जीवन का आनंद और आस्था का आधार आयुर्वेद ही है ।
सभी वायरस (संक्रमण) की प्राकृतिक चिकित्सा एवं हर्बल मेडिसिन
विश्व का सबसे प्राचीनतम शास्त्र अमृतम आयुर्वेद के अनेक ग्रंथ
?भैषज्य विज्ञान,
?अष्टांग हृदय,
?शरीर क्रिया विज्ञान
में स्वस्थ-सुखी एवं सफल जीवन के सूत्र सुझाये गए हैं, इन्हें अपनाकर व्यक्ति असंख्य
रोगों, संक्रमण,वायरल फीवर, यकृत,हृदय,उदर,
वात,पित्त,कफ (त्रिदोष) तथा सभी तरह के
अचानक फैलने वाले वायरस से अपनी सुरक्षा कर सकता है ।
अमृतम जीवन के लिए निम्नलिखित
नियमों पर चलने या इन्हें अपनाने
का प्रयास करें ।
1. सुबह उठ कर खाली पेट अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए यदि गुनगुना पानी पियें,तो और भी लाभकारी होता है ।
2. पानी हमेशा ऐसे पियें, जैसे खा रहे हो तथा खाना ऐसे खाएं जैसे पी रहे हों अर्थात पानी बैठकर धीरे-धीरे, सिप-सिप कर पीना चाहिए ।
3. खड़े होकर पानी पीने से शरीर के जोड़ों में दर्द होता है । पेशाब में रुकावट, सिरदर्द, दिमाग में तनाव रहता है ।
4. खाना बहुत धीरे-धीरे, एक निबाले को 32 बार चबाकर खाने से आंते मजबूत होती हैं । कभी उदररोग नहीं होते, पेटदर्द,अम्लपित्त,एसिडिटी
गैस के विकार नहीं होते ।
5. खाने के 40 या 50 मिनिट पहले जल ग्रहण करना मोटापा नहीं बढ़ने देता । खाने के तुरन्त बाद पानी नहीं पियें । इससे उदर की अग्नि कमजोर पड़ जाती है, जिसकारण
अद्भुत लेख भी यहाँ उपलब्ध हैं ।
6 . "प्राकृतिक रत्नसार" नामक शास्त्र में बताया है कि
प्रातः का नाश्ता भरपेट करना चाहिए । यह स्वर्ण के समान है । दुपहर का भोजन चाँदी के स्वरूप तथा रात का भोजन जहर के समान बताया है । रात में कभी गरिष्ठ, (ज्यादा तेल घी युक्त भोजन) या भरपेट खाना खाने से शरीर के सब अवयव, कमजोर हो जाते हैं । रक्त संचार सुचारू रूप से नहीं हो पाता ।
7. सुबह का नाश्ता (ब्रेकफास्ट) सूरज निकलने के '3 घण्टे' तक लेना बहुत ही लाभकारी है ।
सुबह फल,जूस,मठा,छाछ,लस्सी, दूध,द्राक्षा,सलाद, आदि एवं रोटी,ब्रेड हो अथवा पराठे में
मन प्रसन्न रहता है । काम में मन लगता है ।
सुबह के नाश्ते के बाद कभी विश्राम न करे ।
8. रात के भोजन में केवल मूंग की दाल, दलिया, खिचड़ी,हल्का भोजन कर, कम से कम 200 कदम टहलना चाहिए । भोजन के 1 घंटे बाद 2 या 3 गिलास पानी पीकर सोने से नींद बहुत अच्छी,गहरी आती है । सुबह उठते ही
पेट साफ हो जाता है ।
9. दुपहर के भोजन पश्चात कुछ देर आराम कर सकते हैं । गरिष्ठ, घी-तेल से भरपूर भोजन भी लाभकारी है । थोड़ी मिठाई में भी लेना लाभदायक रहता है । दुपहर के भोजन में मीठा का उपयोग जोड़ो में नवीन रस-रक्त निर्माण करता है । लेकिन पानी खाने के एक घंटे बाद ही पीवें ।
10. गर्मियों में यकृत (लिवर) की रक्षा करना चाहिए
दिन में कई दफह,बार-बार पानी पिये । दिन में एक बार 3 या 4 चम्मच एक गिलास सदा जल में मिलाकर
भूख बढ़ाने वाली यह अमृतम आयुर्वेद की अद्भुत असरकारी हर्बल मेडिसिन है ।
