“सेव मुरब्बा” युक्त अमृतम गोल्ड माल्ट

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“सेव मुरब्बा” युक्त अमृतम गोल्ड माल्ट
"सेव मुरब्बा" के गुण सहित सम्पूर्ण जानकारी
 
सेव एक प्राकृतिक फल है इसको
 संस्कृत में सिम्बितिका, सिंचितिका
 
हिमाचल प्रदेश में यह सेव कहलाता है ।
 
गुजराती में सफ़रचंद  ।
मराठी में सफरजन  ।
 
कश्मीर में चूंठ
बंगला में सेव
सिंधी भाषा में सूफ
अरबी में तुफ्फाह
अंग्रेजी में एप्पल
लैटिन में मैलास प्यूमिला
 
उत्पत्ति स्थान:- कश्मीर, कुल्लू, मनाली,
 चोपतिया, नीलगिरी ।
 
 उपयोगी अंग (घटक):-  फल
 रस-मधुर (मीठा), कषाय ( हल्का कड़वा)
 वात-पित्त दोषनाशक ।
 सेव फल मुख्यतः  तीन प्रकार का होता है -
 शुद्ध खट्टा,
 खट्टा-मीठा और
 बहुत मीठा ।
 
 सेव से बनने वाले उत्पाद:-
 सेव मुरब्बा, सेव रस,
 सेव अचार, वाइन,  ब्रांडी, एप्पल बटर
 आदि निर्मित होते हैं आयुर्वेद की भाषा में इसे कल्प कहा जाता है ।
 
 रासायनिक संघटन:-
सेव में "मैलिक एसिड"
 तथा अन्य एसिड भी होते हैं ।
 सेव में खनिज क्षार पर्याप्त पाया जाता है ।  इसमें लिसिथिन समाहित है,
जो मस्तिष्क को शक्ति देता है ।
 कच्चे (अपक्व) सेव फलों में "कैल्शियम
 ऑक्जेलेट"होता है,
जो पके सेव में नहीं होता ।
 जिन बच्चों को दूध नहीं पचता, उन्हें सेव रस बहुत ही ज्यादा लाभकारी है ।
 
 सेव का मुरब्बा हृदय के लिए बल्य है 
 
 हृदय या छाती का भारीपन एवम मानसिक अशांति इसके सेवन से तत्काल दूर होती है ।
 सेव  हृदय हितकारी होने के कारण ही इसे
   में सेव का मुरब्बा मिलाया गया है ।
 सेव में "फ्लोरेटिन" नामक एक एंटीबैक्टीरियल
 पदार्थ भी पाया जाता है, जो "ग्राम पॉजिटिव"
 एवम "ग्रामनिगेटिव" दोनों प्रकार के जीवाणुओं को नष्ट कर देता है ।
 
 "अमृतम गोल्ड माल्ट" सेव मुरब्बा से निर्मित
 यह दुनिया का पहला माल्ट है ।
आयुर्वेद ग्रंथों में इसे अवलेह कहा जाता है । माल्ट  बनाने के लिए आँवला, सेव, हरड़, आदि फलों का मुरब्बा बनाकर, गुलकन्द
मिलाकर इन मुरब्बों की अच्छी तरह
पिसाई  करके फिर पीसे हुये
 मुरब्बों की बहुत ही मंदी आंच (अग्नि)
में शुद्ध गाय का घी मिलाकर
 सिकाई की जाती है ।
सिकाई की इस प्रक्रिया में
 करीब 12 से 15 दिन लग जाते हैं ।  पुनः इस पके हुए मुरब्बों में करीब 25 से 30 जड़ी-बूटियों के काढ़े को मिलाकर फिर सिकाई की जाती है । फिर ठंडा होने 10 से 12 तरह
के पौष्टिक मसाले तथा भस्म-रसादि
का मिश्रण कर अच्छी तरह छानकर
 शीशियों में पैक होता है ।
माल्ट किसी भी ऋतु में कभी भी सेवन किया जा सकता है । यह शरीर के लिये बहुत ही शक्ति प्रदाता है ।
दुबले-,पतले व कमजोर लोगों, स्त्री,पुरुषों के लिए अति उत्तम स्वास्थ्य वर्धक टॉनिक है ।
अनेकों दवाओं के खाने के बाद जिनकी हेल्थ
नहीं बन पा रही हो, उनके लिए
एक पूर्ण चिकित्सा है ।
इसके नियमित सालों-साल सेवन से
कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता ।
यह सर्वदोषनाशक पूरीतरह हानिरहित है । दुष्प्रभाव मुक्त है ।
Amrutam Gold Malt
 
