पर आपके हाथ नहीं है।
  • मन की भटकन कोई बांध नहीं सकता।
  • मन की तरह शरीर है, शरीर को लचीला बनाने का ज्ञान देनेवाले उसे नवजात शिशु की तरह लचीला तो नहीं बना सकते।
  • • दृष्टि है, परंतु दृष्टि केवल प्रकाश देखे, अंधेरा अस्तित्वहीन है कोई स्वीकार करेगा ?
  • • जीवन प्रेम का परमतत्त्व है। प्रेम से ही आकार मिला है उसे, लेकिन अनचाहे प्रेम नहीं किया जा सकता।
  • • प्रेम अद्भुत, अमूल्य है। वह जादूगर की तरह नाटकीय ढंग से खेलता है। प्रेम कभी स्थिर रहा है ? प्रेम स्थिर रह नहीं सकता, क्योंकि प्रेम का लारवा एक ऐसी मकड़ी बनाती है ,जो जाला बनाकर ही ठहर नहीं जाती।
  • मकड़ी जाला बनाती है शिकार के लिए। प्रेम का जाला बनानेवाली मकड़ी मन की पवित्र गंगा का वह बूंद पकड़ती है जो कभी सड़ता नहीं, गलता नहीं।
  • तब स्पष्ट हुआ कि प्रेम से ही मनुष्य जीवन अंकुरित हुआ है, यह सत्य है, परंतु वह अपने ही निर्मित कम्प्यूटरों, चेतनाओं, घेरों, शब्दों और अर्थों के विश्लेषण एकदम अलग ढंग से करता है।
  • कारण यही है कि प्रेम होता है, प्रेम खोता है, प्रेम धोता है, प्रेम बहा देता है। प्रेम जोड़ता है, प्रेम तोड़ता भी है। प्रेम देहाकार होता है तो वही प्रेम एक अनजाने क्षण में टुकड़े-टुकड़े हो जाता है।
  • --कितने विरोधाभासों के बीच हमारी जीवन नौका चलती है। चलती है और एक दिन उसमें छेद हो जाता है। जिस पानी ने उसे संबल दिया था, वही उसे डुबोकर अपने भीतर खींच लेता है।
  • --इसे समझने के लिए एक और सत्य को पहचानिए :
  • मनमाने अपयश किये जाएं एक तंत्र है--विनय विनय सबको तरोताजा बना देता है।
  • क्रोध की भयंकर चिनगारियों को कौन दबा सकता है--मात्र या क्षमा क्रोध को कोहरे की तरह साफ कर देता है और स्वयं सूर्य का काम करता है।
  • --जीवन के कठिन रास्ते समझ के द्वार बंद कर देते हैं। समझ के द्वारा श्री अंत में धर्म खोलता है, ठीक उसी तरह-जैसे असत्य के सहस्र परतों की सत्य जीतता है। जीवनी शक्ति क्रोध में नहीं है।
  • --क्रोध को सहज ही क्षमा जीत लेती है। क्षमता जिसमें है उसमें क्षमा की होगी और उसी क्षमतावान की क्षमा क्रोध को विनष्ट कर देगी।
  • --लीजिए, हम पास पहुंच गये हैं।
  • --मन कभी स्थिर नहीं रहता। मन की भटकन को रोकना सहज नहीं है।
  • मन की भटकन रुक ही नहीं सकती, वह दिशाएं बदल सकती है। अनुष्य शरीर अजनबी तत्त्वों का समन्वय है।
  • इसका निर्माण ही अनजाने, अनचीन्हें, अनचाहे और असमय के पलक झपकते पलों में होता है।
  • ता है यहां तक माना जा सकता है, इन क्रियाओं के कर्त्ता अंततः अदृश्य हो जाते हैं।
  • --अर्थ हुआ हमारे निर्माता स्वयं असंयमित हैं और अदृश्य हैं। --अदृश्य शक्तियों से जो भी निर्मित होगा उसे उन सबका पाप भोगना होगा।
  • --पाप भोगना है तो किसने कहा है कि हम पारदर्शी बनें।
