एक दिमाग वाला दिल,
मुझे भी दे दे ए खुदा…
ये दिल वाला दिल,
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डव्लू एच ओ) ने दुनिया को चेताया है कि युवा पीढ़ी यानि नई जनरेशन अब डिप्रेशन के डर से डरी हुई है।
ज़िन्दगी की थकान में गुम हो गए,
वो लफ्ज़ जिसे सकुन कहते है।
वैज्ञानिकों की खोज-
"डिप्रेशन एवं अन्य सामान्य
मानसिक विकार-विश्व स्वास्थ्य आंकलन"
शीर्षक वाली जांच (रिपोर्ट) से ज्ञात हुआ है कि
पूरी दुनिया में भारत अवसाद (डिप्रेशन) अर्थात मानसिक रोग से पूरी तरह प्रभावित देशों में से एक है। हिंदुस्तान में डिप्रेशन (अवसाद) तीव्र गति से बढ़ रहा है।
5 करोड़ से भी अधिक भारतीय भयंकर मानसिक विकार तनाव,अशान्ति और भय-भ्रम,चिंता से पीड़ित हैं।
एक ऐसी देशी दवा है जो दिमाग के
बन्द दरवाजे खोलकर डिप्रेशन,तनाव को तबाह
कर सकता है।
बहुत लंबे समय तक थकावट,सुस्ती,आलस्य,
चिन्ता, घबराहट, बैचेनी, तनाव है,तो मनोविज्ञान एवं आयुर्विज्ञान का मानना है कि कहीं न कहीं आप अवसाद की डगर पर जाने को तैयार बैठे हैं। आपका मन विचलित हो रहा है। जीने की इच्छा शक्ति क्षीण होती जा रही है।
अवसाद या डिप्रेशन का तात्पर्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में मनोभावों (मन के भाव)संबंधी दुःख-तकलीफों से माना जाता है। इसे मानसिक विकार/मस्तिष्क रोग या सिंड्रोम की संज्ञा दी जाती है। अमृतम आयुर्वेद एवं आयुर्विज्ञान में कोई भी व्यक्ति अवसाद की अवस्था में स्वयं कोकमजोर,हीन, लाचार और निराश महसूस करता है।
अवसाद या डिप्रेशन से व्यथित व्यक्ति-विशेष के लिए धन-संपदा,ध्यान-कर्म,सुख, शांति, सफलता, खुशी यहाँ तक कि रिलेटिव या रिश्तेदार,मित्र-यार,परिवार या अन्य कोई संबंध( रिलेशन) तक बेमानी हो जाते हैं। उसे सर्वत्र निराशा,चिन्ता, फ़िक्र, तनाव, अशांति, अरुचि प्रतीत होती है।
यह एक मनोदशा विकार है। इसे मानसिक रोग भी कहा जाता है।जब किसी व्यक्ति में बहुत लम्बे सेमय तक चिन्ता की स्थिति बनी रहती है तो वह ‘‘अवसाद’’ या विषाद का रूप ले लती है। अवसाद या डिप्रेशन की स्थिति में व्यक्ति का मन बहुत ही उदास रहता है तथा उसमें मुख्य रूप से निष्क्रियता अकेले रहने एवं आत्महत्या के प्रयास करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। ऐसा अवसादग्रस्त व्यक्ति स्वयं को दीन-हीन, निर्बल मानकर जिन्दगी को बेकार समझने लगता है।
■ लालन-,पालन की कमी भी जिम्मेदार ■
अवसाद या डिप्रेशन के लिए-
"इसे पढ़ना बहुत जरूरी है"
डिप्रेशन (अवसाद) के भौतिक औऱ बाहरी कारण भी अनेक हो सकते हैं। इनमें कुपोषण, आनुवांशिकता, क्लेश कारक परिस्थितियों में जीवन यापन करना,हार्मोन व विटामिन की कमी,मौसम,
