अमृता एक अमृतम ओषधि | Guduchi- An Amrutam Herb
क्या आपको पता है-
भविष्य में वायरस से फेलने वाली
बीमारियों से विश्व में बर्बादी हो सकती है।
क्या आप संक्रमण (वायरस) को जड़
से मिटाने वाली जड़ीबूटियों के बारे जानना चाहते हैं। इस लेख को पूरा पढ़कर अनेक
रोगों से मुक्त हो सकते हैं।
डेंगू फीवर,स्वाइन फ्लू,मलेरिया,बुखार
आदि 88 तरह के वायरल फीवर
का नाश करने में सहायक एक अदभुत आयुर्वेदिक जड़ीबूटी "गुडुची" से करें
स्वास्थ्य की हर समस्या का समाधान
गुडुची अथवा "अमृतम फ्लूकी माल्ट"
ज्वर का अन्त करने की वजह से इसे
जबरदस्त ज्वरान्तक ओषधि कहा गया है।
गुडुची के सारतत्वों से बनाया गया
"फ्लूकी माल्ट" का नियमित सेवन शरीर को अनेक संक्रमण, वायरस से होने वाली स्वाइन
फ्लू,डेंगू फीवर,मलेरिया आदि अनेक
बीमारियों से बचाता है |
आयुर्वेद साहित्य के अनुसार-
• गुडुची;संक्रमण, वायरस विकारों का नाशकर, जीवनीय शक्ति वृद्धिकारक है
• शरीर को ताकतवर व शक्तिशाली बनाती है ।
• रोगप्रतिरोधक क्षमता
(immunity power) बढ़ता है।
आयुर्वेदिक रहस्यनिघण्टु के अनुसार-
रोगान्तक गुुडूची भय-भ्रम चिन्ता,तनाव के कारण पैदा होने वाली बीमारियों का अन्त करती है। इन्हीं विशेषताओं के कारण इसे
फ्लूकी माल्ट में मिलाया है
क्यों होता है मलेरिया-
आयुर्वेद के अनुसार संक्रमण (वायरस)
से घिरने का मूल कारण
"रोगप्रतिरोधक क्षमता" यानि
"इम्युनिटी पावर" तथा
जीवनीय शक्ति की कमी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डव्लूएचओ)
ने निष्कर्ष निकाला है कि
◆ दिमागी बुखार,
◆ स्वाइन फ्लू,
◆ निपाह वायरस,
◆ चिकनगुनिया,
◆ डेंगू फीवर, रैबीज
◆ मलेरिया,बुखार
◆ अंग-अंग में दर्द
◆ बेचेनी,घबराहट
जैसी 11 बीमारियां है जो किसी प्राकृतिक प्रदूषण तथा वातावरण के प्रदूषित होने एवं संक्रमण के द्वारा विश्व को बीमारियों का घर बना देंगी। भविष्य में इन संक्रमित वायरस
से दुनिया दुःखी हो जाएगी।
क्या होगा आगे-
वर्तमान में अप्राकृतिक दवाओं के दुष्प्रभाव इतने दुष्परिणाम दायक होंगे कि लोग गरीबी रेखा से नीचे पहुंच कर कंगाल हो जाएंगे।
शरीर के अवयव और रक्त नाड़ियां शिथिल हो जाएंगी। जीवनीय शक्ति क्षीण-हीन होकर
तन रोगों का पिटारा बन जायेगा।
स्वस्थ्य-तंदरुस्त रहने के लिए
गुडुची से निर्मित फ्लूकी माल्ट नियमित लेवें
इसमें गुडुची,चिरायता, भूमिआमलकी,
आँवला, सेव मुरब्बा,गुलकन्द आदि 50 ओषधियों का मिश्रण है।
■ भेषजयरत्नावली,
■ माधव निदान
■ भावप्रकाश निघण्टु एवम
45 से अधिक आयुर्वेद चिकित्सा ग्रंथों में 88 प्रकार के मलेरिया,बुखार,दिमाग की कमजोरी,ब्रेन फीवर आदि खतरनाक रोग संक्रमण (वायरस) के कारण होते हैं।
क्या है गुडुची-
आयुर्वेद भाष्यों के 'गुडूच्यादिवर्ग:
में लिखा है कि-
"गुड़ति रक्षति इति गुडूची"।
आयुर्वेद की पुरानी किताबें कहती हैं कि
अमृता- न मृतमस्या:,
अर्थात गुडुची से निर्मित ओषधियों
के सेवन से रोग व मृत्यु टल जाती है ।