  • --नहीं, मनुष्य पारदर्शी नहीं बन सकता।
  • -- प्रत्येक मनुष्य की अपनी क्षमता है। क्षमता की प्रबलता पारोत्लन से नहीं आंकी जा सकी।
  • -- मित्र, पारदर्शी मत बनो, अपनी दृष्टि स्वच्छ रखो। स्वच्छ रहनेवाला हमेशा निरोगी होता है।
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मानसिक रोग नाशक स्मृति सागर रस

  • प्राकृतिक चिकित्सा शास्त्रों की यह बात सदैव स्मरण रखना चाहिए की किसी रोग को कोई भी दवाई जल्दी ठीक करे, तो समझो आने वाले वक्त में वह रोग अन्य और बीमारियों को लेकर उभरेगा।
    • दुनिया का कोई भी विज्ञान 6 महीने में बच्चा पैदा नहीं कर सकता। बरगद, पीपल, बेल, कदंब आदि वृक्ष 3 या 4 माह में 10/15 फिट ऊंचे नहीं हो सकते।
  • फलदार पेड़ समय आने पर ही फल देते हैं। प्रकृति की सारी व्यवस्थाएं धीमी गति द्वारा सुचारू रूप से चल रही हैं। जल्दबाजी से सदा नुकसान ही होता है।
  • आयुर्वेद की ओषधियां भी कम से कम 2 से 5 महीने तक लेने पर ही विकारों को जड़ से मिटाती हैं। लेकिन एक बार कोई बीमारी ठीक हो गई, तो वह पुनः फिर नहीं उभरती।
  • आजकल लोग एलोपैथिक दवाएं खाकर एक या दो दिन में तुरंत सही तो हो जाते हैं किंतु शरीर की रोगप्रतिधक क्षमता कमजोर हो जाती है।
  • माधव निदान के अनुसार इम्यूनिटी स्ट्रॉन्ग होने से शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति बनी रहती है।
  • अंग्रेजी दवाएं तन का इम्यून सिस्टम खत्म कर देती हैं। भूख नहीं लगती, पेट साफ नहीं होता, नींद नहीं अति, लिवर कमजोर हो जाता है। पाचनतंत्र गड़बड़ा जाता है। धीरे धीरे इसका दुष्प्रभाव आंख, नाक, कान पर होकर हड्डियों का रस सूख कर चलना फिरना दुर्भर होने लगता है।
  • ज्यादा एलोपैथिक चिकित्सा करने वाले लोगों को काम उम्र में बुढ़ापे के लक्षण प्रकट होते देखे गए हैं।
  • वर्तमान में मानसिक कमजोरी, मस्तिष्क विकार, अवसाद, डिप्रेशन, डिमेंशिया आदि की विकराल समस्या से घिरकार व्यक्ति जल्दी ही अपना अंत कर लेता है।
  • मधुमेह/डायबिटीज, रक्त चाप/बीपी, ह्रदयरोग/हार्ट प्रोब्लम, जोड़ों में दर्द, कफ खांसी, कमजोरी, आलस्य, बैचेनी की एक बड़ी वजह एलोपैथी मेडिसिन ही है।
  • आप जानकार हैरान हो जाएंगे कि एलोपैथी में यकृत/लिवर, उदर रोग, स्त्री रोग, पीसीओडी, श्वेत प्रदर आदि का कोई स्थाई इलाज ही नहीं है।
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  • युवा महिलाएं अब बांझपन से बहुत परेशान हैं क्योंकि जरा सी तकलीफ होते ही बार बार एलोपैथिक दवाएं खाने से देश का सारा सिस्टम बिगड़ जाता है, फिर कोई भी मेडिसिन काम नहीं करती।
  • जब मरीज आयुर्वेद की तरफ लोटता है, तो बहुत देर हो चुकी होती है। फिर भी अगर रोगी विश्वास के साथ लंबे समय तक देशी इलाज करे, तो उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) द्वारा बढ़ सकती है।
