रोग साध्य हों या असाध्य, नये हों या पुराने केवल प्राकृतिक चिकित्सा औऱ आयुर्वेदिक ओषधियों से ही ठीक हो पाते हैं, क्योंकि इनमें सृष्टि के सभी जीव-जगत का मङ्गल व भला करने की शक्ति समाहित होती है।
आयुर्वेद के महान ग्रन्थ "योगरत्नाकर"के श्लोक 15 में लिखा गया कि यथा-
पुण्यैश्च भेषजै: शान्तास्ते ज्ञेया: कर्म दोषजा: ।
विज्ञेया दोषजास्तवन्ये केवल वाsथ संकरा: ।।
ओषधम मंगलं मन्त्रो.....
.……………...... सिध्यन्ति गतायुषि ।।
आयुर्वेद के प्राचीन शास्त्र "माधव निदान"
के अनुसार तीन प्रकार के दोष से तन रोगों का पिटारा बन जाता है ।
- "कर्मदोषज व्याधि" प्रकृति द्वारा निर्धारित नियमों के विपरीत चलने से यह दोष उत्पन्न होता है । जैसे-सुबह उठते ही जल न पीना, रात में दही खाना, समय पर भोजन न करना, व्यायाम-कसरत न करना आदि ।
- दोषज व्याधि- पेट साफ न होना, बार-बार कब्ज होना, भूख न लगना, खून की कमी, आंव, अम्लपित्त
(एसिडिटी), पाचन क्रिया की गड़बड़ी, हिचकी आदि
- मिश्रित रोग- जो रोग अचानक हो, बार-बार हों, एक के बाद एक रोग हों । विभिन्न चिकित्सा, अन्यान्य विविध क्रियायों द्वारा शान्त न हों-ठीक न हों, उन्हें मिश्रित रोग जानना चाहिए ।
आयुर्वेद दवाएँ भी उनके लिए ही साध्य हैं, जिनकी आयु शेष है । अन्य या गतायुष के लिए असाध्य हैं ।
एक श्लोक में उल्लेख है की अपने इष्ट की प्रार्थना करते रहने से अनेक रोग शान्त हो सकते हैं ।
आगे "अथदूत परीक्षा" के श्लोक 19 में
अनेक वेद्यों (प्राचीन चिकित्सकों) को आयुर्वेद का ज्ञान देते हुए बताया गया कि-
मूर्खश्चोरस्तथा.... ..भवति पापभाक ।।
अर्थात- शरीर में कोई न कोई रोग हमेशा बने रहते हैं । लापरवाही व अज्ञानता के कारण अनेक ज्ञात-अज्ञात विकार बाधाएं खड़ी करते हैं। अतः हमें, हमेशा रोगों से अपनी रक्षा करना चाहिये ।
शरीर में प्रोटीन, कैल्शियम,खनिज पदार्थों की कमी तथा जीवनीय शक्ति का ह्रास होने से रोग सदा सताते हैं ।
कई प्रकार के साध्य-असाध्य रोग-विकारों से बचने के लिए
अमृतम गोल्ड माल्ट 2-2 चम्मच
सुबह-शाम गुनगुने दूध या सादा जल से 2 माह तक लगातार सेवन करना चाहिए ।
क्या है अमृतम -
दुनिया के सभी धर्मग्रंथों, प्रकृति से उत्पन्न पदार्थों,वस्तुओं,नियमों तथा प्राकृतिक चिकित्सा व यूनानी, आयुर्वेदिक ओषधियों को ही अमृत माना है।
अमृतम फार्मास्युटिकल्स, ग्वालियर, मध्यप्रदेश द्वारा आयुर्वेद के महान ऋषियों जैसे -
आचार्य चरक,
ऋषि विश्वाचार्य,
आयुर्वेदाचार्य नारायण ऋषि,
बागभट्ट एवं भास्कराचार्य
आदि द्वारा आयुर्वेद के लिखे,
रचित प्राचीन ग्रंथों यथा-
- भावप्रकाश,
- अर्क प्रकाश,
- मंत्रमहोदधि,
- भृगु सहिंता,
- रावण सहिंता,
- रसतंत्रसार,
- सिद्धयोग संग्रह,
- रस समुच्चय,
- आयुर्वेद निघंटु
- भेषजयरत्नावली
आदि शास्त्रों से फार्मूले लेकर 50 प्रकार की अमृतम हर्बल ओषधियाँ एवं 45 तरह के माल्ट बनाये।
आज से वर्षो पूर्व अवलेह (माल्ट)बनाकर रोगों की चिकित्सा की जाती थी । आयुर्वेद की ये दवाएँ, अवलेह बनाने की प्रक्रिया बहुत जटिल व खर्चीली थी । प्राचीनकाल में ये "अवलेह" के नाम से जाने जाते थे । वर्तमान में इन्हें "माल्ट" कहते हैं ।
- द्राक्षाअवलेह,
- दाडिमावलेह,
- कुष्मांड अवलेह,
- बादाम पाक,
- च्यवनप्राश अवलेह
- कुटजावलेह
- अष्टाङ्गावलेह
- कोंच पाक
- माजून मुलाइयन
आदि की जानकारी भारतीय आयुर्वेद भाष्यों में उपलब्ध है । इन्हें शास्त्रोक्त ओषधियाँ कहा जाता है ।
