पहला सुख-निरोगी काया-
जाने कैसे हो संक्रमण (वायरस) से बचाव-
स्वास्थ्य है, तो सौ हाथ हैं "स्वास्थ्य है, तो सौ हाथ हैं"
अमृतम आयुर्वेद के शास्त्रों में भी
"पहला सुख निरोगी काया !
दूजा सुख पास हो माया"!!
कहा गया ।
स्वस्थ मन-तंदरुस्त तन के लिए ही "चरक सहिंता,
सुश्रुत सहिंता, रस-तरंगनीं, चक्रदत्त, भावप्रकाश,
रस तंत्रसार, आयुर्वेद सार संग्रह, माधव निदान एवम वनोषधि चंद्रोदय
जैसे अद्भुत आयुर्वेद ग्रंथो की रचना की । भारत
के महान महर्षियों चरक, बागभट्ट, धन्वन्तरि
आदि । ये सब प्राचीन काल के आयुर्वेद वैज्ञानिक
थे । जिन्होंने अमृतम आयुर्वेद, प्राकृतिक
चिकित्सा और "सादा जीवन-उच्च विचार" पर जोर दिया ।
प्रकृति द्वारा प्रदत्त जो भी अन्न-धान,फल, सब्जी, मेवा-मुरब्बे, मसाले, दूध,जड़ी-बूटियां,
ये सब शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक हैं ।
इन सबके गुण, उपयोग,मात्रा, रासायनिक संघटन,निर्माण विधि, पथ्य-अपथ्य, प्राप्ति स्थान, उत्पत्ति का
समय, सेवन विधि, अनुपान, वात-पित्त-कफ कारक और नाशक ओषधियाँ, त्रिदोष नाशक उपाय आदि बहुत कुछ अमृतम आयुर्वेद के ग्रंथों में
विस्तार से बताया है ।
स्वस्थ रहने के लिये कब किस ऋतु (सीजन) में क्या लाभकारी है । किस समय, कितना खाना चाहिए । किस वस्तु के साथ क्या हानिकारक है, दिन में क्या फायदेमंद है तथा रात में क्या । ऐसे-ऐसे सूत्र हैं कि मूत्र (मधुमेह) रोग कभी होगा ही नही । आयुर्वेद के इन योग से व्यक्ति निरोग रहकर भोग करने के साथ ही बी.पी. और
अमृतम हर्बल ओषधियों से 'सर्दी-खांसी, जुकाम का काम-तमाम' दो-चार खुराक से हो जाता है ।
काम की जल्दी में लोग "हल्दी" को भुला बैठे, जो
सबके लिए बहुत हेल्दी, जीवाणु व सर्वरोग नाशक है । दुनिया की सर्वश्रेष्ठ एंटीबायोटिक भी है । हल्दी
प्राकृतिक ओषधि है और मसाला भी । हल्दी सहित सभी मसाले तन को ताले लगा देते है, ताकि कोई भी रोग शरीर में प्रवेश न कर सके ।
हल्दी नाड़ी-तंतुओं को अन्दर से सिकन्दर बनाती है । तन का तारतम्य बैठाकर मजबूती देती है । अमृतम आयुर्वेदिक
ओषधियाँ शरीर को जीवनीय शक्ति से भर देती है ।
रोगप्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी पावर) में बेहिसाब
वृद्धि कर रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु-कीटाणुओं का सर्वनाश कर शरीर को इतना शक्तिशाली बना देती हैं कि कभी भी अचानक कोई भी रोग तन-मन,धन का अनिष्ट न कर सके ।
अमृतम हर्बल दवाएँ- रोग मिटाये, स्वस्थ्य बनायें
इस उदघोष के साथ, पूरे जोश से बहुत ही असरकारक ओषधियाँ जिसमें विशेष रूप से "अमृतम गोल्ड माल्ट" जो कि 100 से अधिक
रोगों का नाश करने में सहायक एक ही योग है । इसमें
1- हरड़ का मुरब्बा-हर रोग हरने वाला । पेट की खराबी, के कारण रोग की नब्ज पकड़ नहीं आती,तो वह संक्रमण से घिरकर पुरानी कब्ज, कब्जा जमा ले, जब किसी भी दवा से उदर रोग ठीक नहीं हो रहा हो, तब हरड़
पेट के सर्वरोग हर लेती है । पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु यह अद्भुत है । अनेक संक्रामक रोग का योग
नष्ट कर देती है ।
2- आंवला मुरब्बा-विटामिन "सी" का प्राकृतिक स्रोत्र, ऊर्जा कारक । किसी भी तरह के वायरस को
शरीर में आने से रोकता है ।
3- सेव मुरब्बा-सेव 'देवभूमि' हिमाचल में पैदा होता है । यह रोग रूपी राक्षस तथा वायरस का विनाश
कर देता है । एंटीऑक्सिडेंट, शक्ति दाता
4- गुलकन्द- उदर रोग नाशक, पित्त हरने वाला
गर्मी में होने वाले रोगों से बचाता है । उदर के लिए ठंडा-ठंडा, कूल-कूल होता है । इसके सेवन से कोई भी लू-लपट के लपेटे में नही आता । अम्लपित्त (एसिडिटी), कब्ज, गेस विकार नाशक ।
5- अंजीर-आंतों, लिवर को क्रियाशील बनाकर, पाचन क्रिया सुधारने में उपयोगी !
