जाने - प्राचीन आयुर्वेद के बारे में पार्ट - 7

पिछले लेख पार्ट 6 में हमने
तन-मन में रोगों के तीन स्थान के
बारे में लिखा था, जिसमें शेष 2 की
जानकारी देना थी अब

जाने - प्राचीन आयुर्वेद के बारे में पार्ट - 7

इस आर्टिकल्स में आयुर्वेद ग्रंथों के मुताबिक
5 प्रकार के लकवा, 
पक्षाघात या पैरालिसिस के विषय में जानेंगे

शरीर में दूसरे प्रकार होने वाले रोग और स्थान --

पक्षाघात (Hemiplegia या Paralysis) इसे अवबाहुक भी कहते हैं।
पैरालिसिस यह  दो शब्दों "पार + लिसिस" से मिलकर बना है। पारा का अर्थ है
आभ्यंतर ( intimate) और लिसिस का अर्थ है− शिथिलता या निष्क्रियता।
 
लकवा यह वात या वायु रोग है, कुपित हुई वायु शरीर के दाएँ या बाएँ भाग पर आघात कर उस भाग की शारीरिक चेष्टाओं का नाशअनुभूति और वाणी में रुकावट उत्पन्न कर देती है। इसे पक्षाघात यानी लकवा कहते हैं।
यह उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रेशर)
के कारण भी हो सकता है।
लकवा होने की एक वजह तनाव, अधिक चिन्ता भी माना जाता है।
यह, तब होता है, जब अचानक मस्तिष्क के किसी भाग में रक्त संचार बाधित हो जाता है यानि खून की आपूर्ति रुक जाती है या मस्तिष्क की  कोई रक्त वाहिका (blood vessel) फट जाती है और मस्तिष्क की नाडियों व कोशिकाओं के आस-पास की जगह में खून भर जाता है।
पक्षाघात या लकवा मारना (Paralysis) एक या एक से अधिक  मांसपेशी (Muscle functions) समूह की मांसपेशियों
के कार्य करने में पूर्णतः असमर्थ
यानि तन-मन में ताकत अथवा
अपेक्षित शक्ति, (Required power)
या योग्यता न रख पाने की स्थिति को कहते हैं। पक्षाघात से प्रभावी क्षेत्र
की संवेदन-शक्ति (Sensing power)
समाप्त हो सकती है।
आयुर्वेद के अमृतम ग्रंथों के मुताबिक
पक्षाघात, लकवा यानि पैरालिसीस एक
ऐसा वायु रोग है, जिसके प्रभाव से संबंधित अंग की शारीरिक प्रतिक्रियाएं, बोलने और महसूस करने की क्षमता खत्म हो जाती हैं।
आयुर्वेद के अनुसार पक्षाघात
(पैरालिसिस) 5 प्रकार का होता है। 
 यह कई कारणों से हो सकता है।
 जानिए इसके कारण, प्रकार और उपाय -

कारण :

जवानी के दिनों में सेक्स की अधिकता या अधेड़ अवस्था में अत्यधिक भोग विलास, नशे की आदत, मादक द्रव्य व नशीले पदार्थों का उपयोग, ज्यादा आलस्य आदि से स्नायविक तंत्र (Nervous System)
 धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है। जैसे-जैसे
 उम्र बढ़ती जाती है, इस रोग के आक्रमण की
 संभावना भी बढ़ती जाती है।  इस बीमारी
 की वजह अकेले आलसीपन ही नहीं, अपितु
 इसके विपरीत ज्यादा भागदौड़,
 क्षमता से अधिक मेहनत, परिश्रम या व्यायाम, कम भोजन या अधिक खाने
आदि कारणों से भी लकवा होने की
स्थिति बन जाती है।

अमृतम आयुर्वेद के अनुसार पक्षाघात

 पांच के प्रकार के होते हैं --

 
【1】अर्दित  : यानि चेहरे का लकवा
(फेशियल पेरेलिसिस) सिर्फ चेहरे पर लकवे का असर होना अर्दित यानि फेशियल पेरेलिसिस कहलाता है। इसमें सिर, नाक, होठ, ढोड़ी, माथा, आंखें तथा मुंह स्थिर होकर मुख प्रभावित होता है और स्थिर हो जाता है।
 
कान के पीछे नस : दिमाग के निचले हिस्से में फेशियल नस होती है। यह दोनों कान के पीछे से होती हुई चेहरे तक पहुंचती है। बताया कि दोनों ओर 22-22 मांसों में फेशियल नस फैली रहती है। इसमें सूजन होने पर दूसरी ओर चेहरा भारी होने लगता है। साथ में टेढ़ापन होने लगता है।
 