सीजन का भी एक डिप्रेशन होता है जैसे बहुत से लोग ज्यादा गर्मी या सर्दी नहीं झेल पाते।अकेलापन, फालतू की चिंताएं, घबराहट,तनाव, बार-बार की बीमारी, नशा, अपने दिल की बात किसी को बता नहीं पाना,किसी काम में मन न लगना, ज्यादा क्रोधित रहना,आत्मविश्वास का टूट जाना, हीनभावना रहना,अप्रिय स्थितियों में लंबे समय तक रहना, पीठ में तकलीफ,रोगों से घिरे रहना आदि प्रमुख हैं।
इनके अतिरिक्त अवसाद से पीड़ित 85 फीसदी
लोगों में नींद की समस्या होती है। मनोविश्लेषकों तथा मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अवसाद (डिप्रेशन) के कई औऱ भी अनेक कारण हो सकते हैं। यह मूलत: किसी व्यक्ति की सोच की बनावट या उसके मूल व्यक्तित्व अथवा परिवार की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
अमृतम आयुर्वेद के हिसाब से एवं आयुर्वेद की सहिंताओं के अनुसार अवसाद (डिप्रेशन) असाध्य रोग नहीं है। इसके पीछे जैविक,
आनुवांशिक और मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक कारण हो सकते हैं। यही नहीं
जैवरासायनिकअसंतुलन के कारण भी कोई कोई
अवसाद (डिप्रेशन) की चपेट में आ जाता है। वर्तमान में डिप्रेशन की अधिकता से पीड़ित होकर अनेकों लोग
सोसाइड (आत्महत्या) तक कर रहे हैं। इसलिए परिवार के लोगों को सदैव परिजनों की रक्षा-सुरक्षा के लिये चैतन्य व सजग रहना जरूरी है।
ध्यान रखें कि परिवार (फेमिली)का कोई सदस्य (मेम्बर) बहुत समय तक गुमसुम,उदास,चुपचाप रहता है, अपना अधिकतम समय अकेले में बिताता है, निराशा से भरी,निगेटिव बातें करता है, तो उसे तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक के पास ले जाएं। उसे अकेले में न रहने दें। हंसाने की कोशिश करें।
देशी दवाओं/दुआओं एवं देशी उपायों का सहारा लेवे।
तत्काल
का सेवन करना चालू करें।
डिप्रेशन में जाने के क्या कारण है-
∆ घर-परिवार,समाज औऱ देश की विपरीत परिस्थितियों की वजह से लोग दिशाहीन होते जा रहे हैं। वर्तमान में तेज़ गति से युवाओं में बढ़ता डिप्रेशन का कारण है,
∆ प्राकृतिक नियम-धर्म,संस्कारों से विमुख होना।
∆ अन्य औऱ भी समस्याएं तनाव,चिन्ता, डिप्रेशन
वृद्धि में सहायक है।
∆ कहीं-कहीं द्वेष-दुर्भावना,स्वार्थ तथा बुरा समय भी डिप्रेशन पैदा कर देता है,तभी तो किसी मस्त-मौला ने कहा है-
दीवार क्या गेरी मेरे कच्चे मकान की
लोगो ने मेरे घर से रास्ते बना लिए
क्यों होता है अवसाद (डिप्रेशन)
■ रसराज महोदधि,
■■ शालाक्य विज्ञान,
■■■ भैषज्य रत्नसार,
■■■■ मन की संवेदनाएँ
■■■■■ चरक व सुश्रुत संहिता आदि आयुर्वेद के प्राचीन प्रसिद्ध ग्रंथों में अवसाद (डिप्रेशन) के लिए ढेर सारा लिखा पड़ा है।
निम्न कारण हो सकते हैं डिप्रेशन के-
●● सहनशीलता में कमी