ये सभी मुरब्बे गुलकन्द आदि रोग प्रतिरोधक क्षमता में तेजी से वृद्धि कर किसी भी प्रकार के वायरस को शरीर में पनपने नहीं देते ।
इसके अलावा "अमृतम गोल्ड माल्ट" 40 जड़ी-बूटियों के काढ़े जैसे-
6- गिलोय, चिरायता,वायबिडंग
ये तीनों बूटी सभी तरह के संक्रमण या वायरस में उपयोगी हैं । इनके लगातार सेवन से कभी भी ज्वर, मलेरिया, चिकनगुनिया, डेंगू फीवर, स्वाइन फ्लू या अन्य आकस्मिक संक्रामक रोग या बीमारी कुछ भी अनिष्ट नहीं कर पाती ।
7- सौंफ, जीरा, ये पित्त नाशक है । तन की गन्दी गर्मी को दूर कर बेचेनी मिटाती हैं ।
8- धनिया, भूमि आँवला एवम पुनर्नवा-
यकृत, गुर्दे का रक्षक है ।
9- शंखपुष्पी मानसिक शांति व दिमाग का संतुलन बनाये रख, चिड़चिड़ापन दूर करने में सहायक है । 10- अर्जुन छाल-हृदय रक्षक है । बी.पी. सामान्य रखे ।
11- कालीमिर्च-संक्रमण तथा कण्ठ रोग रक्षक है । 12- दालचीनी, इलायची- सडनरोधक है ।
शरीर में वायरस की फैलने से रोकती है । 13-नागकेशर-गुप्त जीवाणु नाशक, अर्श व स्त्री रोगों में उपयोगी है ।
14- सफेद मूसली, सहस्त्रवीर्या,
एवं सिद्ध मकरध्वज-
रस, मज्जा, सप्तधातु और हड्डियों को ताकत देकर
रोगों को पनपने नहीं देता । कम्पन्न, डर भय दूर होकर गुप्तरोग नाशक है।
15- अभ्रक भस्म सहस्त्र पुटी- फेफड़ों की रक्षा करने में यह चमत्कारी है ।श्वेत व लाल रक्त कणों (WBC&RBC) का समन्वय बनाने में सहायक है ।
अमृतम गोल्ड माल्ट में उपरोक्त ओषधियों
का मिश्रण है और इसके बनाने की विधि भी
प्राचीन है । इसे निर्मित करने में 25 से 30 दिन का समय लगता है । विस्तार से जानने हेतु पिछले
ब्लॉग पढ़े । इम्युनिटी पावर वृद्धि तथा सभी तरह के नए व पुराने संक्रमण या वायरस मिटाने हेतु यह अद्भुत आयुर्वेदिक ओषधि है ।
"अमृतम गोल्ड माल्ट" सदैव रोगों से बचाये रखता है । इसके के नियमित सेवन से समय-वेसमय सर्दी-खांसी, जुकाम जैसी मौसमी बीमारी, या फिर वायरस से उत्पन्न रोग जैसे-
डेंगू फीवर, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू और
अभी-अभी केरल में फैले "निपाह वायरस" जैसे
संक्रमण शरीर का कुछ नहीं बिगाड़ पाते । कभी कोई रोग होते ही नहीं ।
क्यों होते हैं रोग-
रोग प्रतिरोधक क्षमता
(Immunity power) के क्षीण या कमजोर होने से शरीर तुरन्त संक्रमण या वायरस से घिरकर हमारा अंत कर देता है । निपाह जैसे वायरस रस, मज्जा, धातुओं को क्रियाहीन कर देते हैं ।
अमृतम गोल्ड माल्ट के अलावा विभिन्न रोगों
के लिये 40-45 तरह के माल्ट (अवलेह), हर्बल सिरप, चूर्ण, कैप्सूल, टेबलेट, ऑर्थोकी पेन ऑयल, "काया की मसाज ऑयल, नारी सौन्दर्य माल्ट व तेल का निर्माण किया है । अमृतम की यह सभी दवा, रोगों को दबाती नहीं हैं, अपितु जड़-मूल से