【2】एकांगघात :
 (monoplegia मॉनो-प्लेगिया)
एकांगघात (संस्कृत में अंगघात) या  एक तरफ का लकवा रोग का एक प्रकार जिसमें कोई एक हाथ या पैर शून्य एवं क्रियाहीन हो जाता है। इसे एकांगवात भी कहते हैं। इस रोग में मस्तिष्क (ब्रेन) के बाहरी भाग में दिक्कत होने से एक हाथ या एक पैर में रक्त का संचार अवरुद्ध होने से वह हिस्सा कड़क होकर उसमें लकवा हो जाता है। यह समस्या *सुषुम्ना नाड़ी* में भी हो सकती है। इस रोग को एकांगघात यानि मोनोप्लेजिया कहते हैं।
 *सुषुम्ना नाड़ी* क्या होती है?
नाड़ी’ का मतलब धमनी या नस नहीं है। नाड़ियां शरीर में उस मार्ग या माध्यम की तरह होती हैं जिनसे प्राण का संचार होता है, शरीर के ऊर्जा‌-कोष में, जिसे प्राणमयकोष कहा जाता है, 72,000 नाड़ियां होती हैं। ये 72,000 नाड़ियां तीन मुख्य नाड़ियों- बाईं, दाहिनी और मध्य यानी इड़ापिंगला और सुषुम्ना से निकलती हैं।
 
【3】 सर्वांगघात :
इसे सर्वांगवात (डायप्लेजिया)
रोग भी कहते हैं। इस रोग में लकवे का असर
शरीर के दोनों भागों पर यानी दोनों हाथ व पैरों, चेहरे और पूरे शरीर पर होता है।
आयुर्वेद शास्त्रों में उल्लेख है
 
गृहीत्वार्धन्तनो वायुः शिरास्नायुर्विशोष्य च। पक्षमन्यतमं हन्ति साधिबन्धान्विमोक्षयन्॥ कृत्स्नोर्धकायं तस्य स्यादकर्म्मण्यो विचेतनः। एकाँगरोगन्तं केचिदन्ये पक्षवधं विदुः॥
 
अर्थात् जिस रोग में वायु आधे शरीर को पकड़कर शिरा और स्नायु को सुखाकर संधिबंधन (जॉइंट) को ढीला कर शरीर के एक तरफ के अंग को निष्क्रिय कर देती है, जिससे शरीर का आधा भाग कार्य करने में असमर्थ हो जाता है, उसे पक्षाघात कहते हैं। जब सारे अंग क्रियाहीन, शिथिल या चेष्टारहित हो जाते हैं, तब उसे सर्वांगघात कहा जाता है। अतः स्पष्ट है कि वात की विकृति ही लकवा/ पैरालिसिस का
प्रमुख कारण है। यह वातविकृति दो प्रकार से होती है−
1. धातुक्षय जनित और
2. आवरण जनित वात विकृति।
चरक संहिता में लिखा है,
वायोर्धातुक्षयात् मार्गस्यावरणेन च वा।”
 
【4】  अधरांगघात : paraplegia
इस रोग में कमर से नीचे का भाग यानी दोनों पैर लकवाग्रस्त हो जाते हैं। यह रोग सुषुम्ना नाड़ी में विकृति आ जाने से होता है। यदि यह विकृति सुषुम्ना के ग्रीवा खंड में होती है, तो दोनों हाथों को भी लकवा हो सकता है। जब लकवा तंत्रिका कोशिका अर्थात
 'अपर मोटर न्यूरॉन' प्रकार का होता है, तब शरीर के दोनों भाग में लकवा होता है।
 अपर मोटर न्यूरॉन यानि तंत्रिका तंत्र में स्थित एक  उत्तेजनीय कोशिका है। इसका कार्य ब्रेन से सूचना का आदान प्रदान और विश्लेषण करना है। यह कार्य एक विद्युत-रासायनिक संकेत के द्वारा होता है।
 
अधरांगघात, नीचे के अंगों का पक्षाघात, अर्द्धांग, निम्‍नांगो का पक्षाघात, पैरों का और पूरे या आधे धड़ का लकवा, शरीर के नीचे के अंगो का पक्षाघात है।
 
【5】 बाल पक्षाघात : बच्चे को होने वाला पक्षाघात एक तीव्र संक्रामक रोग है। जब एक प्रकार का विशेष कृमि सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कर उसे हानि पहुंचाता है तब सूक्ष्म नाड़ी और मांसपेशियों को आघात पहुंचता है, जिसके कारण उनके अतंर्गत आने वाली शाखा क्रियाहीन हो जाती है। इस रोग का आक्रमण अचानक होता है और यह ज्यादातर 6-7 माह की आयु से लेकर 3-4 वर्ष की आयु के बीच बच्चों को होता है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा

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ये पांचों प्रकार लकवा या पक्षाघात एक कठिन रोग है और इसकी चिकित्सा के लिए रोगी को रोज

से दो बार हल्के हाथ से मालिश करना चाहिए।
प्रतिदिन एक-एक कैप्सूल गर्म दूध या चाय
के साथ देना लकवाग्रस्त बीमारियों को
दूर करने में सहायक है।
 
इस आर्टिकल में केवल दूसरे स्थान के
रोगों बारे में बताया गया है
शेष तीसरे रोग स्थान के बारे में अभी शेष है।
 
अगले आर्टिकल पार्ट 8 में
अंगग्रह, अपतनक, के कारण, लक्षण उपचार और जॉइन्ट पैन, हड्डियों में दर्द व सूजन आदि रोग  के बारे में जाने

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