Ayurvedic Remedy for Inflammatory Bowel Syndrome

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Ayurvedic Remedy for Inflammatory Bowel Syndrome
जिओ माल्ट है उदर का शर्तिया इलाज
गृहिणी : अंग्रेजी का संक्षिप्त नाम  IBS। अर्थात  - Inflammatory Bowel Syndrome ( इंफ्लेमेटरी बोवेल सिंड्रोम)  यह एक उदर रोग है ।
इस रोग का कोई निश्चित कारण नही है  ।
क्या है गृहिणी रोग-
पाचाशय में  विभिन्न प्रकार की किण्वक(enzymes) एंजाइम का समूह
मौजूद है, जो खाए हुए अन्न का पाचन
 करता  है  । इसी को जठराग्नि भी कहा जाता है ।यह उदर की मुख्य अग्नि है ।  इस पाचाशय का कार्य एक तरफ से भोजन को ग्रहण करना है और दूसरी ओर से ना पचने वाले तत्वों का निष्कासन करना है,  लेकिन यह पाचन तंत्र शक्ति विहीन हो जाए, तो यह बिना पचे खाने
  को ही बाहर निकालने लग जाती है  ।
  इस कारण उदर अनेक रोगों से
घिरकर  पूरे पाचन तन्त्र में  समस्याएँ एवम्  विकार पैदा कर देता है ।जिनमें से एक आई बी एस  (IBS) है  !
   इस पेट रोग से आँतों की गति क्रियाहीन
होकर असामान्य सी हो जाती है  ।
इस कारण खाना न पचना,पेटदर्द, कब्जियत,
बार-बार कब्ज (constipation)होना ,
मुँह सूखना, गर्मी, बहुत प्यास लगना,
झुनझुनाहट, वायु (गेस) का न निकलना,
खाना खाते ही पेट फूलना, काम (sex) के प्रति अरुचि होना, महिलाओं की माहवारी बिगड़ना, स्त्रीरोग, प्रदररोग, सफेद पानी की शिकायत शौच (लेट्रिन) में बहुत समय लगना,   दस्त  साफ न होना, गर्मी, बेचेनी, उल्टी से मन होना, पेचिश, अथवा अंतडियों में तनाव उत्पन्न हो जाता है   ।
 गृहिणी रोग (IBS) यह रोग किसी
 भी उम्र में  बच्चों, स्त्री-पुरुष एवम
 बुजुर्गों को हो सकता है  ।
 
गृहिणी रोग एवं उनके लक्षण :-
इस रोग में पाचक तंत्र में क्रम से बारी-बारी से रोगी को कभी कब्जियत और कभी पेचिश हो जाती है ।
एक बार मे पेट साफ नहीं होता ।
 प्रेशर नहीं आता ।
मल में चिकनाहट आती है ।लगातार
 भूख न लगने से भोजन के प्रति इच्छा
  खत्म हो जाती है ।
खून का बनना कम हो जाता है ।
खून (हीमोग्लोबिन) की कमी, के
शरीर का सफेद
या पीला होना ।
गृहिणी रोग के कारण -
यकृत रोग, पाण्डु रोग
उत्पन्न होकर किडनी व आंतों को
क्षति होने लगती है ।
इस रोग में रोगी को प्यास अधिक लगती है, मुँह स्वादहीन, रसहीन होकर, कुछ भी खाने का मन नहीं करता । सब स्वादरहित लगता है  ।
आँखों के सामने अंधेरा छा जाना ।
पैरों में सूजन, जिससे अंतडियों के उपरी अथवा निचले भाग में विभिन्न रूप से वायु गेस का बार-बार बनना आदि विकार होते रहते हैं ।
सिरदर्द, कमरदर्द, हाथ-पैर, गर्दन,जोड़ों अथवा छाती में दर्द, आलस्य, किसी भी कार्यादि में ध्यान नहीं लगना इत्यादि गृहिणी रोग के लक्षण  अमृतम आयुर्वेद  तथा वर्तमान चिकित्सा पध्दति में बताए गये हैं  ।
 
 कब्जियत-प्रधान वाला रोगी -वातज  गृहिणी
 इनको जीवनभर कब्ज की परेशानी बनी रहने से तन भारी रहता है । हमेशा शरीर के जोड़ों में तीब्र वेदना होती रहती है ।
 ढंग से सेक्स नहीं कर पाने से स्वयं को कमजोर व अक्षम मानने लगते हैं ।
 यदि महिला गृहिणी वातज रोग
 से पीड़ित हो, तो प्रदर रोग से भी खतरनाक सोम रोग स्त्री को घेर लेते हैं । प्रदररोग तथा सोमरोग के नारे में विस्तार
 से जानने के लिये पिछले लेख ब्लॉग पढ़े ।
 