वर्तमान में कड़ी प्रतिस्पर्द्धा,उत्पाद की लागत
बढ़ने तथा इनकी मांग कम होने के कारण
इन अवलेह को बनाना कम कर दिया, अब
आयुर्वेद की कुछ ही कंपनियां इनका निर्माण करती हैं, किन्तु महंगी लागत व बिक्री घटने के कारण अपने उत्पाद को इतना असरकारक नहीं बना पा रही हैं ।
अमृतम की कहानी -
35 वर्षो के लगातार अध्ययन व अनुभव के पश्चात पाया कि वर्तमान में आयुर्वेद की सभी प्रसिद्ध कंपनियां बहुत पुरानी होने के कारण उनके योग-फार्मूले भी उस समय के हैं, जब रोग इतने भयंकर, खतरनाक या असाध्य नहीं हुआ करते थे। चिकित्सा शास्त्र का नियम है की काल,समय, परिस्थितियों के अनुसार रोगों में परिवर्तन होता रहता है। उसी के अनुसार ओषधियों का निर्माण जरूरी है।
इन सब कारण के निवारण हेतु अमृतम ने सभी रोगों के लिये 45 प्रकार के अवलेह (माल्ट) निर्मित किये।
अमृतम मासिक पत्रिका
के प्रधान संपादक,मुद्रक,प्रकाशक,लेखक औऱ
कालसर्प विशेषांक के रचनाकार
"अशोक गुप्ता" जो 35 वर्ष पुरानी हर्बल्स मार्केटिंग कम्पनी के भी डायरेक्टर है, यह "मरकरी एम.एजेंसी(प्रा) लिमिटेड
के नाम से विख्यात है। इन्होंने वर्षों तक हर्बल मेडिसिन की बिक्रय,विपणन, वितरण हेतु पूरे भारत का भ्रमण किया । इस प्रवास के दौरान अनेकों अनुभवी, योग्य वैद्यों, चिकित्सकों, घने वन में रहने वाले साधक, साधु-संतों,अघोरी-अवधूतों व
आयुर्वेद के जानकर विद्वानों से जानकारी जुटाकर निर्मित किये।
माल्ट बनाने की प्राचीन प्रक्रिया-
- आंवला,
- सेव,
- हरीतकी,
- गाजर,
- पपीता,
- करोंदा,
- बेल के मुरब्बो तथा
- गुलकन्द औऱ सभी प्रकार की
- मेवा-मुनक्का,किसमिस,
- अंजीर, काजू, पिंडखजूर
को पीसकर देशी घी में 10-12 दिनों तक मंदी आँच में सिकाई की जाती है ।
[माल्ट में डाली गई जड़ीबूटियों का काढ़ा बनाकर वेदमंत्रों द्वारा वैदिक रीति से शिवलिंग का रुद्राभिषेक किया जाता है।]
तत्पश्चात काढ़ा पके माल में मिला कर पुनः सेंकते हैं,फिर सभी मसाले, रसादि-भस्म का मिश्रण कर 25 दिन में एक गुणकारी अवलेह (MALT) निर्मित हो पाता है ।
हर पल आपके साथ हैं हम-
अमृतम दुनिया की पहली आयुर्वेदिक
कम्पनी है, जो अलग-अलग रोगों के लिए 45 तरह के विभिन्न माल्ट (अवलेह) का निर्माण करती है ।जैसे-
- अमृतम गोल्ड माल्ट,
- लोजेन्ज माल्ट,
- कुन्तल केअर माल्ट,
- ब्रेन की माल्ट,
- चाइल्ड केअर माल्ट,
- बी.फेराल माल्ट,
- कीलिव माल्ट,
- फेवकी माल्ट,
- पाइल्स की माल्ट,
- गैसा की माल्ट,
- नारी सौन्दर्य माल्ट एवं
- ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट,
- कैप्सूल,पेन ऑयल,
- राहुकी तेल,
- काया की तेल,
- नारी सौन्दर्य तेल,
- हेयर स्पा,
- हर्बल शैम्पू,
- हेयर आयल,
- बॉडी वाश,
- सभी तरह के हर्बल चूर्ण एवं टेबलेट आदि ।
रोगों का काम खत्म:
अमृतम दवाएँ सभी प्रकार के प्रदूषण, प्रदूषित खान-पान तथा संक्रमण (वायरस) से उत्पन्न रोगों को दूर करने में सहायक एवं 'त्रिदोषनाशक' है,
अमृतम दवाएँ शरीर में जीवनीय शक्ति
एवं प्रतिरोधक क्षमता में वेशुमार वृद्धि कर, तन को रोग रहित बनाती हैं । अमृतम फिलहाल 90 प्रकार के उत्पादों के निर्माण में रत है । इसके अलावा
अनेक असाध्य रोग नाशक
50 से अधिक ओषधियों का अनुसंधान जारी है।
सदैव स्वस्थ्य व रोगरहित रहने के लिए अपना आर्डर ऑनलाइन दे सकते हैं -
www.amrutam.co.in