  • आयुर्वेद चिकित्सा की खासियत यही है कि यह निरोग बनाने के साथ साथ शरीर की सम्पूर्ण कार्यप्रणाली को क्रियाशील बनाती है।
  • आयुर्वेद के रस-रसायन-प्रकरण आयुर्वेदिक रसायन जैसे -स्वर्ण भस्म, चांदी भस्म, विक्रांत भस्म, बंग, अभ्रक, ज्वर मोहरा, स्मृति सागर रस, बसंत कुसुमाकर आदि देह को रस से लबालब कर देते हैं।
  • शरीर में पर्याप्त रस होने से नवीन रक्त के निर्माण के साथ एक संचार होता रहता है, जिससे शरीर में ऊर्जा, उमंग, स्फूर्ति बनी रहती है।
  • रसायन की इस विशेषता के कारण ही अमृतम द्वारा निर्मित 25 प्रकार के माल्ट और 12 तरह के कैप्सूल में स्वर्ण युक्त रसायनों का समावेश किया गया है, ताकि देह शीघ्र ही निरोगता पा सके।
  • मानसिक शांति प्रदाता -स्मृतिसागार रस…यह स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिये परमोपयोगी है। इसके सेवन से स्नायविक दुर्बलता जड़मूल से मिटती है। मस्तिष्क की कमजोरी से पैदा होने वाले रोग– मूर्च्छा, उन्माद, मृगी, हिस्टीरिया आदि में इसका प्रयोग करना बड़ा लाभदायक है।
    • ज्ञानवाहिनी नाड़ियों को इसके सेवन से बल और चेतना प्राप्त होती है।
  • स्मृतिसागार रस इस रसायन का विशेष उपयोग मानसिक रोगों में होता है। मनोविभ्रम के कारण होने वाले उन्माद रोग में यह बहुत काम करता है। यह रोग मानसिक चिन्ता, दुख, शोक, भय, कार्य में दिन-रात लिप्त रहने, गाँजा, भाँग, शराब आदि का अधिक व्यवहार करने, अति स्त्री-प्रसंग, माथे में चोट लगने तथा पुराने आतशक आदि कारणों से उत्पन्न होता है।
  • इन कारणों में प्रधान कारण मानसिक विकृति या ज्ञानवाहिनी नाड़ी की शिथिलता (कमजोरी) है। पित्त की वृद्धि हो, तो रक्त में एकाएक गर्मी बढ़ जाती है फिर यह गर्मी मस्तिष्क की ओर जाकर वहाँ की नाड़ियों को कमजोर बना देती है, जिससे दिमाग ठीक-ठीक काम नहीं करता।
  • भूल पर भूल होना, जरूरी काम भी भूल जाना, पित्त अस्थिर (चंचल), चंचलता के कारण किसी काम में मन न लगना, आलस्य, नींद न आना, भूख कम लगना, विशेष चिन्ता – ये लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
  • एंजायटी से बचने का सरल तरीका…इस मानसिक रोग में ध्यान अत्यंत आवश्यक है। इसमें दवा के साथ भोलेनाथ की दया और सबकी दुआ मरीज को जल्दी ठीक करती है।
  • ब्राह्मी, स्मृति सागर रस, शंखपुष्पी, जटामांसी आदि मानसिक विकार बढ़ औषधियों से निर्मित ब्रेन की गोल्ड माल्ट आपका जीवन बदल सकता है।

Brainkey Gold Malt contains Shankhpushpin, Brahmi, Jatamansi and Ashwagandha. It is an ancient traditional recipe that helps in increasing immunity and improving memory and concentration. This herbal jam for memory boosting also aids in helping you fight against mental damage and stress.

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