 
पित्तज गृहिणी प्रधान वाला -पेचिश से पीड़ित होता है । इन्हें कभी दस्त बंधकर
 नहीं आता । एक बार में पखाना साफ नहीं होता । इस कारण कम उम्र में ही इनकी कामवासना कम या खत्म हो जाती है ।
उत्तेजना नहीं रहती ।
 ऊर्जाहीन शिथिल हो जाते हैं  ।
 याददाश्त कमजोर हो जाती है ।
 इन्हें जीवन भर कोई न कोई विकार सताते हैं ।
 पित्तज गृहिणी प्रधान वाली स्त्रियां सदैव शरीर
 के प्रति शंका से घिरी रहती है ।
 इनका मासिक धर्म कभी भी समय पर खुलकर नहीं आता है और कभी तो इतना आता है कि 8-दिन बन्द नहीं होता ।
  खून की कमी होकर
 बहुत कमजोरी महसूस करने लगती हैं ।
 अपनी सुन्दरता व खूबसूरती के प्रति सजग
 रहती हैं । तत्काल लाभ के चक्कर में
 बार-बार चिकित्सक (डॉक्टर) तथा चिकित्सा
 पध्दति बदलती रहती हैं, इस कारण ये रोगों से
 घिरती चली जाती हैं । इन्हें नियमित
का सेवन करना चाहिये । यह अनेक स्त्रीरोग नाशक,  सुन्दरता दायक,  बेहतरीन सप्लीमेंट के रूप में यह आवश्यक प्रोटीन व
पोषक तत्वों की पूर्ति करने में
 लाजवाब आयुर्वेदिक हर्बल
  ओषधि है  ।
जीवनीय शक्ति वर्धक एवम
  रोग प्रतिरोधक क्षमता वृद्धिकारक है ।
  अमृतम के पुराने ब्लॉग में
  के विषय में  सम्पूर्ण जानकारी दी गई है ।
  त्वचा को चमकदार करने, रंग न
निखारने, सुन्दरता वृध्दि के लिये
की अभ्यंग (मालिश)  Massage करें ।
 
 कफज़ गृहिणी प्रधान वाला
 बहुत मेहनती होते हैं लेकिन जब रोग से पीड़ित होते हैं, तो बहुत आलसी हो जाते है । दस्त, दर्दी, खांसी, जुकाम इन्हें अक्सर परेशान करते है ।
 काम से बहुत जल्दी पीड़ित हो जाते हैं । सेक्स के कारण कभी- कभी। खूंखार होकर मान-मर्यादा की परवाह नहीं करते । इन पर जवानी जल्दी आती है । शरीर के अलावा अन्य चिंताओं के कारण ये बीमार होते हैं ।
 स्त्रियों को महीना खुलकर नहीं आता ।
 जल्दी मोटापा आ जाता है ।
 
 इसके अलावा आयुर्वेदीय ग्रंथ-शास्त्रों  में दो अन्य प्रकार के गृहिणी रोगों का भी उल्लेख है  -
 
समग्रह ग्रहनीघटियांत्र गृहिणी
  ( Tympanites- predominant)
  वातज  गृहिणी  इस रोग में त्वचा की रुक्षता, गले और मुख का सूखना इस प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं. रोगी को ज़्यादातर कब्जियत रहती है या फिर क़ब्ज़ के बाद दस्त, इस प्रकार का क्रम चलता रहता है. गॅस, बार-बार खट्टी डकार  आना और बहुत ज्यादा  प्यास  लगना, हल्की ठंड महसूस होना, कमर में या कटी प्रदेश में दर्द, वज़न में गिरावट या अचानक मोटापा बढ़ना,  अनिद्रा तथा घबराहट जैसे लक्षण इस रोग में पाए जाते हैं  ।
पित्तज गृहिणी  रोग में अत्याधिक प्यास लगना, सीने में जलन, अधिक गर्मी लगना, चिड़चिड़ापन, बात-बात पर क्रोधित हो जाना, शरीर के अंगों में सूजन, बुखार आना, अत्यधिक पसीना आना, मल में अत्याधिक दुर्गंध का होना, डकार , वमन, अपच, मुख और कंठ प्रदेश में अत्यधिक लार का बनना, दुर्गंधयुक्त डकार, पेट पूरी तरह साफ न हो पाना, छाती व पेट में भारीपन  ।
 
