सोना या स्वर्ण अत्यंत चमकदार बहुमूल्य धातु है।
इसमें चांदी का मिश्रण करने से रंग हल्का और तांबे को मिलने से सोना पीला हो जाता है।
इस स्वर्ण लेख में जाने-सोने के मुहावरे, कहावतें, सोने के ग्रन्थ, और कहां गढ़ा है सोने का खजाना....
रसेन्द्र पुराण नामक के पृष्ठ 241 पर
स्वर्ण के बारे में बहुत ही दिलचस्प जानकारी
दी गई है। संस्कृत भाषा का यह ग्रंथ
राज्यवेद्य वेद्यरत्न, पण्डित रामप्रसाद द्वारा रचित है, जो सम्वत 1986 में लगभग 90 साल पहले प्रकाशित हुआ था। इस
अनमोल किताब में पारद, शीशा आदि
सभी धातुओं के बारे में विस्तार से लिखा है।
इस लेख में केवल सोने के बारे में जाने....
सात तरह की धातु के विभिन्न नाम...
【1】स्वर्ण यानी सोना
【2】रजत, रौप्य यानि चांदी
【3】तांबा या ताम्र
【4】राँगा
【5】जसद
【6】सीसा वंग
【7】लोहा
स्वर्ण की उत्पत्ति की कहानी....
पंचमहाभूतों में से एक अग्निदेव के
वीर्यपतन से स्वर्ण की उत्पत्ति हुई।
यानी अग्नि के प्रकोप को वीर्यपतन कहा है।
स्वर्ण या सोने के विभिन्न 19 नाम....
स्वर्ण, सुवर्ण, कनक, हिरण्य, हेम,
हाटक, तपनीय, शातकुंभ, गांगेय
भर्म, कर्बुर, चामीकर, जातरूप,
महारजत, काञ्चन या कञ्चन,
रुक्म, कार्त स्वर, जाम्बुनद एवं
अष्टापद यह 19 नाम स्वर्ण के हैं।
अग्नि पुराण, शिव महापुराण, वामनपुराण में शिवजी के सात कमरों वाले स्वर्ण मंदिर का उल्लेख है। यह स्वर्ण महल कहाँ बना, कैसे बना इसकी जानकारी "
वामन पुराण" में हैै। इतना भी लिखा है कि-
महादेव का यह
निवास स्वास्तिक की तरह था।
कैसे करें शुद्ध सोने की पहचान...
जो स्वर्ण कसौटी पर घिसने से केशर जैसे रंग का हो जाये।
स्वर्ण शुद्ध करने का प्राचीन विधान
सोने को तेज अग्नि में पकाकर
कांचनार के काढ़े में बुझाकर पवित्र किया जाता था।
कांचनार के रस की 100 पुट देने से 'स्वर्ण भस्म' निर्मित होती है।
राँगा, जस्ता, सीसा आदि को मठे में बुझाकर ठंडा किया जाता था।
रसेन्द्र पुराण में भगवान शिव द्वारा नन्दी को 11 तरीके से स्वर्ण आदि धातुओ को शुद्ध करने उपाय बताए हैं।
सुनारों की उत्पत्ति...
स्वर्णकार समाज का उत्पत्ति पूर्वज स्थान राजस्थान के अजमेर शहर से बताते हैं, कोटा में इनकी कुलदेवी के अलावा राजस्थान में इनके कुल देवताओं के प्राचीन सिद्ध स्थल मरुप्रदेश में ज्यादा हैं। स्वर्ण की कारीगरी में इनका कोई सानी नहीं है। स्वर्ण आभूषण बनाना, सोने को चमकाना, सोने को घटाना-बढ़ाना इनके लिए बाएं हाथ का खेल है। पुरानी कहावत है कि स्वर्णकार यानि सुनार सोने में बट्टा लगाए नहीं छोड़ता। अजमेर राज्य घराने का एक किस्सा भी कभी बहुत मशहूर था, जो इस प्रकार है-
गहना-आभूषण तो पहनने वाले का होता है, लेकिन सोना सुनार का ही रहता है। आप यदि 100 ग्राम स्वर्ण को 4 बार खरीद-बिक्री कर लो, तो आपके हाथ में केवल 15 या 20 ग्राम सोना बचा रह जायेगा।
एक बार किसी बादशाह ने 'सुनार' से पूछा-
कि तुम 1 तोले स्वर्ण में से कितना खा सकते हो? "स्वर्णकार ने जबाब दिया,- "सोलह आना!'
