शिथिल ढ़ीली योनि को संकुचित करती है फिटकरी। जाने फिटकरी के आनेक फायदे!
- निहन्ति श्वित्रवीसन
- योनिसङ्कोचकारिणी।
- योनि मार्ग को भी संकुचित करती है-फिटकरी यानी जिन महिलाओं की योनि ज्यादा सेक्स या बच्चे होने के कारण ढ़ीली हो गई हो, वे फिटकरी का 11 दिन इस्तेमाल करें।
फटकी फुल्लिका चेति द्विविधा परिकीर्तिता ॥९३॥(र.र.स.) अर्थात-
१. फटकी और २. फुल्लिका दो प्रकार के भेद हैं।
- फिटकरी का शोधन….
वह्नौ प्रोफुल्लयेत् किं वा सम्यल्लघुपुटे पचेत् । कुन्दवज्जायते भस्म सर्वयोगेषु योजयेत् ॥१४॥(पारदसंहिता)
स्फटिका निर्मला श्वेता श्रेष्ठा स्याच्छोधने क्वचित्।
न दृष्टं शास्त्रतो, लोका वह्रावुत्फुल्लयन्ति हि! (आयु.प्र.)
फिटकरी के ओषधि उपयोग…
फिटकरी का चूर्ण कर लोहे की छोटी एवं साफ कड़ाही में डाल कर आग में लावा होने पर्यन्त गर्म करें।
पहले फिटकरी द्रव यानी गीली या पानी जैसी हो जायेगी, पुन: जल सूखने पर हलकी, श्वेत वर्ण की हो जायेगी । अथवा फिटकरी चूर्ण को शरावसम्पुट कर लघु (कुक्कुट) पुट में पाक करें, तो कुन्दफूल जैसी श्वेत फिटकरी हो जायेगी। चूँकि प्रक्रिया भस्म जैसी है अत: ग्रन्थकार ने भस्म शब्द का प्रयोग किया है।
अपक्व स्फटिका एवं शुद्ध स्फटिका के गुण…
कांक्षी कषाया कटुकाम्लकण्ठ्या
केश्या व्रणघ्नी विषनाशिनी च।
श्वित्रापहा नेत्रहिता त्रिदोष
शान्तिप्रदा पारदजारणी च ॥९६
- अर्थात-फिटकरी कषायाम्ल रसयुक्त द्रव्य है, कण्ठ एवं केश के लिए हितकर है; व्रण, विष एवं श्वित्रकुष्ठ (सफेद दाग) नाशक है।
- नेत्रों के लिए हितकर है, त्रिदोषशामक है और पारद का जारण करती है।
- मुखपाक एवं दन्तरोग नाशक है। दन्तदायकृत् है। फिटकरी शुद्ध एवं अशुद्ध दोनों प्रयोग की जाती है।
- व्रण, कुष्ठ, कण्डू एवं श्वित्र नाशक है, रक्तरोधक है, केश एवं नेत्र दोनों में प्रयुक्त होती है। शुद्ध ज्वर, रक्तपित्त एवं रक्तप्रदर नाशक है।
भावप्रकाश निघन्टुकार ने भी फिटकरी को अदभुत ओषधि बताया है। यह एक एंटीसेप्टिक दवा भी है।
अथ स्फटिका ( फटकिरी )।
तस्या नामानि गुणांचाह कथ्यते॥
स्फटी च स्फटिका प्रोक्ताश्वेता शुभ्रा च रङ्गदा।
दृढरङ्गा रणदृढा रङ्गाङ्गाऽपि च स्फटिका तु
कषायोष्णा वातपित्तकफव्रणान् ।
निहन्ति श्वित्रवीसन योनिसङ्कोचकारिणी।
फिटकिरी के संस्कृत नाम-स्फटी, स्फटिका, श्वेता, शुभ्रा, रङ्गदा, दृढ़रङ्गा, रणदृढा, रङ्गाका ये सब है। ,
फिटकिरी-कषाय रस युक्त, उष्ण, योनिमार्ग को संकुचित करने वाली एवम्-वात, पित्त, कफ, व्रण ( पाव ), श्वेत कुष्ठ तथा विसर्प को दूर करने वाली होती है ॥ १४१-१४२ ।।