लिवर की समस्या और समाधान | Natural Liver Care

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 लिवर की समस्या और समाधान

यकृत (लिवर) शरीर का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। लिवर शरीर का सबसे बड़ा भाग अर्थात अंग होता है। यदि यकृत में किसी भी तरह  का संक्रमण (इंफेक्‍शन) या लिवर में खराबी आ जाती है तो, शरीर में कई प्रकार के ज्ञात-अज्ञात विकार के उत्पन्न हो जाते हैं। अनेक दुष्प्रभाव दिखने लगते हैं।

हमारे देश में बहुत से लोग विशेषकर सभी तरह के स्त्री-पुरुष हैं,जो यकृत रोग से भयंकर पीड़ित हैं। वर्तमान में अनेक नवयुवक-युवतियों,बच्चों को  लिवर की समस्‍या है किन्‍तु उनका इलाज ठीक से नहीं हो पाता।

लिवर की सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा आयुर्वेद

 और घर में आसानी से उपलब्ध है।

हम प्रतिदिन के खानपान में यदि

● मुनक्का, ● गुलकन्द, ●अंजीर,

●आँवला ● मुरब्बा, ● सेव मुरब्बा,

● बेल मुरब्बा, ● पपीता, ● हरीतकी,

● त्रिफला, ● अनार, ● अमरूद,

● अंगूर ● धनिया, ● कालमेघ,

● सौंफ, ● जीरा, ● अजवायन, ● सौंठ, ●तेजपत्र, ● मंडूर, ● दालचीनी,

● मूंग की दाल, ● पोदीना, ● मकोय,

● पुर्ननवा, ● करील, ● अपामार्ग,

●अमलताश, ● कुटकी
● भूमिआमलकी, ● काला व सेंधा नमक, ● बहेड़ा, ● कालीमिर्च,● हींग

आदि का सेवन करते रहें,तो लिवर की तकलीफों से बच सकते हैं।
यह सब देशी जड़ीबूटियां, मुरब्बे, 

मेवा-मसाले, आयुर्वेद की निरापद 

हानिरहित अमृत ओषधियाँ हैं।

विशेष सावधानी-

जिन लोगों को लिवर में सूजन हो, पेट में दर्द रहता हो, पेट में ज्यादा गैस बनती हो उन्हें तुरन्त ही अरहर की दाल (पीली या तुअर की दाल) का त्याग कर देना चाहिए। 

लिवर की खराबी से होने वाले रोग-

पेशाब का पीली आना -- बहुत लम्बे समय तक  यकृत (लिवर) की खराबी से पेशाब पीली आने लगती है। पीलिया और पाण्डु रोग होने पर भी मूत्र में पीलापन आता है।

आखों में लालिमा या पीलापन-- यह समस्या
लिवर में संक्रमण होने से होती है। कभी-कभी पानी कम पाइन या पानी की कमी से भी आंखों में
गर्मी के कारण लालिमा व पीलापन आता है।

पेट दर्द – अम्लपित्त, वायुविकार, भोजन न पचना आदि पेट दर्द के अनेक  कारण हो सकते हैं।  अगर पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में या पसलियों के नीचे दाहिने भाग में लगातार दर्द रहता है, तो हो सकता है कि कई दिनों से पेट पूरी तरह साफ नहीं हो पा रहा है। कब्ज की शिकायत की वजह से  आपका लीवर तकलीफ में है।

पेट में सूजन आना –लीवर सिरोसिस रोग के कारण पेट पर सूजन आने लगती है। पेट का बाहर की ओर अधिक निकल जाना लीवर सिरोसिस रोग का संकेत हो सकता है जिसमें पेट में फ्लूड जमा हो जाता है और आँतों से रक्तस्राव होने लगता है और इसके बढ़ते जाने की स्थिति में लीवर कैंसर भी हो सकता है।