एक दिन
बादशाह ने इसकी परीक्षा करना चाही और 5 किलो सोने की मूर्ति राजमहल में ही बैठकर बनाने को कहा,- साथ ही सुनार पर कड़ा पहरा बिठलवा दिया।
स्वर्णकार ने राजमहल में काम आरम्भ करने से पहले घर पर ही एक पीतल की मूर्ति बनाना शुरू कर दी और हूबहू वैसी ही मूर्ति राजमहल में भी बनाने लगा। जब मूर्ति बनकर तैयार हो गई तो, सुनार ने 'मंत्री से कहा',- मूर्ति की सफाई के लिए दही की जरूरत है, उसी समय स्वर्णकार की पत्नी, जिसे सुनार ने पहले ही सिखा-पढ़ा दिया था और मूर्ति, दही की मटकी लेकर
'
दही ले-लो, "दही ले-लो"- कहकर निकली।
सुनार ने उसे बुलाकर दही खरीद कर, फिर सोने की मूर्ति को मटके में डालकर, पीतल की मूर्ति राजमहल में रख ली। इस प्रकार सोने की मूर्ति स्वर्णकार के घर पहुंच गई। सुनार ने बादशाह के सामने सिद्ध करके दिखा दिया कि सुनार चाहे, तो "16 आने स्वर्ण" भी हजम कर सकता है।
स्वर्ण के गहने बनाने में जो वस्तुएं प्रमुख भूमिका अदा करती हैं, उनका विवरण निम्नलिखित है-
नौसादर शौरा सखा,
सलिल सुहागा सन्धि,
विमल-विश्व भूषण रचति,
दूर करे दुर्गंधि।
दूर करे दुर्गंधि, नेत्र शीतल करती है,
महाभयंकर रोग, ददरु पल में हरती है।।
तेजाब-गाढ़े तेजाब में लोहा या जस्ता डालने पर गल जाते हैं किन्तु सोने पर तेजाब का कोई असर नहीं होता। पुराने समय स्वर्णाभूषण की सफाई या उजलाने के लिए इमली की खटाई काम में लाया करते थे। वर्तमान में स्वर्णकार गंधक का तेजाब, शोर का तेजाब और नमक का तेजाब का इस्तेमाल कर रहे हैं।
सुहागा-यह सोने की खान के
मध्य मिलता है। कहावत भी है कि- सुहागे के बिना सुनार का तथा सुहाग (पति) के बिना स्त्री का जीवन व्यर्थ है।
प्राचीन काल के प्रसिद्ध स्वर्णकार श्री चंदूलाल वर्मा के अनुसार सुहागा का गुण यूं बताया है कि-
जारि करत है छार, मैल सब काट गिराबे।
सोना-चांदी माहिं डार दो, शीघ्र गलाबे।।
सिख धर्म की पवित्र पुस्तक
श्री गरूग्रंथ साहिब में लिखा है कि....
कामु क्रोधु काइआ कउ गालै ॥
जिउ कंचन सोहागा ढालै ॥
कसि कसवटी सहै सु ताउ ॥
नदरि सराफ वंनी सचड़ाउ ॥१८॥
{पन्ना 932)
अर्थ: जैसे सोहागा (कुठाली में डाले हुए) सोने को नर्म कर देता है, (वैसे ही) काम और क्रोध (मनुष्य के) शरीर को निर्बल कर देता है। वह (ढला हुआ) सोना (कुठाली में) सेक सहता है, फिर कसवटी का कस सहता है (भाव, कसवटी पर घिसा के परखा जाता है), और, सुनहरे रंग वाला वह सोना सराफ़ की नजर में कबूल होता है।
नौसादर-
यह गहने के निर्माण में जोड़ने हेतु उपयोगी है, इसके अलावा आयुर्वेदिक औषधियों में कफ-खांसी के उत्पादों में इसे अपनाते हैं।
अमृतम के "लोजेन्ज माल्ट" में इसे विशेष रूप से मिलाया है। लोजेन्ज माल्ट की एक खुराक लेने पर ही पुरानी से पुरानी कफ सम्बंधित बीमारियों से राहत मिलती है।
सिरदर्द मिटाने के लिए नौसादर की नासिका लेने से सिर की पीड़ा मिटती है। चौपाई है-
नौसादर सादर करत, सिर पीड़ा अतिदूर,
पेटदर्द की भाँति यह, मैल करत काफूर।।
मैल करत काफूर, स्वर्ण-चांदी भी चमकावै,
टुकड़े-टुकड़े जोड़, भव्य-भूषण बनवावे।।
शौरा की विशेषता...
पर-पर विनाश की भूरी,
जहर सम इसका प्याला।
इस पदार्थ से मरे शीघ्र,
पशु व हाथी मतवाला।।
शुद्ध सोने की पहचान कैसे करें-
२४ कैरेट का सोना क्या होता है
एक कैरेट की माप यानी सोने में 4.1666 ग्राम वजन होता है। इसमें 24×4.1666 =
99.9984 ग्राम गुणा करने पर होता है। एक कैरेट में 4 ग्राम1666 मिलीग्राम सोना रहता है। यदि किसी ने 22 कैरेट का 100 ग्राम सोना खरीदा, तो उसके पास शुद्ध सोना 91 ग्राम 66 मिलीग्राम आएगा। सराफा व्यापारी 22 कैरेट का सोना कहकर बेचते हैं, लेकिन वह 20 या 18 कैरेट से अधिक नहीं होता और रकम पूरे 24 कैरेट की लेता है। 24 कैरेट के स्वर्ण में 12 माशे तथा 22 कैरेट में 11 माशे सोना होता है।
सोने में बट्टे का रट्टा...
सोने का चमकदार औऱ हल्का बनाने के लिए चांदी व ताम्बे का उपयोग किया जाता है।
22 कैरेट का आभूषण में
एक कैरेट चांदी तथा
एक कैरेट ताम्बे का बट्टा लगाया जाता है।
रोग भगाए सोना...
सोने का स्वभाव गर्मतर है। यदि 10 ग्राम सोने की गोली 4 घण्टे रोज मुहँ में रखकर चूसे, तो उन्माद, पागलपन, नपुंसकता, मधुमेह मिटकर स्मरण शक्ति तीव्र होती है।
ब्राह्मी वटी गोल्ड
स्वास्थ्य वर्धक सोना....
स्वर्ण पात्र में दाल या सब्जी बनाकर खाने से रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।
राजा-महाराजा खाने के पतीले दाल-सब्जी आदि में स्वर्ण का सिक्का डालकर रखते थे, इससे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता और काम शक्ति यानि सेक्स में वृद्धि होती थी।
पकवान आदि में स्वर्ण का वर्क लगाने का प्रचलन इसी वजह से है। गुजरात-राजस्थान आदि राज्यों में सोने के वर्क का बहुत प्रचलन है। ये मिठाई 2 हजार से 10 हजार रुपये किलो तक बिकती हैं।
हर्बल मेडिसिन है-सोना...