व्याधियों का नाश कर देती हैं ।अमृतम आयुर्वेद के द्वारा तन-मन, जीवन को प्रसन्न रखने के साथ-साथ लोक-,परलोक सुधारने के अनेक अद्भुत ज्ञान एवम जानकारी जनता जान सकती है ।
स्वस्थ्य रहें, मस्त रहें-
जान (जीवन) बचाने के लिए आयुर्वेद का ज्ञान, योग-ध्यान, समय पर सही खानपान, बड़ों का मान-सम्मान कैसे हो, यह सब दुकान-मकान, मीठे पकवान तथा धन-धान्य के पहले जरूरी है ।
कैसे बचा जाए रोगों से- वर्तमान में प्रदूषित वातावरण, दूषित भोजन प्रकृति के विपरीत रहन-सहन और प्रदूषण ने
सबको सहस्त्र व्याधियों-बीमारियों में उलझा
रखा है ।
इनसे बचने हेतु आदिकालीन चिकित्सा पध्दति अमृतम आयुर्वेद और "अमृतम गोल्ड माल्ट" को अपनाना आवश्यक है ।
जाने निपाह वायरस के बारे में-
इसको लेकर केरल सहित पूरे
भारत में हड़कंप मचा हुआ है । चमगादड़ के
जरिये केरल के कालीकट में निपाह वायरस
(एनआइवी) से संक्रमित होकर 11 लोग काल के गाल में समा गए ।
कहाँ से निकल "निपाह" - सबसे पहले इसकी पहचान मलेशिया के "कामपुङ्ग सूंगाई नापाह"
में हुई थी, तब वहां सूअरों के कारण फेला था ।
सन 2000 में पश्चिमी बंगाल के सिलीगुड़ी में
इस वायरस का संक्रमण हुआ , तो 66 में से 45 लोगों की मृत्यु हुई थी ।
संक्रमण के सहारे फैलता है-"निपाह वायरस"
फ्रूट बैट या सुअर जैसे जानवर इसके वाहक हैं ।
संक्रमित पशुओं के सीधे संपर्क में आने या इनके
सम्पर्क में आई वस्तुओं के सेवन से
'निपाह वायरस' का संक्रमण होता है ।
निपाह वायरस से संक्रमित इंसान भी संक्रमण
को आगे बढ़ाता है ।
निपाह वायरस होने के लक्षण-
1- श्वांस लेने में तकलीफ ।
2- तेज़ बुखार आना, कम्पन्न होना ।
3- छाती,तलबों, आंखों में जलन ।
4- भयंकर सिरदर्द होना ।
5-चक्कर आना, घबराहट ।
6- बेहोशी इस बीमारी के लक्षण हैं ।
चिकित्सकों का कहना है कि निपाह वायरस
बहुत तेज़ी से एक दूसरे के द्वारा फैलकर 4 या 5
घण्टे में असर दिखने लगता है ।
मरीज को तक इलाज न मिले,तो वह 48 घंटे में
कोमा में जा सकता है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि इस वायरस
का अभी तक वेक्सीन विकसित नहीं हुआ है ।
ऐसे फेल सकता है निपाह-
1-चमगादड़ द्वारा वृक्ष के फल खाते समय वह फल
यदि नीचे गिर जाए और सुअर खा ले, तो सुअर
के सम्पर्क आने से ये निपाह वायरस मनुष्यों में आता है ।
2- चमगादड़ का झूठ फल खाने पर इंसानों में
भी आ सकता है- संक्रमण ।
3- निपाह संक्रमित चमगादड़ यदि घोड़ों के
संपर्क में आ जाये ।
4- संक्रमित घोड़े के सम्पर्क से वायरस लोगों में आता है ।
ये सावधानी बरतें-