गुडुची जीवाणु-कीटाणुओं की रक्षक है ।
निघंटु, द्रव्यगुण विज्ञान आदि के अनुसार गुडुची के विभिन्न नाम
गुडूची- 'गुडरक्षते' ।
गुडूची अनेक व्याधियों से रक्षा करती है ।
मधुपर्णी- 'मधुमयानि पर्ण अन्यस्या:'।
जिसके पर्ण (पत्ते) मधुर होते हैं ।
अमृतवल्लरी-अमृत रस बरसाने वाली
छिन्ना- जो काटने पर भी नष्ट न हो ।
छिन्नरुहा- छिन्ना अपि रोहति.,।
जो काट डालने पर भी बढ़ती रहती हो ।
छिंनोदभवा
वत्सादनी- वत्से:अद्यते, 'अद भक्षणे',।
बछड़े जिसे खाते हैं ।
जीवन्ती-जीवन दायिनी ।
जीवनीय शक्तिदायक ।
रोगप्रतिरोधक क्षमता वृद्धिकारक ।
संक्रमण नाशक ।
तंत्रिका- तन्त्रयति या-सा, 'तत्रीकुटुम्बधारणे' ।
"तन्त्रयते धारयत्यायु:" !
कुटुम्ब के आयुष्य की रक्षा करती है ।
सोमा- अमृत से भरने वाली ।
सोमवल्ली
कुण्डली-आध्यात्मिक ऊर्जादायक ।
कुंडलिनी जागरण करती है।
चक्रलक्षणिका- सप्तचक्र जागृत करे
धीरा- अर्थात
धीरे-धीरे शरीर को क्रियाशील बनाने वाली ।
विशल्या-तन के विष,रोग,व्याधियों की नाशक
रसायनी- शरीर को अथाह शक्ति व ताकत देने वाली । इसके सेवन से हानिकारक रसायन नष्ट होते हैं ।
गरुनवेल-पथरी का नाश करे।
गुलवेल
चंद्रहासा
वयस्था-बुढ़ापे आने सेे रोके।
मण्डली- मस्तिष्क के लिए हितकारी।
ब्रेन की बन्द कोशिकाओं,खून की नली
को खोलने वाली।
देवताओं द्वारा खोजी गई ।
आदि गुुडुची के ये संस्कृत नाम है ।
गुणदायक गुडुची-
वायरस,संक्रमण, बुखार,मलेरिया,डेंगू,
स्वाइन फ्लू आदि जैसे अचानक
आने वाले रोगों की रक्षक है।
सर्वरोग नाशक अमृतम गुडुची-
गुडूची,अमृता या गिलोय नाम से प्रसिद्ध
यह कटु (कड़वी) तिक्त, तथा कषाय
रस युक्त एवम विपाक में मधुर रसयुक्त, रसायन, संग्राही, उष्णवीर्य, लघु,बलकारक, अग्निदीपक तथा ८८ प्रकार के ज्वर वायरस मिटाने वाली बूटी है जो तन-मन को ब्यूटीफुल बनाती है।
22 विकारों की विनाशक गुडुची-
त्रिदोष, आम (आँव),
तृषा (प्यास),
दाह (जलन),
मेह (मधुमेह),
कास (खांसी)
पाण्डुरोग (खून की कमी या खून न बनना),
कामला (यकृत रोग पीलिया),
कुष्ठ (सफेद दाग)
वातरक्त,
ज्वर, कृमि, त्वचारोग और
वमि (अति सूक्ष्म कीटाणु)
आदि रोगों का नाश करती है ।
अमृतम गुडुची-
- प्रमेह, श्वांस,
अर्श (बबासीर),
मूत्रकृच्छ (पेशाब की रुकावट,जलन)
हृदयरोग,
संक्रमण या वायरस से फैलने वाले
ज्वर,मलेरिया,बुखार,डेंगू तथा रक्त
रोग और पुराने वात-विकारों जैसे
हाथ-पैरों,जोड़ों का दर्द, ग्रंथिशोथ
(थायराइड) को पनपने नहीं देती।
गुणों का भंडार,गुडुची
महर्षि चरक के अनुसार यह 200
प्रकार के ज्ञात-अज्ञात एवं साध्य-असाध्य
आधि-व्याधियों से शरीर की रक्षा करती है ।
यह-वातघ्न ग्राही, वातहर है (चरक सहिंता)
■ दीपनीय (भूख बढ़ाने वाली),
■ श्लेष्महर (फेफड़ों के रोग,कफनाशक),
■ रक्तरोगों का संहार करने वाली तथा
■ विबंध (पुरानी कब्ज) दूर करने वाली है ।
■ पित्त और कफ पूरी तरह मिटा देती है ।
अमृतम गुडुची के फायदे-
◆ देसी घी सेे लेने पर सभी वात-विकार