त्वचा (स्किन)पर चकत्ते से होना –त्वचा का मुलायम होना स्वस्थ्य तन की पहचान है।
आयुर्वेद शरीर विज्ञान के अनुसार त्वचा की सतह का नम बने रहना बहुत ज़रूरी है,यदि यकृत (लीवर) रोग से पीड़ित होने पर त्वचा की सतह पर पाए जाने वाले द्रव्य में कमी आने से खाल में कुछ मोटापन आने लगता है। त्वचा मोटी, शुष्क हो जाती है और इस पर बार-बार खुजली होती है। इसकारण शरीर पर चकत्ते पड़ने लग जाते हैं
त्वचा पर खुजली होने से पड़ने वाले चकत्ते लीवर की खराबी की ओर इशारा करते हैं।

बार-बार पीलिया (जोइंडिस) से 

पीड़ित होना–
यह बहुत खतरनाक रोग है। पीलिया होने पर
भूख,प्यास की इच्छा खत्म हो जाती है। रक्त
का निर्माण नहीं हो पाता।
पीलिया आमतौर पर हेपेटाइटिस ए वायरस की वजह से होता है जो दूषित या संक्रमित खानपान से फैलता है।
आंखों के सफेद भाग का पीला हो जाना इस बीमारी का सबसे बड़ा लक्षण है
शरीर पीला पीला और त्वचा सफ़ेद होने लगे तो ये संकेत है खून में पित्त वर्णक बिलीरुबिन का स्तर बढ़ने के, जिसके कारण शरीर से अनावश्यक पदार्थों का बाहर निकलना संभव नहीं हो पाता और लीवर खराब होने का ये संकेत पीलिया के रूप में दिखाई देता है।

सरल शब्दों में समझें,तो
जिस इंसान को पीलिया होता है उसके बिलिरुबिन की अत्यधिक मात्रा का अधिकतर हिस्सा पेशाब के द्वारा यानि यूरीन में निकल जाता है लेकिन जितना हिस्सा बचता है वो पूरे शरीर की कोशिकाओं में फैल जाता है। और इसी वजह से मल (स्टूल) का कलर (रंग) बदल जाता है।

बेचैनी रहना – लिवर की लगातार खराबी से एसिडिटी और अपच जैसी पाचन सम्बन्धी समस्याओं का प्रभाव भी यकृत पर पड़ सकता है जिससे लीवर क्षतिग्रस्त अर्थात डैमेज हो सकता है जिसके संकेत के रूप में जी मिचलाना और उल्टी आने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

वजन कम होना

दिनों-दिन बिना किसी प्रयास
के  वजन का घटता जाना कम ठीक नहीं  है। अगर लीवर खराब हो चुका हो तो भूख कम लगने लगती है जिसकी वजह से वजन कम होता जाता है। इस संकेत को तुरंत जानकर इलाज करवाना बेहद ज़रूरी है।

मल विसर्जन में होने वाले परिवर्तन

लीवर खराब होने की स्थिति में कब्ज़ की शिकायत रहने लगती है, मल में बहुत बदबू एवं रक्त आने लगता है और मल का रंग काले रंग का हो जाता है। यह संकेत मिले,तो  लापरवाही न करें।

मूत्र में परिवर्तन – लीवर पित्त का निर्माण करता है लेकिन लीवर खराब होने पर रक्त में पित्त वर्णक बिलीरूबिन का स्तर बढ़ जाता है जिसके कारण मूत्र का रंग गहरा पीला हो जाता है और खराब हो जाने के कारण लीवर इस बढ़े हुए वर्णक को गुर्दा (किडनी) के ज़रिये बाहर निकाल नहीं पाता है।

शरीर के अन्य भागों में सूजन –लिवर के खरब होने या ठीक तरीके से काम न कर पाने के कारण रक्त का संचार अवरुद्ध हो जाता है। इस कारण भी हाथ-पैरों, जोड़ों,टखनों और तलुओं में तरल जमा होने लगता है, जिससे इन भागों में सूजन
(स्वेलिंग) आ जाती है. ये सब यकृत के गंभीर रूप से खराब होने का लक्षण है। इस स्थिति में जब आप त्वचा के सूजे हुए भाग को दबाते हैं तो दबाने के काफी देर बाद तक भी वो स्थान दबा हुआ रहता है।