 माल्ट और च्यवनप्राश में अन्तर:-
 
 माल्ट, (अवलेह) - च्यवनप्राश से पूर्णतः
 भिन्न होता है । च्यवनप्राश को बनाने का तरीका भी अलग है । च्यवनप्राश में केवल बिना पका कच्चा आवला से निर्मित होता है ।
इसमें जरूरत से ज्यादा विटामिन 'सी'
 होता है । इसके सर्वाधिक होने से कुछ
हानि भी हो सकती है ।
ठण्ड के दिनों में इसे कम मात्रा
 में खाने से शरीर को गर्माहट मिलती है ।
 अन्य मौसम या सीजन में च्यवनप्राश खाने से कुछ विकार जैसे- रक्तचाप बढ़ना, पेशाब में रुकावट या जलन
 हो सकती है ।
त्वचारोग परेशान कर सकते हैं ।
 हर्बल पुस्तकों में बहुत ही कड़ाके की सर्दी ठण्ड में ही च्यवनप्राश के
सेवन का निर्देश हैं ।
 
 च्यवनप्राश में केवल कच्चा आँवला
 पीसकर, थोड़ी-बहुत ओषधियों का मिश्रण किया जाता है ।
 इसमें  मिलने वाली बहुत सी जड़ी-बूटियां
अब उपलब्ध नही हैं । लुप्त हो चुकीं हैं।
 
 च्यवनप्राश के आविष्कारक
 
 आयुर्वेद के महान वैज्ञानिक, अनुसंधान कर्ता "महर्षि च्यवन" ने च्यवनप्राश का निर्माण
 केवल अधेड़ उम्र के लोगों
(केवल पुरुषों के लिये)
 को बहुत ही ज्यादा सर्दी, ठण्डक से बचाने, एक उम्र के बाद आई  शिथिलता,
कमजोरी दूर कर, स्वस्थ रहने हेतु
च्यवनप्राश का अविष्कार  किया था ।
 इसमें डाली गई भस्में गर्मी उत्पन्न करती है । इसलिये च्यवनप्राश केवल सर्दी ठण्ड के
 दिनों में बहुत कम मात्रा में लेना चाहिये  ।
 
 ग्रंथों के अनुसार यह कभी स्वादिष्ट नही बन सकता । यदि आयुर्वेद के शास्त्रों के अनुसार
 च्यवनप्राश का निर्माण यदि घर पर करेंगे
, तो इतना कसेला व बेस्वाद होता है
कि इसकी हीक खुशबू से मन  खराब हो सकता है ।
 च्यवनप्राश कोई स्वाददार या
स्वादिष्ट ओषधि नहींहै ।
कम उम्र में इसके सेवन से तन में अनेक
 विकार पैदा होने की संभावना उल्लेखित है  । जिसके दुष्परिणाम
 जवानी या बुढ़ापे में देखने मिलते हैं ।
 
 आयुर्वेद ग्रंथ "रसतंत्र सार",
 
"भेषजयरत्नावली",
 
 आयुर्वेद सार संग्रह,
आदि में इसके निर्माण की पूरी प्रक्रिया विस्तार से बताई गई है । इनके अनुसार बनाकर खा-पाना कुछ अटपटा लग सकता है ।
 
 च्यवनप्राश का  सेवन  केवल अधिक
अवस्था वालों के लिए उपयोगी है ।
 बच्चों, युवाओं तथा महिलाओं को
इसके सेवन से बचना चाहिये,
जो भविष्य और स्वास्थ्य  के लिए
लाभकारी हो सकता है ।
 अभी सेव के बारे में बहुत कुछ बाकी है-
 
 सेव फल के लिये "भावप्रकाश निघण्टु"
 में लिखा है कि-
 
 ।।रसे पाके च मधुरं शिशिरम रुचिशुक्रकृत ।।
 महऋषि चरक के अनुसार-
 
।। कषायम मधुरं शीतम 
 ग्राहि सिंचितिकाफलम ।।
 
 सुश्रुत, वागभट्ट, धन्वन्तरि,
 श्री बापालाल ग. वैध
 आदि ने सेव के विषय में बहुत विस्तार से लिखा ।
 बताया कि "सेव"- "देव" है । रोगों के सब भेदों
 को भेदकर तने से तन को तंदरुस्त बनाने की
 क्षमता रखता है ।
 सुबह खाली पेट अमृतम गोल्ड माल्ट
1 या 2 चम्मच गुनगुने दूध अथवा
जल से, या सेव फल या सेव मुरब्बा "अब्बा" (बूढ़े) को भी जवान बना देता है ।
ऐसा आयुर्वेद का मत है ।
 