सोना हर्बल है अर्थात स्वर्ण, शरीर में हर-बल प्रदान करता है। स्वर्ण निर्बल व्यक्ति को बलशाली बनाता में है। "
अमृतम गोल्ड माल्ट" के खाने से, तन में-पल भर में हलचल शुरू हो जाती है।
स्वर्ण को आयुर्वेद की सर्वश्रेष्ठ ओषधि माना गया है। आयुर्वेद के सभी ग्रन्थों जैसे- रसेन्द्र सार, रसराज, रस तन्त्रसार, आयुर्वेद सारसंग्रह आदि अनेक किताबो के किबाड़ खोलने पर स्वर्ण के चमकारी परिणामों का खजाना मिलता है।
रोगों के रहस्यों को हटाता है-सोना...
स्वर्णयुक्त दवाएँ कृशता, निर्बलता, बुढापा, शारीरिक क्षीणता, जरा रोग, टीबी, नपुंसकता, शुक्राणु की कमी, वातरोग, मधुमेह, मानसिक बीमारी, याददाश्त की कमी, डिप्रेशन, तनाव आदि ऐसा कोई विकार नहीं है, जो अमृतम स्वर्ण भस्म से दूर न हो।
स्वर्ण भस्म मस्तिष्क, देह को स्थिर और हरेक कार्य करने में समर्थ बनाती है। शरीर की सप्त धातुओं को प्रकृति की सात धातु तन को रोगरहित बनाने में चमत्कारी हैं। आयुर्वेद के लगभग 100 से अधिक ग्रंथों में ऐसा उल्लेख है।
स्वर्ण शलाका से सर्जरी...
आदिकाल में स्वर्ण की सलाई से विष कंठा, केन्सर आदि असाध्य जड़दार फोड़े पर चीरा या दारा लगाकर इलाज करते थे। सोने के आभूषण पहनने से अनेकों बीमारियों का नाश होता है।
नशानाशक सोना...
आधुनिक चिकित्सा जगत में एल्कोहल, कैफीन, निकोटिन, समेक, अफीम आदि नशे की बहुत सी लटों को छुड़ाने में स्वर्ण का उपयोग हो रहा है। स्वर्ण में रक्तसंचार (ब्लड सर्कुलेशन), कैंसर तथा दिल के रोग दूर करने की क्षमता होती है। दिल के गम्भीर ऑपरेशन स्वर्ण निर्मित उपकरणों से ही सम्भव हैं।
शरीर के कटे-पिटे अंगों में टांका लगाने एवं प्लास्टिक सर्जरी हेतु इसे सुरक्षित माना जा रहा है। कैन्सर, प्रोस्टेड आदि में लेजर पध्दति के जरिये स्वर्ण भस्म की वाष्प या भांप द्वारा कैंसर सेल्स नष्ट किये जा रहे हैं।
पवित्रता का प्रतीक है-सोना..
भारत में स्वर्ण शुभत्व, शुद्धता और वैभव का प्रतीक है। गाँव में आज भी किसी के अछूत होने पर स्वर्ण का पानी छिड़का जाता है।
पुरानी परंपरा थी कि जब कोई दरवाजे से अर्थी या शवयात्रा निकलती थी, तो महिलाएं स्वर्णाभूषण से पानी का स्पर्श कराकर अपने घर के आगे डाल देती थी, ताकि मुर्दे का कीटाणु घर में न आ सकें।
स्वर्ण मुद्रा से बच्चों की नजर उतारने का प्रचलन भी प्राचीन है।
राजा-महाराजाओं के दौर में स्वर्ण-चांदी के सिंहासन का खासा महत्व था। स्वर्ण धारण से आत्मविश्वास और आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि होती है।
व्यापार में बढ़ोत्तरी के लिए स्वर्ण का सिक्का गल्ले में रखने का प्रचलन पुराना है।
राजसी खजानों से लेकर धार्मिक अनुष्ठान में स्वर्ण का विशेष स्थान है।
स्वर्ण की शक्ति अटूट है...
सोना सभी के लिए शगुन, सहायता और बीमा है। बुरे-आड़े वक्त में कोई काम आए न आये, पर सोना 100 फीसदी साथ निभाता है। खराब समय में रिश्ते भी रिसने लगते हैं।
पक्षियों की परम्पराएं...
बेजुबान पक्षीयों को भी हैं- सोने से मोह रहता है..
अघोर तन्त्र विज्ञान के मुताबिक
प्राचीन काल में चील पक्षी अक्सर
सोने के गहने उठा ले जाती थी। ऐसी मान्यता है कि- जब तक स्वर्ण नजदीक न हो तब, तक चील के बच्चे आंखे नहीं खोलते। चील की एक खासियत औऱ भी है कि यह सूर्य को एकटक निगाह से देख सकती है। कभी कहा जाता था कि चील के घर में पारस होता है अर्थात चील के घोंसले में सोना निश्चित मिलता है। चील जमीन में दबे स्वर्ण भण्डार की भी जानकर होती है।
कौआ, नाग वहीं सहवास करते हैं, जिस धरती के अंदर स्वर्ण का खजाना छुपा होता है।
सोने की खोज....
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक स्वर्ण भंडार की सबसे पहले खोज महर्षि कश्यप-दिति के पुत्र दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने की थी। हिरण्य, स्वर्ण को कहते हैं और कश्यप का अर्थ अविष्कारक होने यह नाम पड़ा।
हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष के नेत्र स्वर्ण के होने से यह जिस भी धातु पर नजर डाल देते थे, वह स्वर्ण का हो जाता था।
सोना सबके लिए रोना है...