●● बढ़ती महत्वकांक्षा
●● धैर्य व सयंम न होना
●● अपनी तकलीफों को छुपाना
●● पारिवारिक मूल्यों का पतन
●● रिश्तों में दिखावा
●● दुख के समय मजाक उड़ाना
●● युवा पीढ़ी का परिवार औऱ माता-पिता एवं समाज से दूर रहना।
●● स्वयं को स्वीकार न करने की कुंठा
●● सामाजिक उपेक्षा
●● खुद को कमजोर व गिरा हुआ समझना,
●● बार-बार असफलता
●● रात में पूरी नींद न लेना
●● नशे की बढ़ती प्रवृत्ति
●●निगेटिव सोच,सपने बड़े,
●● आर्थिक तंगी
●● रोगों का भय,
●● परिवार की चिंता
●● बेशुमार बेरोजगारी
●● अपनो से या इश्क-प्यार में धोखा आदि
भारतीय समाज में डिप्रेशन(अवसाद)
का प्रमुख कारण है।
भारत में दिनोदिन सुरसा के मुख की तरह
नई पीढ़ी में बढ़ता डिप्रेशन का डर बहुत ही
तनाव या चिंता का विषय है।
डिप्रेशन के शारीरिक लक्षण-
सिरदर्द,कब्ज एवं अपच,छाती में दर्द,अनिद्रा ,भोजन में अरूचि, पूरे शरीर में दर्द एवं थकान इत्यादि।
2-प्रकार के अवसाद (डिप्रेशन)-
डिप्रेशन या अवसाद को मनोवैज्ञानिकों एवं अमृतम आयुर्वेद के मनोचिकित्सकों ने दो श्रेणियों में विभक्त किया है-
■ प्रधान विषादी विकृति-
इसमें व्यक्ति एक या एक से अधिक अवसादपूर्ण घटनाओं से पीड़ित होता है। इस श्रेणी के अवसाद (डिप्रेशन) में अवसादग्रस्त रोगी के लक्षण कम से कम दो सप्ताह से रहे हों।
■ डाइस्थाइमिक डिप्रेशन-
इसमें विषाद की मन:स्थिति का स्वरूप दीर्घकालिक होता है। इसमें कम से कम एक या दो सालों से व्यक्ति अपने दिन-प्रतिदिन के कार्यो में रूचि खो देता है तथा जिन्दगी जीना उसे व्यर्थ लगने लगता है।
ऐसे व्यक्ति प्राय: पूरे दिन अवसाद की मन:स्थिति में रहते है। ये प्राय: अत्यधिक नींद आने या कम नींद आने, निर्णय लेने में कठिनार्इ, एकाग्रता का अभाव तथा अत्यधिक थकान इन समस्याओं से पीड़ित रहते हैं।
कैसे निपटे अवसाद से-
★★ अवसाद से परेशान पीड़ितों का मजाक न बनाकर उनके प्रति अपनापन का भाव
पैदा करना होगा।
★★ डिप्रेशन से पीड़ितों के प्रति
संवेदनशील बनना पड़ेगा।
★★ "प्यार बांटते चलो" वाली पुरानी विचारधारा से काफी हद तक डिप्रेशन को कम किया जा सकता है।
★★अमृतम की
आयुर्वेदिक देशी दवा भी डिप्रेशन मिटाने के लिए बहुत फायदेमन्द है।
आँसू हैं अवसाद है
सब प्रभु का प्रसाद है
ये सोच भी आपमें हिम्मत भर सकती है
★★ योग,व्यायाम, प्राणायाम, मॉर्निंग वॉक,
दौड़ना,अच्छे साहित्य का अध्ययन,सत्संग अर्थात अच्छे लोगों का संग,समाज सेवा,
समय पर काम निपटाना, आलस्य का त्याग,
सकरात्मक सोच, कैसे भी व्यस्त रहना,
सात्विक भोजन, खर्चे में कटौती, लेखन,
प्रेरक कहानियां पढ़ना,गिरीबों की सेवा,
असहाय बच्चों को पढ़ाना,ध्यान करना,
घर,आफिस,मन्दिर,मस्जिद,गुरुद्वारे की साफ-सफाई औऱ देखभाल करना। आदि में व्यस्त