 कई विकार मिटाकर
 तन का आकार ठीककर और
 अनेकों अनावयशक मानसिक
 विचार- व्यसनों से मुक्त करता है ।
 
 सेव फलसेव मुरब्बा के गुण:-
 वात और पित्त का पूरी तरह नाशकर
 शरीर को हष्ट-पुष्ट बंनाने वाला,
  खाने के प्रति रुचि बढ़ाने वाला ।
 वीर्य को गाढ़ा कर शुक्र वर्धक  ।
 
 अर्शरोग (बबासीर) या अन्य किसी
 रोग के कारण शरीर के किसी भी
अवयव से रक्तस्त्राव होता हो,
उसमें सेव फल, सेव मुरब्बा, या अमृतम गोल्ड माल्ट  का सेवन अत्यंत लाभदायक होता है  ।
 
रोगों का काम ख़त्म
 
 रक्तविकारों, खून की खराबी, हृदय की अशक्ति, कमजोरी, धड़कन में, श्वांस, अग्निमांद्य, (भूख न लगना)   अजीर्ण,
अपचन, और अतिसार में सेव
 बहुत हितावह, हितकारी है  ।
 
अंग्रेजी भाषा की एक कहावत के अनुसार:-
 
 "An Apple a day,
  keeps diseases away"
 
  अर्थात- जो लोग प्रतिदिन सुबह खाली पेट एक सेव फल या सेव का मुरब्बा अथवा अमृतम गोल्ड माल्ट 1 या 2 चम्मच दूध से नियमित सेवन करें, तो रोग उसके पास फटकेंगे या कभी आएंगे ही नहीं  ।
वह सदा स्वस्थ्य व प्रसन्न रहेगा ही ।
 
  यूरोपवासी सुबह नाश्ते में केवल सेव का उपयोग करते हैं ।
  सेव फल का सेवन कभी भी छीलकर नहीं करना चाहिये ।
सेव फल के छिलके में बहुत हितकारक
  क्षार होते हैं, जो त्वचारोग नाशक होते हैं ।
  सेव फल से 10 गुना सेव मुरब्बा
 तथा सेव मुरब्बे से 20 गुना
अमृतम गोल्ड माल्ट हितकारी है ।
  इसे सर्दी-गर्मी, बरसात किसी भी मौसम में
  कभी भी 12 महीने नियमित लिया
जा सकता है ।
 
 Amrutam Gold Malt शरीर को अपार शक्तिदायक
 एवम सर्वरोग नाशक
करीब जड़ी-बूटियों,
  हर्ब्स, मुरब्बों, गुलकन्द, रस-रसायन, मसालों
  को मिलाकर निर्मित किया है  ।
 इसके नियमित सेवन से
जीवनीय शक्ति की वृद्धि होती है ।
 
  यह एक ऐसा आरोग्यदाता योग है, 
जो तन में रोग नहीं पनपने देता ।
 समय-असमय होने वाले विकारों-व्याधियों
  से शरीर की रक्षा करता है ।
रक्तचाप सामान्य  रहता है ।
नजर कमजोर नहीं होती ।
 
बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, स्त्री-पुरुष
दोनों को अति हितकारी है ।
 
  बार-बार होने वाले रोग,
पेट की खराबी, कब्ज,
  उदर के रोगों से बचाव करने में सहायक है ।
  चिकनगुनिया
ज्वर, मलेरिया जैसे रोगों से शरीर
 की रक्षा करता है ।
  किसी भी साध्य-असाध्य रोग के कारण
 आई कमजोरी, खून की कमी, 
भूख न लगना, बेचेनी,
  चक्कर आना, मानसिक अशांति
आदि विकार अमृतम गोल्ड माल्ट के लगातार सेवन से दूर हो जाते हैं ।
  आयुर्वेद की भाषा में कहें, तो यह एक ऐसा
  योग है, जो सेकड़ो रोग का खात्मा करने में
  सहायक है ।
  आगे के लेख ब्लॉग में
के बारे में तथा फिर इसी तरह
अमृतम गोल्ड माल्ट
 में डाले गये प्रत्येक घटक की सम्पूर्ण जानकारी दी जावेगी ।
 
  रोगों का काम खत्म करने तथा
  अद्भुत और दुर्लभ जानकारी जानने हेतु
  लाइक, शेयर, कॉमेंट्स करें -
 
            ।।अमृतम।।
      हर पल आपके साथ हैं हम

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