आदिकाल से ही सोना देवी-देवताओं और सबके लिए महत्वपूर्ण रहा है। सफल अनुभवी लोगों के अनुसार सोना वही पाते हैं, जो सदैव जागते रहते हैं। दिन-रात हर हालात में काम में लगे लोगों की पत्नी सोने से लदी रहती है। स्त्रियों को सोने से बहुत लगाव होने के कारण वे हमेशा जागृत अवस्था में रहती हैं।
सोना किधर पाया जाता है-
भारत एक ऐसा देश है जहां सोना जमीन में कम बिस्तर पर ज्यादा पाया जाता है। यहां स्वर्ण से ज्यादा नींद जरूरी है। कुछ लोगों के लिए आलस्य, दूषित विचार, द्वेष-दुर्भावना आदि ही सोना है।
शास्त्रों में सोना...
शिवमहापुराण, लिंग पुराण, स्कन्ध पुराण के अनुसार पारद, मुक्ता, रजत, अष्टधातु, दधि स्वर्ण शिंवलिंग आदि की पूजा से चमत्कारी परिणाम मिलते हैं। महालक्ष्मी की
सोने की लंका कैसे बनी...
माँ भगवती के हठ के चलते महादेव ने देवताओं के वास्तुविद और गणपति के स्वसुर श्री विश्वकर्मा जी को एक अदभुत महल बनाने का निर्देश दिया। हालांकि इस स्वर्ण महल में शिव परिवार एक दिन भी नहीं रुक सका, क्योंकि रावण के पिता विश्रवा द्वारा इस भवन का गृहप्रवेश पूजन कराकर इसे दक्षिणा में मांग लिया था। ऋषि विश्रवा ने इसका नाम लंका रखा था, इसमें सोने का अत्याधिक प्रयोग होने के कारण यह सोने की लंका कहलाई।
लंका निर्माण हेतु "विश्वकर्मा"
ने जो नक्शा बनाया उसमें सोने की जरूरत अधिक थी। अतः भोलेनाथ ने स्वर्ण बनाने का सूत्र इन्हें समझाया।
कामाख्या के एक बंगाली तांत्रिक ने सोना बनाने की विधि इस प्रकार बताई-
गन्धक, पारा, थुथिया।
विधि न जाने चूतिया।।
अर्थात उक्त 3 पदार्थो के मिश्रण से मन्त्रो के सम्पुट देने से सोना तैयार हो सकता है। स्वर्ण निर्माण के प्रयास सदियों से हो रहा है, लेकिन सफलता कुछ ही सिद्ध अवधूत सन्तों को मिल पाई। विज्ञान को तो आज तक सफलता नहीं मिल सकी।
खोजीजन स्वर्ण बनाने का विधान भले ही नहीं ढूढ़ सके, किन्तु उपयोग के हजारों तरीके ईजाद कर डाले।
स्वर्ण आज विद्युत उपकरणों, मोबाइल, इंटरनेट, आदि उपकरणों का कीपार्ट (KEYPART) है।
स्वर्ण वैज्ञानिकों के हिसाब से सृष्टि की अहम अष्ट धातुओं में से एक मात्र परिष्कृत,
परिपूर्ण और पूज्यनीय धातु सोना हमारे लिए जीवनी शक्ति से कम नहीं है।
लाखों वर्षों से सोना रहस्यमयी, जादुई द्रव्य के रूप में लोगों की तमाम तकलीफें दूर करता रहा है।
स्वर्ण को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शोधन के लिए लेपन, अनुपान के रूप में उपयोग करने का प्राचीन इतिहास मिलता है।
कायाकल्प करता है सोना...
भारत के आयुर्वेदिक महर्षियों ने स्वर्ण को बहुत चमत्कारी धातु बताया है। शरीर की सप्तधातुओं को इसकी भस्म रिचार्ज करने में बेहतरीन ओषधि है। आयुवर्धक के रूप में राजा-महाराजा और अमीर लोग इसका सेवन सदियों से करते रहे हैं।
स्वर्ण में ऐसे तत्व मौजूद हैं, जो शरीर में प्राण फूक देते हैं। तन की अनेक अज्ञात असाध्य बीमारियों को दूर कर यौवन निखारने में आयुर्वेद की शक्तिदायिनी दवा अमृतम स्वर्ण
भस्म एक महत्वपूर्ण योग है। अमृतम का हरेक माल्ट अवलेह स्वर्ण भस्म युक्त है।
अमृतम गोल्ड माल्ट कायाकल्प करने की सर्वश्रेष्ठ अवलेह है। बशर्ते इसे 3 से 5 महीने तक सेवन किया जाए। यह सभी उम्र के स्त्री-पुरुषों का बुढापा रोकने में सहायक है।
चीन की चतुरता...
चीन के लोग बुढ़ापे की सुरक्षा के लिए अपने दाँत सोने के लगवाते हैं। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में दांतों में स्वर्ण लगवाना बेहतर निवेश मानते हैं। खोल, बत्तीसी और दांतों में जड़वाने के लिए प्रतिवर्ष 16 से 20 टन सोने की खपत होती है।
सुर मिले मेरा-तुम्हारा....
सुरा पीने वालों के सुर में सुर पल में मिल जाते हैं। आदिकालीन भारत में स्वर्णजड़ित आयुर्वेदिक गोलियां एवं स्वर्णजल का प्रयोग बहुत चलन में रहा है। आज दुनिया के अनेकों देश हिंदुस्तान की नकल कर रहे हैं।
भारत का ऋषि ज्ञान हर क्षेत्र में समृद्ध था, यहाँ के पुराने वैद्य, चिकित्सक, शारीरिक व मानसिक थकान मिटाने के लिए
सुरा यानि एक तरह की आयुर्वेदिक शराब में
स्वर्ण का चूर्ण मिलाकर पिलाते थे।
वात को मारो लात...