1- कुतरे हुआ फल न खाएं ।
2- चमगादड़ व सुअरों से बचाव रखें ।
3- जो फल कीड़े या पक्षी द्वारा कुतरे हुए हों ,
ऐसे फलों का सेवन बिल्कुल न करें ।
4- जिस वृक्ष पर चमगादड़ का वास हो,
उसके नीचे न बैठें ।
5- बुखार या सिरदर्द होने पर तत्काल चिकित्सक से सलाह लेवें ।
क्या है निपाह- विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ)
के अनुसार निपाह वायरस चमगादड़ से फलों में
तथा फलों से मनुष्यों में और जानवरों पर आक्रमण
करता है । सन 1998 में मलेशिया के काँपुंग
सुंगई निपाह में यह वायरस पहली बार सामने आया । इसलिए ही इसका नाम 'निपाह वायरस'
नाम पड़ा ।
अमृतम आयुर्वेद के रहस्य-
हर्बल चिकित्सा- पहला उपाय
जीरा, सौंफ, अजवाइन, हल्दी,
धनिया, कालीमिर्च, लोंग, कालीमिर्च, दालचीनी, इलायची, कालानमक, त्रिकटु, आँवला, हरड़
सभी 1-1 ग्राम नीम, बेल, हरसिंगार तुलसी सभी के
2-2 पत्ते, छुआरा 4 नग, द्राक्षा 8 नग, किसमिस 12 नग इन सबको 500 ग्राम पानी में 12 या 18 घंटे
गलाकर इतना उबले कि 200 मिलीलीटर
शेष बचे । 50 मिलीलीटर काढ़े को सुबह खाली पेट समभाग पानी मे मिलाकर पिएं । पूरे दिन में पूरा काढ़ा 4 बार में ऐसे ही पीना है । यह प्रयोग एक माह तक निरन्तर करे, तो शरीर वायरस रहित होकर कभी संक्रमित नही होता ।
दूसरा सुरक्षित हर्बल उपाय-
अमृतम गोल्ड माल्ट
1 से 2 चम्मच दिन में 3 या 4 बार गुनगुने दूध से
2 माह तक निरन्तर लेवें । प्रत्येक शुक्रवार व
शनिवार को क्या की तेल की पूरे शरीर में सिर से लेकर तलबों तक 20 मिनिट मालिश कर आधा-पौन घंटे पश्चात स्नान करें । इससे हड्डियों में
ताकत, चेहरे पर रौनक आएगी । मालिश से तन बलशाली होता है, जो बुढ़ापे में वात-विकारों से
रक्षा करेगा ।
शरीर में बहुत ज्यादा दर्द हो, तो "ऑर्थोकी गोल्ड" कैप्सूल रोज एक लेवें ।
हमारा प्राचीन अमृतम भारत-
*वर्तमान युग में प्रदूषण,रासायनिक
खाद्य-पदार्थों, केमिकल युक्त खानपान से भरपूर है । *प्राचीन व प्राकृतिक नियमों-विधान को हम भूलते जा रहे हैं । इस शरीर रूपी रथ को कसने हेतु लोग पहले कसरत किया करते थे । तब यह तन तन हुआ
और छाती चौड़ी हुआ करती थी । मन प्रसन्न व मुख पर तेज दिखता था ।
जो सो रहे हैं वही रुओ रहे हैं ।
प्रकृति का नियम है की हम जो भी प्रकृति को दे रहे हैं वही हम पा रहे हैं *सुबह जल्दी उठकर खाली पेट आधा से 1 लीटर पानी पीने की परम्परा थी ।
*सुबह घूमने-टहलने का नियम था ।
पहले लोग तन के लिये दौड़ते थे,
अब धन के लिये दौड़ रहे हैं ।
परिवार के प्रत्येक सदस्य को पूरे जीवन में
5 वृक्ष लगाने की जिम्मेदारी थी ।
* आने वाले कल के लिये पुराने बुजुर्ग जल की
* कीमत समझते थे ।