हमेशा थकान महसूस होना – सामान्य रूप से रोज़ाना थोड़ी थकान महसूस होना स्वाभाविक है लेकिन अगर बहुत ज़्यादा थकान महसूस होने लगे, चक्कर आने लगे और मांसपेशियों में कमज़ोरी महसूस हो तो ये लीवर के पूरी तरह खराब होने के संकेत हैं। इसके अलावा नींद का चक्र भी गड़बड़ा जाता है और भ्रम जैसी स्थिति बनने लगती है जिससे व्यवहार में भी बदलाव आने लगते हैं और याददाश्त भी कमजोर होने लगती है। लीवर फेल हो जाने की स्थिति में कोमा (सन्यास) में जाने के हालात भी बन सकते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ रहने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा ज़रूरी है।
हमें अपना खानपान ऐसा रखना चाहिए कि शरीर का हर एक अंग,अवयव,कोशिका,

नाड़ियाँ अपना कार्य सही तरीके से करें। लम्बी उम्र के लिए लीवर जैसा महत्वपूर्ण अंग को स्वस्थ्य व सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है।

लिवर ही शरीर का मूल तन्त्र है, यदि लिवर ही खराब होने लगे तो ये गंभीर बीमारी का रूप ले सकता है।  ऐसे में आप अपने शरीर में होने वाले हर छोटे बड़े परिवर्तन के प्रति सजग व चैतन्य रहिये, क्योंकि लिवर मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि और सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है लीवर यानि यकृत जो भोजन को पचाने में अहम भूमिका निभाता है, साथ ही शरीर के विकास के लिए ग्लूकोज, प्रोटीन और पित्त जैसे आवश्यक पदार्थों का निर्माण भी करता है

आयुर्वेदिक इलाज-
कीलिव माल्ट- KEYLIV MALT
"A TOTAL OF LIVER"

कीलिव माल्ट अनेक प्रकार की जड़ीबूटियों
के सत्व,रस,काढ़े से निर्मित है। इसमें बहुत से मेवा-मुरब्बो, मसालों का समावेश है।
कीलिव माल्ट आयुर्वेद की प्राचीन अवलेह
पद्धति से निर्मित है। मेवा-मुरब्बो के मिश्रण
से यह जैम की तरह हर्बल चटनी जैसा स्वादिष्ट है। इसे रोटी,पराँठे,ब्रेड
पर लगाकर भी खाया जा सकता है।

कीलिव के लाभ-
इसका प्रयोग उदर में हानिकारक द्रव्यों के दुष्प्रभाव को निष्क्रिय कर देता है। यकृत (लिवर) की कार्यक्षमता को पुनर्स्थापित करने के लिया बेजोड़ ओषधि है
कीलिव माल्ट- 

■ आँतों की दुर्बलता,
■ खून की कमी,
■ भूख न लग्न या कम लगना,
■ यकृत वृद्धि,
■ चयापचय और कब्जियत में लाभकारी है।

मात्र 3 दिन के सेवन से पाचन तन्त्र 

मजबूत हो जाता है।
■ मल को ढ़ीला कर पेट साफ करता है।
■ बार-बार होने वाले कब्ज का नाश कर देता है।
■ अरुचि एवं उदर रोगों में हितकारी,
पीलिया,पाण्डु रोग  दुर्बलता नाशक।
■ सभी अज्ञात रोगों को दूर कर शरीर को स्वस्थ्य और सुन्दर बनाता है।
कीलिव माल्ट-

एक जायकेदार यकृत रोगहारी
हर्बल ओषधि है,जो 56 प्रकार के लिवर एवं उदर रोगों को जड़मूल से मिटाता है।
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एक बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी-

लाइट  का सर्वप्रथम अविष्कार कब हुआ?

लंकेश्वर नामक ग्रन्थ के अनुसार

विद्युत (लाइट)सौर ऊर्जा के सर्वप्रथम

अविष्कारक परम शिव भक्त दशानन

 (रावण) ने अपनी बहिन सुपर्णखा के

पति "विद्युतजिव्हा" और महर्षि

अगस्त्यमुनि के सहयोग से किया था।

 

 

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