वात रोगों की जड़ से मिटाने के लिए आयुर्वेद में वृहत्वातचिन्तामणि
रस, योगेंद्र रस, रसराज रस, स्वर्ण भस्म आदि अनेको ओषधियाँ मिलाकर चिकित्सा की जाती थी। आयुर्वेद
वात को घात से बचाता हैं, इन्हीं योगों से निर्मित
ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल बहुत ही अदभुत दर्दनाशक दवा है। थायरॉइड, लकवा,
जोड़ो के दर्द में अत्यंत राहतकारी है।
आम के आम गुठलियों के दाम..
दुनिया के कई देशों में घोर आर्थिक मंदी झेली है, लेकिन भारत में इसका प्रभाव कम ही होता है, क्योंकी हिंदुस्तान की महिलाएं निवेश के रूप में सोने को संभालकर रखती हैं। स्वर्ण यहां शौक भी है और निवेश भी।
भविष्य में स्वर्ण बहुत महँगा हो जाएगा, इसलिए महिलाओं को सोना खरीदने दीजिए।
पुत्र की प्राप्ति स्वर्ण से..
जिन महिलाओं को पुत्री संतान अधिक हो और वह पुत्र चाहती हैं, तो अपनी दसों उंगलियों में सोने का छल्ला अवश्य पहने।
हर महीने की अमावस्या के एक दिन पहले चतुर्दशी यानी मास शिवरात्रि और मंगलवार को
"अमृतम मधु पंचामृत" से शिंवलिंग पर 7 बार रुद्राभिषेक कराएं।
मनोकामना पूरी होने पर 5 पुराने जीर्ण-शीर्ण शिवमंदिरों का जीर्णोद्धार करवाना न भूले।
धरती में स्वर्ण का खाजाना...
भारत में ही नहीं सन्सार के सभी लोगों की यह मानसिकता है कि-हमारे खेत-खलिहान, घर, जमीन में धन या माल यानी सोना दवा पड़ा है।
तांत्रिक विद्या के अनुसार कैसे जाने की धरती में धन यानि सोना दबा है?
■ जिस भूमि पर अग्नि जलाने पर भी न जले, वहां धन गढ़ा हो सकता है।
■ जहाँ भीषण गर्मी में, सूर्य की तपन के बाबजूद ऐसी घांस जमी रहे कि उसे पशु चौपाये नित्य खाते रहें, तो समझे नीचे धरती में धन है।
■ जिस स्थान पर जेष्ठ मास यानि मई-जून के महीने में किसी पेड़ पर नये पत्ते आते हों और अन्य ऋतु में नहीं रहते हों, तो ऐसा समझे कि नीचे सोना है।
कौए जिस जगह मैथुन करते हैं वहां धन दबा होता है।
स्वर्ण देखने का काजल...
अघोरी तन्त्र विद्या के मुताबिक दीपावली की रात किसी श्मशान में जाकर, मृत मनुष्य के कपाल में सूअर वसा में तिल का तेल मिलाकर दीपक जलाकर काजल पारे।
फिर, उस काजल को आंख में अंजन करने से जमीन में गढ़ी वस्तुएं साफ दिखाई देती हैं। ध्यान रहे यह प्रयोग बिना गुरु के न करें।
प्रथ्वी में स्वर्ण भंडार जानने के अनेको प्रयोग हैं, जो 100 फीसदी कारगर हैं, लेकिन जोखिम भरे हैं और अल्पज्ञानियों के लिए नहीं हैं।
36 गढ़ में राजनन्दगांव के नजदीक एक नदी की बालू, रेत में स्वर्ण के कण मिलते हैं।
सोना यानि आलस्य छोड़कर व्यक्ति यदि तन-मन से सफलता हेतु कोशिश करे, तो जीवन में अनेकों अवसर मिलते हैं। कहते भी हैं-
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।प्रतिदिन परम् प्रयास और परिवर्तन करते हुए प्रगति की तरफ बढ़ना भी सोने के खजाने की प्राप्ती से कम नहीं होता।
स्वर्ण का साथ और कृपा...
सोने की कृपा ने कई कंगालों को कुबेर बना दिया। कुबेर बाबा कल्यानेश्वर के परम भक्त और सृष्टि के धनाध्यक्ष हैं। इनकी कमर झुकी होने के कारण ये कुबड़ा स्वरूप है। रावण दशानन के कुबेर भाई भी हैं।
भारत था कभी सोने की चिड़िया..
"यहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, यह भारत देश है मेरा।" यह गीत तो सबने सुना होगा। भारत में कभी अथाह स्वर्ण का भंडार था, जिसे मुगलों-मुसलमानों तथा विदेशियों लूट लिया।
परिवर्तन परमात्मा की परम्परा है...
