क्या आप जानते हैं कि ज्वर या बुखार (फीवर) हरेक प्राणी को होता है,किन्तु केवल मनुष्य ही उसे सहन कर पाता है।
शेष प्राणी अक्सर प्राण त्याग देते हैं।
क्यों होता है ज्वरः-
शरीर के दोषों के कुपित होने से मनुष्य के तन का ताप सामान्य से अधिक हो जाता है, दाह, व्याकुलता के लक्षण प्रकट होने लगते हैं, तो उसे ज्वर कहते हैं।
ज्वर यानि फीवर कोई रोग नहीं बल्कि एक लक्षण (सिम्टम्) है जो यह एहसास कराता है कि ,तन के ताप को नियंत्रित (कंट्रोल) करने वाली प्रणाली ने शरीर का वांछित ताप (सेट-प्वाइंट) १-२ डिग्री सल्सियस बढा दिया है।
मनुष्य के शरीर का सामान्य तापमान
-- ३७°सेल्सियस या ९८.६° फैरेनहाइट होता है। जब शरीर का तापमान इस सामान्य स्तर से ऊपर हो जाता है तो यह स्थिति ज्वर या बुखार कहलाती है।
फीवर/बुखार/ज्वर होने के कारण --
■ अधिक परिश्रम करने से
■ अधिक कसरत/व्यायाम के कारण
■ ज्यादा चिन्ता/फिक्र करने से
■ भय-भ्रम, शोक/दुःख से पीड़ित रहने से
■ अत्यधिक क्रोध/गुस्सा करने से
■ द्वेष-दुर्भावना रखने से
■ दूषित भोजन या अखाद्य खाने से
■ पानी,अग्नि या धूप में ज्यादा समय तक रहने से
■ धातुओं के कम या क्षय
■ अधिक परिश्रम करने से
■ अधिक कसरत/व्यायाम के कारण
■ ज्यादा चिन्ता/फिक्र करने से
■ भय-भ्रम, शोक/दुःख से पीड़ित रहने से
■ अत्यधिक क्रोध/गुस्सा करने से
■ द्वेष-दुर्भावना रखने से
■ दूषित भोजन या अखाद्य खाने से
■ पानी,अग्नि या धूप में ज्यादा समय तक रहने से
■ धातुओं के कम या क्षय होने से
■ मच्छर-मक्खियों के काटने से
■ वायु प्रदूषण, संक्रमणों से
■ पेट के लगातार खराब रहने से
■ मल के सड़ने और पुरानी कब्ज से
■ अधिक दवाओं के सेवन से
आदि अनेक कारणों से शरीर में ज्वर की
उत्पत्ति होती है। यह केवल रोग की पहचान है। किसी भी प्रकार के संक्रमण (Infection)
की यह शरीर द्वारा दी गई प्रतिक्रिया/Reaction है। बढ़ता हुआ ज्वर, शरीर में रोग की गंभीरता के स्तर की ओर संकेत करता है।
होने से
■ मच्छर-मक्खियों के काटने से
■ वायु प्रदूषण, संक्रमणों से
■ पेट के लगातार खराब रहने से
■ मल के सड़ने और पुरानी कब्ज से
■ अधिक दवाओं के सेवन से
आदि अनेक कारणों से शरीर में ज्वर की
उत्पत्ति होती है। यह केवल रोग की पहचान है। किसी भी प्रकार के संक्रमण (Infection)
की यह शरीर द्वारा दी गई प्रतिक्रिया/Reaction है। बढ़ता हुआ ज्वर, शरीर में रोग की गंभीरता के स्तर की ओर संकेत करता है।
ज्वर शरीर को जर्जर कर देता है। ज्वर से ही अनेक ज्ञात-अज्ञात विकार जन्म लेते हैं। कभी-कभी इसके लक्षण पूर्ण रूप से प्रकट नहीं होते। लिवर की खराबी का कारण भी फीवर ही होता है। मनुष्य समय रहते ज्वर की प्राकृतिक/नेचरल/आयुर्वेदिक चिकित्सा नहीं करता, इसीलिए यह मन्द ज्वर कुपित होकर जटिलताओं युक्त ज्वरों में बदल जाता है।
ज्वर/फीवर शरीर की इम्युनिटी पॉवर कमजोर कर देता है। पाचनप्रणाली पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाती है। बोलने, सोचने-समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है। कुछ भी सुहाता नहीं है। खाने की इच्छा मर जाती है।
बुखार देता है अपार परेशानी --
पाण्डु रोग (खून की कमी)
उदर रोग/पेट की तकलीफ
वायु रोग,अम्लपित्त, एसिडिटी,गैस विकार
वात रोग/अर्थराइटिस, सूजन, शूल
ग्रंथिशोथ/थायराइड
रक्त-पित्त दोष,
दाह/जलन
अर्श/बवासीर/पाइल्स/भगन्दर/फिस्टुला
क्षय रोग/ट्यूबरक्लोसिस
महिलाओं को श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर, मोनोपॉज
बच्चों को श्वांस, दमा की परेशानी
आदि रोग ज्वर की वजह से हो जाते हैं।
इसी कारण ज्वर/बुखार को आयुर्वेद ग्रंथों में
सबसे खतरनाक समझ जाता है।
ज्वर की चिकित्सा --
इसकी चिकित्सा में पित्त को बढ़ाने वाली दवाओं का सेवन करना निषेध बताया है। किसी भी स्थिति में ऐसी दवाएँ नहीं देना चाहिए, जिससे पित्त कुपित हो। ज्वर रोग में महासुदर्शन घनसत्व, गिलोई, चिरायता, कालमेघ, आंवला मुरब्बा,, गुलकन्द, द्राक्षा, छोटी हरीतकी आदि ओषधियाँ विशेष लाभदायक हैं।
फ्लूकी माल्ट में इन ज्वर नाशक ओषधियों का शास्त्रमत तरीके से समावेश किया गया है।
फ्लूकी माल्ट ऑनलाइन उपलब्ध है।
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बुखार 8 प्रकार का होता है जैसे
वात ज्वर
पित्त ज्वर
कफ ज्वर
सन्निपात ज्वर आदि के कारण, लक्षण,
चिकित्सा, की जानकारी
अगले आर्टिकल में पढ़े।
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