11. रात को खाने के साथ
दही,खट्टेफल, जूस, सलाद,रायता, दहीबड़े,आइस्क्रीम,कोल्डड्रिंक
आदि खाने से वात-व्याधि सताती हैं ।
जोड़ों में दर्द,
हड्डियों में रस की कमी हो जाती है ।
यूरिक एसिड बढ़ जाता है ।
सुबह मल विसर्जन द्वारा सारे उदर विकार निकल जाते हैं । वातरोग से बचाव होता है ।
12. फ्रिज़ से निकाले हुआ खाद्य-पदार्थ का सेवन कुछ समय ठहर कर करें,तो तन के लिए बहुत लाभकारी है ।
13. बना हुआ खाना एक घंटे के अंदर खाना बेहत्तर होता है । ज्यादा ठन्डे खाने के नुकसान क्या हैं, इसकी जानकारी पिछले ब्लॉग में पढ़ें ।
14. खाना खाने के बाद हमेशा 5 या 8 मिनिट वज्रासन करने से खाना तुरन्त पच जाता है । पेट रोग नहीं होते ।
चर्बी नहीं बढ़ती,मोटापे से बचाव होता है ।
15. सुबह उठते ही आखों में ठंडा पानी डालना चाहिए ।
अघोरी की तिजोरी से- अवधूत की भभूत
भगवान भास्कर के परम् उपासक,
सूर्य विज्ञान के प्रवर्तक
परमहँस श्री श्री स्वामी विशुद्धानंद जी,
जिन्होंने विश्व के वैज्ञानिकों के समक्ष सबसे खतरनाक जहर पीकर दिख दिया था ।
इन्हें !!शत-शत नमन!!
इनके अनुभव पर रचित चमत्कारी पुस्तक
"मनीषी की लोकयात्रा",
में बताया है की प्रातः
ब्रह्म महूर्त में कोइ यदि हरि घांस पर नंगे पैर 1 माह तक 50 कदम उल्टा चले,तो आँखों का मोतियाबिन्द
कट जाता है ।
आखों की रोशनी बढ़ती है ।
इस उपाय से बहुत लोगों को फायदा हुआ ।
16. रात को हर हाल में 9 - 10 बजे तक सोने की कोशिश करना चाहिए ।
17. आयुर्वेद में चीनी , मैदा , सफेद नमक ये तीनों
अधिक लेने पर जहर हो जाते हैं ।
18. सब्जी-दाल आदि में अजवाइन, जीरा,हल्दी,धनिया,गरममसाला,लालमिर्च डाल कर खाना चाहिये ।
19. खाना हमेशा नीचे बैठकर व खूब चबाकर
ग्रहण करें ।
20. सुबह दूध में हल्दी डालकर पीने से वायरस,केन्सर,ज्वर से रक्षा होती है ।
21. शाम को 5 बजे के बाद कभी चाय न पियें, इससे रात में नींद नहीं आती ।
22. अमृतम आयुर्वेद का प्रभाव-
अब दुनिया भी सृष्टि की अतिप्राचीन चिकित्सा
भी मानने लगी है । इसके कोई हनिडायक दुष्प्रभाव नहीं हैं । हर्बल चिकित्सा तत्काल असर नहीं दिखाती, किन्तु रोगों को अंदर से ठीक करने में इसका कोई सानी नहीं हैं ।
अमृतम आयुर्वेदिक ओषधियां कभी स्वादिष्ट नहीं होती । इसमें डाले गए निम,चिरायता,अमृतवल्लरी आदि घटक असरदायक,तो हैं किंतु स्वादहीन होते हैं ।
आयुर्वेद ग्रंथों के
"अमृतम वचन" में लिखा है कि-
तंदरुस्त तन, स्वस्थ मन तथा स्वच्छ वतन
ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए ।
इसके लिए सुबह जल्दी उठकर
बेखुटके, मटके का 2-3 गिलास पानी पीओ । तन ही वतन है इसको बचाने के लिये हर जतन,प्रयत्न, करने हेतु अमृतम हर्बल दवाएँ, अपनाएं जैसे-
ब्रेन की गोल्ड माल्ट एवम टेबलेट
कुन्तल केअर हेयर आयल,शेम्पू,स्पा,बॉडी वाश
काया की तेल
आदि 90 तरह के उत्पाद का सेवन कर तन को स्वस्थ,जीवन सुखी-सफल बना सकते हैं ।