समय बदला-सोना बदला। राजाओं की आपसी रंजिश के चलते अपना माल पराया हो गया। अनेको युद्ध ने देश को अशुद्ध कर दिया। आज हजारों टन सोने का खजाना जमीन में दबा पड़ा है। लोगों को बहुत से बीजक मिले, किन्तु खजाना नहीं मिल सका। लगभग सभी खजाने अभिमंत्रित या कीलित हैं।
सोने की पोथी-
शाही शहर पटियाला की पंजाबी यूनिवर्सिटी के अध्ययन विभाग में महाराजा रंजीत सिंह के समय का नीलम जडि़त दुर्लभ व पुरातन
24 कैरेट सोने की स्याही से लिखा हुआ
श्री गुरु ग्रंथ साहिब सहेजकर रखा गया है इस स्वर्ण स्याही की चमक आज भी बरकरार है।
पटियाला विश्वविद्यालय में 568 हस्तलिखित दुर्लभ और प्राचीन ग्रंथों को डिजिटलाइजेशन करने काम भी हो रहा है।
260 हस्तलिखित श्री गुरु ग्रंथ साहिब, 44 श्री गुरु गोबिंद सिंह का लिखित श्री दशम ग्रंथ साहिब और 272 पोथियां भी मौजूद हैं. यह हस्तलिखित ग्रंथ 1604 ई. से लेकर 20वीं सदी तक के हैं।
स्वर्ण मन्दिर...
★ अमृतसर पंजाब का जगत प्रसिद्ध गुरुद्वारा श्री हरमिन्दर साहिब 'स्वर्ण मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है।
★ दूसरा दक्षिण भारत के वेल्लूर का महालक्षमी स्वर्ण मंदिर।
बौद्ध धर्म के स्वर्ण ग्रन्थ...
700 साल पुराना ये ग्रंथ तिब्बती में लिखा है। भारत में कई किताबें सोने और चांदी के चूर्ण से लिखी हुई है। स्वर्णप्रभा सूत्र पूरा सोने और चांदी से लिखा हुआ है।
दूसरा बौद्ध ग्रन्थ शतसाहस्रिका प्रज्ञा पारमिता ग्रंथ का पहला पन्ना सोने की स्याही से लिखा हुआ है। इस ग्रंथ में बुद्ध के मूल वचन हैं। ग्रंथ में पहले पन्ने पर ही बुद्ध का चित्र है। ये भी सोने के पानी से बनाया गया है।
सौवर्ण का अर्थ है - सुनहरी और दूसरा अर्थ- तोल में एक स्वर्णमुद्रा के बराबर।
सौवर्चल नामक देश से प्राप्त सोंचर नमक, सज्जी का खार
स्वर्णनगरी शिवधाम को कहा गया है।
सोने की लंका - सृष्टि के पहले वास्तुविद द्वारा निर्मित शिवभवन, जिसे दशानन रावण ने दक्षिणा स्वरूप शिव से मांग लिया था।
स्वर्णम- सोना एवं सोने का सिक्का कहलाता है।
सोने के दाने को 'कणिका' कहते हैं।
भगवान विष्णु का वाहन श्री गरुण जी का एक नाम स्वर्णम भी है, जिनके स्मरण से अचानक आये घनघोर कष्ट दूर होते हैं। दखिण भारत में विशेष दुःखों को दूर करने हेतु इनकी पूजा का विधान है।
स्वर्ण गैरिक- लालरंग की गेरू या खड़िया होती है। मध्यप्रदेश के जैतवारा में इसकी बहुत खदानें हैं। यह बवासीर नाशक भी है।
स्वर्णचूड़:- महादेव का एक नाम, नीलकंठ औऱ मुर्गा कहा जाता है।
स्वर्णजम-राँगे का एक नाम है।
स्वर्ण दीधिति का मतलब है- अग्नि क्योंकि आग का रंग स्वर्ण जैसा होता है।
चंपक वृक्ष ही स्वर्ण पुष्प है।
सोना गिरवी रखना- स्वर्ण बंध कहलाता है।
स्वर्णमाक्षिक नाम का एक खनिज पदार्थ है, जिससे आयुर्वेद में अमृतम स्वर्णमाक्षिक भस्म निर्मित होती है, जो रक्त वृद्धि आदि अनेकों रोगों का शमन करने में सहायक है।
सोना मक्खी नामक रेशम का कीड़ा होता है।
स्वर्णरेखा-सोने की लकीर एवं लक्ष्मण रेखा को कहते हैं।
स्वर्णरेखा नामक एक नदी, जो कभी में ग्वालियर में बहा करती थी। कहते हैं- इस नदी में पारस पत्थर था। यह नदी अब नगर निगम की कृपा से अब गन्दा नाला बन चुकी है।
स्वर्णगंगा नदी-यह दक्षिण के वायुतत्व शिंवलिंग श्रीकालाहस्ती शिवालय के नजदीक है।
स्वर्णवणिज- सोने का व्यापारी।
स्वर्णकार-सोने के आभूषण बनाने वाला।
स्वर्ण का एक नाम "कनक" है। कनक धतूरे को भी कहते हैं। कहावत भी है-
कनक-कनक से सौ गुने मादकता अधिकाय"
स्वर्ण जयन्ती-50वे वर्ष में बनाये जाने वाला उत्सव।
स्वर्णकोश, स्वर्णकोष, स्वर्ण मंडित, स्वर्णपदक, स्वर्णमान यानि सोने का स्टेंडर्ड, स्वर्णमुद्रा, आदि स्वर्ण से जुड़े नाम हैं।
मन्दिर औऱ गुरुद्वारों की छत पर लगे सोने के खम्बे स्वर्ण शिखर कहे जाते हैं।
ज्योतिष चिंतामणि ग्रन्थ के अनुसार स्वर्ण शिखर के दर्शन से केतु दोष दूर होता है। बच्चे तेजस्वी होते हैं।
स्वर्णिम यानी सुनहला, जो पुखराज रत्न का सब्सिट्यूट पत्थर है।
सोने की कहावतें-
