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रोगों का रायता फैलने की 12 वजह
आयुर्वेद के प्राचीन शास्त्र "माधव निदान"
के अनुसार रोगी में कब और कैसे
"रोगों का रायता" फेलने लगता है -
हमारी लापरवाही के कारण शरीर बीमारियों का अखाड़ा
और परेशानियों का पिटारा बन जाता है ।
नियमों के विपरीत चलने से शरीर में त्रिदोष उत्पन्न होता है, जिससे धीरे-धीरे रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है।
पाचनतंत्र कमजोर हो जाता है।
व्याधि से बर्बादी के और भी कारण हैं --
【1】प्रातः जल्दी सोकर न उठने से
【2】सुबह उठते ही पानी न पीने से
【3】रात में दही खाने से समय पर भोजन न करना,
【4】व्यायाम-कसरत न करना तथा
【5】ज्यादा आलस्य करना आदि ।
【6】रोज एक बार में पेट साफ न होना,
【7】बार-बार कब्ज होना,
【8】भूख न लगना,
【9】खून की कमी,
【10】आंव, अम्लपित्त (एसिडिटी),
【11】पाचन क्रिया की गड़बड़ी, हिचकी आदि ।
【12】सप्ताह में 1 या 2 बार मालिश नहीं करने से।
उपरोक्त सब कारणों से होने वाली बीमारियों को आयुर्वेद में मिश्रित रोग कहा गया है।
क्या हैं-मिश्रित रोग-
जो रोग अचानक हो,
बार-बार हों, एक के बाद एक रोग हों ।
विभिन्न चिकित्सा, अन्यान्य विविध क्रियायों
द्वारा शान्त न हों-ठीक न हों,
उन्हें मिश्रित रोग जानना चाहिए।
यदि ऐसा है, तो निश्चित ही शरीर में वैट-पित्त-कफ
पूरी तरह विषम हो चुके हैं।
रजिस्टेंस पॉवर खत्म हो चुका है।
ऐसे मरीजों को तुरन्त
का सेवन करना चाहिये
आयुर्वेद दवाएँ उनके लिए विशेष साध्य हैं।
आयुर्वेद दवाएँ उनके लिए विशेष साध्य हैं।
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बुजुर्ग कहा करते थे,कि-
"धन गया,तो कुछ नहीं गया
तन गया,तो बहुत कुछ गया" !
आयुर्वेद के अदभुत लाभ