नष्ट हो जाते हैं ।
◆ गुडुची के काढ़े में गुड़ मिलाकर लेने से आदतन कब्ज दूर होकर, दस्त साफ आता है ।
◆ मिश्री के साथ लेने से पित्त का
नाश करती है ।
◆ शुण्ठी के साथ आमवात को दूर करती है ।
धन्वन्तरि निघंटु में ऐसा लिखा है ।
जिसके आस-पास हो गुडुची
वह क्यों करेगा माथापच्ची
शास्त्रों में क्या है कहानी-
प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ
आदर्श निघंटु, भावप्रकाश,
द्रव्यगुण विज्ञान,
आयुर्वेद सहिंता के अनुसार
गुडुची के सेवन से तन-मन व वतन में समय-असमय फैलने वाले रोग-विकार किसी भी
हालत में या निगेटिव परिस्थितियों में
भी कुछ नहीं बिगाड़ पाते ।
गाँव का ज्ञान-
ग्रामीण गणों ने गुडुची से बनी दवाओं को
"रोगों का महाकाल" कहा है।
अमृतम आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में गुडुची का उपयोग बहुत समय से हो रहा है ।
भारत में इसका ज्ञान बुजुर्गों,आदिवासियों
को बहुत था। पुराने बीते समय गाँवों में
बुखार , ज्वर,
कफज, संक्रमण व बरसात के कारण
फैलने वाले रोग, प्रमेह रोग, उदर रोग,
पुरुषों व महिलाओं की बीमारियां,
रक्त की खराबी,
सर्दी-खांसी, आदि रोगों में गिलोय के
पंचांग को उबाल काढ़ा बनाकर देने का प्रचलन रहा है |
वर्तमान में शुद्ध गुडुची से निर्मित
सर्वश्रेष्ठ ओषधि
अमृतम फ्लूकी की माल्ट है
गुडुची का गुण - इसकी बेल जिस
वृक्ष पर चढ़ कर फैलती है | उसके सारे गुण भी अपने में गृहण कर लेती है | निम्ब पर चढ़ी अच्छी मानी जाती है। इसमें नीम के सारे गुण होते है । इसीलिये यह ज्वर नाशक ओषधि के रूप में प्रसिद्ध है । उदर में उपजे मल व मलेरिया इसके सेवन से नष्ट हो जाता है।
साथ ही अपने गुणों के कारण यह
सभी प्रमेह, मधुमेह जैसी बीमारियों
में तुरन्त लाभकारी है |
गुडुची के अन्य नाम-
हिंदी में- गिलोय, गुरुच, गुडुच ।
बँगाली में- गुलंच, पालो (सत्व) ।
मराठी में- गुलवेल, गरुडवेल ।
गुजराती में- गलो ।
कंन्नड में- अमरदवल्ली, अमृत वल्ली ।
तेलगु में- तिप्पतिगे ।
तामिल में- शिन्दिल्कोडी, अमृडवल्ली ।
उड़ीसा में- गुलंचा ।
मलयालम में- अंम्रितु ।
गोआ में- अमृतवेल ।
फारसी में- गिलोई, गिलोय ।
अरबी में- गिलोई ।
अंग्रेज़ी में- टिनोस्पोरा ।
गुडूची का सत्व -
त्रिदोष से उत्पन्न वातिक, पैतिक, श्लेष्मिक
(वात-पित्त-कफ) ज्वर,मलेरिया,
√ दिमागी बुखार,वायरस के विकार,
√ हमेशा सुस्ती रहना,
√ शरीर का कमजोर होते जाना,
√ शिथिलता के कारण कम्पन्न होना
√ दवाइयों का दुष्प्रभाव होने से अन्य
√ दवाई न लगना या किसी और चिकित्सा से फायदा न होना।
√ शरीर का विषाक्त होना,
√ पाचन तन्त्र का बिगड़ जाना,
√ मेटाबोलिज्म सिस्टम खराब होना,
√ नवीन रक्त का निर्माण न होना,
√ रक्त का संचालन में रुकावट,
√ नाडियों का कड़क हो जाना,
√ भूखवृद्धि में अवरोध,
√ आंखों व हथेलियों पर सफेदी सी आना,
√ बहुत जल्दी थकावट हो जाना,
√ निढाल होकर पड़े रहने की इच्छा होना या