● सोने का घर मिट्टी हो जाना यानि बनी हुई गृहस्थी का नाश हो जाना।
● मालदार आदमी और भारत को सोने की चिड़िया कहते हैं।
● सोने में सुहागा अर्थात किसी वस्तु या व्यक्ति का उच्चतर होना।
● सोने से लदे रहने वाले को "सोने से लदा" रहना कहते हैं।
● स्वर्ग का एक नाम सोनापुर है।
● सोनापेट- सोने की खान को कहते है।
● सोना उछालते जाओ
● सोना कहे सुनार से, उत्तम मेरी जात।
काले मुहँ की चिरमिरी, तुली हमारे साथ।।
मैं लालों की लाडली, लाल ही मेरा रंग।
काला मुहँ जब से हुआ, तुली नीच के संग।।
अर्थ-प्राचीन काल में घुँघची
(लाल-लाल रंग के छोटे-छोटे बीज वाली जंगली बेल, गुंजा) और सोने का विवादित बातचीत है।
● सोना जाने कसे और मानस जाने बसे।
मतलब यही है की सोने की परीक्षा कसौटी पर और मनुष्य की बुद्धि से होती है।
● सोना लेने पी गए और सूना कर गए देश।
सोना मिला न पी मिले, रूपा हो गए केश।
अर्थात ऐसे काम जिससे गांठ की पूंजी भी चली जाए और बुढापा भी जल्दी आ जाए।
● सोने का घड़ा और पीतल की पेंदी
यानि नामी-ग्रामी, धनवान होकर भी बेईमान और धोखेबाज होना।
● उतर गई लोई, तो क्या करेगा कोई
अर्थात- जब कोई बर्बाद होकर लूट जाता है, तो कोई साथ नहीं निभाता।
● पड़वा गमन न कीजिये, जो सोने की होए।
अर्थात-पड़वा तिथि को कभी भी यात्रा पर नहीं निकलना चाहिए, चाहें सोने की प्राप्ति होने वाली हो। "ज्योतिष कालान्तर ग्रन्थ" में ऐसा उल्लेख है।
● यही भला है मीत जो, झूठ कभी न बोल।
बड़ा न सोना हो सके, फिर सुनहरी झोल।।
अर्थात-100 झूठ के बाद भी सच्चाई नहीं छुपती क्योंकि राँगे पर सोने की परत चढ़ाने से राँगा कभी सोना नहीं होता।
● सुनार के लिए सोना शतरंज नहीं सदरंज है- स्वर्णकार को नित्य नये डिजाइन बनाने से 100 परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
सोना बनाने की विधि...
प्रभुदेवा, व्यलाचार्य, इन्द्रद्युम्न, रत्नघोष, नागार्जुन के बारे में कहा जाता है कि ये पारद से सोना बनाने की विधि जानते थे। कहा जाता है कि नागार्जुन द्वारा लिखित बहुत ही चर्चित ग्रंथ 'रस रत्नाकर' में एक जगह पर रोचक वर्णन है जिसमें शालिवाहन और वट यक्षिणी के बीच हुए संवाद से पता चलता है कि उस काल में सोना बनाने की विधि ज्ञात थी।
एक किस्से के बारे में भी खूब चर्चा की जाती है कि विक्रमादित्य के राज्य में रहने वाले 'व्याडि' नामक एक व्यक्ति ने सोना बनाने की विधा जानने के लिए अपनी सारी जिंदगी बर्बाद कर दी थी। ऐसा ही एक किस्सा तारबीज और हेमबीज का भी है। कहा जाता है कि ये वे पदार्थ हैं जिनसे कीमियागर लोग सामान्य पदार्थों से चांदी और सोने का निर्माण कर लिया करते थे। इस विद्या को 'हेमवती विद्या' के नाम से भी जाना जाता है।
वर्तमान युग में कहा जाता है कि पंजाब के कृष्णपालजी शर्मा को पारद से सोना बनाने की विधि याद थी। इसका उल्लेख 6 नवंबर सन् 1983 के 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' में मिलता है। पत्रिका के अनुसार सन् 1942 में पंजाब के कृष्णपाल शर्मा ने ऋषिकेश में पारे के द्वारा लगभग 100 तोला सोना बनाकर रख दिया था।
कहते हैं कि उस समय वहां पर महात्मा गांधी, उनके सचिव महादेव भाई देसाई और युगल किशोर बिड़ला आदि उपस्थित थे। इस घटना का वर्णन बिड़ला मंदिर में लगे शिलालेख से भी मिलता है। हालांकि इस बात में कितनी सच्चाई है, यह हम नहीं जानते।
स्वर्ण तेरे रंग निराले...
कहते हैं कि बिहार की सोनगिर गुफा में लाखों टन सोना आज भी रखा हुआ है। मध्यकाल में गौरी, गजनी, तेमूर और अंग्रेज लूटेरे लाखों टन सोना लूट कर ले गए फिर भी भारतीय मंदिर, गुरुद्वारों और अन्य स्थानों पर आज भी टनों मन सोना रखा हुआ है। आखिर भारतीय लोगों और राजाओं के पास इतना सोना आया कहां से था।
सोने का महत्व प्यार-मोहब्बत में भी बहुतायत होता रहा है जैसे-
तुझे जब मेरा होना न था, तो
फिर मेरे कंधे पर सोना न था।
थके हारे लोग कहते हैं...
ऐसा सोना है कि कभी न जागूँ।
किसान का दर्द...
अब तो जमीन को भी रोना आ रहा है।
सोना बोने वाले अब शहर में जा बसे हैं।।
100 रोगों की एक स्वर्णयुक्त दवा....