घटियांत्र गृहिणी
 (Tympanites -predominant IBS) :
  इस प्रकार के रोग में प्रधान रूप से पेट में घरघराहट भरी आवाज़ के साथ-साथ आँतों का तेज़ी से गतिमान हो जाना है  ।
  गृहिणी रोग
बच्चों में साध्य है, मध्यम आयु वालों के लिए आंशिक रूप से असाध्य एवं अंतिम अवस्था में पूर्णत्यः असाध्य  माना जाता है ।
 
क्या करें-
  घबराएं नहीं ।
 अमृतम आयुर्वेद में इन रोगों का
 शर्तिया इलाज है ।
हमारा उदर महासागर है ।
  उदर या पेट के रोगों के रहस्यों को केवल
  आयुर्वेद ही जान पाया है । ऋषि चरक,
  वागभट्ट, सुश्रुत, धन्वन्तरि तथा वैद्यराज
  महादेव इनके रहस्यों को समझकर आयुर्वेद
  ग्रंथों जैसे- आयुर्वेद का प्राचीन इतिहास,
 
  आयुर्वेद के रहस्य, उदर की स्थायी चिकित्सा,
  वागभट्ट की टीका, चरकसंहिता, रस तरंगनीं,,
  भेषजयरत्नावली, आयुर्वेद सार संग्रह आदि
  दुर्लभ ग्रंथों में उदर विकारों से बचने के उपाय,
  लक्षण, चिकित्सा के बारे में संस्कृत में कई
  श्लोक व टीका लिखी हैं । जिनके अनुसार
  चिकित्सा (Tritment) उपचार करने
 से  सभी उदर व्याधियों  को जड़ से दूर
किया जा सकता है ।
 आयुर्वेद की इन्हीं अद्भुत दुर्लभ
  ग्रंथो का अध्ययन, अनुसंधान कर
अमृतम दवाओं का निर्माण किया ।
   गृहिणी रोग का सर्वश्रेष्ठ इलाज है-
को कई असरकारक
  हर्बल्स घटक द्रव्यों जैसे- गुलकन्द,
 हरड़ मुरब्बा, सेव मुरब्बा, करोंदा मुरब्बा, अमलताश, शुण्ठी, अनारदाना, शंख भस्म, आदि करीब 40 से अधिक असरकारक प्राकृतिक जड़ी-बूटियों,
  रस ओषधियों से तैयार किया है ।
  जिओ ऑल्ट --  के निर्माण की प्रक्रिया अति
  श्रम कारक, जटिल और खर्चीली होने के
साथ-साथ इसको आयुर्वेद के अनुसार बनाने में
करीब 30 से 35 दिन लग जाते हैं ।
 
 
सर्वप्रथम मुरब्बों का निर्माण कर उसे पीसकर
मंदी आँच (अग्नि) में शुद्ध गाय के घी में 12 या
15 तक पकाकर लगभग 30 तरह की जड़ी-
बूटियों को जौ कूटकर 16 गुने पानी में इतना पकाना कि पानी (काढ़ा) एक-चौथाई रह जाये,
फिर इस काढ़े को पके मुरब्बे में मिलाकर
8 या 10 दिन धीमी आग में तब, तक पकाते
रहना जब, तक माल्ट (गाढ़ा) न हो जाये ।
ततपश्चात रस ओषधियों एवम विभिन्न
मसालों का मिश्रण कर ठंडा होने के बाद
छानकर पैक किया जाता है ।
सनद रहे कि अमृतम द्वारा निर्मित  सभी माल्ट
किसी भी तरह के प्रिजर्वेटिव तत्वों से रहित
होते हैं । जिनका कोई भी हानिकारक
दुष्प्रभाव नहीं हैं ।
जिओ माल्ट उदर के असंख्य ज्ञात-अज्ञात
रोगों का नाश करने में पूरी तरह सहायक है ।
इसे बिना किसी सलाह अथवा भय-भ्रम के
सभी उम्र के बच्चे, बड़े, बूढ़े, अधेड़ स्त्री- पुरुष
कभी भी , जीवन भर सेवन कर सकते हैं ।
मात्रा- 1 या 2 चम्मच 2 या 3 बार
गुनगुने दूध या जल से बेफिक्र होकर
लिया जा सकता है ।
पेकिंग- 400 ग्राम जार पैक में ।
रोग-विकार तथा अमृतम आयुर्वेद के
 बारे में  और भी सूक्ष्म या विस्तृत ज्ञान
व जानकारी चाहिए
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