कोई काम करने का मन न होना,
√©पेट की खराबी,उदर के 45 से अधिक
विकारों को जड़ से दूर करने में
गुडुची से बना फ्लूकी माल्ट
बहत फायदेमंद है | साथ ही
∆ जीर्ण ज्वर,
∆ सन्निपात ज्वर,
∆ ज्वरातिसार,
∆ सूतिका ज्वर,
∆ रात्रि ज्वर और
∆ मलेरिया ज्वर
∆ रक्तविकार,
∆ यकृत , प्लीहा, सुजन ,
∆ कुष्ठ, मेह, पुयमेह,
∆ श्वेत प्रदर और स्तन्य विकारो
में भी लाभकारी है।
गुडुची सेवन का आसान तरीका-
गुडुची युक्त फ्लूकी माल्ट यह एक हर्बल अवलेह है जो जैम की तरह गाढ़ा होता है।
शरीर में शीघ्र पचने के कारण आयुर्वेद में
अवलेह को विलक्षण हर्बल मेडिसिन
बताया गया है।
इसके सेवन से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता में विकास होता है,इम्युनिटी पॉवर बढ़ता है।
गुडुची युक्त फ्लूकी माल्ट लगातार खाने से व्यक्ति जल्दी बीमार नहीं होता एवं
जीवन भर तंदरुस्त,स्वस्थ -मस्त, रहता है |
फ्लूकी माल्ट-यकृत, गुर्दे,जिगर,उदर,
पाचन तन्त्र स्वस्थ रखता है | मन-मस्तिष्क को शान्त करता है। कमजोरी मिटाकर हेल्थ बनाता है।
फ्लूकी माल्ट रोग नाशक और
स्वास्थ्य वर्द्धक आयुर्वेद की महान दवा है
जो मन की मलिनता मिट्टी में मिला देता है ।
खून की वृद्धि व रक्तसंचार में सहायक-
गुडुची युक्त फ्लूकी माल्ट के उपयोग से शरीर मे खून की कमी को पूरा किया जा सकता है | जिनके शरीर में खून की कमी है वे 2-2 चम्मच गुनगुने दूध से 2 या 3 बार 2 माह तक लगातार लेवें । खून की कमी के साथ – साथ यह शुद्ध आयुर्वेदिक नुस्खा त्वचा विकारों के लिए भी उपयोगी है
शिथिल व कमजोर नाडियों में रक्त सुचारू
कर आलस्य,सुस्ती मिटाने में सहायक है |
उत्तम ज्वर नाशक औषधि - सभी ज्वर नाशक ओषधियों के निर्माण में
गुडुची को हरेक ज्वरान्तक दवा में इसे आवश्यक रूप से मिलाते हैं क्योंकि
यह एक प्राकृतिक ज्वरनाशक,
संक्रमण रक्षक,
ज्वरान्तक प्राकृतिक औषधि
के नाम से प्रसिद्ध है |
सभी संक्रमणों व वायरस के आक्रमणों
से शरीर की
सुरक्षा कर जीवनीय तन्त्र प्रणाली को
मजबूत बनाता है
पुराने समय में 88 प्रकार के जीर्ण ज्वर में इसके कांड का काढ़ा बना कर देने से
जिद्दी बुखार से निजात हेतु दिया जाता था बुखार में इस काढ़े को तीन समय तक प्रयोग कर सकते है |
जिन्हें निपाह वायरस,
चिकनगुनिया,
डेंगू फीवर, या स्वाइन फ्लू,
मलेरिया- बुखार हो एवं
खून में प्लेटलेट्स भी कम हो रहे हो तो – गिलोय के कांड के साथ पपीते के पत्तों का रस मिलाकर काढ़ा तैयार कर ले और नियमित सेवन करे | जल्द ही खून में प्लेटलेट्स की संख्या में बढ़ोतरी होगी एवं संक्रमण रोग में भी आराम मिलेगा।
आंखों की आशा-
नेत्र विकार दूर कर सपने साकार करने में भी गिलोय के अच्छे परिणाम देखे गए है | स्वस्थ्य तन से ही मन अच्छा रहता है एवम मन में
अमन होने पर सभी स्वप्न पूरा करना सहज-सरल हो पाता है ।
अमृता-आँखों की रोशनी बढ़ाती है, जिनकी द्रष्टि कमजोर हो वे दूरदृष्टि से सोच नहीं पाते । गिलोय के स्वरस का सेवन कर सकते है या आँखों पर गिलोय के पतों को