शरीर के सभी जोड़ों में दर्द आयुर्वेद का अद्भुत अमृत वातरोग विनाशक
@ ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट
@ ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल
जिसके सेवन से थाइराइड, सूजन शरीर के दर्द 88 प्रकार के अर्थराइटिस यानी वात-विकार हाहाकार कर तन से पलायन कर जाते हैं।
बरसात को मात-
यह बरसात का सीजन है । इस समय
रात में ठंड,दिन में गर्मी लगने से शरीर में
वात,पित्त,कफ का संतुलन बिगड़
जाता है । तन,त्रिदोष के कारण
त्राहि-त्राहि करने लगता है ।
हमेशा ध्यान रखें वर्षा ऋतु के
समय प्रकृति में दूषित वातावरण,
जलवायु होने से शरीर में रोग
अपना स्थान बनाकर बाद में
वात विकार के रूप में
परेशान करते हैं ।
दर्द से दुखी दुनिया
बरसात के दिनों की थोड़ी सी
लापरवाही पूरी बादशाही
छीन लेती है ।
शरीर के किसी न किसी अंग में या
अंग-अंग दर्द की वजह से हमारा
ध्यान भंग कर देता है ।
किसी काम में मन नहीं लगता ।
कभी सिरदर्द, तो कभी पूरा बदन
दर्द से कराह उठता है ।
1- हाथ-पैरों में टूटन,
2- कमर दर्द,
3-जोड़ों में जकड़न,
4-पिंडरियों में पीड़ा,
5-उंगलियों में दर्द,
6-भारीपन,
7-आलस्य,
8-भूख न लगना
8-ग्रंथिशोथ,
9- सूजन वात वृद्धि आदि
रोग बरसात की देन है ।
वर्षा काल में ही वातविकार
शरीर में अपना अधिकार जमाकर
जीवन भर पीड़ित करते हैं ।
क्या करें
यदि इस मौसम में नियमित
सुबह खाली पेट तथा रात में
ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सुल एक
ऑर्थो की गोल्ड माल्ट 2 चम्मच
दोनों एक साथ गुनगुने दूध से
लेना चाहिए ।
ऑर्थोकी गोल्ड से लाभ
ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल एवं माल्ट
अमृतम की ऐसी अद्भुत हर्बल दवा है
जिसके सेवन से वातविकार
हाहाकर कर तन से पलायन कर जाते हैं ।
तन तंदरुस्त, मन दुरुस्त, हो जाता है ।
ऑर्थोकी गोल्ड शरीर में जमा हुए
विषैले पदार्थों को मलविसर्जन
द्वारा बाहर निकलता है ।
पीयूष ग्रंथि के स्त्राव
को रोकने में सहायक है ।
!!-गलगण्ड की वृद्धि
!!-गले की सूजन
!!-हाथ पैरों की उंगलियों में
कम्पन्न, सुन्न पन
!!-गठियावात,लकवा
!!-रीढ़ की हड्डी का दर्द
आदि अनेक अज्ञात विकारों का नाशक है ।
ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल एवं माल्ट
खून का सही संचालन कर नये
रक्त-रस का निर्माण करने में भी
सहायता करता है ।
बढ़ती उम्र के कारण घुटनों जोड़ों में
जिन्हें बहुत ज्यादा दर्द रहता है या
जो लोग घुटनों को बदलवाने की
सोच रहें हैं,उन्हें एक बार
ऑर्थोकी गोल्ड
3-4 माह तक एक बार जरूर लेना चाहिए।
पुराने व असाध्य वात रोगों में यह अत्यंत
उपयोगी और त्रिदोष नाशक है ।
भूख, खून तथा रस की वृद्धि
में सहायक है।
शरीर के सभी जोड़ों में दर्द हेतु
अद्भुत हर्बल चटनी
ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट सप्लीमेंट के रूप
में एक वात नाशक हर्बल चटनी है ।
इसे बिना किसी रोग के हमेशा लिया जा सकता है । इसके सेवन से शरीर में सभी तरह के प्रोटीन, विटामिन्स, मिनरल्स व खनिज पदार्थो की पूर्ति होती है ।
*आँवला,
*हरड़,
*सेव,
*करोंदा,
*गाजर आदि मुरब्बों तथा
*दशमूल,
*रास्नादी,
*एरण्ड मूल,
*निर्गुन्डी,
*हरश्रृंगार का काढ़ा एवं
*शुद्ध शिलाजीत,
*शुद्ध गुग्गल,
*सल्लकी,
*शुद्ध कुचला,
*एकांग्विर रस,
*बृहतवातचिन्तामनी रस स्वर्ण युक्त
आदि से निर्मित यह आयुर्वेदिक ओषधि
शरीर को चमत्कारिक रूप से मजबूत
बनाती है । समय पर पेट साफ करना,
भूख व खून,ऊर्जा-शक्ति बढ़ाना
इसका अद्भुत गुण है ।
आयु का गणित
ऑर्थोकी-
चालीस के बाद
दे शरीर को खाद
पचास के बाद, जब शरीर
खल्लास होने लगे,तो इसका सेवन
60 की उम्र में खाट नहीं पकड़ने देता ।
अतः सत्तर के बाद बिस्तर पर नहीं
पड़ना चाहते हो,तो अस्सी तक
ऑर्थोकी माल्ट को गुनगुने
दूध में मिलाकर लस्सी की
तरह उपयोग करें ।
मन को दे अमन
अमृतम ओषधियों में
यह विशेषता है की यह तन के साथ-साथ
मन की भी चिकित्सा करती हैं ।
इसीलिए आयुर्वेद को मन उपचारक
ओषधि भी कहा गया है ।
ऑर्थोकी के बारे में बहुत ही विस्तार से जानने
की उत्कंठा हो,तो अमृतम की वेबसाइट
www.amrutampatrika.co.in
पर पुराने लेख/,ब्लॉग पढ़ सकते हैं ।
अमृतम को जानने हेतु
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