रहकर समय को खुशी के साथ बिताया जा सकता है।
ब्रेन की गोल्ड टेबलेट
यह शुद्ध देशी जड़ीबूटियों जैसे
ब्राह्मी,शंखपुष्पी,जटामांसी से निर्मित है।
इसे औऱ अधिक असरदार बनाने के लिए
इसमें स्मृतिसागर रस मिलाया गया है।
अश्वगंधा आयुर्वेद की बेहतरीन एंटीऑक्सीडेंट मेडिसिन है।
शतावर मस्तिष्क में रक्त के संचार
को आवश्यकता अनुसार सुचारू करता है।
जिससे डिप्रेशन तत्काल दूर होता है।
प्रोटीन,विटामिन, मिनरल्स की पूर्ति हेतु
ब्रेन की में आँवला, सेव,गुलाब,त्रिकटु
का मिश्रण किया गया है।
आपके अनुभव से बन रहा है नया आयुर्वेद--
आयुर्वेद के इतिहास में अमृतम एक नया नाम है। नया अध्याय है। क्योंकि इस समय की खतरनाक बीमारियों से मुक्ति पाने तथा पीछा छुड़ाने के लिए आयुर्वेद की पुरानी परम्पराओं को परास्त करना जरूरी है।
अमृतम की देशी दवाएँ सभी के लिए स्वास्थ्य
की रक्षक औऱ दिमाग का सेतु है। हमारा विश्वास है कि दिमागी दवाओं में ब्रेन की का चयन ही आपको चैन देगा।
दिमाग की चाबी है-ब्रेन की गोल्ड
आयुर्वेद के उपनिषद बताते हैं कि-
जीवन की जटिलताओं,रोग-विकारों से बचने के लिए आयुर्वेद ही पूरी तरह सक्षम है। देशी दवाएँ स्थाई इलाज के लिये बहुत जरूरी है।
मानसिक रोग,अवसाद (डिप्रेशन) को
"अमृतम आयुर्वेद चिकित्सा" से ठीक किया जा सकता है। इस समय ब्रेन को खुशनुमा बनाने के लिए देशी दवा बहुत कारगर सिद्ध हो रही हैं। आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार मष्तिष्क को राजा औऱ शरीर की कोशिकाओं को सेना माना गया है। यदि राजा दुरुस्त है- मजबूत है,तो दुश्मन हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
आयुर्वेद के नये योग से निर्मित नये युग की अवसाद नाशक,डिप्रेशन दूर करने के लिए एक नई विलक्षण हर्बल मेडिसिन है। यह
सपने सच करने का साथी है।
डिप्रेशन के इम्प्रेसन से पीड़ितों के लिए इसे
सुबह खाली पेट गर्म दूध के साथ लेवें,तो
बहुत ही अच्छा है अन्यथा इसे गर्म पानी में मिलाकर चाय की तरह भी ले सकते है। इसे दिन में 3 से 4 बार तक लिया जा सकता है।
आयुर्वेद की प्राचीन परम्पराओं को परखने,
पढ़ने औऱ परिपूर्ण होने एवं अपना आर्डर
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निवेदन-हम अमृतम की लाइब्रेरी में स्थित
15 से 20 हजार पुरानी किताबों के किवाड़
खोलकर ब्लॉग चुनते हैं जिन्हें वैज्ञानिक कसौटी पर भी परख सकते हैं। अमृतम के लेख यदि पसन्द आएं,तो उन्हें लाइक,कमेंट्स,शेयर करने में कतई कंजूसी न करें।
औऱ, अब अन्त से अनन्त की ओर-
कुछ लोग बहुत निराश होकर इतने टूट
जाते हैं इसके लिए किसी ने कह दिया
हकीम से क्या पूछें,
इलाज-ए-दर्दे दिल।
मर्ज जब जिंदगी खुद ही हो,
तो दवा कैसी, दुआ कैसी।