पीसकर लगाने से भी लाभ मिलता है |
वात-विकार, करे हाहाकार-
गुडुची युक्त अमृतम दवाएँ
"ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल" माल्ट,चूर्ण,
व "ऑर्थोकी पेन आयल"
वात-विकार से लाचार स्त्री-पुरुषों हेतु
बहुत ही असरकारक ओषधि है ।
शरीर के सुन्न हिस्से में हलचल पैदाकर सम्पूर्ण कड़क नाड़ी प्रणाली को क्रियाशील
बनाता है ।
वात-व्याधियों को उत्पन्न करने वाली सख्त नाड़ियों को मुलायम बनाने में सहायक है ।
जब दर्द सताए और नींद न आये-
ऑर्थोकी- असंख्य वात रोग नाशकर, सूखी
हड्डियों में रस-रक्त का निर्माण करता है ।
भय-भ्रम, चिंता, तनाव व संक्रमण या वायरस की वजह से होने वाले रोग तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी से उत्पन्न,
"विकार ग्रस्त वाहिनियों"
की पूरी तरह मरम्मत कर उनमें
रक्त का संचार करता है ।
40 के पार, जिनका तन बेकार
होने लगा हो, उनके लिये "ऑर्थोकी"
अदभुत असरकारक है ।
वातज विकारो में - मुख्य रूप से शरीर में दर्द रहता है यह दर्द जोड़ों (जॉइंट्स) ,कमर, साइटिका, पेट आदि किसी भी जगह हो सकता है | अगर आपके शरीर वातज विकार से लाचार हो, तो साथ नियमित सुबह – शाम सेवन करे |
"ऑर्थो गोल्ड माल्ट" व कैप्सूल
जब किसी भी योग (चिकित्सा) ठीक न
हो रहे हों, तब पुराने से पुराने
असाध्य वातरोगों को जड़मूल
से मिटाने के लिये
ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल, माल्ट एवम ऑर्थोकी पेन आयल का उपयोग करें।
शरीर की सप्तधातुओं को बलिष्ठ
बनाकर वात- विकारो का सर्वनाश करता है ।
हमेशा की तकलीफ से आराम मिलेगा |
गुडुचीयुक्त कीलिव माल्ट-
यकृत रोगों में विशेष हितकारी
उदर रोग या यकृत के कारण होने वाले पीलिया रोग में इसका सेवन सर्वश्रेष्ठ है | गिलोय में पाए जाने वाले तत्व पीलिया रोग को ठीक करने में कारगर सिद्ध होते है | गिलोय के कांड को कूट कर इसका काढ़ा बनाकर और इसमें "मधूपंचामृत" मिलाकर
45 तरह की ओषधियों, मुरब्बो में 25 दिन सिकाई करके कीलिव माल्ट निर्मित होता है।
इसे सुबह खाली पेट गर्म दूध या पानी से 2 से 3 चम्मच लेवें,तो यकृत रोगों में चमत्कारी आराम मिलता है।
पीलिया रोग जल्दी ठीक होता है |
हृदय रोग हेतु गुडुची-
गिलोय उन्माद ( पागलपन ) के साथ – साथ हृदय के लिए भी फायदेमंद होती है |
इसमें ब्राह्मी का रस मिलाकर बनाया है।
"ब्रेन की गोल्ड माल्ट" इसका सेवन करने से हृदय को बल मिलता है । उन्माद का नाश तथा याददास्त तेज़ होती है।
यह अवसादग्रस्त लोगों के लिए अमृत है।
पिछले लेखों/ब्लॉग
में दी जा चुकी है-
गुडुची मोदक इसे घर में बना सकते हैं ।
यह आश्चर्यजनक स्वास्थ्य वर्द्धक लड्डू है।
गुड़, गुग्गल (अमृतम गूगल),
गुड़हल पुष्प, पित्त का प्रकोप,
थायराइड एक खतरनाक रोग,
बालों की बीमारियां औऱ झड़ना
अवसाद एक मानसिक विकार
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